शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश की एक राज्यसभा सीट के लिए इस वर्ष फरवरी में हुये चुनाव में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद कांग्रेस का प्रत्याशी हार गया था। क्योंकि कांग्रेस के छः और तानों निर्दलीय विधायकों ने भाजपा के पक्ष में वोट किया। राज्यसभा चुनाव के लिए कोई भी राजनीतिक दल अपने विधायकों को सचेतक जारी करके किसी उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करने के लिये बाध्य नहीं कर सकता। यह नियम है। इसी नियम का सहारा लेकर छः कांग्रेसियों ने अपनी नाराजगी रिकॉर्ड पर लाने के लिए क्रॉस वोटिंग कर दी। लेकिन कांग्रेस नेतृत्व में इस बजट पर मतदान के समय गैर हाजिरी रहना करार देकर इन लोगों को सदन और विधायकी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। यह सभी लोग भाजपा में शामिल हो गये और भाजपा ने इन्हें उपचुनाव के लिये अपना उम्मीदवार भी नामित कर दिया। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान करीब एक माह यह लोग अपने चुनाव क्षेत्रों और प्रदेश से भी बाहर रहे। इस बाहर रहने पर जो खर्च हुआ उसे कांग्रेस ने भाजपा के ऑपरेशन कमल की संज्ञा दे दी। एक एक विधायक को पन्द्रह-पन्द्रह करोड़ दिए जाने का आरोप लगा और यही आरोप उप चुनावों की मुख्य मुद्दा बना। बल्कि कांग्रेस के दो विधायकों संजय अवस्थी और भूवनेश्वर गॉड ने बाकायदा बालूगंज थाना में शिकायत देकर आपराधिक मामला दर्ज करवा दिया। यह मामला विधायक आशीष शर्मा और पूर्व विधायक चैतन्य शर्मा के पिता सेवानिवृत्त मुख्य सचिव राकेश शर्मा के खिलाफ दर्ज किया गया।
अब इस मामले की जांच चल रही है। इस जांच में विधायक आशीष शर्मा को पुलिस दो बार पूछताछ के लिये बुला चुकी है। राकेश शर्मा और पूर्व विधायक रवि ठाकुर और तथा चैतन्य शर्मा से घंटों पुलिस पूछताछ कर चुकी है। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और अब केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर के प्रचार सलाहकार तरुण भंडारी से भी बालूगंज में पूछताछ हो चुकी है। माना जा रहा है कि भाजपा के पक्ष में मतदान करने वाले सभी लोगों को देर सवेर पूछताछ के लिये बुलाया ही जायेगा। पुलिस अब तक की जांच में यह पता लगा चुकी है कि चण्डीगढ़ में इनके ठहराव के दौरान का सारा बिल एक फार्मा कंपनी ने अदा किया है और उसके तार खट्टर के प्रचार सलाहकार तक पहुंच रहे हैं। जिस हेलीकॉप्टर कंपनी ने इन विधायकों को हवाई यात्राएं कारवाई उसके मुख्यालय गुरुग्राम भी हिमाचल पुलिस दस्तक दे आयी है। हेलीकॉप्टर कंपनी के यहां जाने पर काफी विवाद भी उठ चुका है। जिसमें दोनों प्रदेशों के शीर्ष पुलिस प्रबंधन को भी बीच में आना पड़ा है। हिमाचल पुलिस की जांच का मुख्य बिन्दु यह पता लगाना है कि क्या हिमाचल सरकार को गिराने के लिए धनबल का प्रयोग हुआ। यदि हुआ तो यह खर्च किसने किया? जब उपचुनावों के प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री और अन्य कांग्रेसी नेताओं ने इन लोगों के खिलाफ पन्द्रह-पन्द्रह करोड़ में बिकने का आरोप लगाया था तब कुछ लोगों ने मुख्यमंत्री के खिलाफ मानहानि के मामले भी दायर किये हैं। इन मामलों में प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है। ऐसे में यदि हिमाचल पुलिस इस सारे खेल में धन बल का प्रयोग होना प्रमाणित नहीं कर पाती है तो मानहानि के मामलों में स्थिति नाजुक होना तय है।
हिमाचल पुलिस यदि धनबल का प्रयोग होना प्रमाणित कर देती है तो निश्चित रूप से उसकी आंच भाजपा हाईकमान तक भी पहुंचेगी। क्योंकि आरोप पन्द्रह-पन्द्रह करोड़ देने का है। उस समय भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा थे। उन्हीं की संस्तुति से यह लोग भाजपा में शामिल हुए और उपचुनाव में उम्मीदवार भी बने। धन बल के सहारे किसी भी लोकतांत्रिक सरकार को गिराने का प्रयास करना न केवल निन्दनीय है बल्कि यह गंभीर अपराध भी है। इसके प्रमाणित हो जाने का असर भाजपा के भविष्य पर भी पड़ेगा यह तय है। यदि यह आरोप प्रमाणित नहीं हो पाते हैं तो इसका सीधा प्रभाव मुख्यमंत्री के खिलाफ दायर हुए मानहानि के मामलों पर पढ़ना तय है। इसी बीच हिमाचल में ईडी और आयकर जैसी एजैन्सीयां दखल दे चुकी है। नादौन में तीन बार ईडी आ चुकी है। सूत्रों के मुताबिक ईडी के हाथ लगे मामले बहुत ही गंभीर हैं। ऐसे में राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में यह आम चर्चा का विषय बना हुआ है कि हिमाचल पुलिस अपनी जांच को पहले अंतिम रूप दे पाती है या ईडी अपनी धरपकड़ की प्रक्रिया पर अमल कर पाती है। या दोनों ही ओर से हथियार डाल दिये जाते हैं। वैसे इस प्रकरण पर प्रदेश के हर आदमी की नजर लगी हुई है।
शिमला/शैल। स्व. वीरभद्र सिंह छः बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। प्रदेश में उनके समर्थकों/प्रशंसकों की लम्बी लाइन है जिसे छोटा करना आज के राजनीतिक नेतृत्व के वश की बात नहीं है। प्रदेश की राजनीति में जो मुकाम स्व. वीरभद्र सिंह को हासिल है वह किसी अन्य नेता को नहीं है। इसी मुकाम के कारण आज स्व. वीरभद्र सिंह के प्रशंसक चाहते हैं कि डॉ. परमार की तरह उनकी भी मूर्ति स्थापित की जाये। लेकिन इस समय का राजनीतिक वातावरण जिस मोड़ पर पहुंच चुका है उसमें यह प्रस्तावित मूर्ति स्थापना अनिश्चितता में जाती नजर आ रही है।
इस पर पांच बार विधायक रहे पूर्व मंत्री विजय सिंह मनकोटिया ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, प्रदेश के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल, पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष डॉ. राजीव बिंदल को पत्र लिखकर कुछ आपतियां उठाई हैं। इन आपत्तियों का आधार सितम्बर 2015 में स्व. वीरभद्र सिंह के आवास पर केंद्रीय एजेंसीयों ईडी और आयकर द्वारा की गयी छापेमारी के बाद उनके खिलाफ बनाये गये आपराधिक मामलों को बनाया गया है। इस छापेमारी पर उस समय प्रदेश भाजपा द्वारा की गई नारेबाजी और लोकसभा चुनाव के दौरान जिस तरह का चुनावी मुद्दा बनाया गया था उसका स्मरण भाजपा नेताओं को करवाया गया है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि जो आपराधिक मामले उस समय स्व.वीरभद्र सिंह के खिलाफ बनाये गये थे वह आज तक उनकी मृत्यु के बाद भी लंबित चल रहे हैं। ऐसे में स्वभाविक रूप से मूर्ति स्थापना का मुद्दा एक अलग राजनीतिक आकार ले लेता है। अपराधिक मामलों के लंबित होने की स्थिति में सरकार द्वारा यह मूर्ति स्थापित किया जाना कई अलग प्रश्न खड़े कर देगा।
वैसे मेजर विजय सिंह मनकोटिया के रिश्ते स्व. वीरभद्र सिंह के साथ कभी एक जैसे नहीं रहे हैं। वह कभी स्व. वीरभद्र सिंह के नजदीक तो कभी दूर वाली स्थिति में रहे हैं। संयोगवश मुख्यमंत्री सूक्खू के राजनीतिक रिश्ते भी स्व. वीरभद्र सिंह के साथ बहुत सौहार्दपूर्ण नही रहे हैं। विपक्षी दल भाजपा ने स्व. वीरभद्र सिंह के खिलाफ बने अपराधिक मामलों का खूब राजनीतिक लाभ उठाया है। लेकिन कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में स्व. वीरभद्र सिंह के प्रति जनता की सहानुभूति का अवश्य लाभ मिला है। विधानसभा से पहले मण्डी के लोकसभा उपचुनाव में भी कांग्रेस को इस सहानुभूति का लाभ मिला है। इसी सहानुभूति के कारण श्रीमती प्रतिभा सिंह भाजपा की जय राम सरकार के समय में यह उपचुनाव जीत गई थी। विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस कार्यालय में वीरभद्र सिंह के विश्वस्तों की चुनाव संचालन में प्रमुख भूमिका रही है।
लेकिन कांग्रेस की सरकार बनने के बाद इस दिशा में स्थितियां इस कदर बदल गयी है की प्रतिभा सिंह को लोकसभा चुनाव लड़ने से पीछे हटना पड़ा। विक्रमादित्य सिहं को मंत्री पद से त्यागपत्र देने की नौबत आ गयी। विक्रमादित्य सिंह ने भले ही अपना त्यागपत्र वापस लेकर मण्डी से लोकसभा उम्मीदवार बनना स्वीकार किया लेकिन उनकी हार ने उनसे ज्यादा स्व. वीरभद्र सिंह की राजनीतिक विरासत पर सवाल खड़े कर दिये। शिमला ग्रामीण में भी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को बढ़त न मिलने से यह सवाल और ज्यादा गंभीर हो जाते हैं। इस तरह के राजनीतिक परिदृश्य में पूर्व मंत्री विजय सिंह मनकोटिया के इस पत्र के राजनीतिक मायने बहुत बड़े हो जाते हैं। क्योंकि इसी दौरान में प्रदेश में ईडी और आयकर एजैन्सियों ने दस्तक दी है।
यह है मनकोटिया का पत्र
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