शिमला/शैल। स्व. वीरभद्र सिंह छः बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। प्रदेश में उनके समर्थकों/प्रशंसकों की लम्बी लाइन है जिसे छोटा करना आज के राजनीतिक नेतृत्व के वश की बात नहीं है। प्रदेश की राजनीति में जो मुकाम स्व. वीरभद्र सिंह को हासिल है वह किसी अन्य नेता को नहीं है। इसी मुकाम के कारण आज स्व. वीरभद्र सिंह के प्रशंसक चाहते हैं कि डॉ. परमार की तरह उनकी भी मूर्ति स्थापित की जाये। लेकिन इस समय का राजनीतिक वातावरण जिस मोड़ पर पहुंच चुका है उसमें यह प्रस्तावित मूर्ति स्थापना अनिश्चितता में जाती नजर आ रही है।
इस पर पांच बार विधायक रहे पूर्व मंत्री विजय सिंह मनकोटिया ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, प्रदेश के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल, पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष डॉ. राजीव बिंदल को पत्र लिखकर कुछ आपतियां उठाई हैं। इन आपत्तियों का आधार सितम्बर 2015 में स्व. वीरभद्र सिंह के आवास पर केंद्रीय एजेंसीयों ईडी और आयकर द्वारा की गयी छापेमारी के बाद उनके खिलाफ बनाये गये आपराधिक मामलों को बनाया गया है। इस छापेमारी पर उस समय प्रदेश भाजपा द्वारा की गई नारेबाजी और लोकसभा चुनाव के दौरान जिस तरह का चुनावी मुद्दा बनाया गया था उसका स्मरण भाजपा नेताओं को करवाया गया है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि जो आपराधिक मामले उस समय स्व.वीरभद्र सिंह के खिलाफ बनाये गये थे वह आज तक उनकी मृत्यु के बाद भी लंबित चल रहे हैं। ऐसे में स्वभाविक रूप से मूर्ति स्थापना का मुद्दा एक अलग राजनीतिक आकार ले लेता है। अपराधिक मामलों के लंबित होने की स्थिति में सरकार द्वारा यह मूर्ति स्थापित किया जाना कई अलग प्रश्न खड़े कर देगा।
वैसे मेजर विजय सिंह मनकोटिया के रिश्ते स्व. वीरभद्र सिंह के साथ कभी एक जैसे नहीं रहे हैं। वह कभी स्व. वीरभद्र सिंह के नजदीक तो कभी दूर वाली स्थिति में रहे हैं। संयोगवश मुख्यमंत्री सूक्खू के राजनीतिक रिश्ते भी स्व. वीरभद्र सिंह के साथ बहुत सौहार्दपूर्ण नही रहे हैं। विपक्षी दल भाजपा ने स्व. वीरभद्र सिंह के खिलाफ बने अपराधिक मामलों का खूब राजनीतिक लाभ उठाया है। लेकिन कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में स्व. वीरभद्र सिंह के प्रति जनता की सहानुभूति का अवश्य लाभ मिला है। विधानसभा से पहले मण्डी के लोकसभा उपचुनाव में भी कांग्रेस को इस सहानुभूति का लाभ मिला है। इसी सहानुभूति के कारण श्रीमती प्रतिभा सिंह भाजपा की जय राम सरकार के समय में यह उपचुनाव जीत गई थी। विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस कार्यालय में वीरभद्र सिंह के विश्वस्तों की चुनाव संचालन में प्रमुख भूमिका रही है।
लेकिन कांग्रेस की सरकार बनने के बाद इस दिशा में स्थितियां इस कदर बदल गयी है की प्रतिभा सिंह को लोकसभा चुनाव लड़ने से पीछे हटना पड़ा। विक्रमादित्य सिहं को मंत्री पद से त्यागपत्र देने की नौबत आ गयी। विक्रमादित्य सिंह ने भले ही अपना त्यागपत्र वापस लेकर मण्डी से लोकसभा उम्मीदवार बनना स्वीकार किया लेकिन उनकी हार ने उनसे ज्यादा स्व. वीरभद्र सिंह की राजनीतिक विरासत पर सवाल खड़े कर दिये। शिमला ग्रामीण में भी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को बढ़त न मिलने से यह सवाल और ज्यादा गंभीर हो जाते हैं। इस तरह के राजनीतिक परिदृश्य में पूर्व मंत्री विजय सिंह मनकोटिया के इस पत्र के राजनीतिक मायने बहुत बड़े हो जाते हैं। क्योंकि इसी दौरान में प्रदेश में ईडी और आयकर एजैन्सियों ने दस्तक दी है।
यह है मनकोटिया का पत्र
भाजपा नेतृत्व आक्रामकता से पीछे हटा नजर आ रहा
कांग्रेस से ज्यादा भाजपा नेतृत्व के लिए कसौटी होते जा रहे यह उपचुनाव
शिमला/शैल। क्या इन उपचुनाव में भाजपा सफलता हासिल कर पायेगी? यह सवाल इसलिये उठ रहा है क्योंकि लोकसभा में जहां भाजपा ने प्रदेश की चारों लोकसभा सीटों पर 2014 और 2019 की तरह इस बार भी कब्जा कर लिया है वहीं पर भाजपा छः विधानसभा उपचुनावों में से चार हार गई है। जबकि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व लगातार यह फैला रहा था कि इन चुनावों के बाद प्रदेश की सरकार गिर जायेगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं और यह हार भाजपा के आपसी तालमेल में अभाव और सरकार के साथ रिश्तों की घनिष्ठता पर उठते सवालों के नाम लगी। अब इन तीन उपचुनावों में भाजपा को यह प्रमाणित करना है कि उसमें कोई गुटबाजी नहीं है और जनता में उसकी सवीकार्यता बराबर बनी हुई है। इसलिए उसने 68 में से 61 विधानसभा क्षेत्र में जीत हासिल की थी। इस परीक्षा में यह उपचुनाव प्रदेश भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को अपने को प्रमाणित करने का अवसर होगा। अन्यथा यही कहा जायेगा कि लोकसभा की जीत तो मोदी के नाम पर हो गयी। लेकिन प्रदेश स्तर पर स्थानीय नेतृत्व अपनी प्रासंगिकता खोता जा रहा है।
विधानसभा के लिये उपचुनावों की स्थिति क्यों पैदा हुई पूरा प्रदेश जानता है। सरकार और कांग्रेस लगातार यह कहती आ रही है कि भाजपा धनबल के सहारे सरकार गिराने का प्रयास कर रही है। दूसरी और भाजपा और उपचुनाव में गए सारे कांग्रेस के बागी और निर्दलीय मुख्यमंत्री के अपेक्षा पूर्ण व्यवहार को इसका कारण बताते आ रहे हैं। मुख्यमंत्री और कांग्रेस पूरी आक्रामकता के साथ विधायकों के बिकाऊ होने तथा हर बार अपने व्यक्तिगत कामों के लिये ही उनके पास आने का आरोप लगाते आ रहे हैं। जबकि इन नौ लोगों ने सरकार पर भ्रष्टाचार के संगीत आरोप लगाये हैं। मुख्यमंत्री की पक्षपात पूर्ण कार्यप्रणाली पर सवाल उठाये हैं। लेकिन भाजपा नेतृत्व इन नौ लोगों द्वारा उठाये गये आरोपों को इस आक्रामकता के साथ आगे नहीं बढ़ा पाया है। जबकि चुनाव में आक्रामकता ही सबसे बड़ा हथियार होती है।
यह सही है कि जयराम के शासनकाल भाजपा ने कांग्रेस सरकार के खिलाफ दायर किये अपने ही आरोप पत्रों पर कोई कारवाई नहीं की है। बल्कि जब भाजपा के जिला स्तरीय दफ्तरों के लिए जमीन खरीदी का मुद्दा आया था तब सुखविंदर सिंह सुक्खू ने बिलासपुर की खरीद पर कुछ गंभीर सवाल किये थे। सुखविंदर सिंह सुक्खू के इन सवालों का जवाब तब हमीरपुर में जिले के भाजपा विधायकों और अन्य पदाधिकारी ने एक पत्रकार वार्ता के माध्यम से सुक्खू की अपनी जमीन खरीद पर सवाल उठाये थे। इन सवालों और प्रति सवालों के बाद दोनों ओर से युद्ध विराम हो गया था। आज भी भाजपा और सुक्खू सरकार में शायद वही विराम चल रहा है। बल्कि जो सवाल उपचुनावों के पात्र बने नौ लोग उठा रहे हैं उन मुद्दों को भी भाजपा नेता गंभीरता से आगे नहीं बढ़ा रहे हैं। इस समय नेता प्रतिपक्ष पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर जिस तर्ज में सरकार के गिरने की बातें कर रहे हैं उसके अनुरूप उनके व्यावहारिक कदम नहीं हो रहे हैं। इस समय भाजपा पर यह आरोप है कि वह धन बल के सहारे सरकार गिराना चाहती है। कांग्रेस से बाहर गये लोग मुख्यमंत्री को ही इस सारी स्थिति के लिये जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। इन लोगों ने जो सवाल मुख्यमंत्री से सार्वजनिक रूप से पूछे हैं उनका कोई जवाब नहीं आया है। यह सवाल असहज कर देने वाले हैं लेकिन इनके साथ भाजपा नेतृत्व अपनी संबद्धता और समर्थन नहीं दिखा पा रहा है और इसी से उसकी नीयत और नीति पर सवाल उठ रहे हैं। इससे सरकार गिरने-गिराने के दावे राजनीतिक औपचारिकता से अधिक नहीं बढ़ पा रहे हैं। जबकि इस समय आयकर की छापेमारी के बाद प्रदेश का राजनीतिक वातावरण कुछ अलग ही संकेत दे रहा है। ऐसे में यह उपचुनाव कांग्रेस और मुख्यमंत्री से ज्यादा भाजपा के लिये राजनीतिक विश्वसनीयता की परीक्षा बनते जा रहे हैं। क्योंकि देहरा में मुख्यमंत्री की पत्नी के चुनावी शपथ पत्र पर भाजपा प्रत्याशी होशियार सिंह की शिकायत ने एक अलग ही स्थिति पैदा कर दी है। जिसके परिणाम इन चुनावों के परिणाम आने के बाद स्पष्ट होंगे।
शिमला/शैल। क्या हिमाचल में केंद्रीय जांच एजैन्सीयों का दखल बढ़ने जा रहा है? क्या इस दखल का प्रभाव प्रदेश की राजनीति पर भी पड़ेगा? यह सवाल अभी हमीरपुर और नादौन क्षेत्रों के कुछ स्थानों पर कुछ प्रभावशाली लोगों के ठिकानों पर हुई आयकर विभाग की 38 घंटे की छापेमारी के बाद चर्चा में आ खड़े हुये हैं। हमीरपुर में विधानसभा के लिये उपचुनाव का चुनाव प्रचार चल रहा है। इस चुनाव प्रचार में यह छापेमारी एक बड़े मुद्दे के रूप में उछल रही है। क्योंकि लोकसभा चुनावों के दौरान यहां पर एक वीडियो वायरल हुआ था। उस वीडियो में कांगड़ा सैन्ट्रल कोऑपरेटिव बैंक के किसी 16 करोड़ के ऋण को 50 लाख के लेनदेन से बट्टे खाते में डालने की चर्चा थी। इस वीडियो का प्रदेश सरकार और उसकी एजैन्सीयों ने कोई संज्ञान नहीं लिया था। इस वीडियो को लेकर संबंधित व्यक्ति द्वारा एक एफआईआर दर्ज करवाने की बात जरूर उठी थी। लेकिन पुलिस की साइट पर ऐसी कोई एफआईआर अपलोड हुई नहीं मिली थी। न ही इस एफआईआर की कोई जांच होना सामने आयी थी। इसी तरह के लोकसभा चुनाव के दौरान ही धर्मशाला विधानसभा उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी अब विधायक सुधीर शर्मा ने एचआरटीसी को नादौन में अढ़ाई लाख में खरीदी गयी जमीन 6 करोड़ 72 लाख में दिये जाने का मुद्दा उछाला था। सुधीर शर्मा ने अढ़ाई लाख में इस कथित जमीन की मूल सेल पर ही सवाल खड़े किये थे। सुधीर शर्मा ने डमटाल में किसी कारोबारी का 250 करोड़ का जीएसटी माफ किये जाने के मामले पर भी सवाल खड़े किए थे। लेकिन इन मुद्दों पर सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी। किसी ने भी यह नहीं कहा कि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है। जबकि सरकार की कार्यशैली पर यह गंभीर सवाल थे। बल्कि इसी चुनाव के दौरान कुटलैहड़ से भाजपा प्रत्याशी के रूप में उप चुनाव लड़ रहे देवेंद्र भूट्टों और उसके बेटे के खिलाफ प्रशासन की शिकायत पर दो एफआईआर दर्ज होने के मामले सामने आये। इस परिदृश्य में यह सन्देश अनचाहे ही चला गया कि सरकार या उसके निकटतम के खिलाफ चाहे कितने भी गंभीर मामले क्यों न हो उनके खिलाफ कोई कारवाई नहीं होगी। यहां यह स्मरणीय है कि जब राज्यसभा चुनाव में छः कांग्रेसी विधायकों ने भाजपा के पक्ष में क्रॉस वोटिंग कर दी थी तो कांग्रेस की राजनीति में भूचाल आ गया था। कांग्रेसियों की ही तर्ज पर तीनों निर्दलीयों ने भी भाजपा के पक्ष में मतदान कर दिया। जबकि यह लोग हर मुद्दे पर कांग्रेस को समर्थन देते आ रहे थे। इस क्रॉस वोटिंग के बाद कांग्रेस के छः लोग सदन और पार्टी से दलबदल कानून के तहत बाहर हो गये निर्दलीयों ने भी अपने पदों से त्यागपत्र देकर भाजपा का दामन थाम लिया। लेकिन निर्दलीयों के त्यागपत्र स्वीकार करने में कितना समय लगा दिया गया और क्या-क्या कानूनी दावपेच सामने आये यह प्रदेश ने देखा है। कैसे बालूगंज थाना में आशीष शर्मा और राकेश शर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई यह पूरे प्रदेश में देखा है। उस दौरान जो राजनीतिक आचरण सामने आया उससे यह स्पष्ट हो गया था कि अब लड़ाई व्यक्तिगत रंजिश के स्तर पर पहुंचा दी गई है। चर्चा है कि चुनावों के बाद इन सारे विद्रोहियों ने प्रदेश की पूरी स्थिति सारे प्रमाणिक दस्तावेजों के साथ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के पास रखी है और शाह ने उन्हें उचित कारवाई का भरोसा दिया है। स्मरणीय है कि सुक्खू सरकार ने प्रदेश के लैण्ड सीलिंग एक्ट में संशोधन करके उसमें बेटियों के लिये अलग यूनिट सुरक्षित रखने का प्रावधान किया है। यह संशोधित विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिये अभी लंबित पड़ा है। लेकिन सरकार के संशोधन से यह सवाल खड़ा हो गया है कि 1974 में बने लैण्ड सीलिंग एक्ट के बाद आज 2023-24 में भी प्रदेश में ऐसे कितने मामले कहां-कहां पर हैं। जहां पर लैण्ड सीलिंग एक्ट पर अमल न होकर लैण्ड सीलिंग सीमा से अधिक जमीन किसी के पास है। राजस्व विभाग के पास इस आश्य का कोई अध्ययन नहीं है। यहां पर यह भी उल्लेखनीय है कि शायद राजा नादौन की जागीर पर लैण्ड सीलिंग के प्रावधान इतने भर ही लागू हुये हैं कि लैण्ड सीलिंग मानकों के तहत कितने के हकदार राजा नादौन बनते थे वह उनको दे दी गई और शेष बची एक लाख कनाल से अधिक जमीन विलेज कामन लैण्ड घोषित हो गयी थी। कानून के मुताबिक विलेज कामन लैण्ड की खरीद बेच नहीं हो सकती। बल्कि सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2011 में राज्यों के मुख्य सचिवों को स्थाई निर्देश पारित किये हैं कि ऐसी जमीनों को प्रोटेक्ट किया जाये और इसकी सूचना समय-समय पर शीर्ष अदालत को दी जाये। नादौन में शायद न तो लैण्ड सीलिंग के मानको और न ही सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुपालना हो पायी है। शायद अब यह मामला केंद्रीय एजैन्सीयों के संज्ञान में आ चुका है। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में केंद्र की दूसरी एजैन्सीयां भी प्रदेश में दखल देंगी।
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