Thursday, 18 September 2025
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संजौली मस्जिद विवाद का राजनीतिक प्रतिफल घातक होगा

  • क्या अदालत को नजरअन्दाज करके अवैध निर्माण को गिराया जा सकता है
  • कांग्रेस और भाजपा अवैधता के इस हमाम में बराबर नंगे हैं।

शिमला/शैल। संजौली की मस्जिद में हुये अवैध निर्माण को गिराने की मांग जिस तरह हिन्दूवादी संगठनों के प्रदर्शन तक पहुंच गयी है उसका राजनीतिक प्रतिफल क्या होगा यह एक बड़े विश्लेषण का मुद्दा बनता जा रहा है। क्योंकि शिमला में अवैध निर्माण का एक लम्बा सिलसिला रहा है। बल्कि अवैध निर्माणों को वैध बनाने के लिये नौ बार लायी गयी रिटैन्शन पॉलिसीयां इसी कड़ी का हिस्सा हैं। इन पॉलिसीयों के बाद भी हजारों अवैध निर्माण उच्च न्यायालय के संज्ञान में आ चुके हैं। लेकिन यहां अवैध निर्माण कभी किसी प्रदर्शन का कारण नहीं बने हैं। न्यू शिमला में एक मंदिर के निर्माण में हुई अवैधता पर अदालत की टिप्पणियों के बावजूद किसी की कोई तलख प्रतिक्रिया तक नहीं आयी है। शिमला में जहां-जहां वक्फ बोर्ड की जमीन है वहां हुये निर्माण से यह नही लगता कि शिमला में भवन निर्माण में कोई नियम कायदे भी हैं। फिर यह सब कांग्रेस और भाजपा दोनों की सरकारों में बराबर होता रहा है। शिमला नगर निगम के महापौर और उप महापौर दोनों पदों पर सीपीएम भी काबिज रही है। लेकिन इन निर्माणों को लेकर कुछ नहीं कर पायी। यह मोटे तथ्य इस बात का प्रमाण है कि संजौली की मस्जिद में हुये अवैध निर्माण को लेकर जो जनआक्रोश की स्थिति उभरी है उसका इंगित वह नहीं है जो सामने खुली आंख से दिख रहा है।
संयोगवश यह जनआक्रोश उस समय उभरा जब राज्य सरकार अपने वित्तीय संकट का खुलासा लिखित में विधानसभा के पटल पर रख चुकी थी। यह खुलासा आने के बाद भले ही सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया कि कोई संकट नहीं है। लेकिन रिकार्ड पर खुलासा आ चुका था इस खुलासे के बाद राजनीति की बारी आयी। संयोगवश इसी बीच कुछ लोगों में झगड़ा हो गया जिस में एक को चोटंे आयी। पुलिस ने मामला दर्ज करके कुछ लोगों को गिरफ्तार कर लिया। लेकिन इस झगड़े में मस्जिद निर्माण कोई मुद्दा नहीं था। परन्तु इस झगड़े के बाद जो प्रदर्शन शुरू हुए उसमें मस्जिद का अवैध निर्माण बड़ा मुद्दा बन सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ओर के राजनेता आमने-सामने आ गये। यहां तक की सत्ता पक्ष का विधायक और मंत्री ही अलग-अलग स्वरों में बात करने लग गये।
शिमला में वक्फ बोर्ड के पास कहां-कहां कितनी जमीन है इसका ब्योरा चर्चा में आ गया। यही नहीं हिमाचल में किस जिले में कितनी मस्जिदें हैं इसकी सूचियां जारी हो गयी। इन सूचियां में यह सन्देश देने का प्रयास किया गया कि हिमाचल में बहुत ही सुनियोजित तरीके से दूसरे धर्म का प्रचार हो रहा है। शिमला में स्ट्रीट वैन्डर्स का मुद्दा उछल गया। विधानसभा में स्ट्रीट वैन्डर्स को लेकर पॉलिसी बनाने हेतु एक कमेटी बनाने का फैसला हो गया। मुद्दा संजौली के मस्जिद में हुये अवैध निर्माण को गिराने की मांग से शुरू होकर स्ट्रीट वैन्डरज के लिए पॉलिसी बनाने तक पहुंच गया। परन्तु अवैध निर्माणों को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई। शिमला में बांग्लादेशियों और रोहिंगिया मुस्लिमों के आने की चर्चा तक सदन में आ गयी। शिमला के मामले पर मुस्लिम नेता ओवैसी का ब्यान तक आ गया। संजौली के साथ ही मण्डी की मस्जिद में भी अवैध निर्माण होने का मामला सामने आ गया। संजौली की मस्जिद में हो रहे अवैध निर्माण 2007-08 से चल रहा होने की बात सामने आयी है। इस दौरान प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा दोनों की सरकारें रही हैं। नगर निगम शिमला की सत्ता भी दोनों दलों के पास रही हैं। मस्जिद में हो रहे अवैध निर्माण की शिकायतें भी लम्बे अरसे से विचाराधीन चल रही हैं।
कुल मिलाकर अवैधता के सारे आरोप भाजपा और कांग्रेस दोनों के शासन पर एक बराबर हैं। इस वस्तुस्थिति में इस अवैध निर्माण के मामले को अचानक ऐसी शक्ल क्यों दे दी गयी कि यह राष्ट्रीय फलक पर एक बड़े मुद्दे की शक्ल ले गया। अवैधता का मामला अभी निगमायुक्त की अदालत में चल रहा है और वहां से सर्वाेच्च न्यायालय तक पहुंचने में एक लम्बा समय लगेगा। अदालत को नजरअन्दाज करके यदि भीड़ को मस्जिद गिराने तक पहुंचने दिया तो उसके राजनीतिक मायने बहुत गंभीर हो जायेंगे। यह सही है कि इस अवैधता के साये तले वित्तीय संकट पर उठी चर्चाएं कुछ समय के लिए हशिये पर चली गई हैं। लेकिन इस सारी स्थिति ने कांग्रेस नेतृत्व और हाई कमान के सामने कई गंभीर सवाल भी खड़े कर दिये हैं। क्योंकि प्रदेश पर में जो मस्जिदों की सूची बाहर आयी है उस पर सरकार की ओर से कोई जवाब न आना अपने में सवाल खड़े कर जाता है।

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