शिमला/शैल। क्या हिमाचल में केंद्रीय जांच एजैन्सीयों का दखल बढ़ने जा रहा है? क्या इस दखल का प्रभाव प्रदेश की राजनीति पर भी पड़ेगा? यह सवाल अभी हमीरपुर और नादौन क्षेत्रों के कुछ स्थानों पर कुछ प्रभावशाली लोगों के ठिकानों पर हुई आयकर विभाग की 38 घंटे की छापेमारी के बाद चर्चा में आ खड़े हुये हैं। हमीरपुर में विधानसभा के लिये उपचुनाव का चुनाव प्रचार चल रहा है। इस चुनाव प्रचार में यह छापेमारी एक बड़े मुद्दे के रूप में उछल रही है। क्योंकि लोकसभा चुनावों के दौरान यहां पर एक वीडियो वायरल हुआ था। उस वीडियो में कांगड़ा सैन्ट्रल कोऑपरेटिव बैंक के किसी 16 करोड़ के ऋण को 50 लाख के लेनदेन से बट्टे खाते में डालने की चर्चा थी। इस वीडियो का प्रदेश सरकार और उसकी एजैन्सीयों ने कोई संज्ञान नहीं लिया था। इस वीडियो को लेकर संबंधित व्यक्ति द्वारा एक एफआईआर दर्ज करवाने की बात जरूर उठी थी। लेकिन पुलिस की साइट पर ऐसी कोई एफआईआर अपलोड हुई नहीं मिली थी। न ही इस एफआईआर की कोई जांच होना सामने आयी थी। इसी तरह के लोकसभा चुनाव के दौरान ही धर्मशाला विधानसभा उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी अब विधायक सुधीर शर्मा ने एचआरटीसी को नादौन में अढ़ाई लाख में खरीदी गयी जमीन 6 करोड़ 72 लाख में दिये जाने का मुद्दा उछाला था। सुधीर शर्मा ने अढ़ाई लाख में इस कथित जमीन की मूल सेल पर ही सवाल खड़े किये थे। सुधीर शर्मा ने डमटाल में किसी कारोबारी का 250 करोड़ का जीएसटी माफ किये जाने के मामले पर भी सवाल खड़े किए थे। लेकिन इन मुद्दों पर सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी। किसी ने भी यह नहीं कहा कि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है। जबकि सरकार की कार्यशैली पर यह गंभीर सवाल थे। बल्कि इसी चुनाव के दौरान कुटलैहड़ से भाजपा प्रत्याशी के रूप में उप चुनाव लड़ रहे देवेंद्र भूट्टों और उसके बेटे के खिलाफ प्रशासन की शिकायत पर दो एफआईआर दर्ज होने के मामले सामने आये। इस परिदृश्य में यह सन्देश अनचाहे ही चला गया कि सरकार या उसके निकटतम के खिलाफ चाहे कितने भी गंभीर मामले क्यों न हो उनके खिलाफ कोई कारवाई नहीं होगी। यहां यह स्मरणीय है कि जब राज्यसभा चुनाव में छः कांग्रेसी विधायकों ने भाजपा के पक्ष में क्रॉस वोटिंग कर दी थी तो कांग्रेस की राजनीति में भूचाल आ गया था। कांग्रेसियों की ही तर्ज पर तीनों निर्दलीयों ने भी भाजपा के पक्ष में मतदान कर दिया। जबकि यह लोग हर मुद्दे पर कांग्रेस को समर्थन देते आ रहे थे। इस क्रॉस वोटिंग के बाद कांग्रेस के छः लोग सदन और पार्टी से दलबदल कानून के तहत बाहर हो गये निर्दलीयों ने भी अपने पदों से त्यागपत्र देकर भाजपा का दामन थाम लिया। लेकिन निर्दलीयों के त्यागपत्र स्वीकार करने में कितना समय लगा दिया गया और क्या-क्या कानूनी दावपेच सामने आये यह प्रदेश ने देखा है। कैसे बालूगंज थाना में आशीष शर्मा और राकेश शर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई यह पूरे प्रदेश में देखा है। उस दौरान जो राजनीतिक आचरण सामने आया उससे यह स्पष्ट हो गया था कि अब लड़ाई व्यक्तिगत रंजिश के स्तर पर पहुंचा दी गई है। चर्चा है कि चुनावों के बाद इन सारे विद्रोहियों ने प्रदेश की पूरी स्थिति सारे प्रमाणिक दस्तावेजों के साथ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के पास रखी है और शाह ने उन्हें उचित कारवाई का भरोसा दिया है। स्मरणीय है कि सुक्खू सरकार ने प्रदेश के लैण्ड सीलिंग एक्ट में संशोधन करके उसमें बेटियों के लिये अलग यूनिट सुरक्षित रखने का प्रावधान किया है। यह संशोधित विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिये अभी लंबित पड़ा है। लेकिन सरकार के संशोधन से यह सवाल खड़ा हो गया है कि 1974 में बने लैण्ड सीलिंग एक्ट के बाद आज 2023-24 में भी प्रदेश में ऐसे कितने मामले कहां-कहां पर हैं। जहां पर लैण्ड सीलिंग एक्ट पर अमल न होकर लैण्ड सीलिंग सीमा से अधिक जमीन किसी के पास है। राजस्व विभाग के पास इस आश्य का कोई अध्ययन नहीं है। यहां पर यह भी उल्लेखनीय है कि शायद राजा नादौन की जागीर पर लैण्ड सीलिंग के प्रावधान इतने भर ही लागू हुये हैं कि लैण्ड सीलिंग मानकों के तहत कितने के हकदार राजा नादौन बनते थे वह उनको दे दी गई और शेष बची एक लाख कनाल से अधिक जमीन विलेज कामन लैण्ड घोषित हो गयी थी। कानून के मुताबिक विलेज कामन लैण्ड की खरीद बेच नहीं हो सकती। बल्कि सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2011 में राज्यों के मुख्य सचिवों को स्थाई निर्देश पारित किये हैं कि ऐसी जमीनों को प्रोटेक्ट किया जाये और इसकी सूचना समय-समय पर शीर्ष अदालत को दी जाये। नादौन में शायद न तो लैण्ड सीलिंग के मानको और न ही सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुपालना हो पायी है। शायद अब यह मामला केंद्रीय एजैन्सीयों के संज्ञान में आ चुका है। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में केंद्र की दूसरी एजैन्सीयां भी प्रदेश में दखल देंगी।