शिमला/शैल। कांग्रेस अभी तक लोकसभा के लिये मण्डी और शिमला से ही अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर पायी है। शेष दो लोकसभा क्षेत्रों हमीरपुर तथा कांगड़ा और विधानसभा के छः उपचुनावों के लिये अभी प्रत्याशियों की तलाश चल रही है। कांग्रेस प्रदेश में सत्ता में है। चालीस विधायक उसके अपने थे और तीनों निर्दलीयों का समर्थन भी उसे हासिल था। लेकिन राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस के छः और तीनों निर्दलीयों ने भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में वोट डालकर न केवल कांग्रेस के प्रत्याशी को हरा दिया बल्कि सरकार को भी अस्थिरता के मुकाम पर खड़ा कर दिया है। नेता प्रतिपक्ष पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर लगातार यह दावा कर रहे हैं कि यह सरकार शीघ्र ही गिर जायेगी। जयराम के मुताबिक चुनाव परिणाम के बाद प्रदेश में भाजपा की सरकार होगी। इसी के साथ जयराम यह दावा भी कर रहे हैं कि कांग्रेस के कुछ और विधायक भी उनके संपर्क में है जो पार्टी छोड़ सकते है। शायद इन्हीं संभावित खतरों के कारण कांग्रेस अपने चुनाव प्रत्याशी तय करने में समय लगा रही है। जयराम के दावे तभी सही हो सकते हैं यदि कांग्रेस से कुछ और विधायक पार्टी छोड़ भाजपा में शामिल हो जाये या किसी तरह प्रदेश में मध्यावधि चुनावों की स्थिति आ जाये। अभी जो कांग्रेस में तोड़ फोड़ हुई है वह भाजपा प्रायोजित रही है यह स्पष्ट हो चुका है । कांग्रेस के अंदर कार्यकर्ताओं से लेकर विधायकों तक में जो रोष सरकार के प्रति लगातार बढ़ता जा रहा था उस पर भाजपा पहले दिन से ही नजर रख रही थी और उसे राज्यसभा चुनाव के समय भुना लिया गया। कांग्रेस के अंदर फैला रोष पूरी तरह मुखर होकर सामने आ चुका था जिसे न तो मुख्यमंत्री और न ही कांग्रेस हाईकमान समय रहते देख पाये। भाजपा ने बतौर विपक्ष इसका लाभ उठाया और सरकार को इस कगार तक पहुंचा दिया। अब जब इस खेल में भाजपा पूरी तरह नंगी हो चुकी है तो क्या वह असफलता का तमगा सहन कर पायेगी? विश्लेषकों के लिये यह एक महत्वपूर्ण सवाल बन चुका है। क्योंकि भाजपा के पास साधन है। इस समय तीन निर्दलीय विधायकों के त्यागपत्र स्वीकारने का मामला विधानसभा अध्यक्ष और उच्च न्यायालय में लंबित चल रहा है। चौबीस अप्रैल को उच्च न्यायालय में सुनवाई है। अध्यक्ष और कांग्रेस चाहेंगे कि उनके त्यागपत्रों पर फैसला चुनावों की अधिसूचना जारी होने के बाद आये। निर्दलीय विधायक भाजपा में शामिल हो चुके हैं इसलिए दल बदल कानून के दायरे में भी आ गयें है। लेकिन इनके मामले में फैसला लटकने की स्थिति में यदि अपने त्यागपत्र वापिस ले ले और भाजपा की सदस्यता भी त्याग दे तो क्या नियम कानून उन्हें ऐसा करने से रोक पायेंगे शायद नहीं। जब यह निर्दलीय विधायक रहकर अपना समर्थन किसी को भी देने में स्वतंत्र रहते हैं और उस से सरकार को लाभ नहीं मिलता। इसी के साथ मुख्य संसदीय सचिवों का मामला भी उच्च न्यायालय में 22, 23, और 24 को तीन दिन सुनने का ऐलान कर चुका है। स्मरणीय है कि जब संसदीय सचिवों को लेकर वीरभद्र के कार्यकाल में मामला उच्च न्यायालय में आया था तब हाई कोर्ट ने इन नियुक्तियों को असवैंधानिक करार देकर रद्द कर दिया था और ऐसे नियुक्त हुये संसदीय सचिवों को अपने पदों से हटना पड़ा था। उच्च न्यायालय के इस फैसले के बाद सरकार ने इस मामले की सर्वाेच्च न्यायालय में अपील दायर करने के साथ ही इस आशय का एक नया कानून बना लिया था। उसी कानून के तहत सुक्खु सरकार ने यह नियुक्तियां की है। लेकिन इस कानून की वैधता को उसी समय चुनौती मिल गयी थी जो प्रदेश के उच्च न्यायालय में अभी तक लंबित है। इसी के साथ सर्वाेच्च न्यायालय ने हिमाचल की एस एल पी को असम के साथ संलग्न करते हुये यह फैसला दिया है कि राज्य की विधायिका इस आशय का कानून बनाने के लिये सक्षम ही नहीं है। ऐसे में इस समय मुख्य संसदीय सचिवों का जो मामला प्रदेश उच्च न्यायालय में विचाराधीन चल रहा है उसमें भी राज्य के कानून को चुनौती दी गयी है। यदि उच्च न्यायालय प्रदेश के इस कानून को वैध मान लेता है तो इन मुख्य संसदीय सचिवों को कोई हानि नहीं होगी क्योंकि राज्य के कानून के तहत इनकी नियुक्तियां हुई है। यदि सर्वाेच्च न्यायालय की तर्ज पर प्रदेश उच्च न्यायालय इस कानून को असंवैधानिक करार दे देता है तो तब इनका नुकसान होना तय है। क्योंकि सुक्खु सरकार के द्वारा यह नियुक्तियां किये जाने से पहले ही सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ चुका था। जिसका अर्थ हो जाता है कि राज्य सरकार ने सर्वाेच्च न्यायालय के फैसले को अहमीयत न देते हुये यह नियुक्तियां की है। फिर जयराम के समय तो सरकार का यह शपथ पत्र रहा है कि ऐसी नियुक्तियां करने से पहले उच्च न्यायालय से पूर्व अनुमति ली जायेगी जो की ली नहीं गयी है। ऐसे में यदि उच्च न्यायालय सुप्रीम कोर्ट के फैसले का संज्ञान लेकर राज्य के कानून को असवैंधानिक करार देता है तो उसी स्थिति में इनकी विधायकी जाने की भी प्रबल संभावना बन जायेगी क्योंकि सर्वाेच्च न्यायालय का फैसला आ जाने के बाद यह नियुक्तियां हुई है। इस तरह यदि छः मुख्य संसदीय सचिवों की विधायकी भी चली जाती है तो सरकार को लेकर कोई स्वस्थ संकेत नहीं जाता है। इससे अस्थिरता की स्थिति और बढ़ जायेगी। तब और लोगों के भी कांग्रेस छोड़ने की संभावनाएं बढ़ जायेगी विश्लेष्कों का मानना है कि जयराम के सरकार गिराने के दावों का आधार उच्च न्यायालय में होने वाली यह संभावित संभावना ही है। हो सकता है कि तब भाजपा विधायक दल सामूहिक रूप से त्यागपत्र देकर इस संभावना को बढ़ावा दे। क्योंकि यदि राज्य सरकार को गिराना भाजपा के एजैन्डे पर है तो इसे इन लोकसभा चुनाव से पहले ही अंजाम दिया जाना है चुनावों के बाद इसका कोई औचित्य नहीं रह जाता है।
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