Saturday, 20 December 2025
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यह उप चुनाव सुक्खू और अनुराग की प्रतिष्ठा का टैस्ट होंगे

  • हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में है दो उपचुनाव
  • यदि निर्दलीयों के त्यागपत्र पहले ही स्वीकार हो जाते तो प्रदेश इस खर्च से बच जाता
शिमला/शैल। प्रदेश में फिर तीन उपचुनाव होने जा रहे हैं। क्योंकि तीनों निर्दलीय विधायकों के त्यागपत्र बाद में स्वीकार किये गये। जबकि इन लोगों ने भी फरवरी में हुये राज्यसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी हर्ष महाजन के पक्ष में मतदान करने के बाद अपनी विधायकी से त्यागपत्र देकर भाजपा में शामिल हो गये थे। लेकिन इनके त्यागपत्रों को कानूनी दाव पेचों में उलझाकर उनके मामले को लटका दिया गया था। दो कांग्रेस विधायकों अवस्थी और गौड़ की शिकायत पर आशीष शर्मा और बागी विधायक चैतन्य शर्मा के पिता राकेश शर्मा के खिलाफ बालूगंज थाना में एक मामला तक दर्ज कर दिया गया। यही नहीं राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी की शिकायत पर दल बदल कानून के तहत भी मामला चलाया गया। यह आरोप लगाया गया कि इन्होंने स्वेच्छा से अपनी विधायकी से त्यागपत्र नहीं दिया है। पुलिस जांच का मुख्य बिन्दु ही इनं त्यागपत्रों और फिर भाजपा में शामिल होने के पीछे धन बल का दबाव रहना बनाया गया था। लेकिन इन मामलों के लंबित रहते ही विधानसभा अध्यक्ष द्वारा उनके त्यागपत्रों को स्वीकार कर लिये जाने से कांग्रेस के विधायकों और राजस्व मंत्री द्वारा लगाये गये आरोपों की धार स्वतः ही कुन्द होकर यह आरोप स्वतः ही सत्ता पक्ष को चुभने के कगार पर पहुंच गये हैं। भाजपा ने इनके पार्टी में शामिल होते ही इन्हें उनके क्षेत्रों से उम्मीदवार घोषित कर दिया था। अब इन उपचुनाव की अधिसूचना जारी होते ही भाजपा ने उनकी उम्मीदवारी की पुष्टि भी कर दी है। अब इनके खिलाफ जब यह सवाल उठाया जा रहा है कि इन्होंने विधायकी से त्यागपत्र क्यों दिये और प्रदेश के खजाने पर उपचुनावों का बोझ क्यों डाला? अब इस सवाल का बड़ा हिस्सा स्वतः ही उस बिन्दु की ओर मुड़ जाता है की इनके त्यागपत्रों की स्वीकृति को लटकाये क्यों रखा गया है। इनके खिलाफ दायर मामले मामलों का कोई फैसला आने से पहले ही यह त्यागपत्र इसलिये स्वीकार कर लिये गये क्योंकि इनके खिलाफ प्रमाणिक रूप से ऐसा कुछ भी शायद रिकॉर्ड पर नहीं आ रहा था जिसके आधार पर इन्हें दण्डित किया जा सकता। यदि यह उपचुनाव भी पिछले उप चुनावों के साथ ही होने दिये जाते तो आज अतिरिक्त खर्चे से बचा जा सकता था। इसलिए इन उपचुनावों के लिये उन्हें दोषी ठहरने का तर्क आत्मघाती हो सकता है। लोकसभा की चारों सीटें भाजपा द्वारा जीतने के बाद भी हिमाचल को केंद्रीय मंत्री परिषद में स्थान नहीं मिला है। अनुराग ठाकुर लगातार पांच बार लोकसभा जीत गये हैं लेकिन इस बार मंत्री नहीं बन पाये हैं क्योंकि उनके ही संसदीय क्षेत्र हमीरपुर से भाजपा तीन विधानसभा उपचुनाव हार गयी। जबकि इन तीनों स्थानों पर लोकसभा के लिये भाजपा को बढ़त मिली है। यदि जनता ने मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू और कांग्रेस सरकार की मजबूती के लिये कांग्रेस के पक्ष में वोट दिया है तो उस तर्क से तो सभी छः सीटों पर कांग्रेस की जीत होनी चाहिये थी लेकिन ऐसा हुआ नहीं है। इस उपचुनाव में भाजपा की चारों सीटों पर हार अनचाहे ही अनुराग-धूमल के नाम लगायी जा रही है और इस हार के कारण ही अनुराग शायद मंत्री परिषद से बाहर गये हैं। अब फिर तीन में दो उप चुनाव अनुराग के ही संसदीय क्षेत्र में हो रहे हैं। इसलिए यह उपचुनाव एक तरह से मुख्यमंत्री सुखविन्दर सिंह और अनुराग ठाकुर के लिए व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का प्रश्न बन जाएंगे। क्योंकि एक को यह प्रमाणित करना है कि उसने पार्टी के फैसले के खिलाफ कोई आचरण नहीं किया है। दूसरे को यह सिद्ध करना है कि जनता कांग्रेस सरकार और मुख्यमंत्री सुक्खविन्दर सिंह सुक्खू के साथ है। वैसे लोकसभा चुनाव में मुख्यमंत्री के अपने विधानसभा क्षेत्र नादौन में कांग्रेस को मिली हार स्वतः ही दावे पर प्रश्न चिन्ह लगा देती है।

3-10 June 2024 Shail

लोकसभा में मिली हार के परिणाम गंभीर होंगे

  • संगठन और सरकार में तालमेल के अभाव के आरोपों को मिला बल
  • मानहानि के मामलों पर रहेगा ध्यान केन्द्रित
  • सुधीर शर्मा के आरोप कितना आगे बढ़ते हैं इस पर रहेगी नजरे
  • क्या चुनावों में वायरल हुये वीडियोज की जांच हो पायेगी?

शिमला/शैल। कांग्रेस एक बार फिर प्रदेश की चारों लोकसभा सीटें हार गयी हैं। प्रदेश के 68 विधानसभा क्षेत्रों में से 61 पर कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है। मुख्यमंत्री स्वयं अपने विधानसभा क्षेत्र नादौन में कांग्रेस को बढ़त नहीं दिला पाये हैं। केवल उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री, शिक्षा मंत्री रोहित ठाकुर, राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी और मुख्य संसदीय सचिव मोहनलाल बरागटा ही अपने-अपने क्षेत्र हार से बचा पाये हैं। विधानसभा अध्यक्ष और अन्य मंत्री, विधानसभा उपाध्यक्ष तथा अन्य मुख्य संसदीय सचिव सभी भाजपा के हाथों पराजित हुये हैं। इन्हीं लोकसभा चुनावों के साथ विधानसभा के लिये छः उपचुनाव भी हुये थे। इनमें चार पर कांग्रेस जीत हासिल करने में सफल रही। इस चुनावी हार जीत का प्रदेश की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा यह इन परिणामों के बाद चर्चा और आकलन का सबसे बड़ा मुद्दा बन गया है। क्योंकि विधानसभा उपचुनाव कांग्रेस को राज्यसभा चुनाव में मिली हार के बाद उपजी राजनीतिक परिस्थितियों के कारण आये हैं। इसलिये कांग्रेस विधानसभा उपचुनाव में मिली जीत को लोकसभा की हार से बड़ा करार देकर अपनी पीठ थपथपा रही है। दावा किया जा रहा है कि प्रदेश की जनता ने सरकार और मुख्यमंत्री में विश्वास व्यक्त करते हुये सरकार को मजबूती प्रदान की है तथा सरकार शेष बचे कार्यकाल के लिये पूरी तरह सुरक्षित हो गयी है।
सरकार के इस दावे का आकलन करने के लिये राज्यसभा चुनाव में ऊभरी स्थितियों पर नजर डालने की आवश्यकता है। उस समय राज्यसभा की हार के बाद यदि बजट के समय भाजपा के विधायकों को सदन से निलंबित न किया जाता तो सरकार सदन के पटल पर ही गिर जाती। लेकिन भाजपा विधायकों के निलंबन के कारण सरकार बच गयी। बजट उसी दिन पारित करके सदन का सत्रावसान कर दिया गया। उससे स्पष्ट हो गया था कि अब सरकार का खतरा टल गया है। इसलिये निर्दलीय विधायकों के त्यागपत्रों का मामला लटकाया गया। आज यदि कांग्रेस उपचुनाव में सारी सीटें भी हार जाती तो भी आंकड़ों के गणित में सरकार सुरक्षित थी। इसलिये यह कहना कि सरकार और मुख्यमंत्री को सुरक्षित करने के लिये चार उप चुनावों में कांग्रेस की जीत हुयी है यह तर्क तब पुख्ता होता यदि इन चार की जीत के साथ मुख्यमंत्री अपने क्षेत्र में भी कांग्रेस को बढ़त दिलाने में सफल हो जाते। यदि एक वोट सीएम और एक वोट पीएम का अमल हुआ होता तो भी सभी छः सीटों पर कांग्रेस को जीत हासिल होती। लेकिन ऐसा न होने से विधानसभा के इन उपचुनावों की हार जीत को भाजपा के आन्तरिक समीकरणों का प्रतिफल माना जा रहा है।
इस समय कांग्रेस 68 में से 61 विधानसभा क्षेत्रों में हारी है। जिसका अर्थ है कि यदि आज प्रदेश में किन्हीं कारणों से विधानसभा के चुनाव हो जायें तो प्रदेश में कांग्रेस की सरकार फिर से बन पाना कठिन है। इस चुनाव परिणाम से यह सामने आ गया है कि सरकार और संगठन में तालमेल के अभाव के जो आरोप लग रहे थे वह सही थे। इसी के साथ सरकार पर भ्रष्टाचार को संरक्षण देने के जो आरोप लगे उन में दम था। कुछ अधिकारियों पर पत्र बम्बों के माध्यम से जो आरोप लगे उन पर सरकार की खामोशी सवालों में रही। बद्दी के औद्योगिक क्षेत्र में उद्योगों के साथ जिस तरह का व्यवहार चल रहा था उस स्थिति में उद्योग मंत्री द्वारा चीजें लगातार हाईकमान के संज्ञान में लायी जाती रही। लेकिन अन्त में जब हाईकमान थोड़ा सतर्क हुई तो एक समन्वय समिति का गठन तो कर दिया। परन्तु इसकी कोई औपचारिक बैठक तक नहीं हो पायी। कमेटी के सदस्यों ने यहां तक कह दिया कि उन्हें पूछा ही नहीं जा रहा है। यही आन्तरिक स्थितियां थीं जिनके कारण कोई लोकसभा चुनाव लड़ने को तैयार नहीं हो रहा था। आर.एस.बाली को राष्ट्रीय अध्यक्ष को पत्र लिखकर चुनाव लड़ने में अपनी असमर्थता जाहिर करनी पड़ी। इसी वस्तुस्थिति के चलते आज बाली भी अपना चुनाव क्षेत्र नहीं बचा पाये। इन सारी स्थितियों पर निष्पक्ष राय रखने वाले स्पष्ट थे कि लोकसभा चुनावों में एक भी सीट पर सफलता मिलना कठिन है। शैल इस विषय पर स्पष्ट था कि लोकसभा में चारों सीटों पर कांग्रेस हार रही है।
अब इस चुनाव प्रचार में मुख्यमंत्री ने कांग्रेस के बागियों को जिस तरह से बिकाऊ प्रचारित किया और दावा किया कि पुलिस जांच में बहुत सारे तथ्य सामने आ गये हैं। उसकी प्रतिक्रिया में बागियों ने मुख्यमंत्री के खिलाफ मानहानि के मामले दायर कर रखे हैं। उधर बालूगंज में जो एक एफआईआर आशीष शर्मा और राकेश शर्मा के खिलाफ लंबित चल रही है उसमें विधानसभा अध्यक्ष द्वारा निर्दलीयों के त्यागपत्र स्वीकार करने के बाद जांच का क्या रुख उभरता है वह महत्वपूर्ण होगा। इसी के साथ सुधीर शर्मा अब फिर से विधानसभा में पहुंच गये हैं। जो आरोप सुधीर शर्मा ने दस्तावेजों के साथ मुख्यमंत्री के खिलाफ लगाये हैं वह कितना आगे बढ़ते हैं उस पर भी सबकी नज़रें रहेगी। जो वीडियो चुनाव के अन्तिम दिनों में हमीरपुर में वायरल हुआ था शायद उसको लेकर एक एफआईआर भी दर्ज हुई है। वह कैसे आगे बढ़ती है इस पर भी सबकी नज़रें रहेंगी। अब एक वीडियो हमीरपुर के लोकसभा उम्मीदवार रहे सतपाल रायजादा को लेकर भी वायरल हुआ है। इन सारे घटनाक्रमों को एक साथ रखकर आकलन करने से स्पष्ट हो जाता है कि आने वाले दिनों में प्रदेश की राजनीति में बहुत उतार चढ़ाव देखने को मिलेंगे। क्योंकि इस समय कांग्रेस के हर नेता के पास अपनी हार का एक ही जवाब है जब मुख्यमंत्री ही अपना चुनाव क्षेत्र नहीं बचा पाये तो औरों की क्या विसात थी।


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