Thursday, 18 September 2025
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कौन पहले जांच पूरी करेगा शिमला पुलिस या ईडी

  • धन बल का आरोप यदि प्रमाणित हो जाता है तो उसका प्रभाव देश की राजनीति पर पड़ेगा।
  • यदि यह आरोप प्रमाणित नहीं होता तो मानहानि मामलों पर असर पढ़ना तय है
  • क्या ईडी का दखल शिमला पुलिस को रोक पायेगा?

शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश की एक राज्यसभा सीट के लिए इस वर्ष फरवरी में हुये चुनाव में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद कांग्रेस का प्रत्याशी हार गया था। क्योंकि कांग्रेस के छः और तानों निर्दलीय विधायकों ने भाजपा के पक्ष में वोट किया। राज्यसभा चुनाव के लिए कोई भी राजनीतिक दल अपने विधायकों को सचेतक जारी करके किसी उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करने के लिये बाध्य नहीं कर सकता। यह नियम है। इसी नियम का सहारा लेकर छः कांग्रेसियों ने अपनी नाराजगी रिकॉर्ड पर लाने के लिए क्रॉस वोटिंग कर दी। लेकिन कांग्रेस नेतृत्व में इस बजट पर मतदान के समय गैर हाजिरी रहना करार देकर इन लोगों को सदन और विधायकी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। यह सभी लोग भाजपा में शामिल हो गये और भाजपा ने इन्हें उपचुनाव के लिये अपना उम्मीदवार भी नामित कर दिया। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान करीब एक माह यह लोग अपने चुनाव क्षेत्रों और प्रदेश से भी बाहर रहे। इस बाहर रहने पर जो खर्च हुआ उसे कांग्रेस ने भाजपा के ऑपरेशन कमल की संज्ञा दे दी। एक एक विधायक को पन्द्रह-पन्द्रह करोड़ दिए जाने का आरोप लगा और यही आरोप उप चुनावों की मुख्य मुद्दा बना। बल्कि कांग्रेस के दो विधायकों संजय अवस्थी और भूवनेश्वर गॉड ने बाकायदा बालूगंज थाना में शिकायत देकर आपराधिक मामला दर्ज करवा दिया। यह मामला विधायक आशीष शर्मा और पूर्व विधायक चैतन्य शर्मा के पिता सेवानिवृत्त मुख्य सचिव राकेश शर्मा के खिलाफ दर्ज किया गया।
अब इस मामले की जांच चल रही है। इस जांच में विधायक आशीष शर्मा को पुलिस दो बार पूछताछ के लिये बुला चुकी है। राकेश शर्मा और पूर्व विधायक रवि ठाकुर और तथा चैतन्य शर्मा से घंटों पुलिस पूछताछ कर चुकी है। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और अब केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर के प्रचार सलाहकार तरुण भंडारी से भी बालूगंज में पूछताछ हो चुकी है। माना जा रहा है कि भाजपा के पक्ष में मतदान करने वाले सभी लोगों को देर सवेर पूछताछ के लिये बुलाया ही जायेगा। पुलिस अब तक की जांच में यह पता लगा चुकी है कि चण्डीगढ़ में इनके ठहराव के दौरान का सारा बिल एक फार्मा कंपनी ने अदा किया है और उसके तार खट्टर के प्रचार सलाहकार तक पहुंच रहे हैं। जिस हेलीकॉप्टर कंपनी ने इन विधायकों को हवाई यात्राएं कारवाई उसके मुख्यालय गुरुग्राम भी हिमाचल पुलिस दस्तक दे आयी है। हेलीकॉप्टर कंपनी के यहां जाने पर काफी विवाद भी उठ चुका है। जिसमें दोनों प्रदेशों के शीर्ष पुलिस प्रबंधन को भी बीच में आना पड़ा है। हिमाचल पुलिस की जांच का मुख्य बिन्दु यह पता लगाना है कि क्या हिमाचल सरकार को गिराने के लिए धनबल का प्रयोग हुआ। यदि हुआ तो यह खर्च किसने किया? जब उपचुनावों के प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री और अन्य कांग्रेसी नेताओं ने इन लोगों के खिलाफ पन्द्रह-पन्द्रह करोड़ में बिकने का आरोप लगाया था तब कुछ लोगों ने मुख्यमंत्री के खिलाफ मानहानि के मामले भी दायर किये हैं। इन मामलों में प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है। ऐसे में यदि हिमाचल पुलिस इस सारे खेल में धन बल का प्रयोग होना प्रमाणित नहीं कर पाती है तो मानहानि के मामलों में स्थिति नाजुक होना तय है।
हिमाचल पुलिस यदि धनबल का प्रयोग होना प्रमाणित कर देती है तो निश्चित रूप से उसकी आंच भाजपा हाईकमान तक भी पहुंचेगी। क्योंकि आरोप पन्द्रह-पन्द्रह करोड़ देने का है। उस समय भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा थे। उन्हीं की संस्तुति से यह लोग भाजपा में शामिल हुए और उपचुनाव में उम्मीदवार भी बने। धन बल के सहारे किसी भी लोकतांत्रिक सरकार को गिराने का प्रयास करना न केवल निन्दनीय है बल्कि यह गंभीर अपराध भी है। इसके प्रमाणित हो जाने का असर भाजपा के भविष्य पर भी पड़ेगा यह तय है। यदि यह आरोप प्रमाणित नहीं हो पाते हैं तो इसका सीधा प्रभाव मुख्यमंत्री के खिलाफ दायर हुए मानहानि के मामलों पर पढ़ना तय है। इसी बीच हिमाचल में ईडी और आयकर जैसी एजैन्सीयां दखल दे चुकी है। नादौन में तीन बार ईडी आ चुकी है। सूत्रों के मुताबिक ईडी के हाथ लगे मामले बहुत ही गंभीर हैं। ऐसे में राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में यह आम चर्चा का विषय बना हुआ है कि हिमाचल पुलिस अपनी जांच को पहले अंतिम रूप दे पाती है या ईडी अपनी धरपकड़ की प्रक्रिया पर अमल कर पाती है। या दोनों ही ओर से हथियार डाल दिये जाते हैं। वैसे इस प्रकरण पर प्रदेश के हर आदमी की नजर लगी हुई है।

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