Thursday, 18 September 2025
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लोकसभा में मिली हार के परिणाम गंभीर होंगे

  • संगठन और सरकार में तालमेल के अभाव के आरोपों को मिला बल
  • मानहानि के मामलों पर रहेगा ध्यान केन्द्रित
  • सुधीर शर्मा के आरोप कितना आगे बढ़ते हैं इस पर रहेगी नजरे
  • क्या चुनावों में वायरल हुये वीडियोज की जांच हो पायेगी?

शिमला/शैल। कांग्रेस एक बार फिर प्रदेश की चारों लोकसभा सीटें हार गयी हैं। प्रदेश के 68 विधानसभा क्षेत्रों में से 61 पर कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है। मुख्यमंत्री स्वयं अपने विधानसभा क्षेत्र नादौन में कांग्रेस को बढ़त नहीं दिला पाये हैं। केवल उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री, शिक्षा मंत्री रोहित ठाकुर, राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी और मुख्य संसदीय सचिव मोहनलाल बरागटा ही अपने-अपने क्षेत्र हार से बचा पाये हैं। विधानसभा अध्यक्ष और अन्य मंत्री, विधानसभा उपाध्यक्ष तथा अन्य मुख्य संसदीय सचिव सभी भाजपा के हाथों पराजित हुये हैं। इन्हीं लोकसभा चुनावों के साथ विधानसभा के लिये छः उपचुनाव भी हुये थे। इनमें चार पर कांग्रेस जीत हासिल करने में सफल रही। इस चुनावी हार जीत का प्रदेश की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा यह इन परिणामों के बाद चर्चा और आकलन का सबसे बड़ा मुद्दा बन गया है। क्योंकि विधानसभा उपचुनाव कांग्रेस को राज्यसभा चुनाव में मिली हार के बाद उपजी राजनीतिक परिस्थितियों के कारण आये हैं। इसलिये कांग्रेस विधानसभा उपचुनाव में मिली जीत को लोकसभा की हार से बड़ा करार देकर अपनी पीठ थपथपा रही है। दावा किया जा रहा है कि प्रदेश की जनता ने सरकार और मुख्यमंत्री में विश्वास व्यक्त करते हुये सरकार को मजबूती प्रदान की है तथा सरकार शेष बचे कार्यकाल के लिये पूरी तरह सुरक्षित हो गयी है।
सरकार के इस दावे का आकलन करने के लिये राज्यसभा चुनाव में ऊभरी स्थितियों पर नजर डालने की आवश्यकता है। उस समय राज्यसभा की हार के बाद यदि बजट के समय भाजपा के विधायकों को सदन से निलंबित न किया जाता तो सरकार सदन के पटल पर ही गिर जाती। लेकिन भाजपा विधायकों के निलंबन के कारण सरकार बच गयी। बजट उसी दिन पारित करके सदन का सत्रावसान कर दिया गया। उससे स्पष्ट हो गया था कि अब सरकार का खतरा टल गया है। इसलिये निर्दलीय विधायकों के त्यागपत्रों का मामला लटकाया गया। आज यदि कांग्रेस उपचुनाव में सारी सीटें भी हार जाती तो भी आंकड़ों के गणित में सरकार सुरक्षित थी। इसलिये यह कहना कि सरकार और मुख्यमंत्री को सुरक्षित करने के लिये चार उप चुनावों में कांग्रेस की जीत हुयी है यह तर्क तब पुख्ता होता यदि इन चार की जीत के साथ मुख्यमंत्री अपने क्षेत्र में भी कांग्रेस को बढ़त दिलाने में सफल हो जाते। यदि एक वोट सीएम और एक वोट पीएम का अमल हुआ होता तो भी सभी छः सीटों पर कांग्रेस को जीत हासिल होती। लेकिन ऐसा न होने से विधानसभा के इन उपचुनावों की हार जीत को भाजपा के आन्तरिक समीकरणों का प्रतिफल माना जा रहा है।
इस समय कांग्रेस 68 में से 61 विधानसभा क्षेत्रों में हारी है। जिसका अर्थ है कि यदि आज प्रदेश में किन्हीं कारणों से विधानसभा के चुनाव हो जायें तो प्रदेश में कांग्रेस की सरकार फिर से बन पाना कठिन है। इस चुनाव परिणाम से यह सामने आ गया है कि सरकार और संगठन में तालमेल के अभाव के जो आरोप लग रहे थे वह सही थे। इसी के साथ सरकार पर भ्रष्टाचार को संरक्षण देने के जो आरोप लगे उन में दम था। कुछ अधिकारियों पर पत्र बम्बों के माध्यम से जो आरोप लगे उन पर सरकार की खामोशी सवालों में रही। बद्दी के औद्योगिक क्षेत्र में उद्योगों के साथ जिस तरह का व्यवहार चल रहा था उस स्थिति में उद्योग मंत्री द्वारा चीजें लगातार हाईकमान के संज्ञान में लायी जाती रही। लेकिन अन्त में जब हाईकमान थोड़ा सतर्क हुई तो एक समन्वय समिति का गठन तो कर दिया। परन्तु इसकी कोई औपचारिक बैठक तक नहीं हो पायी। कमेटी के सदस्यों ने यहां तक कह दिया कि उन्हें पूछा ही नहीं जा रहा है। यही आन्तरिक स्थितियां थीं जिनके कारण कोई लोकसभा चुनाव लड़ने को तैयार नहीं हो रहा था। आर.एस.बाली को राष्ट्रीय अध्यक्ष को पत्र लिखकर चुनाव लड़ने में अपनी असमर्थता जाहिर करनी पड़ी। इसी वस्तुस्थिति के चलते आज बाली भी अपना चुनाव क्षेत्र नहीं बचा पाये। इन सारी स्थितियों पर निष्पक्ष राय रखने वाले स्पष्ट थे कि लोकसभा चुनावों में एक भी सीट पर सफलता मिलना कठिन है। शैल इस विषय पर स्पष्ट था कि लोकसभा में चारों सीटों पर कांग्रेस हार रही है।
अब इस चुनाव प्रचार में मुख्यमंत्री ने कांग्रेस के बागियों को जिस तरह से बिकाऊ प्रचारित किया और दावा किया कि पुलिस जांच में बहुत सारे तथ्य सामने आ गये हैं। उसकी प्रतिक्रिया में बागियों ने मुख्यमंत्री के खिलाफ मानहानि के मामले दायर कर रखे हैं। उधर बालूगंज में जो एक एफआईआर आशीष शर्मा और राकेश शर्मा के खिलाफ लंबित चल रही है उसमें विधानसभा अध्यक्ष द्वारा निर्दलीयों के त्यागपत्र स्वीकार करने के बाद जांच का क्या रुख उभरता है वह महत्वपूर्ण होगा। इसी के साथ सुधीर शर्मा अब फिर से विधानसभा में पहुंच गये हैं। जो आरोप सुधीर शर्मा ने दस्तावेजों के साथ मुख्यमंत्री के खिलाफ लगाये हैं वह कितना आगे बढ़ते हैं उस पर भी सबकी नज़रें रहेगी। जो वीडियो चुनाव के अन्तिम दिनों में हमीरपुर में वायरल हुआ था शायद उसको लेकर एक एफआईआर भी दर्ज हुई है। वह कैसे आगे बढ़ती है इस पर भी सबकी नज़रें रहेंगी। अब एक वीडियो हमीरपुर के लोकसभा उम्मीदवार रहे सतपाल रायजादा को लेकर भी वायरल हुआ है। इन सारे घटनाक्रमों को एक साथ रखकर आकलन करने से स्पष्ट हो जाता है कि आने वाले दिनों में प्रदेश की राजनीति में बहुत उतार चढ़ाव देखने को मिलेंगे। क्योंकि इस समय कांग्रेस के हर नेता के पास अपनी हार का एक ही जवाब है जब मुख्यमंत्री ही अपना चुनाव क्षेत्र नहीं बचा पाये तो औरों की क्या विसात थी।


चुनाव के अन्तिम दिनों में वायरल हुये वीडियो ने बिगाड़ा कांग्रेस का खेल

  • अप्रत्याशी नुकसान की आशंका बढ़ी
  • आपदा राहत को लेकर दायर हुए आरटीआई आवेदनों का मकसद क्या है
  • नड्डा के ब्यान के साथ जोड़कर देखा जा रहा है इन आवेदनों को

शिमला/शैल। अन्तिम चरण का मतदान पूर्ण होने के बाद एग्जिट पोल के परिणाम आने शुरू हो गये हैं। इन परिणामों में एक न्यूज़ चैनल के एंकर ने दावा किया है कि कांग्रेस हिमाचल में चारों लोकसभा सीटें हार रही हैं और एक माह के भीतर प्रदेश सरकार गिर जायेगी। हिमाचल में लोकसभा के साथ ही विधानसभा के लिये भी छः उपचुनाव हुये हैं। इस समय विधानसभा में आंकड़ों के हिसाब से कांग्रेस की संख्या 34 है और भाजपा की 25 है। तीन निर्दलीयों के त्यागपत्रों का मामला अभी लंबित चल रहा है। संभव है कि उनके बारे में जल्द ही फैसला आ जायेगा और दल बदल कानून के तहत निष्कासित हो जायेंगे। ऐसे में यदि छः उपचुनावों के परिणाम भाजपा के पक्ष में आ जाये तो भी भाजपा की संख्या 31 होगी और कांग्रेस की 34 और इस संख्या बल पर सरकार को इस समय कोई खतरा नहीं है। लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान जिस तरह से प्रधानमंत्री और गृह मंत्री में अपनी चुनावी सभा में सरकार को लेकर टिप्पणियां की है उससे अवश्य यह संकेत उभरे हैं कि यदि केंद्र में भाजपा की सरकार बनती है तो आने वाले दिनों में कुछ भी अप्रत्याशित देखने को मिल सकता है। क्योंकि हिमाचल से ही ताल्लुक रखने वाले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने आपदा राहत को लेकर एक चुनावी जनसभा में अवश्य कहा है कि वह इसमें सरकार से पूरा-पूरा हिसाब लेंगे।

इस चुनाव प्रचार में राज्य सरकार के नेतृत्व का केन्द्र के खिलाफ एक ही बड़ा आरोप रहा है कि केन्द्र ने हिमाचल की कोई सहायता नहीं की है। भाजपा इसका जवाब देती रही है कि प्रदेश सरकार ने आपदा राहत आवंटन में घोटाला किया है। अब इस आपदा राहत को लेकर दो लोगों ने सूचनाओं मांगी है। एक में जवाब मिला है कि केन्द्र से आपदा राहत में 1235.65 करोड़ मिला है और प्रदेश सरकार 2,27,75,00,000/- मिला है और आपदा राहत प्रकोष्ठ में 1,56,33,66,683/- शेष बचे हैं। यह जानकारी 29-4-2024 को दी गयी है। दूसरे आवेदन में सात बिन्दुओं पर सूचना मांगी गयी है जो अभी प्राप्त नहीं हुई है। स्मरणीय है कि आपदा में प्रदेश के कर्मचारी पैन्शनरों, मंत्रियों, विधायको, सांसदों, अध्यक्षों आदि से भी योगदान लिया गया था। फिर कई राज्य सरकारों ने भी योगदान दिया है इसके अतिरिक्त राज्य सरकार ने 4800 करोड़ का राहत पैकेज दिया है। इस सब पर जानकारी मांगी गयी है। नड्डा के ब्यान के साथ इस जानकारी मांगने को देखा जा रहा है। इससे यह आशंका पुख्ता हो जाती है कि चुनाव परिणामों के बाद भाजपा सरकार को अस्थिर करने का प्रयास अवश्य करेगी।
इसी तरह चुनाव प्रचार के अन्तिम दिनों में हमीरपुर से एक वीडियो वायरल होकर लोगों तक पहुंचा है। इसमें हमीरपुर के एक बड़े कारोबारी के साथ सरकार के एक प्रभावशाली व्यक्ति के वार्तालाप की रिकॉर्डिंग है। इसमें कांगड़ा बैंक से 15 करोड़ के कर्ज को माफ करवाने के लिए 50 लाख मांगे जा रहे हैं। 18 लाख मिल चुके होने को स्वीकार भी किया जा रहा है। यह वायरल वीडियो प्रदेश के हर कोने तक पहुंचा हुआ होने का दावा किया जा रहा है। इस वीडियो पर किसी की कोई प्रतिक्रिया अभी तक सामने नहीं आयी है न ही इस वीडियो की प्रामाणिकता पर कोई सवाल उठाये गये हैं। चुनाव के अन्तिम दिनों में इस तरह की वीडियो वायरल होना निश्चित रूप से सरकार और कांग्रेस की चुनावी सेहत के लिये नुकसानदेह माना जा रहा है। भाजपा के कई नेताओं की साइट पर यह वीडियो देखा गया है। निश्चित रूप से इस वीडियो के सामने कांग्रेस के बगियों पर बिकाऊ विधायक होने का फतवा नहीं ठहर पाता है। इसी के साथ सुधीर शर्मा के आरोप आने वाली स्थितियों को बहुत गंभीर बना देते हैं। इसी परिदृश्य में यदि कांग्रेस का बड़ा चुनावी नुकसान हो जाये तो कोई हैरानी नहीं होगी।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

भ्रष्टाचार पर सुक्खू और सुधीर हुये आमने-सामने

  • लैण्ड सीलिंग एक्ट की अवहेलना
  • सुक्खू ने सुधीर को दी भू-माफिया की संज्ञा
  • सुधीर ने विलेज कामन लैण्ड और सीलिंग एक्ट की अवहेलना के मामले उठाये
  • विलेज कामन लैण्ड पर 2011 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बढ़ सकती है मुश्किलें
  • केंद्रीय ऐजैन्सियों के दखल की संभावना बनी

शिमला/शैल। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू इस लोकसभा और छः विधानसभा उपचुनावों को भाजपा द्वारा धन बल के सहारे उनकी सरकार को गिराने के आरोप के गिर्द केन्द्रित करने का प्रयास कर रहे हैं। इस प्रयास में वह कांग्रेस के छः  बागीयों के भाजपा में शामिल होने पर उन्हें बिकाऊ और खनन माफिया तथा भू-माफिया करार दे रहे हैं। इसी कड़ी में देवेन्द्र भुट्टो और उनके बेटे के खिलाफ देहरा में एक एफआईआर भी दर्ज हुई है। बिकाऊ के संबोधन पर इन बागीयों ने मुख्यमंत्री के खिलाफ मानहानि के मामले भी दायर कर रखे हैं। लेकिन मुख्यमंत्री अपने आरोपों को हर दिन हर मंच से जिस तरह दोहराते जा रहे हैं उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि यह आरोप उनकी चुनावी रणनीति का केन्द्रीय बिन्दु हैं। इसी कड़ी में आगे बढ़ते हुये मुख्यमंत्री ने धर्मशाला उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार देवेन्द्र जग्गी की चुनावी जनसभा में सुधीर शर्मा को भू-माफिया करार दिया। सुधीर शर्मा के खिलाफ आरोप लगाया कि उसने अपने ड्राइवर नेकराम के नाम पर 82 संपत्तियों में दस करोड़ निवेश किया है। दुबई, पालमपुर, शिमला, मनाली और चण्डीगढ़ में भी यह संपत्तियां होने का दावा किया और कहा कि यह निवेश पिछले तीन वर्षों में हुआ तथा सरकार इसकी जांच करवा रही है। पत्रकार वार्ता में भी यह आरोप लगाया लेकिन इसके कोई दस्तावेजी प्रमाण जारी नहीं किये।
मुख्यमंत्री के इन आरोपों का जवाब देते हुये सुधीर शर्मा ने चुनौती दी है कि यदि उनके पास चुनावी शपथ पत्र से अधिक कोई संपत्ति निकल जाती हैं तो वह उसे सरकार के नाम करवा देंगे। नेकराम उनका ड्राइवर नहीं बल्कि धर्मशाला में एक संपन्न परिवार का व्यक्ति है। सुधीर शर्मा ने इन आरोपों पर मुख्यमंत्री के खिलाफ मानहानि का एक और मुकद्दमा दायर करने का ऐलान किया है। सुधीर शर्मा ने मुख्यमंत्री पर आरोप लगाया है कि उनके सगे भाई के राजीव के नाम 20 है0 से अधिक के गैर मुमकिन दरिया की सेल डीड कैसे हुई। सुधीर शर्मा ने नादौन में ही मुख्यमंत्री के निकटस्थों द्वारा 2.50 लाख में गैर मुमकिन दरिया खरीद कर उसे 6.72 करोड़ में एचआरटीसी को कैसे बेच दिया गया? 2.50 करोड़ के जीएसटी की राहत एक उद्योगपति को कैसे दे दी गयी? सुधीर शर्मा ने दावा किया है कि आने वाले दिनों में ऐसे ही भ्रष्टाचार के खुलासे दस्तावेजों के साथ और किये जायेंगे।
सुधीर शर्मा द्वारा मुख्यमंत्री के सगे भाई राजीव सिंह के नाम 29-56-42 है0 गैर मुमकिन दरिया की सेल डीड होना अपने में एक गंभीर आरोप है। क्योंकि हिमाचल में लैण्ड सीलिंग एक्ट लागू है जिसके मुताबिक प्रदेश में किसी भी व्यक्ति के पास 300 कनाल से अधिक जमीन हो नहीं सकती। फिर नादौन रियासत की जानकारी रखने वाले जानते हैं कि 229 गांव में फैली इस रियासत के राजा नादौन को 11-3-1897 को तब वितायुक्त पंजाब द्वारा जागीर दी गयी थी जिस पर स्थानीय लोगों के बर्तनदारी हक बदस्तूर रखे गये थे। 1971 में जब हिमाचल में लैण्ड सीलिंग एक्ट आया तब राजा नादौन की 1,59,986 कनाल जमीन का मामला राजस्व अदालतों में पहुंचा। जिसमें से 515 कनाल 14 मरले जमीन नौरा गांव में चाय बागान के नाम पर सीलिंग से बाहर रखी गयी। इसी तरह नादौन के ही कलूर गांव में 1224 कनाल 4 मरले भू-दान यज्ञ बोर्ड के नाम पर होने से इसे भी सीलिंग से बाहर कर दिया गया। 1,01,391 कनाल 17 मरले बंजर कदीम थी। यह सारी जमीने 1974 में राजस्व अदालत के फैसले के तहत विलेज कामन लैण्ड घोषित हो गयी। अब नियम है विलेज कामन लैण्ड की खरीद बेच नहीं हो सकती। इसमें से केवल भूमिहीन, हरिजन या अन्य पिछड़ा वर्ग के भूमिहीन को ही कुछ जमीन गुजारे के लिये दी जा सकती है। या ऐसी जमीन पर सरकारी अस्पताल या स्कूल आदि ही हो सकता है। सर्वाेच्च न्यायालय ने 28-1-2011 को जगपाल सिंह एवं अन्य बनाम पंजाब सरकार एवं अन्य में दिये फैसले में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को विलेज कामन लैण्ड की सुरक्षा को लेकर कड़े निर्देश जारी करते हुए कहा है कि  Before parting with this case we give directions to all the State Governments in the country that they should prepare schemes for eviction of illegal/unauthorized occupants of Gram Sabha/Gram Panchayat/Poramboke/Shamlat land and these must be restored to the Gram Sabha/Gram Panchayat for the common use of villagers of the village. For this purpose the Chief Secretaries of all State Governments/Union Territories in India are directed to do the needful, taking the help of other senior officers of the Governments. The said scheme should provide for the speedy eviction of such illegal occupant, after giving him a show cause notice and a brief hearing. Long duration of such illegal occupation or huge expenditure in making constructions thereon or political connections must not be treated as a justification for condoning this illegal act or for regularizing the illegal possession. Regularization should only be permitted in exceptional cases e.g. where lease has been granted under some Government notification to landless labourers or members of Scheduled Castes/Scheduled Tribes, or where there is already a school, dispensary or other public utility on the land.

23. Let a copy of this order be sent to all Chief Secretaries of all States and Union Territories in India who will ensure strict and prompt compliance of this order and submit compliance reports to this Court from time to time.
24. Although we have dismissed this appeal, it shall be listed before this Court from time to time (on dates fixed by us), so that we can monitor implementation of our directions herein. List again before us on 3.5.2011 on which date all Chief Secretaries in India will submit their reports.

इन निर्देशों से स्पष्ट है विलेज कामन लैण्ड की खरीद बेच नहीं हो सकती। इसी के साथ 29-56-42 है0 जमीन लैण्ड सीलिंग एक्ट के तहत नहीं हो सकती।

सुधीर शर्मा के यह आरोप अपने में बहुत गंभीर हैं और एक तरह से केंद्रीय ऐजैन्सियों के दखल की भूमिका तैयार करते हैं। क्योंकि विलेज कामन लैण्ड में सर्वाेच्च न्यायालय के निर्देशों की अवहेलना है। लैण्ड सीलिंग एक्ट में यह बड़ा सवाल हो जाता है कि आज भी प्रदेश में किसी व्यक्ति के पास तय सीमा से अधिक जमीन हो कैसे सकती है। बल्कि 2023 में सरकार ने जब सीलिंग एक्ट में संशोधन किया तब इस आश्य की कोई रिपोर्ट नहीं ली गयी कि इस समय कितने लोगों के पास सीलिंग से अधिक जमीन है। इस पर संबंधित प्रशासन क्यों अनजान रहा है।

 

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