शिमला/शैल। संजौली की मस्जिद में हुये अवैध निर्माण को गिराने की मांग जिस तरह हिन्दूवादी संगठनों के प्रदर्शन तक पहुंच गयी है उसका राजनीतिक प्रतिफल क्या होगा यह एक बड़े विश्लेषण का मुद्दा बनता जा रहा है। क्योंकि शिमला में अवैध निर्माण का एक लम्बा सिलसिला रहा है। बल्कि अवैध निर्माणों को वैध बनाने के लिये नौ बार लायी गयी रिटैन्शन पॉलिसीयां इसी कड़ी का हिस्सा हैं। इन पॉलिसीयों के बाद भी हजारों अवैध निर्माण उच्च न्यायालय के संज्ञान में आ चुके हैं। लेकिन यहां अवैध निर्माण कभी किसी प्रदर्शन का कारण नहीं बने हैं। न्यू शिमला में एक मंदिर के निर्माण में हुई अवैधता पर अदालत की टिप्पणियों के बावजूद किसी की कोई तलख प्रतिक्रिया तक नहीं आयी है। शिमला में जहां-जहां वक्फ बोर्ड की जमीन है वहां हुये निर्माण से यह नही लगता कि शिमला में भवन निर्माण में कोई नियम कायदे भी हैं। फिर यह सब कांग्रेस और भाजपा दोनों की सरकारों में बराबर होता रहा है। शिमला नगर निगम के महापौर और उप महापौर दोनों पदों पर सीपीएम भी काबिज रही है। लेकिन इन निर्माणों को लेकर कुछ नहीं कर पायी। यह मोटे तथ्य इस बात का प्रमाण है कि संजौली की मस्जिद में हुये अवैध निर्माण को लेकर जो जनआक्रोश की स्थिति उभरी है उसका इंगित वह नहीं है जो सामने खुली आंख से दिख रहा है।
संयोगवश यह जनआक्रोश उस समय उभरा जब राज्य सरकार अपने वित्तीय संकट का खुलासा लिखित में विधानसभा के पटल पर रख चुकी थी। यह खुलासा आने के बाद भले ही सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया कि कोई संकट नहीं है। लेकिन रिकार्ड पर खुलासा आ चुका था इस खुलासे के बाद राजनीति की बारी आयी। संयोगवश इसी बीच कुछ लोगों में झगड़ा हो गया जिस में एक को चोटंे आयी। पुलिस ने मामला दर्ज करके कुछ लोगों को गिरफ्तार कर लिया। लेकिन इस झगड़े में मस्जिद निर्माण कोई मुद्दा नहीं था। परन्तु इस झगड़े के बाद जो प्रदर्शन शुरू हुए उसमें मस्जिद का अवैध निर्माण बड़ा मुद्दा बन सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ओर के राजनेता आमने-सामने आ गये। यहां तक की सत्ता पक्ष का विधायक और मंत्री ही अलग-अलग स्वरों में बात करने लग गये।
शिमला में वक्फ बोर्ड के पास कहां-कहां कितनी जमीन है इसका ब्योरा चर्चा में आ गया। यही नहीं हिमाचल में किस जिले में कितनी मस्जिदें हैं इसकी सूचियां जारी हो गयी। इन सूचियां में यह सन्देश देने का प्रयास किया गया कि हिमाचल में बहुत ही सुनियोजित तरीके से दूसरे धर्म का प्रचार हो रहा है। शिमला में स्ट्रीट वैन्डर्स का मुद्दा उछल गया। विधानसभा में स्ट्रीट वैन्डर्स को लेकर पॉलिसी बनाने हेतु एक कमेटी बनाने का फैसला हो गया। मुद्दा संजौली के मस्जिद में हुये अवैध निर्माण को गिराने की मांग से शुरू होकर स्ट्रीट वैन्डरज के लिए पॉलिसी बनाने तक पहुंच गया। परन्तु अवैध निर्माणों को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई। शिमला में बांग्लादेशियों और रोहिंगिया मुस्लिमों के आने की चर्चा तक सदन में आ गयी। शिमला के मामले पर मुस्लिम नेता ओवैसी का ब्यान तक आ गया। संजौली के साथ ही मण्डी की मस्जिद में भी अवैध निर्माण होने का मामला सामने आ गया। संजौली की मस्जिद में हो रहे अवैध निर्माण 2007-08 से चल रहा होने की बात सामने आयी है। इस दौरान प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा दोनों की सरकारें रही हैं। नगर निगम शिमला की सत्ता भी दोनों दलों के पास रही हैं। मस्जिद में हो रहे अवैध निर्माण की शिकायतें भी लम्बे अरसे से विचाराधीन चल रही हैं।
कुल मिलाकर अवैधता के सारे आरोप भाजपा और कांग्रेस दोनों के शासन पर एक बराबर हैं। इस वस्तुस्थिति में इस अवैध निर्माण के मामले को अचानक ऐसी शक्ल क्यों दे दी गयी कि यह राष्ट्रीय फलक पर एक बड़े मुद्दे की शक्ल ले गया। अवैधता का मामला अभी निगमायुक्त की अदालत में चल रहा है और वहां से सर्वाेच्च न्यायालय तक पहुंचने में एक लम्बा समय लगेगा। अदालत को नजरअन्दाज करके यदि भीड़ को मस्जिद गिराने तक पहुंचने दिया तो उसके राजनीतिक मायने बहुत गंभीर हो जायेंगे। यह सही है कि इस अवैधता के साये तले वित्तीय संकट पर उठी चर्चाएं कुछ समय के लिए हशिये पर चली गई हैं। लेकिन इस सारी स्थिति ने कांग्रेस नेतृत्व और हाई कमान के सामने कई गंभीर सवाल भी खड़े कर दिये हैं। क्योंकि प्रदेश पर में जो मस्जिदों की सूची बाहर आयी है उस पर सरकार की ओर से कोई जवाब न आना अपने में सवाल खड़े कर जाता है।
शिमला/शैल। भाजपा विधायक दल ने नेता प्रतिपक्ष जय राम ठाकुर के नेतृत्व में राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल से भेंट कर एक ज्ञापन सौंपकर विधानसभा अध्यक्ष को उनके पद से हटाने की मांग की है। भाजपा का आरोप है कि अध्यक्ष का आचरण सदन के अन्दर पक्षपात पूर्ण रहता है। आरोप है कि भाजपा विधायक दल ने नियम 67 के तहत प्रदेश की बिगड़ती आर्थिक स्थिति पर चर्चा करने के लिये स्थगन प्रस्ताव दिया था जिस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। भाजपा ने राज्यपाल के संज्ञान में यह भी लाया है कि लोकसभा चुनाव के दौरान एक कार्यक्रम में विधानसभा अध्यक्ष ने भाषण देते हुये कहा कि मैंने छः विधायकों के सिर कलम कर दिये हैं और तीन मेरे आरे के नीचे तड़प रहे हैं। यह शब्द अलोकतान्त्रिक और असंसदीय है। इससे विधायकों की भावनाएं आहत हुई हैं और अध्यक्ष पद की गरिमा को भी ठेस पहुंची है। सदन के अन्दर विधायक इन्द्रदत लखनपाल द्वारा यह मुद्दा उठाने पर विधानसभा अध्यक्ष ने खेद प्रकट करना तो दूर अपने शब्द भी वापस नहीं लिये। मीडिया के सामने कहा कि नेता प्रतिपक्ष मेरे से बहुत जूनियर है वह मुझे क्या सिखायेंगे। इसी के साथ राज्यपाल के संज्ञान में यह भी लाया गया कि भाजपा विधायक दल ने नियम 274 के तहत विधानसभा सचिव को विधानसभा अध्यक्ष के पद से हटाने का संकल्प प्रस्तुत किया। लेकिन विधानसभा अध्यक्ष सत्र शुरू होने पर अपने आसन पर आकर बैठ गये। जबकि नैतिकता के आधार पर उन्हें संकल्प पेश होने और उस पर चर्चा तथा मतदान होने तक आसन पर नहीं आना चाहिये था।
यह आरोप अपने में गंभीर है स्वभाविक है कि यदि यह आरोप आगे बढ़ते हैं तो स्थितियां और भी कठिन हो जायेंगी। इसलिए अन्ततः दोनों पक्षों में यह मुद्दा यहीं रुक जायेगा। लेकिन यह अपने में ही महत्वपूर्ण है कि एक समय अध्यक्ष भाजपा विधायकों के खिलाफ अवमानना की कारवाई करने के लिये तैयार थे। बल्कि यहां तक बात आ गयी थी कि यदि मुख्य संसदीय सचिवों के प्रकरण में कुछ आगे बढ़ता है तो उसका जवाब भाजपा विधायकों के खिलाफ कारवाई के रूप में सामने आयेगा। इस लिये अब यह मामला भाजपा-कांग्रेस का आपसी मामला होकर रह गया है और आम आदमी इसमें से गायब हो गया है। भाजपा नियम 67 के तहत प्रदेश की बिगड़ी वित्तीय स्थिति पर चर्चा करने की मांग लेकर आयी थी जो इस घटनाक्रम में पर्दे के पीछे चली गयी। मुख्यमंत्री ने सदन में प्रदेश की बिगड़ती स्थिति पर अपना लिखित वक्तव्य रखा। लेकिन इस ब्यान के बाद एक दम यू टर्न लेते हुये यह कहा कि प्रदेश की स्थिति एकदम ठीक है। वेतन भत्तों के विलम्बन का फैसला तो व्यवस्था सुधारने की दिशा में एक सख्त कदम है। सरकार का इस तरह से चौबीस घंटे में अपना स्टैंड बदलना कई सवाल खड़े करता है। प्रदेश की जनता को यह जानने का हक हासिल है कि प्रदेश की वास्तविक स्थिति क्या है। क्यों प्रदेश सरकार को हर माह एक हजार करोड़ से अधिक का कर्ज लेना पड़ रहा है। इस स्थिति में तो इस सरकार के अपने कार्यकाल का ही कर्ज साठ हजार करोड़ का आंकड़ा पार कर जायेगा।
यह सरकार वित्तीय कुप्रबंधन का आरोप पूर्व की जय राम सरकार पर लगाती आयी है। वित्तीय स्थिति पर लाये श्वेत पत्र में भी यह आरोप दर्ज है। आज जब सरकार तय समय पर अपने कर्मचारीयों और पैन्शनरों का भुगतान नहीं कर पायी है तब विपक्ष के पास एक अवसर था कि इस संबंध में सारी सच्चाई प्रदेश की जनता के सामने लाने के लिये सरकार को बाध्य करते। इस सदन में रोजगार और आउटसोर्स कर्मियों के लेकर आये सवालों के जवाब में सूचना एकत्रित की जा रही है का ही जवाब आया है। जब किसी भी कारण से मुख्यमंत्री को अपने वेतन भत्तों को निलंबित रखने का फैसला सदन की जानकारी में लाना पड़े तो उसके किसी भी वायदे पर कितना भरोसा किया जा सकता है यह एक सामान्य समझ का प्रश्न है। कांग्रेस की सरकार लोगों को गारंटीयां देकर सत्ता में आयी थी। प्रदेश कांग्रेस के नेता कार्यकर्ताओं को सरकार में स्थान न मिलने पर किस हद तक मुखर हो गये थे पूरा प्रदेश जानता है। लेकिन इस समय आम आदमी के सवाल पर सारा नेतृत्व खामोश हो गया है। ऐसा माना जा रहा है कि विपक्ष हिमाचल की स्थिति को हरियाणा के चुनावों में मुद्दा बनायेगी। लेकिन हिमाचल के संदर्भ में भाजपा की भूमिका पर सवाल उठने शुरू हो गये हैं कि भाजपा प्रदेश की वित्तीय स्थिति पर एक विपक्ष से ज्यादा कुछ नहीं कर रही है। इस समय वित्तीय स्थिति पर आम आदमी के सामने सारी स्थिति आनी चाहिए क्योंकि इसमें सबसे ज्यादा नुकसान आम आदमी का होने जा रहा है। आने वाले समय में आम आदमी किसी भी दल के किसी भी वायदे पर विश्वास नहीं कर पायेगा?
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