Friday, 19 December 2025
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यदि 35 मेगावाट का प्रोजेक्ट 144 करोड़ में तो 32 मेगावाट का 220 करोड़ में क्यों लगा-विक्रम

शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश में अब एक और बड़ा घोटाला सामने आया है-ग्रीन एनर्जी घोटाला। इस घोटाले के तार हिमाचल प्रदेश पावर कॉरपोरेशन से जुड़े हुये हैं। पूर्व मंत्री और भाजपा नेता विक्रम ठाकुर ने इस घोटाले के बारे में खुलासा किया है। ठाकुर ने बताया कि इस मुद्दे पर कई ‘लेटर बम’ पहले भी सामने आये हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस कारवाई नहीं हुई है।
सुखविंदर सिंह सुक्खू ने 15 अप्रैल 2024 को ऊना जिले के पेखुवेला में 32 मेगावाट का सौर ऊर्जा प्लांट का उद्घाटन किया था, जिसकी कुल लागत 220 करोड़ रुपये बताई गई थी। विक्रम ठाकुर ने इसे लेकर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा, इसी तरह का 35 मेगावाट का सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट गुजरात में मात्र 144 करोड़ रुपये में पूरा हो गया, जबकि हिमाचल में 3 मेगावाट कम का प्रोजेक्ट 76 करोड़ रुपये अधिक में लगाया गया। यह भारी अन्तर दर्शाता है कि इस प्रोजेक्ट में गंभीर वित्तीय अनियमितताएं हुई हैं।
विक्रम ठाकुर ने कहा कि पेखुवेला प्लांट को गलत साइट पर लगाया गया, जिसके कारण भारी बारिश के बाद से यह प्लांट केवल 50ः क्षमता पर ही चल पा रहा है। इतना ही नहीं, प्लांट की ऑपरेशन और मेंटेनेंस की अवधि 8 वर्षों की रखी गई है, जबकि गुजरात के प्रोजेक्ट में यही सेवा 10 वर्षों के लिए दी जा रही है। यह साफ तौर पर दिखाता है कि प्रोजेक्ट में बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार और अनियमितताएं हुई हैं।
विक्रम ठाकुर ने बताया कि सरकार ने ग्रीन एनर्जी प्रोजेक्ट्स के लिए वर्ल्ड बैंक से 500 करोड़ रुपये का लोन लिया था, जिससे 5 अलग-अलग प्रोजेक्ट्स लगाये जा सकते थे। लेकिन, यह पूरी राशि केवल ऊना के एक ही प्रोजेक्ट में लगा दी गई, जो वित्तीय दुरुपयोग का स्पष्ट संकेत है।
पेखुवेला प्लांट की प्रति मेगावाट लागत 6.84 करोड़ रुपये आई है, जो अन्य राज्यों की तुलना में बेहद ज्यादा है। जबकि अन्य राज्यों में सौर ऊर्जा का प्रोजेक्ट 4.11 करोड़ रुपये प्रति मेगावाट में पूरा होता है। हिमाचल प्रदेश में यह प्रोजेक्ट सबसे महंगे प्रोजेक्ट्स में से एक है।
चंबा जिले के पांच हाइडल प्रोजेक्ट्स में देरी के कारण वर्ल्ड बैंक ने राज्य पर 5 करोड़ रुपये की पेनल्टी लगाई है। ठाकुर ने कहा कि एक अधिकारी ने जानबूझकर पावर परचेज एग्रीमेंट्स पर हस्ताक्षर नहीं किए, जिसके कारण हिमाचल प्रदेश को महंगी बिजली खरीदनी पड़ रही है। इसके अलावा, देवीकोठी, हेल, साईकोठी और साईकोठी-2 जैसे महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स अभी तक पूरे नहीं हुए हैं, जिससे राज्य को बड़ा आर्थिक नुकसान हो रहा है।
ठाकुर ने कांगड़ा एयरपोर्ट को लेकर भी सरकार की आलोचना की और कहा कि सरकार केवल दिखावा कर रही है और कांगड़ा की अनदेखी हो रही है।

मस्जिद के अवैध निर्माण और वक्फ संपत्तियों के कथित ब्योरे पर उभरे विवाद का अन्त क्या होगा?

  • कांग्रेस और भाजपा में किसकी सरकार को ज्यादा दोषी माना जायेगा?
  • क्या कानूनी प्रक्रिया पर जनरोष भारी पड़ेगा?
  • क्या विधानसभा अध्यक्ष द्वारा गठित वैण्डर्स कमेटी का कोई परिणाम निकलेगा?

शिमला/शैल। क्या हिमाचल में वक्फ संपत्तियों और कुछ मस्जिदों में हुये अवैध निर्माण पर उठा हिन्दू संगठनों का आक्रोश एक लम्बे राजनीतिक मुद्दे की शक्ल लेने जा रहा है? क्या इस आक्रोश के लिये अनचाहे ही जमीन तैयार करने का काम हिमाचल सरकार के कुछ मंत्रियों के ब्यानों ने भी किया है? यह सवाल इसलिये प्रसांगिक हो रहे हैं क्योंकि यह रोष हर दिन बढ़ता जा रहा है। प्रदेश के अलग-अलग भागों में इस संबंध में प्रदर्शन देखने को मिल रहे हैं। क्योंकि जब से संजौली की मस्जिद में अवैध निर्माण का मुद्दा उठा है और उस पर कांग्रेस तथा भाजपा के नेता आमने-सामने आ गये उसके बाद से यह पूरे प्रदेश में फैल गया है। क्योंकि इसी दौरान प्रदेश के किस जिले में कितनी मस्जिदें बन गयी हैं इसकी एक लम्बी सूची सामने आ गयी। मस्जिदों के बाद वक्फ संपत्तियों की सूची जारी हो गयी। संजौली मस्जिद में हुये अवैध निर्माण का मुद्दा जैसे ही शिमला से बाहर फैला तभी भाजपा ने एक निर्देश जारी करके अपने हर स्तर के नेता को इस मुद्दे पर कुछ भी अधिकारिक रूप से बोलने पर पाबंदी लगा दी। अब हिन्दू संगठन और सरकार आमने-सामने हैं। मस्जिदों और वक्फ संपत्तियों की सूचियों पर सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है।
जब संजौली मस्जिद के अवैध निर्माण पर प्रदर्शन हुआ तो शहरी विकास मंत्री का ब्यान आया की चार-पांच हजार अवैध निर्माण हैं। विधानसभा में पंचायती राज मंत्री का ब्यान आया की मस्जिद की जगह की मालिक सरकार है। शिमला में बांग्लादेशियों और रोहिंगिया मुस्लिम के आने का खुलासा मंत्री ने किया। स्ट्रीट वैण्डर्स तक बात पहुंच गई और इस संद्धर्भ में पॉलिसी बनाने की मांग उठी। बाहर से आने वाले लोगों के बारे में आवश्यक जांच पड़ताल किये जाने की बात उठी। विपक्ष ने आरोप लगाया कि उनके शासनकाल में यह जांच पड़ताल होती थी जो अब कांग्रेस सरकार में बन्द कर दी गई है। इसी वाद-विवाद में स्ट्रीट वैण्डर्स के लिए पॉलिसी बनाने के लिए एक कमेटी गठित किए जाने का फैसला हुआ। इस कमेटी में विपक्ष के लोगों को भी शामिल करने की बात आयी यदि वह सहमत हो तो। अब विधानसभा अध्यक्ष द्वारा उद्योग मंत्री की अध्यक्षता में एक कमेटी बना दी गयी और उसमें विपक्ष के विधायक भी शामिल हैं। इसी बीच लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने वक्फ अधिनियम संशोधन किये जाने का भी सुझाव दिया है।
इस राजनीतिक परिदृश्य में यदि इस पूरे प्रकरण पर नजर डाली जाये तो इसमें बहुत सारे ऐसे सवाल सामने आते हैं जो कानूनी दायरे में आते हैं जिन से यह सवाल खड़ा होता है कि क्या देश संविधान के अनुसार चलेगा या इस तरह के जनरोष से। संजौली विवाद कुछ लोगों के आपसी झगड़े से शुरू हुआ इसमें भी झगड़ा दो अलग-अलग जगह पर होने की बात सामने आयी है। पुलिस ने इसमें वान्छित कारवाई तुरन्त प्रभाव से की है। कौन सा झगड़ा क्यों इस सारे बवण्डर का कारण बना यह सामने आना अभी बाकी है। मस्जिद की कुछ मंजिलें अवैध बनी है और यह निर्माण भाजपा और कांग्रेस दोनों सरकारों में हुआ है। इसके लिये किस सरकार और उसके प्रशासन को कितना जिम्मेदार माना जायेगा और दण्डित किया जायेगा? शहरी विकास मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने स्वयं स्वीकारा है कि चार-पांच हजार अवैध निर्माण हैं। क्या इन अवैध निर्माणों पर भी मस्जिद की तर्ज पर कारवाई की जा सकेगी? फिर प्रदेश के हर जिले में मस्जिदें बन जाने की बात आयी है। क्या यह मस्जिदें गैर मुस्लिम जमीनों पर बनी हैं? क्या इनका निर्माण अवैध रूप से हुआ है? यदि यह गैर मुस्लिम जमीनों पर अवैध रूप से बन गयी है तो क्या संबंध प्रशासन के खिलाफ कोई कारवाई हो पायेगी। इस दौरान प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों की सरकारें रही हैं। किसी राजनीतिक दल के किस नेतृत्व को कितना जिम्मेदार ठहराया जायेगा और कौन यह कारवाई करेगा? जब तक इन सवालों का कानूनी दायरे के तहत कोई जवाब नहीं आ जाता है तब तक इसमें कोई भी कारवाई कैसे की जा सकेगी?
अब स्ट्रीट वैण्डर्स के लिए पॉलिसी बनाने के लिये विधानसभा अध्यक्ष ने एक कमेटी का गठन कर दिया है। इस कमेटी में भाजपा के भी विधायक शामिल किये गये हैं। इस कमेटी का गठन विधानसभा अध्यक्ष द्वारा किया गया है। स्वभाविक है कि जब यह कमेटी पॉलिसी तैयार कर लेगी तो इसे विधानसभा अध्यक्ष के सामने रखा जायेगा क्योंकि कमेटी का गठन उनके आदेशों से हुआ है। विधानसभा अध्यक्ष इस कमेटी की पॉलिसी रूपी रिपोर्ट का अपने स्तर पर क्या करेंगे? क्योंकि यदि कोई कानून भी इस संबंध में बनाया जाना है तो उसे भी सरकार ही सदन में लायेेगी अध्यक्ष नहीं। ऐसे में यह लगता है कि जन भावनाओं को मोड देने के लिये विधानसभा अध्यक्ष द्वारा कमेटी का गठन किया गया है। जबकि विधानसभा अध्यक्ष का कार्य क्षेत्र तो विधानसभा के संचालन तक ही सीमित है। इस संचालन के लिये तो वह कोई भी नियम बना सकते हैं। लेकिन ऐसी कमेटी गठित होने के बाद कमेटी की रिपोर्ट पर सरकार को निर्देशित करने की स्थिति पहली बार आ रही है। समान्यत ऐसी कमेटियों का गठन सरकार द्वारा किया जाता है। कमेटी की रिपोर्ट सिफारिशों पर अमल करवाने का तंत्र सरकार के पास होता है विधानसभा अध्यक्ष के पास नहीं है। ऐसे में माना जा रहा है कि विधानसभा अध्यक्ष का रूट लेकर इस मामले को और लम्बा करने का रास्ता चुना गया है। इस पर भाजपा की ओर से भी कोई प्रतिक्रिया न आना पूरे प्रकरण को और भी गंभीर बना देता है। क्योंकि इसमें इतने कानूनी पहलू उलझ गये हैं कि दोनों ही दल इसकी हकीकत का सामना करने को तैयार नहीं हैं।

प्रधानमंत्री द्वारा हिमाचल को चुनावी मुद्दा बनाना एक बड़ा संकेत है।

  • मंत्रियों के ब्यानों से उलझा मस्जिद विवाद पूरे प्रदेश में फैला
  • जब शहर में चार-पांच हजार अवैध निर्माण है तो अकेले मस्जिद के खिलाफ कारवाई कैसे होगी
  • जब 2010 से यह अवैधता चल रही थी तो क्या संबद्ध प्रशासन के खिलाफ भी कारवाई होगी?
शिमला/शैल। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिमाचल की सुक्खू सरकार की स्थिति को लेकर जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के चुनाव में कांग्रेस पर सीध निशाना साधा है। मोदी ने आरोप लगाया है कि विधानसभा चुनावों के दौरान जनता की झूठी गारंटीयां देकर सता में आयी सरकार आज समय पर अपने कर्मचारियों को वेतन तक का भुगतान नहीं कर पा रही है। यह एक ऐसा आरोप है जिसका साक्ष्य सरकार के अपने ही फैसले बनते जा रहे हैं। जब प्रधानमंत्री ने स्वयं यह मुद्दा उछाल दिया है तो निश्चित है कि आने वाले दिनों में भाजपा का हर नेता इस पर साक्ष्यों के साथ आक्रमक होगा। हिमाचल की कांग्रेस सरकार की इस परफारमैन्स का पड़ोसी राज्यों के चुनावों पर क्या असर पड़ेगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। क्योंकि चुनावों में कई स्थानीय फैक्टर भी होते हैं जो मुद्दों पर भी भारी पड़ते हैं। लेकिन यह तय है कि प्रधानमंत्री का यह संज्ञान लेना प्रदेश की राजनीति को अवश्य प्रभावित करेगा और चुनावों में कांग्रेस की आक्रामकता पर भी भारी पड़ेगा। कांग्रेस पड़ोसी राज्यों में हिमाचल में कांग्रेस की सरकार होने का लाभ नहीं ले सकेगी। इस समय प्रदेश की वित्तीय स्थिति को सुधारने के लिये सरकार जो भी कदम उठा रही है उसका आम आदमी पर असर नकारात्मक ही पड़ रहा है। विपक्ष का हर नेता प्रदेश को कर्ज की इस दलदल में धकेलना का आरोप लगा रहा है। अनुराग ठाकुर ने तो सरकार पर तीस हजार करोड़ का कर्ज अब तक ले लेने पर सीधे कहा है कि अब तक की सरकारों ने जितना कर्ज लिया था उसका 50% तो इस सरकार ने दो वर्षों से कम समय में ही ले लिया है।
वित्तीय स्थिति के साथ ही मस्जिद विवाद को जिस तरह से सरकार ने हैंडल किया है उससे हालात और उलझ गये हैं। क्योंकि सरकार के मंत्रियों ने स्वयं स्वीकार लिया है कि अवैध निर्माण हुआ है। लेकिन मस्जिद के अवैध निर्माण को स्वीकारते हुये शहरी विकास मंत्री ने यहां यह भी खुलासा किया है कि शहर में चार-पांच हजार अवैध निर्माण है। स्वभाविक है कि सारे अवैध निर्माणों पर एक सम्मान कारवाई करनी होगी। इसमें यह कठिन हो जायेगा की मस्जिद में अवैध निर्माण हुआ है इसलिए इसको तुरन्त गिरा दिया जाये। यह दूसरी बात है कि मुस्लिम समाज स्वतः ही इस निर्माण को गिराने के लिये तैयार हो जायें। लेकिन तब भी अन्य चार-पांच हजार अवैध निर्माण पर सरकार कब क्या कारवाई करती है इस पर जनता की नजर बनी रहेगी। इसी के साथ पंचायती राज मंत्री ने जिस तरह से सदन में खुलासा रखा है कि बांग्लादेशी और रोहिंगियां यहां पर आ गये हैं यह अपने में एक बड़ा तथ्य है। यह भी सदन में रखा गया कि कब से यह अवैध निर्माण चल रहा था। निगम प्रशासन की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाये गये हैं। जो कुछ मंत्री ने सदन में कहा है वही सब कुछ तो हिन्दू संगठन कह रहे हैं।
इस समय पूरे प्रदेश में यह मुद्दा फैल गया है क्योंकि अपरोक्ष में सरकार के दो मंत्रियों ने वह सब कुछ स्वीकार लिया है जो हिन्दूवादी संगठन कह रहे हैं। प्रदेश में कितनी मस्जिदें बन गयी हैं और कैसे बन गयी हैं क्या इसका जवाब सरकार से हटकर कोई दूसरी एजैन्सी दे सकती हैं? फिर सुक्खू सरकार को भी सत्ता में आये दो वर्ष होने जा रहे हैं। इस सरकार में यह खुलासे करने वाले भी पहले दिन से ही मंत्री हैं। तो क्या इन सब की भी बराबर की जिम्मेदारी नहीं बन जाती है। भाजपा ने तो अपने बूथ स्तर के नेताओं को भी इस मस्जिद मुद्दे पर कोई भी अधिकारिक टिप्पणी करने से रोक दिया है। अब यह मुद्दा पूरी तरह हिन्दू संगठनों के हाथ में चला गया है। मंत्रियों के ब्यानों ने उनके मुद्दे को प्रमाणिकता प्रदान कर दी है। यह ठीक है कि यह मुद्दा उलझने के बाद वित्तीय संकट की चर्चा पृष्ठभूमि में चली गयी है। लेकिन प्रधानमंत्री द्वारा स्वयं इसको चुनावी चर्चा में लाना एक गंभीर संकेत है।

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