Thursday, 18 September 2025
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एचआरटीसी की खरीद से नादौन में लैंड सीलिंग पर उठे सवाल

  • क्या सीलिंग एक्ट के बाद भी सीलिंग से अधिक जमीन खरीदी जा सकती है ?
  • 28 जनवरी 2011 के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की अनुपालना में सरकार खामोश क्यों ?
  • 2011 के पावर ऑफ अटॉर्नी पर 2015 में अमल
शिमला/शैल। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के गृह विधानसभा क्षेत्र नादौन में सरकार ई-बसों के लिए एक बस स्टैंड का निर्माण करने जा रही है । इस बस स्टैंड के लिए कलूर के मौलाघाट में एचआरटीसी ने जमीन ली है। जिन लोगों से यह जमीन 2023 में खरीदी गई है उन्होंने स्वयं 2015 में यह जमीन राजा नादौन महेश्वर चंद से करीब 2,40,000 में खरीदी थी। राजा महेश्वर चंद से हुई यह खरीद ही अपने में एक अवैध खरीद होने की आशंका है। क्योंकि 1974 में पारित और 1971 से लागू हुए लैंड सीलिंग एक्ट के मुताबिक महेश्वर चंद के पास बची ही केवल 30 स्टैंर्ड एकड़ (316 कनाल 10 मरले) जमीन थी। महेश्वर चंद की शेष जमीन लैंड सीलिंग एक्ट के तहत सरकार में विहित हो गयी थी। इसलिए लैंड सीलिंग एक्ट के लागू होने के बाद महेश्वर चंद द्वारा बेची गयी सैकड़ो कनाल जमीन अपने में एक स्कैन का रूप ले लेती है ।
स्मरणीय है कि राजा नादौन को 1897 में अंग्रेज शासन के दौरान 1,59,986 कनाल 6 मरले जमीन बतौर जागीर मिली थी। यह जमीन नादौन रियासत के 329 गांवों मैं फैली थी और इस पर स्थानीय लोगों के बर्तनदारी अधिकार सुरक्षित रखे गए थे। आज भी राजस्व रिकॉर्ड में पर्चा जमाबंदी में "ताबे हकूक बर्तनदारान" दर्ज है। जब हिमाचल में लैंड सीलिंग एक्ट लागू हुआ तो उसमें अधिकतम भू सीमा 30 एकड़ कर दी गयी। इससे अधिक की जमीन का भू स्वामी को मुआवजा देकर ऐसी जमीने सरकार के अधिकार क्षेत्र में चली गयी। राजा नादौन की भी सारी जमीन सरकार में चली गयी थी। लैंड सीलिंग से 515 कनाल 14 मरले जमीन तहसील देहरा के नौरी गांव में चाय बागान के नाम पर बाहर रही। इसी तरह टीका नागरा में 32 कनाल 12 मरले और टीका कलूर में 1224 कनाल 4 मरले भूदान यज्ञ बोर्ड के नाम होने से सीलिंग से बाहर रही। लेकिन वर्तमान में नौरी में कोई चाय बागान नहीं है और न ही कलूर में ऐसी कोई जमीन भूदान बोर्ड के नाम पर होने की स्थानीय लोगों को कोई जानकारी है जबकि यह सब वित्तायुक्त के 31-7-84 के फैसले में दर्ज है। वित्तायुक्त के फैसले के अनुसार राजा नादौन की सीलिंग में आयी एक लाख कनाल से अधिक की विलेज कामन लैंड घोषित है ।
विलेज कामन लैंड की कोई खरीद बेच नहीं हो सकती यह सर्वोच्च न्यायालय के 28 जनवरी 2011 के फैसले से स्पष्ट है। इस फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने विलेज कामन लैंड को लेकर देश के सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को स्पष्ट निर्देश जारी करते हुए समय-समय पर इस सन्दर्भ में शीर्ष अदालत में रिपोर्ट दायर करने को कहा है । हिमाचल में सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले की अनुपालना में क्या कदम उठाए गए इस पर कोई कुछ कहने को तैयार नहीं है। दूसरी ओर इस फैसले के बाद राजा नादौन महेश्वर चंद ने दिसंबर 2011 में अपनी पावर ऑफ अटॉर्नी एक हरभजन सिंह के नाम बना दी। 2015 में इसी पावर ऑफ अटॉर्नी के माध्यम से एचआरटीसी द्वारा खरीदी गई जमीन बेची थी । पावर ऑफ अटॉर्नी बनाये जाने को लेकर भी कई प्रश्न चिन्ह है। सीलिंग एक्ट के आने के बाद जब महेश्वर चंद के पास बची ही 316 कनाल थी तो उसने सैकड़ो बीघे जमीन बेच कैसे दी? सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की अनुपालना में क्या कदम उठाए गए? बल्कि जब सरकार 2023 में लैंड सीलिंग एक्ट को लेकर संशोधन लायी तब भी सरकार ने यह जानकारी नहीं जुटाई कि आज भी प्रदेश में कितने लोगों के पास लैंड सीलिंग सीमा से अधिक जमीन है और क्यों है। क्योंकि नादौन में ही ऐसे मामले सामने आये हैं जिन्होंने राजा नादौन से सीलिंग से अधिक जमीन खरीद रखी है। यह सारे सवाल एचआरटीसी द्वारा 70 कनाल पौने सात करोड़ में खरीदने के बाद उठे हैं क्योंकि सीलिंग के बाद शायद इस जमीन की मालिक ही सरकार थी ।
 

कौन पहले जांच पूरी करेगा शिमला पुलिस या ईडी

  • धन बल का आरोप यदि प्रमाणित हो जाता है तो उसका प्रभाव देश की राजनीति पर पड़ेगा।
  • यदि यह आरोप प्रमाणित नहीं होता तो मानहानि मामलों पर असर पढ़ना तय है
  • क्या ईडी का दखल शिमला पुलिस को रोक पायेगा?

शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश की एक राज्यसभा सीट के लिए इस वर्ष फरवरी में हुये चुनाव में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद कांग्रेस का प्रत्याशी हार गया था। क्योंकि कांग्रेस के छः और तानों निर्दलीय विधायकों ने भाजपा के पक्ष में वोट किया। राज्यसभा चुनाव के लिए कोई भी राजनीतिक दल अपने विधायकों को सचेतक जारी करके किसी उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करने के लिये बाध्य नहीं कर सकता। यह नियम है। इसी नियम का सहारा लेकर छः कांग्रेसियों ने अपनी नाराजगी रिकॉर्ड पर लाने के लिए क्रॉस वोटिंग कर दी। लेकिन कांग्रेस नेतृत्व में इस बजट पर मतदान के समय गैर हाजिरी रहना करार देकर इन लोगों को सदन और विधायकी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। यह सभी लोग भाजपा में शामिल हो गये और भाजपा ने इन्हें उपचुनाव के लिये अपना उम्मीदवार भी नामित कर दिया। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान करीब एक माह यह लोग अपने चुनाव क्षेत्रों और प्रदेश से भी बाहर रहे। इस बाहर रहने पर जो खर्च हुआ उसे कांग्रेस ने भाजपा के ऑपरेशन कमल की संज्ञा दे दी। एक एक विधायक को पन्द्रह-पन्द्रह करोड़ दिए जाने का आरोप लगा और यही आरोप उप चुनावों की मुख्य मुद्दा बना। बल्कि कांग्रेस के दो विधायकों संजय अवस्थी और भूवनेश्वर गॉड ने बाकायदा बालूगंज थाना में शिकायत देकर आपराधिक मामला दर्ज करवा दिया। यह मामला विधायक आशीष शर्मा और पूर्व विधायक चैतन्य शर्मा के पिता सेवानिवृत्त मुख्य सचिव राकेश शर्मा के खिलाफ दर्ज किया गया।
अब इस मामले की जांच चल रही है। इस जांच में विधायक आशीष शर्मा को पुलिस दो बार पूछताछ के लिये बुला चुकी है। राकेश शर्मा और पूर्व विधायक रवि ठाकुर और तथा चैतन्य शर्मा से घंटों पुलिस पूछताछ कर चुकी है। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और अब केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर के प्रचार सलाहकार तरुण भंडारी से भी बालूगंज में पूछताछ हो चुकी है। माना जा रहा है कि भाजपा के पक्ष में मतदान करने वाले सभी लोगों को देर सवेर पूछताछ के लिये बुलाया ही जायेगा। पुलिस अब तक की जांच में यह पता लगा चुकी है कि चण्डीगढ़ में इनके ठहराव के दौरान का सारा बिल एक फार्मा कंपनी ने अदा किया है और उसके तार खट्टर के प्रचार सलाहकार तक पहुंच रहे हैं। जिस हेलीकॉप्टर कंपनी ने इन विधायकों को हवाई यात्राएं कारवाई उसके मुख्यालय गुरुग्राम भी हिमाचल पुलिस दस्तक दे आयी है। हेलीकॉप्टर कंपनी के यहां जाने पर काफी विवाद भी उठ चुका है। जिसमें दोनों प्रदेशों के शीर्ष पुलिस प्रबंधन को भी बीच में आना पड़ा है। हिमाचल पुलिस की जांच का मुख्य बिन्दु यह पता लगाना है कि क्या हिमाचल सरकार को गिराने के लिए धनबल का प्रयोग हुआ। यदि हुआ तो यह खर्च किसने किया? जब उपचुनावों के प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री और अन्य कांग्रेसी नेताओं ने इन लोगों के खिलाफ पन्द्रह-पन्द्रह करोड़ में बिकने का आरोप लगाया था तब कुछ लोगों ने मुख्यमंत्री के खिलाफ मानहानि के मामले भी दायर किये हैं। इन मामलों में प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है। ऐसे में यदि हिमाचल पुलिस इस सारे खेल में धन बल का प्रयोग होना प्रमाणित नहीं कर पाती है तो मानहानि के मामलों में स्थिति नाजुक होना तय है।
हिमाचल पुलिस यदि धनबल का प्रयोग होना प्रमाणित कर देती है तो निश्चित रूप से उसकी आंच भाजपा हाईकमान तक भी पहुंचेगी। क्योंकि आरोप पन्द्रह-पन्द्रह करोड़ देने का है। उस समय भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा थे। उन्हीं की संस्तुति से यह लोग भाजपा में शामिल हुए और उपचुनाव में उम्मीदवार भी बने। धन बल के सहारे किसी भी लोकतांत्रिक सरकार को गिराने का प्रयास करना न केवल निन्दनीय है बल्कि यह गंभीर अपराध भी है। इसके प्रमाणित हो जाने का असर भाजपा के भविष्य पर भी पड़ेगा यह तय है। यदि यह आरोप प्रमाणित नहीं हो पाते हैं तो इसका सीधा प्रभाव मुख्यमंत्री के खिलाफ दायर हुए मानहानि के मामलों पर पढ़ना तय है। इसी बीच हिमाचल में ईडी और आयकर जैसी एजैन्सीयां दखल दे चुकी है। नादौन में तीन बार ईडी आ चुकी है। सूत्रों के मुताबिक ईडी के हाथ लगे मामले बहुत ही गंभीर हैं। ऐसे में राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में यह आम चर्चा का विषय बना हुआ है कि हिमाचल पुलिस अपनी जांच को पहले अंतिम रूप दे पाती है या ईडी अपनी धरपकड़ की प्रक्रिया पर अमल कर पाती है। या दोनों ही ओर से हथियार डाल दिये जाते हैं। वैसे इस प्रकरण पर प्रदेश के हर आदमी की नजर लगी हुई है।

वित्तीय से ज्यादा बड़ा होता जा रहा है विश्वसनीयता का संकट

  • अपने खर्चों पर लगाम लगाए बिना सारे आर्थिक उपाय अर्थहीन हो जाएंगे।
  • कर्ज लेकर राहत बांटना भविष्य को गिरवी रखना है।
  • व्यवस्था परिवर्तन का सूत्र घातक होगा।
शिमला/शैल। सुक्खु सरकार ने प्राइवेट अस्पतालों से हिमकेयर योजना बन्द कर दी है। परिवहन निगम में न्यूनतम किराया बारह रुपये करने का फैसला लिया जा रहा है। रियायती येलो कार्ड, स्मार्ट कार्ड ,सम्मान कार्ड के रेट 50 रुपये से 100 रुपये कर दिए हैं। प्राइवेट स्कूलों की स्कूल बसों के किराए में 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर दी है। सेवानिवृत कर्मियों को मूल वेतन के 50 प्रतिशत पर पुर्ननियुक्ति देने का फैसला लिया है। पिछली सरकार द्वारा दी जा रही 125 यूनिट मुफ्त बिजली पर कुछ राइडर लगा दिए हैं। महिलाओं को मिलने वाले 1500 पर भी कई शर्ते लगा दी है। इन्ही फैसलों के साथ नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर के मुताबिक हर मंत्री को दो-दो व्यक्ति नियुक्त करने का अधिकार दिया जा रहा है जो मन्त्री की छवि सुधारने के लिए काम करेंगे। सरकार ने वित्तीय स्थिति सुधारने के लिए यह फैसले लिए हैं । इनके अतिरिक्त राजस्व में भी कई सेवाओं के दाम बढ़ा दिए हैं। सत्ता संभालते ही पेट्रोल डीजल पर वैट बढ़ाया था। पिछली सरकार द्वारा खोले गए करीब एक हजार संस्थान बंद कर दिए थे। सस्ते राशन के दामों में बढ़ोतरी के साथ उसकी मात्रा में कटौती भी कर दी गई है कुल मिलाकर सरकार जहां संभव है सेवाओं और चीजों के दामों में बढ़ोतरी कर रही है। सरकार के इन फैसलों का जनता पर क्या प्रभाव पड़ेगा? विपक्ष की इस पर क्या प्रतिक्रिया होगी इस सब की परवाह किए बिना वित्तीय स्थिति सुधारने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। इन्हीं प्रयासों के तहत हर माह करीब 1500 करोड़ का कर्ज लेने की स्थिति पहुंचने वाली है क्योंकि अब तक 25000 करोड़ से अधिक का कर्ज ले चुकी है । यहां तक आशंका जताई जा रही है कि शायद कुछ माह बाद नियमित वेतन और पेंशन का भुगतान कर पाने में कठिनाई आ जाए क्योंकि इस समय भी कई कर्मचारी वर्गों को नियमित न मिल पाने के मामले चर्चा में है। यह स्थिति स्पष्ट करती है कि सरकार वित्तीय संकट से गुजर रही है।
सरकार को सत्ता में आए अठारह माह हो गए हैं और यह फैसला अब लिए जा रहे हैं। इसलिए यह सवाल उठना स्वभाविक है कि आखिर यह समझने में इतना समय क्यों लग गया? जबकि मंत्री परिषद का कोई भी सदस्य ऐसा नहीं है जो पहली बार ही विधायक बना हो। सबका लम्बा अनुभव है कई मुख्यमंत्रीयों का कार्यकाल देखा है। हर वर्ष सदन में बजट आता है । हर बजट में आर्थिक सर्वेक्षण आता है। हर वर्ष कैग रिपोर्ट सदन में रखी जाती है । यह वह दस्तावेज होते हैं जिनमें सरकार की सारी योजनाओं उसकी आय-व्यय और कर्ज का सारा रिकॉर्ड दर्ज रहता है। इसी रिकॉर्ड के आधार पर राजनीतिक पार्टियों चुनाव के लिए अपना अपना घोषणा पत्र तैयार करती है और जनता में रखती है। कांग्रेस ने भी इसी आधार पर अपना घोषणा पत्र तैयार करके जनता को दस गारंटियां दी होंगी ऐसा माना जायेगा। फिर सुक्खू सरकार ने सत्ता संभालते ही चेतावनी दी थी कि प्रदेश के हालात श्रीलंका जैसे हो सकते हैं। पिछली सरकार पर वित्तीय कुप्रबन्धन का आरोप लगाकर श्वेत पत्र तक लाया गया था। सरकार के वित्तीय नियंत्रण के लिए बाकायदा एफआरबीएम एक्ट पारित है। राजनीतिक नेतृत्व के लिए मंत्री परिषद के साथ ही अफसरशाही की भी एक बड़ी टीम सहयोग और कार्य संचालन के लिये उपलब्ध रहती है। जब भी सरकारें बदलती हैं तो नेतृत्व अपने अनुसार इस टीम में बदलाव करता है। लेकिन मुख्यमंत्री ने व्यवस्था परिवर्तन के सूत्र के नाम पर इस टीम में लोकसभा चुनाव तक कोई बदलाव नहीं किया। जो अफसरशाही पिछली सरकार को चला रही थी वही इस सरकार में यथास्थिति बनी रही। बल्कि जिन लोगों के खिलाफ कांग्रेस ने कभी सदन में आरोप लगाये थे वही लोग सरकार में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभा रहे हैं।
इसलिए यह कैसे संभव हो सकता है कि जिस प्रशासनिक तंत्र पर श्वेत पत्र में कुप्रबन्धन के आरोप लगे हो वही आज सर्वे सर्वा हो। व्यवस्था परिवर्तन के सूत्र ने एक तरह से सरकार को स्वतः ही विश्वसनीयता के संकट पर लाकर खड़ा कर दिया है। क्योंकि जब सरकार आम आदमी को मिली हुई सुविधाओं पर किसी भी तर्क से कैंची चला रही है तो उसी अनुपात में सबसे पहले अपने खर्चों पर कटौती करनी होगी। आज यह सवाल उठ रहा है कि सरकार को कैबिनेट रैंक में इतने सलाहकारों और दूसरे लोगों की क्या आवश्यकता पड़ गई है। क्या सरकार बता पाएगी कि किस सलाहकार ने क्या नीतिगत मूल्यवान सलाह दी है जिससे सरकार को अमुक लाभ हुआ है। आने वाले समय में आरटीआई में यह सवाल पूछे गये तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। क्योंकि राहतों में कटौती और भारी भरकम कर्ज आपस में स्वतः विरोधी हैं। आज के हालात में वित्तीय से ज्यादा विश्वसनीयता का संकट खड़ा हो गया है। ऐसे हालत में छवि सुधारने के प्रयास बेमानी हो जाएंगे यह तय है।

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