Thursday, 18 December 2025
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राधा स्वामी सत्संग ब्यास के लिये हुये संशोधन से एक्ट की प्रासंगिकता पर उठे सवाल

शिमला/शैल। विधानसभा में सरकार ने अंततः राधा स्वामी सत्संग ब्यास के लिये लैण्ड सीलिंग एक्ट में संशोधन करके जमीन ट्रांसफर करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। राधा स्वामी सत्संग ब्यास ने अपने भोटा स्थित चैरिटेबल अस्पताल की 30 एकड़ जमीन को अपनी सहयोगी संस्था महाराज जगत मेडिकल रिलीफ सोसाइटी को ट्रांसफर किये जाने का आवेदन किया था। ट्रांसफर का कारण अस्पताल द्वारा हर वर्ष 2.50 करोड़ का जीएसटी दिया जाना बताया था। जबकि अस्पताल निःशुल्क सेवा प्रदान कर रहा है। यह जमीन ट्रांसफर न हो पाने की स्थिति में इस अस्पताल को ही बन्द कर दिये जाने की विवशता जाहिर की थी। इस पर हमीरपुर और कुछ अन्य स्थानों पर लोगों ने सरकार के खिलाफ धरने प्रदर्शन करते हुये इस ट्रांसफर के लिये दबाव भी बनाया था। इस दबाव के बाद मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया था कि सरकार इसके लिये लैण्ड सीलिंग एक्ट में संशोधन करेगी। मुख्यमंत्री के इस आश्वासन के बाद इस आश्य का प्रस्ताव मंत्रिमंडल के समक्ष लाया गया था। लेकिन मंत्रिमंडल में उस समय इस प्रस्ताव को अपनी स्वीकृति नहीं दी थी। उस समय यह सामने आया था कि 2.50 करोड़ का जीएसटी बचाने के लिये इस तरह लैण्ड ट्रांसफर की अनुमति देना अवैध होगा। लेकिन अब इस एतराज को नजर अन्दाज करते हुये इस संशोधन को पारित कर दिया गया है। इस संशोधन के बाद यह आशंकाएं उभरी है कि इससे लैण्ड सीलिंग एक्ट की मूल भावना को ही ठेस पहुंचेगी।

हिमाचल में किसी भी गैर कृषक को जमीन खरीदने के लिये एक्ट की धारा 118 के तहत सरकार से पूर्व अनुमति लेने की शर्त है। इसमें व्यक्ति अपने आवास और व्यवसाय के लिये जमीन खरीद सकता है। इस खरीद की सीमाएं तय हैं। लेकिन किसी भी पहले से निर्मित भवन को खरीदने के लिए धारा 118 के तहत अनुमति लेने की शर्त नहीं है। यदि कोई व्यक्ति यह अनुमति लेकर दो वर्ष के भीतर यह निर्माण पूरा नहीं कर पाता है तो उसे एक और वर्ष तक सरकार निर्माण पूरा करने की अनुमति देती है। यदि इस अवधि में भी यह निर्माण पूरा न हो तो ऐसी जमीन पर सरकार कब्जा कर लेती है। सोलन के एक आई ए एस अधिकारी के साथ ऐसा हो भी चुका है। लेकिन प्रदेश में ऐसे बहुत सारे अधिकारी हैं जिन्होंने प्रदेश में एक से अधिक स्थानों पर अपने या परिजनों के नाम पर बीघांे में जमीन खरीद रखी है। जबकि आवास के लिये तो 180 वर्ग गज जमीन की ही आवश्यकता का मानक रखा गया है। धारा 118 में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि एक व्यक्ति कितनी ऐसी अनुमति आवास के नाम पर ले सकता है। इस समय भी कई अधिकारी ऐसे हैं जिन्होंने शिमला और उसके आसपास ही 180 वर्ग गज से अधिक जमीने खरीद रखी हैं।
राधा स्वामी सत्संग ब्यास के पास प्रदेश में 6000 बीघा से अधिक जमीन है। इस संस्था को कृषक का दर्जा भी हासिल है। अब जीएसटी बचाने के लिये लैण्ड ट्रांसफर की सुविधा भी मिल गयी। धार्मिक और शैक्षणिक संस्थाओं को लैण्ड सीलिंग के दायरे से बाहर कर दिया गया है। इस समय प्रदेश में स्थित निजी विश्वविद्यालय के पास लैण्ड सीलिंग से अधिक जमीन है। सारी जमीनों का उपयोग यह विश्वविद्यालय अभी तक नहीं कर पाये हैं। लेकिन सरकार इसमें कुछ नहीं कर सकती। जल विद्युत परियोजनाओं और सीमेंट उद्योगों को भी एक्ट में छूट हासिल है। जबकि 1998-99 में सीमेंट उद्योग को लैण्ड सीलिंग के दायरे में लाने के लिये विधि विभाग की स्पष्ट राय है जिस पर अमल नहीं हो सका है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि जब एक्ट में यह स्पष्ट नहीं है कि मकान बनाने के लिये कितनी बार धारा 118 में अनुमति ली जा सकती है। जब शैक्षणिक और धार्मिक संस्थाओं को सीलिंग के दायरे से बाहर कर दिया गया है और अब जीएसटी बचाने के लिये लैण्ड ट्रांसफर का भी अधिकार मिल गया है तब धारा 118 का औचित्य ही क्या रह जाता है। जो लोग कई पीढियों से प्रदेश में रह रहे हैं लेकिन संयोगवश प्रदेश के कृषक नहीं हैं उन्हें क्या धारा 118 के दायरे से बाहर नहीं कर दिया जाना चाहिये। जब सरकार लैण्ड सीलिंग में इतने संशोधन कर चुकी है तब इस एक्ट का औचित्य ही क्या बच जाता है। जब राधा स्वामी सत्संग ब्यास के पास किन्नौर में जमीन हो सकती है तो दूसरे धार्मिक संस्थाओं को कैसे और कितनी देर इससे बाहर रख सकते हैं। ऐसे में धारा 118 के औचित्य पर अब नये सिरे से विचार करने की आवश्यकता है।

क्या नादौन में बस स्टैंड के लिये सरकार की जमीन ही सरकार को बेच दी गयी

  • जब लैण्ड सीलिंग के बाद राजा नादौन के पास बची ही 316 कनाल थी तो उसने 70 कनाल और 770 कनाल कहां से बेच दी
  • क्या नादौन में लैण्ड सीलिंग एक्ट लागू नहीं हुआ है
  • जिस जमीन का राजस्व रिकॉर्ड ताबे हकूक बर्तन बर्तनदारान हो उसे प्राइवेट आदमी कैसे खरीद-बेच सकता है

शिमला/शैल। जब सुक्खू सरकार सत्ता में दो साल पूरे होने का बिलासपुर में जश्न मना रही थी तो उसी समय भाजपा बतौर विपक्ष राज्यपाल को सरकार के खिलाफ दो साल के कारनामों का काला चिट्ठा सौंप रही थी। इस काले चिट्ठे में एक आरोप यह दर्ज है कि मुख्यमंत्री के गृह विधानसभा क्षेत्र नादौन में ई बसों के लिए बनाये जा रहे बस स्टैंड के लिए 2015 में तीन लोगों राजेन्द्र कुमार, अजय कुमार प्रभात चन्द द्वारा 2,40,000 में खरीद कर उसी जमीन को 2023 में एचआरटीसी को चार सौ गुना दामों पर 6,72,61,226 रुपए में बेच दिया गया। यह लोग मुख्यमंत्री के नजदीकी है क्योंकि नादौन से ही ताल्लुक रखते हैं। भाजपा का यह आरोप अपने में बहुत कमजोर है क्योंकि किसी भी सौदे में लाभ कमाना कोई अपराध नहीं है। फिर जब यह जमीन 70 कनाल 2015 में खरीदी गयी और अब जब 2023 में बेची गई तो दोनों बार सर्किल रेट के आधार पर ही गणना की गयी होगी। फिर भाजपा का यह भी आरोप नहीं है कि इसमें सर्किल रेट को नजरअन्दाज किया गया है। फिर इसमें आरोप क्या है और भाजपा ने उस आरोप का खुलासा क्यों नहीं किया है। जबकि यह अपने में एक बड़ा घोटाला है। भाजपा के ही काले चिठ्ठे में एक आरोप यह भी है कि मुख्यमंत्री ने स्वयं 770 कनाल जमीन खरीद रखी है। मुख्यमंत्री सुक्खू और एचआरटीसी को 70 कनाल जमीन बेचने वाले सभी लोगों ने 2015 में राजा नादौन से यह जमीन खरीद रखी है।
स्मरणीय है कि राजा नादौन को 1857 में अंग्रेज शासन के दौरान 1,59, 986 कनाल 10 मरले जमीन बतौर जागीर मिली थी। यह जमीन पूरी रियायत के 329 गांवों में फैली हुई थी और राजस्व रिकॉर्ड में इन जमीनों पर ताबे हकूक बर्तन बर्तनदारान दर्ज था और आज भी दर्ज है। जिन जमीनों पर इस तरह का अन्दराज राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज होता है उनकी मालिक सरकार होती है कोई व्यक्ति विशेष नहीं। इसलिए 1974 के लैण्ड सीलिंग एक्ट के तहत राजा नादौन की सारी सरप्लस जमीनों की मालिक सरकार बन गयी। सीलिंग के बाद राजा नादौन के पास बची हुई केवल 316 कनाल जमीन थी। ऐसे में सवाल उठता है कि जिस मलिक के पास कानून के तहत बची ही 316 कनाल जमीन थी उसने 770 कनाल और 70 कनाल जमीने बेच कहां से दी? क्या राजा नादौन सरकार की जमीने ही प्राइवेट लोगों को बेचते रहे? फिर जब जमीनों पर राजस्व रिकॉर्ड में ताबे हकूक बर्तन बर्तनदारान का अन्दराज है तो संबंधित प्रशासन ऐसी सेल डीड को प्रमाणित कैसे करता रहा। राजा नादौन ने अपनी जमीने बचाने के लिये अदालतों में एक लम्बी लड़ाई लड़ी है। लेकिन 1984 में वित्तायुक्त आर.के.आनन्द के फैसले से कानूनी लड़ाई का अन्त हुआ। राजा नादौन केवल 316 कनाल के मालिक रहे थे। ऐसे में 1984 के बाद राजा नादौन द्वारा बेची गई हर जमीन सवालों के दायरे में आ जाती है।
यही नहीं लैण्ड सीलिंग एक्ट के लागू होने के बाद प्रदेश, हमीरपुर और नादौन का राजनीतिक नेतृत्व विधानसभा से लेकर संसद तक इस मुद्दे पर क्या करता रहा। जब 2023 में एचआरटीसी को 70 कनाल जमीन बेची गयी तो उसी दौरान प्रदेश सरकार लैण्ड सीलिंग एक्ट में संशोधन कर रही थी। तब भी किसी ने यह जानने का प्रयास नहीं किया कि अब भी प्रदेश में लैण्ड सीलिंग से अधिक जमीन रखने वाले कितने मामले हैं और क्यों है। जबकि 2011 में विलेज कामन लैण्ड की खरीद बेच का सर्वाेच्च न्यायालय ने कड़ा संज्ञान लेते हुये पूरे देश के मुख्य सचिवों को ऐसे मामलों पर कड़ी कारवाई करते हुये इसके बारे में शीर्ष अदालत को भी सूचित करने के निर्देश जारी कर रखे हैं। कानून की स्थिति को सामने रखते हुये स्पष्ट हो जाता है कि एचआरटीसी के संद्धर्भ में सरकार की जमीन पहले 2,40,000/- रुपए में तीन लोगों को बेची गयी और फिर उसी जमीन को 6,72,61,226 रूपये में बेच दिया गया तथा संबद्ध प्रशासन आंखें बन्द करके बैठा रहा। जबकि यह मामला जिला प्रशासन तक भी गया है।

क्या यह आयोजन सरकार और संगठन की एकजुटता का संदेश दे पाया है?

  • हाईकमान के किसी भी बड़े नेता का न आना सवालों में
  • विपक्ष ने काला चिट्ठा सौंपकर खोला मुद्दों का पिटारा

शिमला/शैल। सुक्खू सरकार ने सत्ता में दो वर्ष पूरे होने पर बिलासपुर में राज्य स्तरीय रैली का आयोजन किया है। इस रैली में तीस हजार लोगों के आने का लक्ष्य तय किया था। इस लक्ष्य के आईने में यह रैली बहुत सफल रही मानी जा सकती है। फिर इन दो वर्षों में सुक्खू सरकार जिस तरह के राजनीतिक वातावरण का सामना करते हुए इस मुकाम तक पहुंची है उसके आईने में भी इस आयोजन को एक सफल आयोजन करार दिया जा सकता है। लेकिन क्या इस रैली के बाद कांग्रेस संगठन और कांग्रेस सरकार अपने कार्यकर्ताओं तथा रैली में आई हुई जनता को अपनी एकजुटता का सन्देश दे पाये हैं ? क्या इस आयोजन के बाद विपक्ष के पास सरकार के खिलाफ कोई सवाल नहीं रह गये हैं जिनका जवाब आना शेष हो ? यह सवाल इसलिये महत्वपूर्ण हो जाते हैं क्योंकि इन दो वर्षों में प्रदेश सरकार पहले दिन से ही केन्द्र पर राज्य को वांछित सहयोग न देने का आरोप लगाती आयी है और विपक्ष सरकार को गारंटीयों के नाम पर घेरती आयी है। इस रैली में कांग्रेस हाईकमान की ओर से कोई भी नेता शामिल नहीं हो पाया है जबकि आमन्त्रण सारे शीर्ष नेताओं को था। इस आयोजन के मुख्यअतिथि प्रदेश प्रभारी राजीव शुक्ला थे जबकि यह आयोजन प्रभारी होने के नाते उनके अपने कार्यकलाप की भी परीक्षा था।
इन बिन्दुओं पर यदि इस आयोजन का मूल्यांकन किया जाये तो इस अवसर पर रैली मैदान को लेकर जो सवाल पूर्व मंत्री रामलाल ठाकुर ने उठाये हैं वह अपने में बहुत कुछ ब्यान कर जाते हैं। इस आयोजन में जिस तरह से प्रदेशाध्यक्ष प्रतिभा सिंह को स्टेज पर बोलते हुये रोका गया उससे उन आशंकाओं को स्वतः ही बल मिल जाता है कि होली लॉज को डिसलॉज करने का प्रयास किया जा रहा है। यहां यह उल्लेखनीय हो जाता है कि जब प्रतिभा सिंह ने भाजपा सरकार के कार्यकाल में मण्डी के लोकसभा का उपचुनाव जीता था तो वह स्व.वीरभद्र सिंह की विरासत के नाम पर ही संभव हो पाया था। इसी विरासत के कारण विधानसभा चुनावों के समय भी किसी एक को नेता घोषित नहीं किया गया था। बाद में मुख्यमंत्री पद के लिये शायद सुखविंदर सिंह सुक्खू इसलिये नामित हुये क्योंकि वही एकमात्र नेता थे जो कांग्रेस संगठन की तीनों इकाइयों छात्र, युवा और मुख्य संगठन के अध्यक्ष रह चुके थे। लेकिन सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री पर जिस तरह से अपने ही मित्रों के गिर्द केन्द्रित होकर रह जाने के आरोप लगने शुरू हुये उनके कारण वीरभद्र कार्यकाल में सक्रिय रहे कार्यकर्ता मुख्य धारा से बाहर होते चले गये। लेकिन जिन मित्रों को मुख्यमंत्री आगे लाये वह न तो सरकार में ही कोई महत्वपूर्ण योगदान दे पाये और न ही मुख्यमंत्री के संकट मोचक हो पाये।
इस रैली के बाद अब तक उपेक्षित चले आ रहे कार्यकर्ताओं को स्व. वीरभद्र सिंह के नाम पर इकट्ठे होने का अवसर मिल जायेगा। क्योंकि विपक्ष ने जिस तरह का सौ पन्नों का सरकार का काला चिट्ठा राज्यपाल को सौंपा है उससे भाजपा के हर कार्यकर्ता से लेकर नेता तक हर आदमी के पास सरकार के खिलाफ सवाल उठाने के लिये मैटिरियल मिल जायेगा। क्योंकि इस कच्चे चिट्ठे में लगभग सभी मंत्रियों और विभागों के खिलाफ कुछ न कुछ दस्तावेजी प्रमाणों के साथ दर्ज है। आने वाले दिनों में इस कच्चे चिट्ठे के आरोप हर दिन चर्चा का विषय रहेंगे। यह देखना दिलचस्प होगा कि मुख्यमंत्री के मित्र इस काले चिट्ठे का जवाब कैसे देते हैं। काले चिट्ठे में जिस तरह के आरोप दर्ज हैं उनसे यह संभावना बलवती हो गई है कि शायद कुछ मामलों में सीबीआई तक सक्रिय हो जाये। ई डी पहले ही सक्रिय है। इस परिदृश्य में रैली के भरे मंच से संगठन और सरकार में तीव्र मतभेद होने का खुला संदेश जाना किसी भी गणित से सरकार के लिये हितकर नहीं हो सकता। अब इस मामले की प्रदेश प्रभारी किस तरह की रिपोर्ट हाईकमान के सामने रखते हैं और हाईकमान उसका कैसे संज्ञान लेता है इस पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं। क्योंकि जिस तरह की वित्तीय स्थितियों से प्रदेश गुजर रहा है और प्रधानमंत्री स्वयं इसको मुद्दा बना चुके हैं उसके आईने में इस रैली का औचित्य स्वयं ही सवालों में आ जाता है। नेता प्रतिपक्ष ने इस आयोजन पर सवाल उठाने शुरू कर ही दिये हैं।

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