
शिमला/शैल। किन्नौर में जिस तरह से वहां की जनता पर दुखों के पहाड़ टूट पड़े हैं उससे हर संवेदनशील व्यक्ति व्यथित हो गया है। इस त्रासदी ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या विकास के लिये इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। यह सवाल भी साथ ही उठ रहा है कि जब प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करके सारा सन्तुलन बिगाड दिया जायेगा तो क्या इसका अन्तिम परिणाम ऐसी ही त्रासदीयों के रूप में सामने नहीं आयेगा। यह क्षेत्र भूकम्प जोन पांच में आता है। 1971 में किन्नौर में भूकम्प आया था और उसका प्रभाव शिमला तक पड़ा था। उस समय शिमला का रिज और लक्कड़ बाज़ार एरिया प्रभावित हुआ था जो आज तक पूरी तरह संभल नहीं पाया है। 1971 में किन्नौर में कोई जलविद्युत परियोजना नहीं थी बल्कि प्रदेश के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम ही 1974 के बाद गठित हुए हैं। उसके बाद ही प्रदेश की जलविद्युत क्षमता और सीमेन्ट का आकलन किया गया। इस आकलन में प्रदेश की पांच मुख्य नदी घाटियों में से सबसे अधिक नियोजित क्षमता सतलुज नदी घाटी की आंकी गयी। इस आकलन के बाद यहां जल विद्युत परियोजनाएं स्थापित करने की योजना बनी। किन्नौर में 53 जल विद्युत परियोजनाएं स्थापित करने की योजनाएं बनीं। किन्नौर में 53 जलविद्युत परियोजनायें प्रस्तावित हैं जिनमें से 3041 मैगावाट की 15 अलग-अलग क्षमता की परियोजनाएं चालू हैं। प्रस्तावित परियोजनाओं में 17 बड़ी परियोजनाएं हैं। यदि यह सारी परियोजनाएं क्रियान्वित हो जाती हैं तो 22% नदी बाधों के पीछे झील के रूप में खड़ी होगी और 72% सुरंगों के भीतर बहेगी।
इस संबंध में हुए अध्ययनों से सामने आया है कि जिले में 82% भूभाग पथरीला या उच्च हिमालय चरागाह के अर्न्तगत है। यहां के कुल वनक्षेत्र का 90% भाग जलविद्युत परियोजनाओं और टावर लाईनों के लिये प्रयुक्त हुआ है। बड़े पैमाने पर वनभूमि का हस्तान्तरण इन परियोजनाओं के लिये हुआ है। दस परियोजनाओं के लिये तो 415 हैक्टेयर के चिलगोज़ा के जंगलों का हस्तान्तरण हुआ है। चिलगोजा के जंगल केवल किन्नौर में ही पाये जाते हैं। जो अध्ययन हुए हैं उनमें यह सामने आया है कि इन परियजोनाओं के लिये 11589 पेड़ काटे गये हैं। लेकिन क्षतिपूर्ति वनीकरण में केवल 10% तक ही सफलता मिल पायी है। इससे सारे पर्यावरण का सुन्तलन बिगड़ गया है। ऐसे में जब सारी परियोजनाओं को शुरू कर दिया जायेगा तो उसके परिणाम कितने गंभीर होंगे इसका अन्दाजा लगाया जा सकता है। इस परिदृश्य में यह सवाल खड़ा हो गया है कि शेष बची परियोजनाओं को आगे बढ़ाया जाना चाहिये या इन्हें अब हुए नुकसान को सामने रखकर छोड़ दिया जाना चाहिये।
जब इन परियोजनाओं पर विचार शुरू किया गया था तब यह तस्वीर खींची गयी थी कि प्रदेश की सारी आर्थिक कठिनाईयां अकेले विद्युत के क्षेत्र से दूर हो जायेंगी। निवेश के लिये 1990 से प्राईवेट क्षेत्र को बुलाना शुरू किया गया था और तब बसपा परियोजना बिजली बोर्ड से लेकर जेपी समूह को दी गयी थी। इस परियोजना पर जो कुछ बिजली बोर्ड ने निवेशित कर रखा था वह ब्याज सहित वापिस लिया जाना था। लेकिन जब यह राशी 92 करोड़ को पहुंच गयी तब इसे यह कहकर बट्टे खाते में डाल दिया गया कि यदि इसे वापिस लिया जाता है तो जेपी अपनी बिजली की कीमत बढ़ा देगा और इससे जनता पर बोझ पड़ेगा। इस विषय पर कैग द्वारा की गयी टिप्पणीयों का भी सरकार पर कोई असर नहीं हुआ है। प्रदेश के सारे सार्वजनिक क्षेत्र के निवेश का 85% अकेले विद्युत क्षेत्र में निवेशित है और इससे कुल चिन्हित क्षमता 27436 मैगावाट में से केवल 10640.57 मैगावाट का ही दोहन हो पाया है। हिमाचल प्रदेश विद्युत बोर्ड लि. के जिम्मे विद्युत के वितरण का काम है और इसमें बोर्ड की संचित हानि 31 मार्च 2019 को 2092.86 करोड़ हो चुकी थी और विद्युत क्षेत्र का कर्जभार 9736.64 करोड़ हो चुका है। कैग के मुताबिक आज प्रदेश की विद्युत कंपनीयां अपने ब्याज का भार वहन करने की स्थिति में नहीं हैं। करोड़ो का अपफ्रन्ट प्रिमियम वसूला नहीं गया है। कुल मिलाकर आज प्रदेश का विद्युत क्षेत्र जिस धरातल पर खड़ा है उससे यह नहीं लगता कि जो उम्मीद आत्मनिर्भरता की इस क्षेत्र के माध्यम से सोची गयी थी वह कभी पूरी हो पायेगी। ऐसे में यह विचार करना आवश्यक हो जायेगा कि क्या इस विकास के लिये इतने जान-माल का नुकसान करवाना श्रेयस्कर होगा या नहीं। क्योंकि प्रकृति का सन्तुलन जिस अनुपात में बिगाड़ा जायेगा उसी अनुपात में यह नुकसान बढ़ता जायेगा और एक दिन इससे विद्युत का उत्पादन भी प्रभावित हो जायेगा।
शिमला/शैल। केन्द्रिय सूचना एवम् प्रसारण मन्त्री अनुराग ठाकुर पांच दिन की जन आशीर्वाद यात्रा पर प्रदेश में आ रहे हैं। यह यात्रा 19 अगस्त को हिमाचल भवन चण्डीगढ़ से शुरू होकर 23 अगस्त को शाम को ऊना के मैहतपुर में समाप्त होगी। इस यात्रा में प्रदेश के सभी जिलों के मुख्य स्थानों को कवर किया जायेगा। पार्टी सूत्रों के मुताबिक जब यह यात्रा तय की गयी थी तब इसके रूट में मण्डी संसदीय क्षेत्र शामिल नहीं था। लेकिन बाद में इसमे मण्डी संसदीय क्षेत्र को भी जोड़ दिया गया। सूचना एवम् प्रसारण मन्त्री बनने के बाद अनुराग ठाकुर की यह पहली यात्रा है प्रदेश की ओर वह भी आशीर्वाद यात्रा के रूप में। इस समय देश में लोकसभा के लिये चुनाव नहीं होने जा रहे हैं और न ही प्रदेश की विधानसभा के लिये आम चुनाव हो रहे हैं। प्रदेश में केवल चार उपचुनाव होने हैं जिनमें तीन विधानसभा और एक लोकसभा क्षेत्र शामिल है। यह चुनाव भी कब होंगे यह भी अभी अनिश्चित है क्योंकि चुनाव आयोग ने 30 अगस्त तक कोरोना की नयी एसओपी के तहत राज्य से रिपोर्ट तलब की है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि भाजपा इस यात्रा में किन उपलब्धियों के लिये प्रदेश की जनता से आशीर्वाद मांगेगी। मण्डी संसदीय क्षेत्र के सांसद स्व. रामस्वरूप शर्मा की आत्महत्या के बाद मण्डी सीट खाली हुई है। इस आत्महत्या पर दिल्ली पुलिस में मामला दर्ज है। स्व.रामस्वरूप शर्मा का बेटा दिल्ली पुलिस की जांच पर सवाल उठा चुका है। विधानसभा के अभी हुए सत्र में विपक्ष इसकी सीबीआई से जांच करवाने की मांग कर चुका है। क्या अनुराग ठाकुर इस यात्रा में रामस्वरूप के परिजनों को कोई ठोस आश्वासन दे पायेंगे।
अभी विधानसभा के सत्र में बेरोज़गारों और आऊटसोर्स के माध्यम से पिछले दरवाज़े से मैरिट को नज़रअन्दाज करके भर्तियां करने के आरोप सरकार पर लगे हैं। विपक्ष ने यह आरोप लगाया है कि आऊटसोर्स के माध्यम से प्रदेश में आठ हज़ार लोगों की भर्ती की गयी है और उसमें से पांच हज़ार लोग मुख्यमन्त्री और जल शक्ति मन्त्री के चुनाव क्षेत्रों से ही भर्ती कर लिये गये हैं। क्या अनुराग इस आरोप की जांच का आश्वासन दे पायेंगे या इस मुद्दे को प्रधानमन्त्री तक भी पहुंचाने का वायदा कर पायेंगे। प्रचार प्रसार पर हुए खर्च की जानकारी विधानसभा से ही छुपायी जा रही है। सरकारी धन को ऐच्छिकता से खर्च किया जा रहा है। क्या अनुराग ठाकुर इसका भी जवाब दे पायेंगे। भ्रष्टाचार के आरोपों से ध्यान हटाने के लिये आईपीसी की धारा 505(2) के तहत मामला दर्ज किया जाना कैसे उचित है क्या इसका जवाब यात्रा में आ पायेगा।
आज प्रदेश कर्ज में इतना डूब चुका है कि सारा भविष्य दाव पर लग गया है। बजट सत्र में कांग्रेस विधायिका आशा कुमारी ने तीन वर्षो में प्रतिवर्ष सरकार की कुल आय और खर्च का ब्यौरा मांगा था। इसमें जो जवाब सदन के पटल पर रखा गया है उसके मुताबिक आय और व्यय में करीब 28000 करोड़ का अन्तर है। स्वभाविक है इस अन्तर को पाटने के लिये या तो कर्ज का सहारा लिया गया या फिर इतने कार्यों को अंजाम ही नहीं दिया गया। शिक्षा विभाग में शिक्षकों के हजारों पद खाली हैं। जितने प्रतिवर्ष सेवानिवृत होते हैं उतने भी नहीं भरे जाते हैं। मंहगाई चरम पर है और यही स्थिति बेरोज़गारी की है। इस परिदृश्य में जब पार्टी उपचुनावों का सामना करेगी तो जनता का सहयोग क्या मिलेगा इसका अन्दाजा लगाया जा सकता है। 2014 से 2019 तक हर चुनाव में स्व. वीरभद्र सिंह पर लगे आरोपों को भुनाया गया था। परन्तु आज उनकी मौत के बाद सारा परिदृश्य बदल गया है। आज जन सहानुभूति उनके साथ है। यह धारणा बन चुकी है कि उनके खिलाफ आधार हीन मामले बनाये गये और लटका कर रखने की नीति पर चलते रहे हैं। ऐसे में क्या अनुराग सरकार की असफलताओं पर जनता से आशीर्वाद मांग पायेंगे।
होकर विधानसभा का घेराव किया हो और सरकार के शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार होने के आरोप लगाये हों। इस घेराव से अन्य राज्यों में भी यह सन्देश गया है कि जब शिक्षा विभाग में ही करोड़ो का घपला हो रहा है तो अन्य विभागों की स्थिति क्या होगी। शिक्षा विभाग पर यह आरोप समग्र शिक्षा अभियान परियोजना द्वारा की जा रही पुस्तक खरीद पर लगे हैं। आरोप है कि परियोजना निदेशालय द्वारा पुस्तकों की खरीद के लिये तय प्रक्रिया की अनदेखी करके इस खरीद को अंजाम देने का प्रयास किया जा रहा है। आरोप है कि शैक्षणिक सत्र 2020 -21 के लिये पुस्तकों की खरीद हेतु 10 मार्च 2021 को विज्ञापन जारी किया गया और पुस्तकें जमा करवाने के लिये दस दिन का समय दिया जबकि भण्डार क्रय नियमों के अनुसार बीस लाख से अधिक की खरीद के लिये कम से कम 21 से 30 दिन का समय दिया जाता है। समग्र शिक्षा अभियान के तहत इस विज्ञापन में पहले प्रकाशकों से टेक्निकल बिड के तहत दस्तावेज मांगे जाते हैं इनकी जांच परीक्षण के बाद ही प्रकाशकों की संस्थाओं की किताबों को चयन समिति के समक्ष रखा जाता है। समग्र शिक्षा अभियान के तहत पुस्तकों की खरीद ;डिस्ट्रीब्यूटरद्ध वितरक के माध्यम से नहीं की जा सकती। इस आशय के निर्देश मानव संसाधन मन्त्रालय द्वारा जारी किये गये हैं। इसमें एनसीई आरटीएनवीटी पब्लिकेशन डिविजन आदि से सीधे खरीद का प्रावधान है न कि डिस्ट्रब्यूटर के माध्यम से, क्योंकि सरकारी प्रकाशन अपना अधिकतम डिस्काउंट विभाग को देते हैं। प्रकाशक संघ के मुताबिक 2019-20 में सरकारी प्रकाशनों की किताबें डिस्ट्रीब्यूटरों के माध्यम से लेने पर हिमाचल को करीब एक करोड़ का नुकसान हुआ है। अब 2020-21 के लिये भी 2019-20 को ही आधार बनाकर खरीद करने का प्रयास किया जा रहा है और 10% का डिस्काउंट मांगा गया है। जबकि राजा राम मोहन राय पुस्तकालय प्रतिष्ठान द्वारा तय डिस्काउंट ही पूरे देश में लिया जाता है जो इस तरह है- 1 से 10 प्रतियों पर 10%, 11 से 25 प्रतियों पर 15%, 25 से अधिक 100 प्रतियों तक 20%, 100 से अधिक 300 प्रतियों तक 30% और 300 से अधिक प्रतियों का क्रय करने पर 35% छूट निधार्रित है। हिमाचल प्रदेश सरकार का उच्च शिक्षा विभाग भी पुस्तकों को क्रय इसी प्रक्रिया के अनुसार करता है।The Joomla! content management system lets you create webpages of various types using extensions. There are 5 basic types of extensions: components, modules, templates, languages, and plugins. Your website includes the extensions you need to create a basic website in English, but thousands of additional extensions of all types are available. The Joomla! Extensions Directory is the largest directory of Joomla! extensions.
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