निगम चुनावों में भाजपा ही नहीं मुख्यमन्त्री की प्रतिष्ठा भी दांव पर
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Created on Monday, 05 April 2021 12:01
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Written by Shail Samachar
शिमला/शैल। प्रदेश की चार निगमों के चुनाव चल रहे हैं। सात अप्रैल को मतदान होगा। धर्मशाला, पालमपुर और मण्डी में भाजपा को अपने ही विद्रोहीयों ने परेशानी में डाल दिया है। क्योंकि मुख्यमन्त्री के व्यक्तिगत प्रयासों के बाद भी यह विद्रोही चुनाव मैदान से नहीं हटे है। मुख्यमन्त्री को अधिकृत उम्मीदवारों के लिये लगभग सभी वार्डों में न केवल चुनावी सभाएं करनी पड़ी है बल्कि डेरा डालकर तीनों जगह बैठना भी पड़ा है। केवल सोलन में ऐसी स्थिति नहीं आयी है। इन चुनावों में लगभग सारा मन्त्रीमण्डल और अन्य बड़े नेताओं को चुनाव प्रचार में झोंक दिया गया है। केन्द्रिय वित्त राज्य मन्त्री अनुराग ठाकुर से भी चुनाव प्रचार का आग्रह किया गया है। पंचायतनुमा इन नगर निगमों के लिये इतनी बड़ी टीम को चुनाव प्रचार में उतारने मात्र से ही जनता की ओर से यह प्रतिक्रियाएं आ रही हैं कि यदि इन तीन वर्षों में कोई काम किया होता तो आज पूरी सरकार को गली-गली न घूमना पड़ता बहुत हद तक यह आरोप सही भी है।
सरकार की करनी और कथनी में कितना अन्तर है इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जिन 70 राष्ट्रीय राजमार्गों की घोषणा को विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिये केन्द्र सरकार की बड़ी देन के रूप में भुनाया गया था वह अभी सैंद्धान्तिक स्वीकृत के स्तर से नीचे नहीं उतर पाये हैं। इनके लिये प्रदेश सरकार ने केन्द्र से पत्राचार भी अब 12-3-20 से शुरू किया गया है। 12 मार्च 2020 को मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर ने केन्द्रिय भूतल परिवहन मन्त्री को पत्र लिखकर प्राथमिकता के आधार पर 25 सैद्धान्तिक रूप घोषित राष्ट्रीय राजमार्गों की मंजूरी प्रदान करने का आग्रह किया है। 12 मार्च 2020 से 6-2-2021 तक प्रदेश सरकार द्वारा लिखे गये दस पत्रों में से पांच पत्र तो भूतल परिवहन मन्त्री से लेकर मुख्य अभियन्ता क्षेत्र 2 भूतल परिवहन एंव राजमार्ग मन्त्रालय नई दिल्ली तथा प्रधानमन्त्री को 25 राजमार्गों की सैद्धान्तिक मंजूरी प्रदान करने के लिये ही लिखे गये हैं। लेकिन इस पत्राचार के बाद भी यह मंजूरी अभी तक नहीं मिल पायी है। इससे अन्दाजा लगाया जा सकता है कि किस गति से काम हो रहे हैं।
मण्डी, पालमपुर और सोलन के नगर निगम पिछले वर्ष 2020 में बनाये गये थे। इनके लिये 28-10-20 से 31-1-2021 तक 886.87 लाख रूपये स्वीकृत किये गये हैं। इनमें मण्डी के लिये 3,24,36,594/- पालमपुर के लिये 2,76,68,488/- और सोलन के लिये 2,85,81,779/- रूपये स्वीकृत किये गये हैं। इस स्वीकृति के बाद मण्डी में विभिन्न कार्यों के लिये 29,12,223 रूपये खर्च भी कर दिये गये हैं। मण्डी मुख्यमन्त्री का अपना गृह जिला है इसलिये वहां खर्च भी शुरू हो गया है। लेकिन पालमपुर और सोलन में अभी कुछ भी खर्च नहीं हुआ है। मण्डी में वार्ड न. 4,8,9,10,11 और 12 में ज्यादा खर्च हुआ है। मण्डी में खर्च हुए पैसे का ब्योरा यह है।
मण्डी मुख्यमन्त्री का गृह जिला है। फिर मण्डी में पंडित सुखराम परिवार का अपना एक स्थान और योगदान है। यह पंडित सुखराम की संचार क्रान्ति का ही योगदान है कि मण्डी के सिराज जैसे क्षेत्र में भी आज दूरसंचार सुविधायें उपलब्ध हैं। इस समय सुखराम परिवार और जयराम ठाकुर तथा महेन्द्र सिंह के साथ 36 का आंकड़ा चल रहा है। चुनाव प्रचार में जयराम की पूरी टीम अनिल शर्मा को हर वार्ड में कोसना नहीं भूल रही है। अनिल शर्मा ने अभी तक इसका कोई जवाब नहीं दिया है। संभव है कि वह आखिरी दिनों में पत्रकार वार्ता करके इसका जवाब देंगे। फिर मण्डी नगर निगम के सत्रह वार्ड हैं। लेकिन जो 29 लाख रूपया अभी निगम के नाम पर खर्च किया गया है वह केवल छः वार्डो में ही है। छः वर्षों में ही पार्टी के विद्रोही उम्मीदवार भी मैदान में हैं और चुनाव पार्टी चिन्ह पर हो रहे हैं। ऐसे में यह चुनाव परिणाम सरकार के साथ ही मुख्यमन्त्री को व्यक्तिगत रूप से भी प्रभावित करेंगे यह तय है।
इसी तरह धर्मशाला नगर निगम में पिछले तीन वर्षों में केन्द्र सरकार से लेकर राज्य सरकार तक सभी स्त्रोतों से केवल 61 करोड़ की धन राशी ही प्राप्त हुई है। यह जानकारी शहरी विकास मन्त्री ने विधानसभा में विधायक विशाल नेहरिया के एक प्रश्न के उत्तर में दी है। लेकिन कांगड़ा के सांसद और धर्मशाला के ही विधायक रहे किश्न कपूर ने आरोप लगाया है कि केन्द्र ने धर्मशाला के 271 करोड़ रूपये स्मार्ट सिटी परियोजना में दिये हैं और उसके खर्च में घपला हुआ है। लेकिन विधानसभा में आये उत्तर से कूपर के इस आंकड़े में भारी अन्तर है। ऐसे में आंकड़ों और आरोपों का यह खेल इन चुनावों में किस करवट बैठता है यह देखना रोचक होगा।
घातक होगी चुनावों में उभरी बगावत
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Created on Wednesday, 31 March 2021 08:37
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Written by Shail Samachar
शिमला/शैल। प्रदेश की चार नगर निगमों के चुनाव होने जा रहे हैं। सात अप्रैल को मतदान होगा। चुनाव लड़ रहे प्रत्याशीयों की नामांकन वापसी के बाद अन्तिम सूचियां जारी हो गयी हैं। यह चुनाव पार्टीयों के अधिकृत चुनाव चिन्हों पर करवाये जा रहे हैं। नगर निगमों के इन चुनावों के बाद कांगड़ा के फत्तेहपुर की विधानसभा सीट और मण्डी की लोकसभा सीट के लिये उपचुनाव होने हैं। अगले वर्ष के अन्त में विधानसभा के लिये चुनाव होंगे। इस नाते नगर निगमों के इन चुनावों को प्रदेश के राजनीतिक भविष्य की दशा-दिशा के संकेतक के रूप में देखा जा रहा है। इस गणित के आईने में अगर आकलन किया जाये तो सबसे बड़ा खुलासा यह सामने आता है कि अब भाजपा में भी बगावत खुलकर सामने आने लग गयी है। भाजपा को एक समय अनुशासित पार्टी माना जाता था। यह कहा जाता था कि इसका चाल चरित्र और चेहरा देश की अन्य पार्टीयों से भिन्न है लेकिन नगर निगमों के इन चुनावों में यह भ्रम टूट गया है क्योंकि पार्टी के अधिकृत उम्मीदवारों के खिलाफ बगावत करते हुए वह कार्यकर्ता और स्थानीय नेता निर्दलीयों के रूप में चुनाव लड़ने जा रहे हैं जो लम्बे अरसे से पूरे समर्पण के साथ पार्टी के लिये काम कर रहे थे। पार्टी अध्यक्ष सुरेश कश्यप और मुख्यमन्त्री जयराम के निर्देश भी इन लोगों को चुनाव मैदान से नहीं हटा पाये हैं।
सारे प्रयासों के बाद भी जब यह लोग चुनाव से नहीं हटे हैं तब ऐसे 24 लोगों को तुरन्त प्रभाव से पार्टी की सदस्यता और दूसरी जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया गया है। निष्कासित किये गये लोगों में मण्डल, जिला और प्रदेश स्तर तक की जिम्मेदारीयां कुछ लोगों के पास थी। निष्कासित 24 लोगों में से 14 कांगड़ा, 6 मण्डी और चार पालमपुर से हैं। कांगड़ा प्रदेश का सबसे बड़ा जिला है और इस जिले में ही ढ़ेड दर्जन लोगों का निकाला जाना कोई शुभ संकेत नहीं माना जा रहा है। कांगड़ा में पार्टी के अन्दर सबकुछ अच्छा नहीं चल रहा है इसके संकेत सबसे पहले इन्दु गोस्वामी के पत्र, फिर रेमश धवाला -पवन राणा द्वन्द, शान्ता के नाम खुले पत्र प्रकरण का अन्त रविन्द्र रवि के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने और उसके बाद मन्त्री सरवीण चौधरी के खिलाफ लगे आरोपों के रूप में अरसे से सामने आते रहे हैं। यहां तक की पार्टी की राज्य कार्यकारिणी की धर्मशाला में हुई दो दिवसीय बैठक में खुलकर सामने आ गये थे। लेकिन इस सबका संज्ञान लेकर इसे सुलझाने के प्रयास नहीं किये गये। क्योंकि पार्टी से ज्यादा व्यक्ति को अहमियत दी जाने लगी। कार्यकर्ताओं में यह संदेश चला गया कि नेता के प्रति वफादारी निभाने से ज्यादा लाभ मिल सकता है।
मण्डी तो मुख्यमन्त्री का अपना गृह जिला है और मुख्यमन्त्री ने यहां बागियों को मनाने का प्रयास भी किया है लेकिन इसका कोई परिणाम नहीं निकला। अन्ततः आधा दर्जन बागियों को निष्कासित कर दिया गया है। यहां पर यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि आखिर मुख्यमन्त्री की भी यहां क्यों नहीं सुनी गयी। मण्डी में यह आम चर्चा है कि मुख्यमन्त्री अपने कुछ पुराने साथियों के दायरे से बाहर नहीं आ पा रहे हैं। मण्डी में दवाईयों की खरीद में बड़े स्तर पर घपला हुआ है यह कैग रिपोर्ट में दर्ज है। लेकिन इस घपले को लेकर कोई कारवाई नहीं की गयी है। इससे यह संदेश गया है कि सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ कारवाई करने की बजाये उसे संरक्षण दे रही है। मण्डी में पंचायती राज संस्थाओं के चुनावों मुख्यमन्त्री के क्षेत्र से वाम दलों के उम्मीदवार का जीतना और महेन्द्र सिंह के क्षेत्र में उन्हीं के खिलाफ ‘‘गो बैक’’ के नारे लगना भी मण्डी के नये राजनीतिक समीकरणों की ओर एक बड़ा संकेत रहा है। क्योंकि विधानसभा चुनावों में पंडित सुख राम के परिवार का पूरा सक्रिय सहयोग भाजपा और जयराम के साथ था। अनिल शर्मा बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीतकर मन्त्री बने थे। लेकिन आज केवल रिकार्ड में अनिल शर्मा भाजपा में है व्यवहार में नहीं। भाजपा चाह कर भी अनिल शर्मा को अभी तक पार्टी से निकाल नहीं पायी है क्योंकि ऐसी कारवाई से अनिल की सदस्यता पर कोई आंच नहीं आती है। ऐसे में व्यवहारिक दृष्टि से अनिल शर्मा का सहयोग नहीं वरन उनका विरोध ही भाजपा को मिल रहा है। मण्डी में सुखराम परिवार के राजनीतिक प्रभाव को कम आकना सही नहीं होगा। इस तरह कुल मिलाकर जो तस्वीर उभर रही है उसमें यह बगावत भाजपा के लिये घातक हो सकती है। फिर निगम चुनावों में पूर्व मुख्यमन्त्री प्रेम कुमार धूमल भी सक्रिय भूमिका में नजर नहीं आ रहे हैं।
शिमला/शैल। सेवानिवृत अतिरिक्त मुख्य सचिव दीपक सानन ने मई 2018 में प्रदेश के मुख्य सचिव को एक पत्र लिखकर यह शिकायत की थी कि वीरभद्र सरकार के कार्यकाल में 2013 से 2017 के बीच राजस्व के कई मामलों में गंभीर अनियमितताएं हुई हैं। इन मामलों में तत्कालीन मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह, मुख्य सचिव बी एस फारखा और अतिरिक्त मुख्य सचिव तरूण श्रीधर के खिलाफ कारवाई करने की मांग की गयी थी। पत्र में यह भी कहा गया था कि यदि सरकार कारवाई नहीं करती है तो वह विवश होकर अदालत जाने को मजबूर हो जायेंगे। लेकिन पत्र आने के बाद तीन वर्ष बीत गये हैं और इस दौरान न तो जयराम सरकार की ओर से इसमें कोई कारवाई की गयी है न सामने आयी है तो न ही दीपक सानन अदालत गये हैं। जबकि सानन ने यह पत्र लिखने के बाद इस पर एक प्रैस वार्ता भी करी थी। सानन ने अपने पत्र में तीन मामलों का विशेष उल्लेख किया है। यह तीन मामलें हैं कोरिन होटल बडा़ेग, तेनजिन अस्पताल शिमला और डलहौजी़ के कुछ लीज़ मामले। यह सारे मामले अपने में बहुत गंभीर हैं पूरी सरकार के चरित्र पर सवाल खड़े करते हैं। जयराम सरकार ने इन मामलों पर कोई कारवाई नहीं की है। लेकिन इसी दौरान दीपक सानन और अभय शुक्ला के खिलाफ आये टीडी लेने के मामलें में भी जयराम सरकार ने कोई कारवाई अभी तक नहीं की है। जबकि वन विभाग और वन मन्त्री तक इसमें आपराधिक मामला दर्ज करने की अनुशंसा कर चुके हैं। यह फाईल शायद अभी तक मुख्यमन्त्री कार्यालय के ही किसी कोने में दबी पड़ी है।
इस परिदृश्य में दीपक सानन द्वारा की गयी शिकायत पर इन दिनों केन्द्र सरकार की ऐजेन्सीयों द्वारा सक्रिय हो जाना प्रशासनिक और राजनीतिक हल्कों में चर्चा का केन्द्र बन गया है। क्योंकि सूत्रों के मुताबिक इन ऐजैन्सीयों ने इस शिकायत पत्र को खोजने में कई अखबारों के दफ्तरों में भी दस्तक दी है। सानन ने यह पत्र केन्द्र की किसी ऐजैन्सी को नहीं भेजा है केन्द्र की ऐजैन्सीयों के अधिकार क्षेत्र में भी यह मामला नहीं आता है। प्रदेश सरकार ने इस पर अब तक कोई कारवाई की नहीं है इस नाते स्वभाविक रूप से यह सवाल उठता है कि क्या किसी ने केन्द्र में यह शिकायत की है कि जयराम सरकार बहुत सारे गंभीर मामलों को दबाने का काम कर रही है। या केन्द्र हिमाचल की राजनीति के परिदृश्य में कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरे को फिर से घेरने का प्रयास कर रहा है। क्योंकि पिछले सभी चुनावों में हिमाचल में वीरभद्र के मामलों को कांग्रेस के खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है। जबकि इन मामलों की गंभीरता का इसी से अन्दाजा लगाया जा सकता है कि इनमें अभी तक कोई फैसला नहीं आ पाया है। भाजपा का ऐसे मामलों को लेकर आज तक यही चलन रहा है कि मामलों की तलवार आदमी पर लटकाये रखे। इस दृष्टि से केन्द्रिय ऐजैन्सी द्वारा सानन के पत्र पर अब सक्रियता दिखाने को हल्के से नहीं लिया जा सकता। सानन द्वारा उठाये गये मामलों पर शायद मन्त्री परिषद की मोहर लगी हुई है। लेकिन इनमें बहुत सारे बिन्दु ऐसे भी हैं जहां मन्त्रीपरिषद भी सीमाओं में बन्ध जाती है।
जो मामले सानन ने उठाये हैं उनमें सबसे पहला बड़ोग के होटल कोरिन का है। इसके लिये कोरिन ने 1979 /81 में बडोग 1-13 बिघा ज़मीन खरीदने के लिये धारा 118 के तहत अनुमति मांगी थी। अनुमति का यह मामला 1990 तक पत्राचार में रहा। इसी दौरान इस ज़मीन पर कोरिन ने होटल का निर्माण कर लिया। निर्माण धारा 118 की अनुमति के बिना था। इस कारण डीसी सोलन ने इसके खिलाफ कारवाई शुरू कर दी। यह मामला सब जज की अदालत से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा है और सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिली है। लेकिन राज्य सरकार ने इस सबको नज़रअन्दाज करते हुए 10-8-2007 को मन्त्रीपरिषद ने दो लाख का जुर्माना लगाकर मामला निपटा दिया। 10-8-2007 के इस फैसलें को 2-12-2011 को मन्त्री परिषद ने फिर बदल दिया। इस मामले में अधिकारियों और मन्त्री परिषद सभी के खिलाफ कावारई करने की मांग की है।
इसी तरह दूसरा मामला तेनजिन अस्पताल का उठाया गया है इसमें कंपनी कार्यालय और आवासीय कालोनी बनाने के लिये धारा 118 की अनुमति लेकर इस पर प्राइवेट अस्पताल का निर्माण कर लिया गया है। इस पर जिलाधीश ने इस संपति को सरकार में विलीन करने के आदेश 16-1-2012 को पारित कर दिये थे। लेकिन इन आदेशों को बाद में बदल दिया गया। तीसरा मामला डलहौज़ी में 17-7-2017 को स्टांप डयूटी 3% करके नियमित करने का उठाया गया है। यह मामले अगर आज भी अदालत तक पहुंच जाते हैं तो इसमें कड़े फैसल आने की संभावनाओं से इन्कार नहीं किया जा सकता। इस दृष्टि से इन पर केन्द्रित ऐजैन्सीयों की सक्रियता को लेकर चर्चाओं का दौर चल निकला है।