Friday, 19 September 2025
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घातक होगी चुनावों में उभरी बगावत

शिमला/शैल। प्रदेश की चार नगर निगमों के चुनाव होने जा रहे हैं। सात अप्रैल को मतदान होगा। चुनाव लड़ रहे प्रत्याशीयों की नामांकन वापसी के बाद अन्तिम सूचियां जारी हो गयी हैं। यह चुनाव पार्टीयों के अधिकृत चुनाव चिन्हों पर करवाये जा रहे हैं। नगर निगमों के इन चुनावों के बाद कांगड़ा के फत्तेहपुर की विधानसभा सीट और मण्डी की लोकसभा सीट के लिये उपचुनाव होने हैं। अगले वर्ष के अन्त में विधानसभा के लिये चुनाव होंगे। इस नाते नगर निगमों के इन चुनावों को प्रदेश के राजनीतिक भविष्य की दशा-दिशा के संकेतक के रूप में देखा जा रहा है। इस गणित के आईने में अगर आकलन किया जाये तो सबसे बड़ा खुलासा यह सामने आता है कि अब भाजपा में भी बगावत खुलकर सामने आने लग गयी है। भाजपा को एक समय अनुशासित पार्टी माना जाता था। यह कहा जाता था कि इसका चाल चरित्र और चेहरा देश की अन्य पार्टीयों से भिन्न है लेकिन नगर निगमों के इन चुनावों में यह भ्रम टूट गया है क्योंकि पार्टी के अधिकृत उम्मीदवारों के खिलाफ बगावत करते हुए वह कार्यकर्ता और स्थानीय नेता निर्दलीयों के रूप में चुनाव लड़ने जा रहे हैं जो लम्बे अरसे से पूरे समर्पण के साथ पार्टी के लिये काम कर रहे थे। पार्टी अध्यक्ष सुरेश कश्यप और मुख्यमन्त्री जयराम के निर्देश भी इन लोगों को चुनाव मैदान से नहीं हटा पाये हैं।
सारे प्रयासों के बाद भी जब यह लोग चुनाव से नहीं हटे हैं तब ऐसे 24 लोगों को तुरन्त प्रभाव से पार्टी की सदस्यता और दूसरी जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया गया है। निष्कासित किये गये लोगों में मण्डल, जिला और प्रदेश स्तर तक की जिम्मेदारीयां कुछ लोगों के पास थी। निष्कासित 24 लोगों में से 14 कांगड़ा, 6 मण्डी और चार पालमपुर से हैं। कांगड़ा प्रदेश का सबसे बड़ा जिला है और इस जिले में ही ढ़ेड दर्जन लोगों का निकाला जाना कोई शुभ संकेत नहीं माना जा रहा है। कांगड़ा में पार्टी के अन्दर सबकुछ अच्छा नहीं चल रहा है इसके संकेत सबसे पहले इन्दु गोस्वामी के पत्र, फिर रेमश धवाला -पवन राणा द्वन्द, शान्ता के नाम खुले पत्र प्रकरण का अन्त रविन्द्र रवि के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने और उसके बाद मन्त्री सरवीण चौधरी के खिलाफ लगे आरोपों के रूप में अरसे से सामने आते रहे हैं। यहां तक की पार्टी की राज्य कार्यकारिणी की धर्मशाला में हुई दो दिवसीय बैठक में खुलकर सामने आ गये थे। लेकिन इस सबका संज्ञान लेकर इसे सुलझाने के प्रयास नहीं किये गये। क्योंकि पार्टी से ज्यादा व्यक्ति को अहमियत दी जाने लगी। कार्यकर्ताओं में यह संदेश चला गया कि नेता के प्रति वफादारी निभाने से ज्यादा लाभ मिल सकता है।
मण्डी तो मुख्यमन्त्री का अपना गृह जिला है और मुख्यमन्त्री ने यहां बागियों को मनाने का प्रयास भी किया है लेकिन इसका कोई परिणाम नहीं निकला। अन्ततः आधा दर्जन बागियों को निष्कासित कर दिया गया है। यहां पर यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि आखिर मुख्यमन्त्री की भी यहां क्यों नहीं सुनी गयी। मण्डी में यह आम चर्चा है कि मुख्यमन्त्री अपने कुछ पुराने साथियों के दायरे से बाहर नहीं आ पा रहे हैं। मण्डी में दवाईयों की खरीद में बड़े स्तर पर घपला हुआ है यह कैग रिपोर्ट में दर्ज है। लेकिन इस घपले को लेकर कोई कारवाई नहीं की गयी है। इससे यह संदेश गया है कि सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ कारवाई करने की बजाये उसे संरक्षण दे रही है। मण्डी में पंचायती राज संस्थाओं के चुनावों मुख्यमन्त्री के क्षेत्र से वाम दलों के उम्मीदवार का जीतना और महेन्द्र सिंह के क्षेत्र में उन्हीं के खिलाफ ‘‘गो बैक’’ के नारे लगना भी मण्डी के नये राजनीतिक समीकरणों की ओर एक बड़ा संकेत रहा है। क्योंकि विधानसभा चुनावों में पंडित सुख राम के परिवार का पूरा सक्रिय सहयोग भाजपा और जयराम के साथ था। अनिल शर्मा बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीतकर मन्त्री बने थे। लेकिन आज केवल रिकार्ड में अनिल शर्मा भाजपा में है व्यवहार में नहीं। भाजपा चाह कर भी अनिल शर्मा को अभी तक पार्टी से निकाल नहीं पायी है क्योंकि ऐसी कारवाई से अनिल की सदस्यता पर कोई आंच नहीं आती है। ऐसे में व्यवहारिक दृष्टि से अनिल शर्मा का सहयोग नहीं वरन उनका विरोध ही भाजपा को मिल रहा है। मण्डी में सुखराम परिवार के राजनीतिक प्रभाव को कम आकना सही नहीं होगा। इस तरह कुल मिलाकर जो तस्वीर उभर रही है उसमें यह बगावत भाजपा के लिये घातक हो सकती है। फिर निगम चुनावों में पूर्व मुख्यमन्त्री प्रेम कुमार धूमल भी सक्रिय भूमिका में नजर नहीं आ रहे हैं।

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