13 को धरने प्रदर्शनों का एलान
महेंद्र सिंह को हटाने की उठी मांग
भारद्वाज भी आये निशाने पर
शिमला/शैल। हिमाचल में सेब का करीब पांच हजार करोड़़ का कारोबार होता है। सेब उत्पादकों को इस मुकाम तक पहुंचाने में प्रदेश सरकार की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस कारोबार से बागवान और सरकार दोनां कमाई करते रहे हैं। लेकिन मोदी सरकार ने कोरोना काल में जून 2020 में तीन कृषि कानून लाकर किसान-बागवान और सरकार तीनों के हितों को नजरअन्दाज करके कृषि क्षेत्रा को प्राईवेट सैक्टर के हवाले करने का जो खेल रचा है उसकी आंच में आज हिमाचल का सेब उत्पादक भी बुरी तरह झूलस कर रह गया है। जब अंबानी ने सेब की खरीद कीमतों में
पिछले वर्ष के मुकाबले 16रू किलो की कमी कर दी तब बागवानों को इसमें कंपनीयों की होने वाली भूमिका का अहसास हुआ। यह कीमतें कम करने पर जयराम सरकार अंबानी से सवाल-जवाब करती इसकी बजाये बागवानों को ही सलाह दे डाली कि वह कुछ समय के लिये तुड़ान ही रोक दें। मुख्यमन्त्री की इस राय से यह स्पष्ट हो गया कि सरकार इसमें कुछ भी करने वाली नहीं हैं।
ऐसे समय में किसान नेता टिकैत ने प्रदेश के बागवानों को आगाह किया कि यदि वह इस समय ‘‘कंपनी राज’’ के खिलाफ अपनी आवाज़ उठाने से चुक गये तो एक दिन सेब के बागीचों पर भी असम के चाय बागानों की तरह कंपनीयों का कब्जा हो जायेगा। टिकैत ने जब कृषि कानूनों के खतरों के बारे में प्रदेश के किसानों-बागवानों को विस्तार से समझाया उसके बाद प्रदेश में किसान आन्दोलन के आकार लेने की संभावनाओं को बल मिला है। अब संयुक्त किसान मोर्चा ने किसानों व बागवानों के मुद्दों को लेकर 13 सितंबर को तहसील व खंड स्तर पर आंदोलन छेड़ने का एलान किया है। मोर्चा ने कहा कि इस तरह तहसील व खंड स्तर पर धरने प्रदर्शन किए जाएंगे और अगर सरकार ने किसानों व बागवानों की मांगों की पर गौर नहीं किया तो 26 सितंबर को प्रदेश व्यापी प्रदर्शन किया जाएगा। हाल ही में गठित संयुक्त किसान मोर्चा की राजधानी में अहम बैठक हुई व प्रदेश के बागवानी मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर पर पूरा गुब्बार निकाला गया। मोर्चा की इस बैठक में आए किसान व बागवान नेताओं ने कहा कि मंत्री ने बागवानी व किसानी के मसलों को पूरी तरह से नजर अंदाज कर दिया है। बागवानी इस समय संकट से गुजर रही है और बगावनी मंत्री का कहीं कोई पता नहीं है। मोर्चा ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से महेंद्र सिंह को बागवानी मंत्री के पद से हटाने की मांग की है व कहा है कि इस पर किसी जिम्मेदार मंत्री को बिठाया जाए।
मोर्चा ने शहरी विकास मंत्री सुरेश भारदवाज के पराला मंडी में दिए उस बयान के लिए भी उनकी आलोचना की जिसमें उन्होंने कहा कि था कि सेब की कीमतें बाजार में मांग व आपूर्ति में आ रहे उतार-चढ़ाव की वजह से गिर रही है। इसमें किसी को कोई दोष नहीं है। मोर्चा ने एक आवाज में कहा कि यह अदानी, लदानी (खरीददार) और आढ़तियों का पक्ष लेना जैसा है। यह बागवान व किसान विरोधी रुख है। संयुक्त किसान मेर्चा की इस बैठक में अन्यों के अलावा कांग्रेस विधायक विक्रमादित्य सिंह और वामपंथी माकपा विधायक राकेश सिंघा ने भी शिरकत की।
मोर्चा के प्रदेश संयोजक हरीश चौहान ने कहा कि प्रदेश में लगभग 89 फीसद जनता गांव में रहती है व इसमे अधिकांश का रोजगार व आजीविका का मुख्य स्रोत कृषि व बागवानी ही है। आज देश मे कृषि के संकट के चलते प्रदेश के किसानों व बागवानों का संकट भी बढ़ रहा है। खेती में उत्पादन लागत क़ीमत निरन्तर बढ़ रही है और किसानों व बागवानों को उनके उत्पाद का उचित दाम प्राप्त नहीं हो रहा है।
उन्होंने कहा कि जिन संस्थाओं को मंडियों के विकास व किसानों के हितों की रक्षा का दायित्व सौंपा गया है वह अपने दायित्व के निर्वहन में विफल रही है। जिसके फलस्वरूप आज भी मंडियों में किसानों व बागवानों को उचित मूल्य नहीं मिल रहा है और इनका शोषण बढ़ा है।
इस बैठक में दस मांगों पर सहमति बनी। मोर्चा ने कहा कि प्रदेश में अदानी व अन्य कंपनियों व मण्डियों में किसानों के शोषण पर रोक लगाए व प्रदेश में भी कश्मीर की तर्ज पर मण्डी मध्यस्थता योजना को पूर्ण रूप से लागू किया जाए व सेब के लिए मण्डी मध्यस्थता योजना के तहत ए, बी व सी ग्रेड के सेब के लिए क्रमशः 60 रुपये 44 रुपये व 24 रुपये प्रति किलो समर्थन मूल्य पर खरीद की जाये।
प्रदेश की विपणन मण्डियों में ए पी एम सी कानून को सख्ती से लागू किया जाए। मंडियों में खुली बोली लगाई जाए व किसान से गैर कानूनी रूप से की जा रही मनमानी वसूली को तुरन्त समाप्त किया जाए। जिन किसानों से भी यह वसूली की गई है उन्हें इसे वापिस किया जाए।
चौहान ने कहा कि सेब व अन्य फलों, फूलों व सब्जियों की पैकेजिंग में इस्तेमाल किये जा रहे कार्टन व ट्रे की कीमतों में की गई भारी वृद्धि वापिस की जाए व प्रदेश में भारी ओलावृष्टि, वर्षा, असामयिक बर्फबारी, सूखा व अन्य प्राकृतिक आपदाओं से किसानों व बागवानों को हुए नुकसान का सरकार द्वारा मुआवजा प्रदान किया जाए। प्रदेश की सभी मंडियों में सेब व अन्य फसलें वजन के हिसाब से बेची जाएं।
शिमला/शैल। मोदी सरकार द्वारा जून 2020 में लाये गये तीन कृषि कानूनों का प्रभाव अब हिमाचल के करीब पांच हजार करोड़ के सेब कारोबार पर भी प्रत्यक्षतः पड़ना शुरू हो गया है। इस समय प्रदेश में अंबानी एग्रो फ्रैश सेब का सबसे बड़ा खरीददार है। उसके प्रदेश में अपने स्टोर हैं और उनमें भारी भण्डारण क्षमता है जो कि सेब उत्पादकों के पास है नहीं। न ही सरकार ने अपने तौर पर कोल्डस्टोरों का निर्माण करवाया है। अब नये कृषि कानूनों के आने से उत्पादक और खरीददार एपीएमसी परिसरों से बाहर भी अपना उत्पाद बेचने और खरीदने के लिये स्वतन्त्र हैं। इस व्यवस्था से उन्हें अपने कारोबार की 1% फीस एपीएमसी को देने की आवश्यकता है। इसलिये अंबानी सीधे उत्पादकों से ही यह खरीद कर रहा है और अपने ही केन्द्रों पर उसकी ग्रेडिंग और पैकिंग कर रहा है। इस व्यवस्था में वह सरकार को फीस देने से बाहर हो जाता है और यहीं पर सरकार को करोड़ों का नुकसान पहुंच रहा है। एग्रो फ्रैश का दावा है कि करीब बीस हजार उत्पादक उसके साथ सीधे जुड़ चुके हैं इससे अन्दाजा लगाया जा सकता है कि इसमें प्रदेश सरकार को कितना नुकसान पहुंचेगा।
सरकार के नुकसान के अतिरिक्त उत्पादकों का सीधा नुकसान इस कारण से हो रहा है कि इस बार सेब खरीद के रेट में ही सोलह रूपये प्रति किलो की कमी कर दी गयी है। जो सेब पिछले वर्ष 80 से 82 रूपये में खरीदा गया था उसमें अब 16 रूपये की कमी करके खरीदा जा रहा है। रेट में कमी के लिये सेब की गुणवत्ता को जिम्मेदार बताया जा रहा है। लेकिन जब इन रेटों के निर्धारण को लेकर अंबानी के ऐजैन्टों के ही दो अलग -अलग ब्यान सामने आ गये तब यह स्पष्ट हो गया कि रेट कम करने में अंबानी का ही प्ले है और लदानी -अंबानी गठजोड़ के खिलाफ नारे लग गये। लेकिन इस सारे प्रकरण पर जयराम सरकार ने खामोशी अपना ली और उत्पादकों को यह राय दे डाली कि वह कुछ समय के लिये सेब का तुड़ान ही रोक दें। सरकार की इस भूमिका पर उत्पादकों का रोष और बढ़ना स्वभाविक है क्योंकि उसका सीधा नुकसान हो रहा है।
स्मरणीय है कि अंबानी ने पिछले वर्ष रोहडू के मैंदली में सितम्बर माह में सेब खरीदा था और यहीं पर इसकी पैकिंग की गई बाद में इसी सेब को चण्डीगढ़ के एक डिस्ट्रीब्यूटर के माध्यम से फूड सेफ्रटी एण्ड स्टैर्ण्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया से लाईसैन्स लेकर छः सेब का पैकेट 196 रू. में बेचा गया। इस तरह सेब उत्पादक से जो सेब 80-82 रूपये में खरीदा उसे उपभोक्ता को 196 रूपये में बेचा गया। सरकार इस सारे खेल में मूक दर्शक की भूमिका में तब भी रही और आज भी है। आज तो उत्पादक के रेट भी 16 रूपये कम कर दिये गये हैं। सेब उत्पादक और उपभोक्ता का यह नुकसान हर वर्ष इसी तरह होने वाला है। क्योंकि नये कृषि कानूनों में उत्पादक और उपभोक्ता को कहीं कोई संरक्षण हासिल नहीं है। बल्कि अब तो विदेशी सेब के आने से बाजार में असन्तुलन और भी बढे़गा। क्योंकि विदेश से आने वाले सेब को आयात शुल्क से मुक्त रखा गया है। यही नहीं विदेश से आने वाले इस सेब की बाजार कीमत पहले से ही तय कर दी जाती है और इसकी खरीद कीमत का भुगतान अग्रिम में ही किया जाता है।
स्व. नरेन्द्र बरागटा ने विदेशी सेब के आयात शुल्क मुक्त होने को लेकर केन्द्र सरकार को इसके विरोध में कई बार पत्र लिखें हैं। विदेशी सेब के इस तरह लाये जाने से स्थानीय उत्पादकों का नुकसान होगा इसको लेकर वह लगातार चिन्तित रहे। आढ़तीयों द्वारा किये जा रहे शोषण को लेकर भी वह दिल्ली की सरकारों से लम्बा पत्राचार कर चुके हैं। सेब को लेकर जिन खतरों के प्रति वह बागवानों को लगातार जागरूक करते रहे हैं आज उन्हीं की पार्टी की सरकार में सेब उत्पादक का शोषण हो रहा है और सरकार चुपचाप यह सब देख रही है क्योंकि हस्तिनापुर से बंधी है। आज सेब उत्पादक को स्पष्ट हो गया है कि इन कृषि कानूनों से उसका लगतार नुकसान होना तय है। इसलिये इन कानूनों की वापसी के लिये उसे किसान आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी निभाना आवश्यक हो जायेगा यह अब उसे समझ आ गया है।
शिमला/शैल। धूमल पुत्र हमीरपुर के सांसद केन्द्रिय सूचना एवम् प्रसारण मन्त्री अनुराग ठाकुर की पांच दिवसीय जन आशीर्वाद यात्रा एक पूरी तरह सफल आयोजन रहा है। परवाणु से लेकर मैहत्तपुर तक की 638 किलो मीटर की इस यात्रा के हर छोटे बड़े पड़ाव पर जिस कदर लोग अनुराग से मिले हैं उससे यह प्रमाणित हो गया है कि इस समय प्रदेश भाजपा के पास शान्ता-धूमल के बाद अनुराग ही तीसरा ऐसा नेता है जो प्रदेश के हर कोन में भीड़ जुटा सकता है। अनुराग ने लोगों के इस समर्थन और प्यार को प्रधानमन्त्री मोदी की नीतियों के प्रति जन विश्वास करार दिया है। अनुराग को मिला यह जन स्नेह मोदी की नीतियों का परिणाम है या प्रदेश की जयराम सरकार की नीतियों की जन सराहना या अनुराग के अपने कार्यों का प्रतिफल है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। क्योंकि यदि नेताओं को मिला जन समर्थन पार्टी को चुनावी सफलता न दिला पाये तो इसको कोई अर्थ नहीं रह जाता है। अभी प्रदेश में चार उपचुनाव होने हैं और इनका परिणाम इस समर्थन की पहली परीक्षा होगा। उसके बाद नगर निगम शिमला के लिये चुनाव होंगे और वर्ष के आखिर में विधानसभा के चुनाव होंगे। यह सारे चुनाव मुख्यमन्त्री और उनकी सरकार के कार्यों पर जनता का फैसला होंगे। जनता यह फैसला ज़मीनी हकीकत को सामने रख कर करेगी। पिछे हुए चार नगर निगमों के चुनावों में जनता ने कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टीयों को दो-दो निगम देकर अपनी समझ का स्पष्ट संकेत दे भी दिया है। दिवार पर लिखी इस इबारत को भाजपा कितनी जल्दी समझ कर इस पर अमल करके अपनी कार्यप्रणाली में सुधार करती है यह आने वाले दिनों में सामने आ जायेगा।
अनुराग को जो समर्थन मिला है क्या उसका लाभ इस सरकार को मिल पायेगा यह दूसरा बड़ा सवाल है जिसकी पड़ताल करना आवश्यक हो जाता है। बतौर केन्द्रिय मन्त्री अनुराग हिमाचल को कुछ बड़ा नहीं दे पायें हैं क्योकि वित राज्य मंत्री के तौर पर यह संभव ही नही था कि वह प्रदेश को कोई बड़ा आर्थिक लाभ दे पाते। वित्त राज्यमन्त्री के नाते हिमाचल को मिले विशेष राज्य के दर्जे को वह यथास्थिति बहाल रखवाने में सफल रहे हैं जबकि कुछ राज्यों के हाथ से यह दर्जा निकल गया है। अब सूचना एवम् प्रसारण में ऐसा कुछ बड़ा नहीं है जो वह प्रदेश को दे पायेंगे। खेल मन्त्रालय से वह खेलों के लिये प्रदेश की मद्द कर सकते हैं। क्रिकेट में जो कुछ उन्होने प्रदेश के लिये किया है उससे उनकी प्रदेश के युवा वर्ग में एक विशेष पहचान बनी है। क्रिकेट में जो कुछ उन्होने किया है तब उनके पास मन्त्री पद भी नहीं था। इसी से अनुराग पर प्रदेश की जनता का भरोसा बना है। जनता को यह विश्वास है कि अनुराग को जब भी प्रदेश के लिये कुछ करने का मौका मिलेगा तो इसमें वह पीछे नहीं हटेंगे। लेकिन इसी के साथ एक बड़ा सवाल यह भी आ जाता है कि क्या राज्य सरकार अनुराग को वांच्छित सहयोग भी देगी या नही।
स्मरणीय है कि जयराम के ही एक सहयोगी मन्त्री ने एक समय यह आरोप लगाया था कि अनुराग ने जितना पैसा धर्मशाला स्टेडियम पर लगाया है उतने पैसे के साथ तो वह हर जिले में स्टेडियम बना देते। शायद इसी धारणा के चलते धर्मशाला में हुई इन्वैस्टर मीट में स्टेडियम का जिक्र तक नही किया गया था। अनुराग ने यह मीट के प्रबन्धकों को सुना भी दिया था। यही नहीं केन्द्रिय विश्वविद्यालय के देहरा परिसर के लिये ज़मीन उपलब्ध करवाने के मामले में अनुराग और जयराम का सौहार्द एक सार्वजनिक सभा में पूरी जनता के सामने आ ही चुका है। अब भी इस यात्रा के दौरान जब अनुराग ने यह कहा कि बहुत सारी योजनाएं इसलिये रह गयी हैं क्यांकि जयराम सरकार इसके लिये ज़मीन उपलब्ध नहीं करवा पायी है। इस सबसे यह स्पष्ट हो जाता है कि अनुराग और जयराम सरकार में अन्दर के रिश्ते कितने मधुर हैं। ऐसे में विश्लेषको का यह मानना है कि यदि भाजपा हाईकमान अनुराग को मिले जन समर्थन का लाभ चुनावों में लेना चाहती है तो उसे नेतृत्व के प्रश्न पर अभी दो टूक फैसला लेना होगा अन्यथा यह समर्थन अनुराग की व्यक्तिगत पूंजी हो कर ही रह जायेगा।
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