2013 में राजस्व विभाग को सौंपी जांच की रिपोर्ट आज तक क्यों नही आ पायी?
नियामक आयोग की शिकायत पर मामला दर्ज करने में जयराम सरकार ने दो वर्ष क्यों लगाये
शिमला/शैल। भाजपा के वरिष्ठ नेता पूर्व मुख्यमन्त्री शान्ता कुमार और कांग्रेस विधायक राजेन्द्र राणा ने मानव भारती विश्वविद्यालय में घटे फर्जी प्रकरण पर गंभीर जांच की मांग की है। शान्ता कुमार ने इस जांच के लिये मुख्यमन्त्री जय राम ठाकुर और डी जी पी संजय कुण्डू से भी बात करने का दावा किया है। राजेन्द्र राणा ने तो इसके लिये प्रधानमन्त्री और राष्ट्रपति तक को पत्र लिखे हैं। राणा ने तो यह भी आरोप लगाया है कि इसमें जम़ीन लेने को लेकर भी घोटाला हुआ है। राजेन्द्र राणा कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष भी हैं। इस तरह इन बड़े नेताओं के आरोपों से यह मामला हरेक के लिये चर्चा का विषय बन गया है। इन फर्जी डिग्रीयों मे हजारों करोड़ के लेन देन का आरोप लगा है। इन आरोपों के साये में प्राईवेट सैक्टर में खुले इन विश्वविद्यालयों पर नजर डालने की आवश्यकता हो जाती है। क्योंकि जब यह विश्वविद्यालय खुले थे तब भी इनको लेकर हिमाचल बेचने जैसे आरोप लगे थे। कई छात्र संगठनों ने शिक्षा का बाजारीकरण करने के आरोप लगाये थे।
स्मरणीय है कि नीजि क्षेत्र में विश्वविद्यालय खोलने के लिये सरकार पहला विधेयक 2006 में लाई थी। उस समय स्व. वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी। उस समय विश्वविद्यालय खोलने के लिये नयून्तम कितनी जम़ीन चाहिये ऐसी कोई सीमा नही रखी गई थी केवल यह कहा गया था कि प्रस्तावित विश्वविद्यालयों के पास 10 हजार वर्ग गज का नीर्मित ऐरिया होना चाहिये। यह 2006 का अधिनियम आने के बाद 2008 तक ही 10 विश्वविद्यालय प्रदेश में खुल चुके थे। शायद इसीलिये इस अधिनियम को और पुख्ता करने के लिये 2009 में नये सिरे से विधेयक लाया गया। इसमें केवल न्यूनतम जमीन की सीमा 50 बीघा की लगा दी गई। इस सीमा के साथ भी यह रखा गया की 10 हजार वर्ग का क्षेत्र निर्मीत होना चाहिये। लेकिन दोनों ही अधिनियमों में जमीन की अधिकतम सीमा कितनी होनी चाहिये इस पर कुछ नही कहा। इसका परिणाम यह हुआ कि सभी विश्वविद्यालय के पास एक बराबर जम़ीन न होकर अलग-अलग सीमा तक जम़ीने है। एक के पास न्यूनतम 52 बीघे है तो एक के पास अधिकतम 1765 बीघे है। सभी 16 विश्वविद्यालयों के पास अलग अलग सीमा तक जम़ीने है।
2009 में जो अधिनियम लाया गया था उसमें ही रैगुलेटरी कमीश्न बनाने का भी प्र्रावधान किया गया जो 2006 के अधिनियम में नही था। इसमें इन विश्वविद्यालयों पर नियमन रखने के लिये नियामक आयोग को व्यापक शक्तियां दी गयी हैं। 2009 के अधिनियम में यह शर्त रखी गई है कि विश्वविद्यालय 15 वर्ष से पहले भंग नही किया जा सकेगा। लेकिन 2006 के अधिनियम में विश्वविद्यालय को भंग करने के लिये कोई समय सीमा नही रखी गयी है। दोनों अधिनियमों में विश्वविद्यालय के भंग होने पर सारी परिसंपतियों की मालिक विश्वविद्यालय की संचालक संस्था को रखा गया है। यदि दोनों अधिनियमों का एक साथ अध्ययन किया जाये तो 2009 में नियामक आयोग बना कर तथा विश्वविद्यालय को भंग करने के लिये 15 वर्ष की शर्त रखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि इसमें सभी पक्षों का पूरा-पूरा ध्यान रखा गया है।
हिमाचल में किसी भी गैर कृषक को सरकार से अनुमति लिये बिना जमीन खरीद का अधिकार नही है। यह अनुमति भू-सुधार अधिनियम की धारा 118 के तहत दी जाती है। इस अनुमति में यह शर्त रहती है कि इस तरह ली गई जमीन को दो वर्ष के भीतर उपयोग में लाना होता है। यदि खरीदने वाला किन्ही कारणों से ऐसा नही कर पाता है तो उसे सरकार एक वर्ष तक और समय दे देती है। फिर भी यदि जम़ीन का उपयोग न हो पाये तो ऐसी जम़ीन को बिना किसी शर्त के सरकार की मलकियत में लेने का प्रावधान है। 2013 में वीरभद्र सिहं की सरकार आने पर इन विश्वविद्यालयों की जम़ीन खरीद को लेकर राजस्व विभाग को जांच के आदेश दिये गये थे। इस जांच में यह देखा जाना था कि इन जम़ीनों की खरीद में कोई नियमों की अनदेखी तो नही हुई है। लेकिन आज तक इस जांच की कोई रिपोर्ट सामने नही आयी है। यह भी सामने नही आया है कि इन विश्वविद्यालयों ने तय समय सीमा के भीतर खरीदी हुई जमीन का पूरा उपयोग कर लिया है या नही। राजस्व विभाग अभी तक यह भी स्पष्ट नही कर पाया है कि इन पर धारा 118 के तहत दो वर्ष की सीमा लागू होगी या नही। वैसे अभी इस दो वर्ष की समय सीमा को बढ़ाने या हटाने को लेकर कोई संशोधन राजस्व अधिनियमों नही हुआ है। इसी के साथ यह भी स्पष्ट नही किया गया है कि विश्वविद्यालय लैण्ड सिलिंग एक्ट के दायरे में आते हैं या नही। वैसे कानून के जानकारों को मुताबिक विश्वविद्यालय यह जम़ीने खरीद कर मालिक हो गये हैं और हर मालिक लैण्ड सिलिंग एक्ट के दायरे में आता है।
इस परिदृश्य में यदि शान्ता कुमार और राजेन्द्र राणा द्वारा उठाये गये मुद्दों का अवलोकन किया जाये तो उनका हमला सीधा भाजपा के पूर्व मुख्यमन्त्री पर है। यदि लगाये गये आरोपों को देखा जाये तो जब मानव भारती विश्वविद्यालय को लेकर पहली शिकायत आयी तो उसकी जांच नियामक आयोग द्वारा जब की गई तब वीरभद्र सिहं के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी। उसके बाद जब दूसरी बार शिकायत आयी तब नियामक आयोग ने अगस्त 2017 को इसे डी जी पी को मामला दर्ज करके जांच के लिये भेज दिया। लेकिन 2017 में भेजी गई इस शिकायत पर 2020 में मामला दर्ज हुआ। 2018 से जयराम सरकार सत्ता में आ चुकी थी। इस सरकार में ऐसी गंभीर शिकायत पर मामला दर्ज करने में इतनी देर क्यों लगा दी गयी यह अपने में ही एक अलग विषय बन जाता है। जिसका जबाव इसी सरकार को देना पड़ेगा। 2006 के एक्ट में जम़ीन की सीमा और विश्वविद्यालय भंग करने की सीमा तथा इन पर लैण्ड सिलिंग एक्ट के प्रावधानों पर खामोशी बरतने का जबाव उस समय की सरकार पर आता है। लैण्ड सिंलिग एक्ट आज भी लागू नही किया जा रहा है इसका जबाव आज की सरकार को देना है। ऐसे में राजनीतिक हल्कों में यह सवाल उठ रहा है कि इन शिकायतों के माध्यम से पूर्व मुख्यमन्त्री का नाम लेकर वर्तमान सरकार पर ही निशाना साधा जा रहा है।
यह है एक्ट में प्रावधान
THE HIMACHAL PRADESH PRIVATE UNIVERSITIES (ESTABLISHMENT AND REGULATION) BILL, 2006 के मुताबिक Acquire and construct a minimum of 10,000 square meters of covered space suitable for conducting academic programmes, and for other purposes.
Dissolution of the university by the sponsoring body.-(1) The sponsoring body may dissolve the university by giving a notice to this effect to the Government, the employees and the students of the university at least one year in advance:
Provided that dissolution of the university shall have effect only after the last batches of students of the regular courses have completed their courses and they have been awarded degrees, diplomas or awards, as the case may be.
(2) On the dissolution of the university all the assets and liabilities of the university shall vest in the sponsoring body:
Provided that in case the sponsoring body contravenes the undertaking given as per clause (j) of sub-section (1) of section 5, all the asset.
और THE HIMACHAL PRADESH PRIVATE UNIVERSITIES (ESTABLISHMENT AND REGULATION) BILL, 2009 के मुताबिक Acquire atleast 50 Bigha of land and construct a minimum of 10,000 square meters of covered space suitable for conducting academic programmes, and for other purposes;
Dissolution of the university by the sponsoring body.—(1) The sponsoring body may dissolve the university by giving a notice to this effect to the Visitor, Government, Regulatory Commission, the employees and the students of the university at least one year in advance: Provided that dissolution of the university shall have effect only after the last batches of students of the regular courses have completed their courses and they have been awarded degrees, diplomas or awards, as the case may be.
(2) The Regulatory Commission, on receipt of such information, shall have the right to issue such directions to the sponsoring body for the fulfillment of its obligations under sub-section (1) as it may deem necessary, and if the sponsoring body contravenes the provisions of sub section (1), the endowment fund shall be forfeited by the Regulatory Commission and the Regulatory Commission shall make arrangements for completion of courses, conduct of examinations, award of degrees, etc. of students of the private university, either by undertaking the job itself or by assigning the job to some other university in such manner that the interest of the students are not affected adversely in any manner and expenditure made for these arrangement for the students shall be made good from the money deposited in the endowment fund and/or general fund of the private university.
(2) On the dissolution of the university all the assets and liabilities of the university shall vest in the sponsoring body:
Provided that in case the sponsoring body contravenes the undertaking given as per
clause (j) of sub-section (1) of section 5, all the assets of the university shall vest in the Government free from all encumbrances.
यह है नीजि विश्वविद्यालयों के पास जमीन
Name of the Universities Land Status
1.Arni University (Kathgarh),Tehsil Indora, 120 Acre
Distt. Kangra,Himachal Pradesh
2. Bahra University Waknaghat, Solan district, 139.06 Bigha
Himachal Pradesh
3. Chitkara University Barotiwala Distt. Solan 120.09 Bigha
4. Eternal University Baru Sahib, Distt. Simour 84 Bigha
5. ICFAI University, Baddi 1765 Bigha
6. Indus International University,Distt. Una 227 Bigha
7. Maharishi Markandeshwar University, Solan 55.35 Bigha
8. Manav Bharti University Distt. Solan 232 Bigha
9. Shoolini University of Biotechnology 84.13 Bigha
and Management Sciences Distt. Solan
10. Sri Sai University Distt. Kangra 75.10 Bigha
11. AP Goyal Shimla University Distt. Shimla 54.13 Bigha
12. IEC University, Baddi Distt. Solan 52 Bigha
13. Atal Educational Hub Kallujhanda, 219.71 Bigha
Baddi , Teh. Nalagarh Distt. Solan
14. Career Point University, Distt. Hamirpur 48891.54 Sq.Mtr
15. Maharaja Agrasen University Baddi Solan 278.07 Kanal
एन जी टी ने संविधान की धाराओं 48 A, 51 A (g) 300 A के परिदृश्य में दिया फैसला
इस फैसले से 16-11-2017 के बाद हुये निर्माणों पर लगा प्रश्नचिन्ह
ओक ओवर में लगी लिफ्ट और अन्य निर्माण भी आये सवालों में शिमला/शैल। इस बार बारिशों के कारण हुये भूसख्लन से प्रदेश में जान माल का जितना नुकसान हुआ है उतना शायद पहले कभी नही हुआ है। चार सौ से अधिक लोगों की तो मौत हो चुकी है। हजारों करोड़ की संपति का नुकसान हुआ है। इस नुकसान के कारणों का पता लगाने के लिये जितने भी विशेषज्ञ विभिन्न स्थलों पर अध्ययन के लिये आये हैं सभी ने इसके लिये पर्यावरण विभाग को प्रमुख दोषी माना है। पर्यावरण की सुरक्षा के लिये पर्यावरण विभाग और प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड केन्द्र से लेकर राज्यों तक गठित है। हर निर्माण के लिये इसकी पूर्व अनुमति अनिवार्य बना दी गयी है। इस संद्धर्भ में उपजे विवादों के निपटारे और पर्यावरण नियमों की अवहेलना के लिये दोषियां को दण्डित करने के लिये एन जी टी गठित हैं। हिमाचल प्रदेश में पर्यावरण की सुरक्षा के लिये एन जी टी किस कदर और कितना गंभीर हुआ है इसका ताजा उदाहरण अभी 13 सितम्बर को आये एक फैसले में सामने आया है।
स्मरणीय है कि एन जी टी के समक्ष पुष्पा बरागटा पत्नी स्व. श्री नरेन्द्र बरागटा और हिमाचल सरकार ने दो आवेदन 59/2021 और 60/2021 दायर किये थे। यह आवेदन These Misc. Applications have been filed in a decided matter for permission to raise constructions mentioned therein. In M.A. No. 59/2021, construction alleged to be involved is installation of a lift in the existing structure of the building along with remodeling of roof and in M.A. No. 60/2021, the construction alleged to be involved is lift and ramp for physically challenged persons in Ellerslie Main building at HP Secretariat, Shimla – 2, visitors’ waiting hall for Chief Minister office, extension of car parking at Armsdale building at HP Secretariat, Shimla and multi-storey parking and office accommodation, Armsdale Phase –III, HP Secretariat at Shimla -2. We have heard learned counsel for the applicant on the issue of maintainability of such applications before this Tribunal in a decided matter, involving modification of order which has involved finality. के उद्देश्य से दायर किये गये थे। इन आवेदनों को 13-09-2021 को एन जी टी ने अस्वीकार कर दिया है। इस अस्वीकार का आधार एन जी टी द्वारा ही 16-11-2017 को योगेंन्द्र मोहन सेन गुप्ता बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया में दिया गया फैसला बना है। एन जी टी ने 16-11-2017 को जो निर्देश जारी किये थे उनके मुताबिक शिमला के कोर और ग्रीन क्षेत्रों में नये निर्माणों पर पूर्ण प्रतिबन्द लगा दिया था। शिमला के प्लानिग क्षेत्र में भी अढ़ाई मंजिल से अधिक के निर्माणों पर रोक लगा दी थी ।
एन जी टी के इस फैसले के बाद भी सैंकड़ों निर्माण हुए हैं और अभी भी हो रहे हैं। इन सारे निर्माणों में अढ़ाई मंजिल की शर्त की अवहेलना हुई है। इस में सबसे रोचक किस्सा तो मुख्यमंत्री आवास का है। यह आवास कोर और ग्रीन दोनों में ही है। एन जी टी के फैसले के मुताबिक यहां पर कोई भी नया निर्माण इस आश्य के लिये बनाई गई कमेटियों की पूर्व अनुमति के बिना नही हो सकता है । लेकिन इन अनुमतियों के लिये भी जो मानदण्ड एनजीटी ने ही 16-11-2017 के फैसले में तय कर रखे हैं और अब दिये फैसले में भी उन्ही मानदण्डों को दोहराया है। उनके मुताबिक कोर-ग्रीन क्षेत्रों में कोई भी नया निर्माण संभव ही नही है। लेकिन मुख्यमंत्री आवास में जो निर्माण हुआ है मुख्य गेट के पास ही अब आगन्तकों की फरयादें सुनने और दूसरे लोगों से मिलने के लिये व्यवस्था तैयार की गई हैं। यही नही दो मंजिला आवास के अन्दर लिफ्ट तक लगा दी गई है। इसी परिसर के साथ एक सड़क का निर्माण किया जा रहा है। इन निर्माणों से यह लगा था कि इनके लिये वांच्छित अनुमतियां ले ली गई होंगी।
लेकिन अब जिस ढ़ग से एन जी टी ने पुष्पा बरागटा और सरकार के आवेदनों को अस्वीकार किया है उससे मुख्यमंत्री आवास और परिसर में हुये निर्माणों पर सवाल उठने शुरू हो गये हैं। क्योंकि पुष्पा बरागटा का आवास भी ओक ओवर के नजदीक ही स्टोक्स प्लेस में है। यदि ओकओवर में लिफ्ट लगाने की अनुमति मिल सकती है तो सटोक्स प्लेस और सचिवालय के एलर्जली परिसर में क्यों नही? एन जी टी के इन्कार से यह सवाल उठना शुरू हो गया है कि कहीं ओक ओवर में हुए यह निर्माण बिना अनुमतियों के तो नही है। एन जी टी के फैसले को पढ़ना तो अधिकारियों की जिम्मेदारी है। फैसले की जानकारी नगर निगम और शहरी विकास विभाग को होना तो अनिवार्य है। शहरी और ग्रामीण विकास अधिनियम की धारा 28(1) में भी स्पष्ट उल्लेख है कि Here it is relevant to discuss the provisions contained U/s 28(1) of Himachal Pradesh Town and Country Planning Act, 1977, Which reads as under:
When the Union Government or the State Government intends to carry out development of any land for the purpose of its departments or offices or authorities, the officer-in-charge thereof shall inform in writing to the Director the intention of the Government to do so, giving full particulars thereof, accompanied by such documents and plans as may be prescribed at least thirty days before undertaking such development.
इसी की अनुपालना न किये जाने पर ही तो सर्वोच्च न्यायालय का मकलोड़गंज प्रकरण में फैसला आया और इस निर्माण को गिराना पड़ा। क्या इस सब के बारे में अधिकारियों ने जानबूझ कर मुख्यमंत्री को गुमराह किया है। क्योंकि इस परिदृश्य में एन जी टी के फैसले का राजनीतिक प्रभाव दूरगामी होगा।
क्योंकि जब 16-11-2017 को एन जी टी का फैसला आया था तब इस पर पूरे प्रदेश में प्रतिक्रियाएं उभरी थी। सरकार पर इस फैसले को बदलवाने के लिये दबाव आया था और सरकार ने वायदा किया था कि वह इस फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय मे जायेगी। इसी बीच सरकार ने नगर निगम को इस फैसले पर स्पष्टीकरण भेजा था। जिसके बाद निगम ने जिन लोगों के नक्शे एन जी टी का फैसला आने से पहले ही स्वीकार हो चुके थे और किन्ही कारणों से यह अनुमतियां जारी नही हो सकी थी ऐसे 21 लोगों को अनुमतियां जारी की है। इनके निर्माण इस फैसले के बाद हुये हैं। परन्तु व्यवहारिक रूप से इस फैसले के बाद तो दर्जनां निर्माण सामने आये हैं। ऐसा कैसे संभव हुआ है यह अभी तक पहेली बना हुआ है। अब जो फैसला 13-09-2021 को आया है जिसमें पुष्पा बरागटा औेर सरकार के आवेदनों को अस्वीकार कर दिया गया है उसमें एन जी टी के संविधान की धारा 48(A) और 51 A(g) और 300 A के प्रावधानों का उल्लेख करते हुये यह फैसला दिया है। इन प्रावधानों के आईने में तो प्राईवेट ही नही बल्कि सरकारी क्षेत्र में हो रहे निर्माणों पर ही गंभीर सवाल खडे़ हो जाते हैं।
On cumulative reading of the laws referred, it is evident that the framers of the law clearly intended to protect natural resources and environment. The purpose is to effectively implement and enforce the laws and regulation relating to development and protection of environment. Then alone the twin objects- adherence to law and protection of environment and ecology could be achieved. Protection of environment and natural resources is absolutely essential for human existence. At the cost of repetition, we must notice that the concept of regularization of deviation from sanctioned plan cannot be brought in such an insidious manner. This is a limited and restricted power. The concept of compounding cannot be permitted to be used and diminish or even destroy the natural resources, environment and ecology. Irreparable damage to these would more often lead to disasters causing serious damage to person, property and environment. Another contention raised before the Tribunal by the applicants is that they have a right to construct over the lands of which they are the owners, even though the lands are located in Core area, Forest/Green areas. This contention is misconceived in law as well as in the facts of the present case. On the one hand, the State and its instrumentalities have failed to discharge their Constitutional obligations in terms of Article 48A of the Constitution and the citizens have failed to discharge their Constitutional duties in terms of Article 51A(g) for protection and improvement of environment and forest etc. The right to construct on one’s own land, particularly, in relation to prohibited area/restricted area have to be examined in light of the constitutional mandate. Article 19(f) was omitted by the 44th amendment of the Constitution and Article 300A was added. Article 300A even permitted a person to be deprived of his property by authority of law. The right to construction is, however, regulated by the Town and Country Planning Department and the Municipal laws in force in a State. In other words, it is not an absolute right by any stretch of imagination but is restricted and regulated right. Such statutory right can only be exercised, subject to the limitation and restrictions imposed and by complying with the prescribed procedure. Such restrictions are neither unknown nor unforeseeable.
There are statutorily notified eco-sensitive areas or sanctuaries or national parks where construction of any kind is prohibited. This is a reasonable restriction and is primarily imposed in the interest of environment ecology and bio-diversity. We have already noticed that the laws in force in the State of HP read with the constitutional provisions and Environment (Protection) Act, 1986, tilt the balance completely in favour of protection of environment and sustainable development. Restrictions in that behalf have to be imposed and enforced in accordance with law. Desired directions, whether prohibitory or regulatory in nature, restrictions and mandates of compliance should be passed when called for. We entertain no doubt in the facts and circumstances to pass appropriate declarations, guidelines and directions in this case that are required to be passed to not only to protect environment, ecology and natural resources but even life of public at large and their property.
सेब क्षेत्रों में ही 65500 मीट्रिक टन क्षमता के स्टोर स्थापित
प्राईवेट सैक्टर में 28 और सरकारी क्षेत्र में केवल 6 स्टोर
सरकारी स्टोरों की क्षमता केवल 2980 टन
शिमला/शैल। इस समय पूरे देश में किसान आन्दोलन सबसे प्रमुख मुद्दा बना हुआ है। बल्कि इस आन्दोलन की गंभीरता का परिणाम माना जा रहा है कुछ राज्यों में उपचुनाव का टाला जाना। संयोगवश इसी आन्दोलन के दौरान हिमाचल में सेब सीज़न आ गया है। हिमाचल में सेब की आर्थिकी पांच हज़ार करोड़ के करीब है। प्रदेश में सेब के व्यापार में कोल्ड स्टोर मालिकों का सबसे बड़ा दखल हो चुका है। इसमें भी अदानी का एग्रो फ्रैश सबसे बड़ा प्लेयर है क्योंकि अदानी के प्रदेश में तीन कोल्ड स्टोर हैं। अन्य लोगों के एक -एक है। यह सभी कोल्ड स्टोर केन्द्र में 2014 में सत्ता परिवर्तन होने के बाद ही प्रदेश में बने हैं। जब इन लोगों ने यह स्टोर स्थापित करने के लिये सरकार में आवेदन किये और सरकार ने इन्हें अनुमतियां प्रदान की तब यह शर्त रखी गयी थी कि कि यह लोग अपने स्टोरों में 20% स्थान यहां के बागवानों के लिये सुरक्षित और उपलब्ध रखेंगे। स्वभाविक है कि पांचों स्टोरों में इस क्षेत्र में पैदा हाने वाले फल और सब्जियां ही रखी जानी थी। यह रखने के लिये स्थानीय स्तर पर खरीद किया जाना भी स्वभाविक था। सीज़न शुरू होने पर खरीद करके स्टोरों में भण्डारण करना और सीज़न खत्म होने के बाद इस भण्डारण को बाज़ार में बिक्री के लिये ले जाना स्वभाविक प्रक्रिया के अंग है।
अब नये कृषि कानूनों में आवश्यक वस्तुओं के भण्डारण और उनके बिक्री मूल्य पर नियन्त्रण हटा लिया गया है। इसी के साथ उत्पादक और व्यापारी की परिभाषाओं में भी बदलाव किया गया है। व्यापार स्थलों की परिभाषा में भी बदलाव किया गया है। अब ए.पी.एम.सी परिसरों के बाहर भी खरीद बेच की जा सकती है और इस पर किसी तरह की कोई फीस नहीं दी जानी है। इस बार इन कोल्ड स्टोरों के मालिकों ने सेब की खरीद के समय उसके भाव गिरा दिये। पिछले साल के मुकाबले रेट में सोलह रूपये की कमी कर दी गयी। इस कमी से हर बागवान प्रभावित हुआ। पिछले वर्ष जो सेब अदानी ने 80रू किलो खरीदा और सीज़न के बाद दो सौ रू बेचा था उसमें इस बार इतनी कमी हो जाने से सेब उत्पादकां का परेशान होना स्वभाविक था। इस परेशानी का परिणाम हुआ बागवानों का आन्दोलित होना। इस आन्दोलन को राकेश टिकैट के आने से और ताकत मिल गयी। लेकिन जब सेब की कीमतों में गिरावट के लिये बागवान लदानी-अदानी के खिलाफ नारे लगा रहे थे तब उसी समय बागवानी मन्त्री बागवानों को खुले में क्रेटों में सेब बेचने की सलाह दे रहे थे। मुख्यमन्त्री तुड़ान रोकने की राय दे रहे थे। भाजपा प्रभारी अविनाश राय खन्ना और मुख्य प्रवक्ता रणधीर शर्मा इस संकट के लिये अदानी को दोष देने की बजाये उसका एक तरह से पक्ष ले रहे थे।
आज प्रदेश में प्राईवेट सैक्टर में 28 कोल्ड स्टोर उपलब्ध हैं। यदि सरकार इन कोल्ड स्टारों में बागवानों के लिये 20% स्थान सुरक्षित और उपलब्ध रखने की शर्त की अनुपालना ईमानदारी से करवा दे तो बहुत हद तक बागवनों की समस्या हल हो जाती है। इस समय जिला शिमला में ही प्राईवेट सैक्टर के 48482 मीट्रिक टन क्षमता के दस स्टोर कार्यरत है। कुल्लु और सोलन में 17018 मीट्रिक टन क्षमता के स्टोर प्राईवेट सैक्टर में है। इनके अतिरिक्त ऊना में 13717.5 टन क्षमता के स्टोर उपलब्ध है। जबकि सरकारी क्षेत्रा में 2980 टन क्षमता के केवल छः स्टोर हैं और इनमें भी विश्व बैंक की योजना के सहायोग से अधिकांश में अपग्रेडेशन का काम चला हुआ है। इस समय प्रदेश के सेब उत्पादक क्षेत्रों में 65500 मीट्रिक टन क्षमता के स्टोर स्थापित हो चुके हैं। आने वाले समय में इन स्टोरों के मालिकों का पूरी बागवानी पर अपरोक्ष में कब्जा हो जायेगा यह तय है क्योंकि नये कृषि उपज कानूनों में भण्डारण और कीमतों पर सरकार का कोई नियन्त्रण नहीं है।
ऐसे में यह सवाल अहम हो जाता है कि क्या आने वाले समय में बागवानों का भविष्य सुरक्षित रह पायेगा? क्योंकि तब बाजार को तो यह स्टोर रैगुलेट करेंगे। कीमतों का बढ़ना और कम होना सब इन पर निर्भर हो जायेगा। आज ही विदेशों से आ रहे डयूटी फ्री सेब के कारण स्थानीय उत्पादक अपने को असहाय महसूस करने लग गया है जबकि अभी कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट का स्टे चल रहा है। आन्दोलनरत किसान इन कानूनों की वापसी की मांग कर रहा है। यदि किन्ही कारणों से यह आन्दोलन असफल हो जाता है तब उत्पादक और उपभोक्ता दोनों की स्थिति क्या हो जायेगी। इन सवालों पर विचार करने की आवश्यकता और इस दिशा में आवश्यक कदम उठाना भी समय की मांग हो जाता है।
यह हैं प्रदेश में स्थापित कोल्ड स्टोर
The Joomla! content management system lets you create webpages of various types using extensions. There are 5 basic types of extensions: components, modules, templates, languages, and plugins. Your website includes the extensions you need to create a basic website in English, but thousands of additional extensions of all types are available. The Joomla! Extensions Directory is the largest directory of Joomla! extensions.
We search the whole countryside for the best fruit growers.
You can let each supplier have a page that he or she can edit. To see this in action you will need to create a users who is in the suppliers group.
Create one page in the growers category for that user and make that supplier the author of the page. That user will be able to edit his or her page.
This illustrates the use of the Edit Own permission.