Sunday, 21 December 2025
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मोदी के बाद नड्डा ने भी कहा कि केंद्र ने हिमाचल को 72,000 करोड़ दिये हैं

केंद्र से 72,000 मिलने के बावजूद लिया गया 70,000 करोड़ का ऋण

शिमला/शैल। प्रदेश भाजपा की कार्यकारिणी को आभासी संबोधन में राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने कहा है कि मोदी सरकार ने वित्त आयोग के माध्यम से हिमाचल प्रदेश को 72,000 करोड़ रुपए दिये हैं। जबकि उनसे पहले यह राशि 20,000 करोड़ तक ही रही है। नड्डा के मुताबिक यह बढ़ा हुआ आबंटन यह दिखाता है कि मोदी हिमाचल को कितनी अहमियत देते हैं। नड्डा से पहले मण्डी की जनसभा में स्वयं मोदी भी इस आंकड़े का जिक्र कर चुके हैं। उस समय इस आंकड़े पर ज्यादा चर्चा इसलिए नहीं हुई थी क्योंकि वह एक चुनावी जनसभा में दिया भाषण था। लेकिन अब जब नड्डा ने यह आंकड़ा प्रदेश कार्यकारिणी में रखते हुए यह अपेक्षा की है कि वह इसे प्रदेश के हर आदमी तक पहुंचाये। नड्डा ने अपने संबोधन में उपचुनाव में मिली हार और 2022 तक का चुनाव भी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के नेतृत्व में ही लड़ा जायेगा इस पर सीधे और स्पष्ट कुछ नहीं कहा है। केवल सरकार को मजबूत करने का आग्रह किया है। क्योंकि मुख्यमंत्री चाहे कोई भी हो राष्ट्रीय अध्यक्ष को अपने संबोधन में यही संदेश देना पड़ेगा।
नड्डा ने अपने संबोधन में उज्जवला योजना जैसी कई योजनाओं की याद प्रदेश के लोगों को दिलाई है। लेकिन वह यह बताना भूल गये कि इस योजना के तहत 67ः लाभार्थी आज रिफिल नहीं करवा पाये हैं। प्रदेश में घोषित हर योजना का व्यवहारिक पक्ष ऐसा ही है। अनुसूचित जाति के एक सम्मेलन में यह आरोप लगाया गया है कि उनके लिए आबंटित बजट का केवल 7 : ही यह सरकार खर्च रही है। इस आशय का ज्ञापन भी राज्यपाल को सौंपा गया है। परंतु अभी तक इस आरोप का जवाब तक नहीं आया है। इस परिप्रेक्ष में यह सवाल महत्वपूर्ण हो जाता है कि यदि केंद्र ने प्रदेश को 72 हजार करोड़ दिये हैं तो राज्य सरकार ने उसका उपयोग कैसे किया है। यह जानना प्रदेश की जनता का हक हो जाता है।
स्मरणीय है कि मोदी सरकार ने 2014 में केंद्र की सत्ता संभाली थी। उसके बाद इस सरकार में 2017 में अगले वित्त आयोग का गठन हुआ था। तब तक 2012 में आयी वित्त आयोग की सिफारिशें ही अमल में चल रही और इन सिफारिशों में प्रदेश के लिए 20 हजार करोड़ का ही आबंटन हो पाया था। ऐसे में मोदी सरकार द्वारा प्रदेश को 72 हजार करोड़ देने का मौका 2017 के आयोग की सिफारिशों में ही आता है। 72 हजार करोड़ का आंकड़ा दूसरी बार सामने आया है। वह भी पहले प्रधानमंत्री द्वारा और अब राष्ट्रीय अध्यक्ष द्वारा दोहराया गया है। जब इस स्तर के लोग यह कहें तो इस पर यकीन किया जाना चाहिये। लेकिन 2017 से लेकर अब तक प्रदेश सरकार 70000 करोड़ का तो ट्टण ही ले चुकी है। हर वर्ष बजट के बाद टैक्स और अन्य शुल्क सरकार बढ़ाती आ रही है। जबकि जनता को यह परोसा जाता है कि सरकार कर मुक्त बजट लायी है। रिकॉर्ड बताता है कि हर वर्ष कर राजस्व और गैर कर राजस्व में बढ़ौतरी हो रही है। ऐसे में इस दौरान प्रदेश सरकार द्वारा करीब डेढ़ लाख करोड़ खर्च कर दिये जाने के बाद भी यदि पुलिस जैसे विभाग को भी अपनी जायज मांगे मनवाने के लिए हड़ताल का अपरोक्ष सहारा लेना पड़े तो यह सबके लिये चिंता और चिंतन का विषय हो जाता है। क्योंकि केंद्र द्वारा इतनी खुली सहायता के बाद भी राज्य सरकार को कर्ज लेना पड़े तो इस पर जनता को सवाल पूछने का हक हो जाता है। राज्य सरकार को बताना चाहिए कि यह आवंटन भी 69 राष्ट्रीय राजमार्गों जैसा ही है या सही में इतना पैसा प्रदेश को मिला है। क्योंकि 2022 में तो अगले वित्त आयोग की सिफारिशें आ जायेंगी।

कृषि कानूनों की वापसी के साथ ही एमएसपी के लिए वैधानिक प्रावधान क्यों नही

एमएसपी की प्रक्रिया को समझना होगा
जब दूसरे उद्योगपति अपने उत्पादों की कीमतें स्वयं तय करते हैं तो किसान के लिए एमएसपी का विरोध क्यों

 शिमला/शैल। प्रधानमंत्री ने तीनों कृषि कानूनों को संसद के अगले सत्र में वापस लेने की घोषणा कर दी है। इस घोषणा के साथ ही आंदोलनरत किसानों से घर वापस जाने की अपील की है। परंतु किसानों ने अभी घर वापसी जाने से यह कहकर इंकार कर दिया है कि वह इस घोषणा पर अमल होने तक इंतजार करेंगे। इसी के साथ किसानों ने एम एस पी का वैधानिक प्रावधान किये जाने की भी मांग की है। स्मरणीय है कि केंद्र सरकार ने 10 जुलाई 2013 को पत्र संख्या F.No.-6-3/2012-FEB-ES(VOl-11) के माध्यम से एक आदेश जारी किया था। इस आदेश में कहा गया था कि सरकार ने फसलों की खरीद करने के लिए कम से कम समर्थन मूल्य जारी रखने का फैसला किया है। इसके लिए सरकार की एजेंसियां काम करेंगी और खरीद जारी रखेंगी। इसमें एफसीआई हर प्रकार के अनाज की खरीद करेगी नाफेड, सीडब्ल्यूसी, एनसीसीएफ तथा एसएफएसी दालों और तेल वाले बीजों की खरीदेंगी। नाफेड को कपास खरीदने की भी जिम्मेदारी दी गई थी। लेकिन इन विवादित कृषि कानूनों के आने से यह सारी व्यवस्था तहस महस हो गयी। इस आंदोलन के दौरान भी सरकार यह दावा करती रही की एमएसपी को हटाया नहीं गया है। परंतु व्यवहार में यह कहीं पर भी दिखाई नहीं दिया। इसलिए आज किसान इसका वैधानिक प्रावधान किये जाने की मांग कर रहे हैं।

एमएसपी स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट का परिणाम है और लंबे समय से इस आयोग की रिपोर्ट को लागू करने की मांग चली आ रही है। 2014 के चुनाव में नरेंद्र मोदी ने भी यह वायदा किया था की चुनाव जीतने के बाद कुर्सी पर बैठते ही पहला काम वह इस रिपोर्ट को लागू करने का करेंगे। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। यहां यह भी महत्वपूर्ण है कि सरकार ने 1964 में एक एग्रीकल्चर प्राइसिंग कमीशन बनाया था और इसकी डयूटी लगाई थी की किसान की हर फसल का विक्रय मूल्य तय किया जाये। इस कमीशन नें यह मूल्य तय करते समय किसान की लागत का ध्यान नहीं रखा। इसके लिए 1985 में एक नया एग्रीकल्चर लागत और कीमत कमीशन बनाया गया। इस कमीशन को कीमतें तय करने के लिए 12 बिंदु दिए गये जिनमें एक पैदावार की लागत दो पैदावार के लिए प्रयोग की गई वस्तुओं के मूल्य में बदलाव तीन लागत और पैदावार की कीमतों में संतुलन चार बाजार के झुकाव 5 डिमांड और सप्लाई 6 फसलों का आपसी संतुलन सात तय की जाने वाली कीमत का उद्योग पर असर 8 कीमत का लोगों पर बोझ 9 आम कीमतों पर असर 10 अंतरराष्ट्रीय कीमतों की स्थिति 11 किसान द्वारा दी गई और वसूल की गई कीमत का संतुलन 12 बाजारी कीमतों पर सब्सिडीज का असर। लेकिन इन बिंदुओं को देखने से पता चलता है कि इनमें 4, 5, 7, 9, 10 और 12 का किसान के साथ कोई ताल्लुक नहीं है। इस तरह कीमतें तय करने का नतीजा यह निकला कि किसान का लागत मूल्य एमएसपी से ज्यादा आया। पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय में लंबित किसानों की एक याचिका में इस आश्य के सारे दस्तावेज आ चुके हैं। जिनके मुताबिक लागत और एमएसपी में 300 से लेकर 400 रूपये तक का फर्क है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य का अर्थ है कि कम से कम यह कीमत तो मिलनी ही चाहिए। सरकार इसको तीन तरह से तय करती है। A 2 पहले नंबर पर वह लागत जो किसान ने खेत जोतने, बीजने, बीज, तेल और मशीनों के किराये के लिए अपने पास से खर्च की।
A2+FL यानी A2 में फैमिली लेबर इसमें नकद खर्च के अतिरिक्त परिवार द्वारा की गई मेहनत जोड़ी जाती है। C2 यानी कॉम्प्रिहैंसिव कास्ट (व्यापक लागत) नकद किया खर्च जमा पारिवारिक मेहनत जमा जमीन का ठेका किराया या जमीन की कीमत पर बनता ब्याज आदि।
लेकिन सरकार A2 को गिन कर ही एमएसपी का ऐलान करती है। कभी इसमें फैमिली लेबर जोड़ लेती है लेकिन C2 देने को बिल्कुल तैयार नहीं होती। जबकि स्वामीनाथन कमीशन ने C2+ 50% देने की सिफारिश की है। इस परिप्रेक्ष में यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि जब सरकार ने तीनों कानून को वापस लेने का ऐलान कर दिया है तो अब एमएसपी पर भी किसान प्रतिनिधियों से चर्चा करके इसे तय करने के मानक पर सहमति बनाकर इसके लिए वैधानिक प्रावधान कर दिया जाना चाहिए। क्योंकि आज केवल किसान ही ऐसा उत्पादक है जिस की उपज की कीमत दूसरे निर्धारित करते हैं जबकि अन्य सभी उत्पादक अपने उत्पाद की कीमत स्वंय तय करते हैं।

हिमाचल में भी गुजरात घटने की संभावनाएं बढ़ी

शिमला/शैल। उपचुनावों के परिणाम आने के बाद अभी तक हार के कारण की समीक्षा के लिये कोई मंथन बैठक नहीं हुई है। किसी तरह की कोई रिपोर्ट न तो प्रदेश से भेजी गयी है और ना ही केंद्र ने कोई रिपोर्ट तलब की है। इस आशय के जितने भी समाचार अब तक सामने आये हैं वह प्रदेश में ही प्लान हुए और यही तक सीमित रहे। यह स्वीकार है प्रदेश के एक बड़े नेता का। अभी तक नेतृत्व के प्रशन को लेकर केंद्र की ओर से कोई अधिकारिक ब्यान नहीं आया है और ना ही मुख्यमंत्री की ओर से ही ऐसा कोई ठोस एक्शन सामने आया है जिससे यह संदेश जाता कि नेतृत्व को लेकर हाईकमान के स्तर पर कोई प्रश्न ही नहीं है। लेकिन जिस हाईकमान ने गुजरात, कर्नाटक और उत्तराखंड में बिना किसी सार्वजनिक कारण से नेतृत्व परिवर्तन करके सबको चौंका दिया था आज वही हाईकमान प्रदेश के चारों उपचुनाव हार जाने और एक में तो पार्टी उम्मीदवार की जमानत भी ना बच पाने के बावजूद यहां नेतृत्व के प्रशन को कैसे टाल देगी। विश्लेषकों का मानना है कि इस समय भाजपा के सामने अगले वर्ष के शुरू में होने वाले पांच राज्यों के चुनावों का प्रश्न सबसे बड़ा और अहम है। इसी के कारण राष्ट्रीय कार्यकारिणी में कोई प्रस्ताव तक पारित नहीं किया गया। फिर यह भी एक संयोग है भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा हिमाचल से ताल्लुक रखते हैं। बंगाल चुनावों में मिली हार की जिम्मेदारी संगठन या सरकार किसी के भी नाम नहीं लगाई जा सकी है क्योंकि सभी की भूमिकाएं बराबर रही हैं। लेकिन हिमाचल के उपचुनावों में मिली हार की पहली जिम्मेदारी न चाहते हुए भी नड्डा पर आ जाती है। क्योंकि टिकट वितरण की सारी जिम्मेदारी उस समय नड्डा पर आ गयी जब चेतन बरागटा ने यह आरोप लगाया कि प्रदेश नेतृत्व तो उनके पक्ष में था और हाईकमान ने उनका टिकट काटा। तीनों विधानसभा क्षेत्रों में टिकट सही उम्मीदवारों को न दिये जाने का आरोप लगा है और प्रदेश नेतृत्व ने इस पर कोई खण्डन तक जारी नही किया।
यही नहीं जब कांग्रेस में कन्हैया कुमार शामिल हुए थे और यह मुद्दा बना था कि देश की सबसे पुरानी पार्टी की हत्या नहीं होनी चाहिये बल्कि उसे ताकतवर बनाया जाना चाहिये तब शान्ता कुमार ने इसका समर्थन किया था। शान्ता कुमार ने अपनी आत्मकथा में भाजपा के खिलाफ भ्रष्टाचार को संरक्षण देने के जो आरोप लगाये हैं उन आरोपों का केंद्र सरकार और राष्ट्रीय अध्यक्ष की ओर से कोई खण्डन तक नहीं आया है। आने वाले दिनों में शान्ता कुमार और उनकी आत्मकथा कांग्रेस के बड़े हथियार बन जायेंगे यह तय है। शान्ता कुमार का आशीर्वाद नड्डा और जयराम के लिए कितना और किस हद तक का है इसे प्रदेश का हर आदमी जानता है। इस पृष्ठभूमि के साथ जब शान्ता कुमार इन उपचुनावों के लिये स्टार प्रचारक बनाये गये तो समझा जा सकता है कि इसका क्या प्रभाव पड़ा होगा।
इस समय प्रदेश के प्रशासनिक और राजनीतिक हल्कों में यही सवाल चर्चा का विषय बना हुआ है कि क्या प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन होगा या यह सवाल अब खत्म हो गया है। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक यह प्रश्न अपनी जगह खड़ा है क्योंकि हाईकमान की ओर से अभी तक ऐसा कोई ब्यान नहीं आया है जिसमें यह कहा गया हो कि प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन नहीं हो रहा है। इन उपचुनावों में करीब सभी मंत्रियों की जिम्मेदारीयां लगी थी। प्रदेश के बीस विधानसभा क्षेत्रों में मतदान हुआ है जिसमें केवल मण्डी के आठ क्षेत्रों में ही भाजपा को बढ़त मिली है बारह चुनाव क्षेत्रों में पार्टी हारी है। मण्डी में भी इसलिये जीत मिली की मुख्यमंत्री इसी जिले से हैं और अभी एक वर्ष सरकार रहनी है। परंतु अब बारह क्षेत्रों में हार से यही स्पष्ट संदेश जाता है कि आगे सरकार नहीं बन पायेगी। इस हार का असर मण्डी पर भी पड़ेगा यह तय है। ऐसे में यह माना जा रहा है कि एक दो मंत्रियों पर गाज गिराने से कुछ लाभ नहीं होगा बल्कि ऐसे लोग कल को विद्रोही बनकर और नुकसान करेंगे। ऐसी स्थिति में नेता सहित पूरे मंत्रिमंडल को ही गुजरात की तर्ज पर बदल कर ही नया संदेश दिया जा सकेगा। यह माना जा रहा है कि हर दिन जनता में सरकार की छवि खराब होती जा रही है। क्योंकि इन परिणामों के बाद जो कुछ चण्डीगढ़ में घटा है और उसको लेकर जिस तरह की चर्चाएं उठ रही हैं उससे यह नुकसान लगातार बढ़ता जायेगा यह तय है। फिर नड्डा- शान्ता ने भी नेतृत्व और हार को लेकर कोई ब्यान नहीं दिया है। इनकी खामोशी को भी अलग तरह से देखा जा रहा है।

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