इसी युद्ध में घटा था ताबूत घोटाला
कैग रिपोर्ट के आधार पर हुआ था मामला दर्ज
इसी युद्ध के बाद घटा था बंगारूलक्ष्मण प्रकरण
शिमला/शैल। प्रदेश में हो रहे उपचुनाव मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर के अब तक के कार्यकाल पर जनता की मोहर होंगे। यह तय है क्योंकि इस चुनाव की पूरी जिम्मेदारी मुख्यमन्त्री और उनकी टीम पर आ गई है । विधानसभा के लिये हो रहे उप चुनाव सदन के नेता की कारगुजारी पर ही जनता की प्रतिक्रिया होते हैं। परन्तु इन चुनावों में एक उपचुनाव लोकसभा के लिये भी हो रहा है। इसमें केन्द्र सरकार की कारगुजारी भी चर्चा में आना स्वभाविक है। लेकिन यह उपचुनाव भी मुख्यमन्त्री के गृह जिले में हो रहा है। इसलिये इसकी भी काफी जिम्मेदारी उन पर आ जायेगी। जबकि यहां पर राष्ट्रीय मुद्दे भी अहम भूमिका अदा करेंगे। मण्डी लोकसभा के लिये भाजपा ने पूर्व सैनिक सेवानिवृत ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर को उम्मीदवार बनाया है। खुशाल ठाकुर कारगिल युद्ध में द्रास सैक्टर में तैनात रहे हैं। इस युद्ध में उनके शौर्य के लिये उन्हे पदकों से सम्मानित भी किया गया है। भाजपा इस उपचुनाव को पुरी तरह कारगिल युद्ध और सैनिक सम्मान तथा राष्ट्रभक्ति के गिर्द केन्द्रित करने का प्रयास कर रही है। कारगिल विजय एक बड़ा मुद्दा रही है और इसमें भाग लेने वाला हर सैनिक सम्मान का पात्र है। लेकिन इसी युद्ध को लेकर कुछ गंभीर सवाल भी उठे हैं जिनका जबाव आज तक नही आया है। आज जब इस चुनाव में भाजपा ने उस सैनिक को अपना उम्मीदवार बनाया है जिसे कारगिल हीरो कहा जाता है और भाजपा अपने चुनाव प्रचार में राष्ट्रभक्ति तथा सैनिक सम्मान को बड़ा मुद्दा बना रही हैं तब उन सवालों का फिर से राष्ट्रीय सुरक्षा के परिदृश्य में पूछा जाना बहुत प्रसांगिक हो जाता है। क्योंकि तब भी भाजपा की केन्द्र और राज्य में सरकार थी तथा आज भी है।
स्मरणीय है कि यह युद्ध 1999 में 3 मई से 26 जुलाई तक 60 दिन चला था। इस युद्ध में अधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 527 की शहादत और 1363 जख्मी हुये हैं। इसी युद्ध में ताबूत घोटाला हुआ था जिसमें तत्कालीन रक्षा मन्त्री जार्ज फर्नाडिज को पद से त्याग पत्र देना पड़ा था। उन्ही की समता पार्टी की अध्यक्षा जया जेटली के खिलाफ मामला बना था। सीबीआई ने इस प्रकरण की जांच की थी। सैन्य अधिकारियों और अमेरिका के ठेकेदार के खिलाफ मामला दर्ज हुआ था। आरोप था कि जिस कम्पनी से यह ताबूत और शवों के लिये बैग खरीदे गये थे वह इन्हें बनाती ही नही थी। उस समय अल्यूमिनियम का ताबूत 2500 डॉलर और बैग 85 डॉलर में खरीदा गया था। इस दौरान कुछ और सैन्य सामान भी अमेरिका से खरीदा गया था। कैग ने अपनी रिपोर्ट में इस 2400 करोड़ की खरीद पर गंभीर सवाल उठाये थे। कैग रिपोर्ट पर ही सीबीआई ने अमेरिका की कम्पनी और तीन सैन्य अधिकारियों तथा अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया था। लेकिन सीबीआई इस मामले में अमेरिका की कम्पनी के अधिकारियों के ब्यान नही ले पायी और अन्त में 2015 में सर्वोच्च न्यायालय से इसमें कलीन चिट मिल गई।
1999 के इस युद्ध के बाद भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारूलक्ष्मण के खिलाफ एक सैन्य डील प्रकरण में रिश्वत लेने के आरोप लगे। सीबीआई ने मामला दर्ज किया एक अदालत से बंगारूलक्ष्मण को सजा भी हुई। लेकिन इसी युद्ध का महत्वपूर्ण मामला कारगिल ब्रिगेड के कमान्डर ब्रिगेडियर सुरेन्द्र सिंह का है। सुरेन्द्र सिंह ने इस युद्ध में कई सैन्य अधिकारियों की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाये हैं। दो दशकों से उनका मामला सैन्य न्यायिक प्राधिकरण चण्डीगढ़ में लंबित है। ब्रिगेडियर सरेन्द्र सिंह ने यह सवाल उठाते हुये एक लम्बा लेख लिखा है। जो कई प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में छपा है। इस पत्र की गंभीरता उन्ही के शब्दों में इस प्रकार है No general officer was ever held responsible for all these glaring ill-conceived decisions. All of these events, which weakened our effort (to use the mildest words) before and during the war, need serious investigation. The same mindset of brushing things under the carpet is one of the reasons why the Chinese were able to prepare, concentrate and move to Eastern Ladakh last year, occupying territory up to Finger 4 at Pangong Tso.
Though I was removed from service, there was no charge against me either in terms of professionalism, valour or anything concerned with fighting the war. In fact, I was praised in writing in my ACR (compiled after I was removed from the Kargil command). The action against me was only for making photocopies of letters which contained 68 pages written to General VP Malik and getting them delivered to my residence (my Ops. Room bunker). And, that I had got these photocopies delivered through a messenger instead of an officer. I am told that others also removed documents from the Directorate of Military Operations to make photocopies for their personal use in books, etc. For example, the Hindustan Times reported in 2012, ‘RTI reply hints at unauthorised use of confidential documents’. However, action was never initiated against anyone.
The Kargil War is now more than 22 years behind us. The corps commander has since died, while other high-ranking officials, including the army commander and his chief of staff, the DGMOs, the MSs, the DGMI, the divisional commander and other brigade commanders are already very old. A proper inquiry involving some of these old generals and others may reveal several issues. These revelations may have serious implications for the national security of India.
Much has been written about Kargil. But when the above-mentioned facts are considered, many of the claims made in support of how the war was handled fall flat. Along with the soldiers lost and injured, truth has been a casualty in this war.
I do not wish to blame anyone and have submitted all this information in the interest of the nation. Only an independent inquiry can point to the shortcomings of the military in the war. The criminal justice system of India is one of the most unjust. My case, in which I have challenged the treatment meted out to me by the Army, has been hanging fire for the past 20 years in courts, including for about 12 years in the Armed Forces Tribunal in Chandigarh. Unless the Chief Justice of India takes suo moto cognizance and orders an inquiry under the supervision of the Supreme Court, the truth and vital facts affecting the security of India will remain buried forever.
ब्रिगेडियर सुरेन्द्र सिंह द्वारा उठाये गये सवालों को राष्ट्रीय सुरक्षा के परिदृश्य में नजर अन्दाज करना सही नही होगा। आज जब ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर सतारूढ़ पार्टी के साथ सक्रिय राजनीतिक भूमिका में आ गये हैं तब उन से यह अपेक्षा रहेगी की वह इन सवालों का जबाव राष्ट्र के सामने लाने का वैसा ही सहास दिखाये जो कारगिल विजय में दिखाया था।
टुकडे़-टुकड़े गैंग जब सरकार के रिकार्ड पर नही तो क्या भाजपा की खोज है यह
शिमला/शैल। प्रदेश के उपचुनावों के लिये कांग्रेस हाईकमान द्वारा नियुक्त किये गये स्टार प्रचारकों पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चंन्नी, कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू और डा. कन्हैया के खिलाफ प्रदेश भाजपा ने करारा हमला बोला है। चरणजीत सिंह चन्नी को महिलाओं के प्रति बुरे आचरण वाला तथा सिद्धू और कन्हैया कुमार को देशद्रोही करार दिया है। सिद्धू के खिलाफ आरोप है कि उन्हांने एक समय पाकिस्तान के सेना प्रमुख को गले लगाया था और कन्हैया कुमार ने जे.एन.यू. में देश के खिलाफ नारे लगाये थे। वह टुकडे-टुकडे गैंग के सदस्य हैं। यह आरोप अपने में बहुत गंभीर हैं और यदि सही में ऐसा है तो इसका संज्ञान लिया जाना चाहिये। यदि यह आरोप केवल राजनीति से प्रेरित और चरित्र हनन की नीयत से लगाये गये हैं तो ऐसे प्रयासों की कड़ी निंदा की जानी चाहिए।
चरणजीत सिंह चन्नी और नवजोत सिंह सिद्धू के खिलाफ यह आरोप पंजाब में कैप्टन अमरेंन्द्र सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाने और चन्नी को मुख्यमंत्री बनाये जाने के बाद सामने आये हैं। चन्नी पिछली सरकार के समय नेता प्रतिपक्ष रहे हैं लम्बे अरसे से विधायक हैं लेकिन तब कोई आरोप किसी द्वारा भी नहीं लगाया गया। सिद्धू तो अमरेन्द्र मंत्रीमण्डल में ही मंत्री थे। तब भी उनके रिश्ते पाकिस्तान के इमरान खान और बाजवा के साथ वैसे ही थे जैसे आज हैं। परंतु तब अमरेन्द्र को मुख्यमंत्री रहते इन रिश्तों से कोई आपति नहीं थी। वैसे तो अमरेंन्द्र सिंह के भी पाकिस्तान में मित्र हैं लेकिन उन पर किसी ने भी कोई आरोप नहीं लगाया। इस नाते क्या चन्नी और सिद्धू पर उठते इन सवालों का पहला जवाब अमरेन्द्र सिंह से ही नहीं पुछा जाना चाहिये। इसी तरह कन्हैया कुमार पर लगने वाले टुकडे- टुकडे गैंग का सदस्य होने के आरोप का झूठ तब उजागर हो गया था जब संसद में आये एक सवाल के जवाब में सरकार ने यह कहा है कि उसके पास टुकडे-टुकडे गैंग होने को लेकर कोई जानकारी नहीं है। जब गैंग को लेकर ही सरकार के पास कोई जानकारी नहीं है तो फिर गैंग के साथ देश के खिलाफ नारे लगाने की बात स्वतः ही खारिज हो जाती है।
भाजपा की इस तरह की प्रतिक्रियाओं से वह सारे सवाल एक बार फिर जबाव मांगेंगे कि प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी नवाज शरीफ की बेटी की शादी में बिना किसी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के कैसे शामिल हो गये थे। हाफिज सैयद से मिलने के फोटो सोशल मीडिया में वायरल हो चुके हैं लेकिन उनका कोई खण्डन/स्पष्टीकरण आज तक नही आया है।
यही नही दिल्ली दंगों को लेकर दिल्ली उच्च न्यायालय में चल रही याचिका की सुनवाई में कोर्ट की यह टिप्पणी की ‘‘यह दंगे प्रायोजित थे’’ से राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों में तूफान खड़ा हो गया है। इस पर फैसला सुरक्षित है और उन सारे राजनीतिक चेहरों पर उंगलियां उठनी शुरू हो गयी हैं जो इस दौरान विवादित रहे हैं। राजनीतिक विश्लेष्कों का मानना है कि जब भाजपा ने कांग्रेस के स्टार प्रचारकों पर इस तरह से हमला किया है तो स्वभाविक है कि कांग्रेस भी प्रत्युत्तर में दिल्ली दगों के विवादित चेहरों पर निशाना साधेगी। क्योंकि इन्ही दंगों में प्रदेश से केन्द्र में एक मात्र मन्त्री अनुराग ठाकुर का नाम चर्चा में रह चुका है और वह प्रदेश भाजपा के चुनाव प्रचारकों की सूची में एक बड़ा नाम है। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में दोनों दलों में रोचक बहस देखने को मिलेगी।
कच्चीघाटी प्रकरण के बाद उठते सवाल
35000 अवैध निमार्णों के लिये लाया गया था एक्ट में संशोधन
संशोधन रद्द होने के बाद भी नही हुई अवैधताओं पर कोई कारवाई
शिमला में 186 भवन है छः और उससे अधिक मंजिलों के
कसौली प्रकरण के बाद शीर्ष अदालत द्वारा चिन्हित एक दर्जन अधिकारियों के खिलाफ नही हुई कोई कारवाई
एन जी टी के नवम्बर 2017 के फैसले के बाद भी कैसे बन रहे दर्जनों बहुमंजिला निर्माण
क्या एन जी टी के फैसलों पर अमल सुनिश्चित करना वर्तमान सरकार की जिम्मेदारी नही
शिमला/शैल। इस वर्ष जिस तरह की बरसात देखने को मिली है और इसमें जितना नुकसान हुआ है उससे पर्यावरण के साथ हो रहे खिलवाड़ ने सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। हजारों करोड़ की संपति के नुकसान के अतिरिक्त इस बार अब तक 450 से ज्यादा लोगों की तो मौत भी हो चुकी हैं। पशुधन के नुकसान का आंकड़ा तो इससे कई गुणा अधिक है। शिमला में शहर के भीतर और सरकुलर रोड पर कई जगह भू-स्खलन हुये हैं। कई वाहनों का नुकसान हुआ है। इस नुकसान के अतिरिक्त जब शिमला के ही कच्चीघाटी में एक आठ मंजिला भवन ताश के पत्तों की तरह कुछ क्षणों में ही मलवे के ढेर में बदल गया तथा और भी कई भवनों को असुरक्षित बना गया तो पहली बार सरकार और प्रसाशन की भूमिका पर सवाल उठे हैं। आम आदमी ने इस पर चिंता जताई है क्योंकि जिस कच्चीघाटी में यह हादसा हुआ है वहां पर सभी निमार्ण बहुमंजिला हैं। भूगर्भ रिपार्टों के मुताबिक यहां पर हुये यह निमार्ण सुरक्षित नही हैं और कभी भी किसी बड़े हादसे को न्योता दे सकते हैं। अब कच्चीघाटी में हुए हादसे के बाद एक कमेटी का गठन करके जांच के आदेश दिये गये हैं। इस कमेटी की रिपोर्ट कब आती है और उस पर क्या कारवाई होती है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा।
लेकिन इस संद्धर्भ में राज्य सरकारों का जो आचरण रहा है यदि उस पर नजर डाली जाये तो कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियों की सरकारों का दामन साफ नही रहा है। स्मरणीय है कि प्रदेश में नगर एंव ग्रामीण नियोजन विभाग का गठन 1977 में हुआ और नियाजन अधिनियम बनाया गया था। इस एक्ट के तहत नियोजन को लेकर 1978 में अन्तरिम प्लान जारी किया गया था। यह प्लान आज तक स्थायी नही बन पाया है बल्कि इस अन्तरिम प्लान में ही अवैधताओं को नियमित करने के लिये सात बार रिटैन्शन पॉलिसियां लाई गयी। हर बार पॉलिसी को अन्तिम कहकर लाया गया और 2016 में तो इस एक्ट में ही संशोधन करके इसमें धारा 30 बी को जोड़ा गया लेकिन विधानसभा से पारित होने के बाद जब यह राज्यपाल की स्वीकृति के लिये आया तो राज्यपाल ने इसे रोक दिया। परन्तु जब इसे रोकने पर भाजपा का एक प्रतिनिधि मण्डल राज्यपाल से मिला तो उसके बाद इस संशोधन को राजभवन की स्वीकृति मिल गयी। जब यह कानून बन गया तब इसे तीन अलग-अलग याचिकाओं CWP 612 of 2017, CWP 704 of 2017 और CWP 819 of 2017 के माध्यम से उच्च न्यायालय मे चुनौती दी गयी। उच्च न्यायालय में यह सामने आया कि इस संशोधन के माध्यम से सरकार 35000 अवैध निमार्णों को नियमित करना चाहती है। सरकार ने अपना पक्ष रखते हुये यह कहा की इन लोगों को नोटिस देकर कहा गया है कि वह स्वंय इन्हें तोड दें। लेकिन इसी के साथ यह भी कहा कि ऐसा करने से कानून और व्यवस्था की स्थिति पैदा हो जायेगी। सरकार के इस तर्क से यह स्पष्ट हो जाता है कि वह ऐसे लोंगों के साथ किस कदर खड़ी रही है। उच्च न्यायालय ने सरकार के सारे तर्कों को खारिज करते हुए इस संसोधन को रद्द कर दिया अदालत ने सपष्ट कहा है कि (i) Insertion of Section 30-B by the Amending Act is contrary to the object and purpose of the Principal Act, as also ultra vires the Constitution of India, as such we strike it down.
इस फैसले के बाद स्थिती पुरानी जगह आ जाती है। सरकार जितनी रिटैन्शन पॉलिसियां लायी हैं उन पर उच्च न्यायालय ने 2015 में जब नेपाल में आये भूकंप से भारी तबाही हुई थी। उस समय स्वतः संज्ञान में ली एक याचिका में यह कहा कि यदि शिमला में हल्के स्तर का भूकंप भी आता है तो इसमें कम से कम बीस हजार लोग मारे जायेंगे। यही आंशका आपदा प्रबंधन ने भी एक संगोष्ठी में व्यक्त की थी। उस समय उच्च न्यायालय ने अवैध निमार्णों पर यह कहा था
Further the respondents do not seem to have learnt any lesson from the recent earthquakes which have devastated the Himalayan region, particularly, Nepal. As per the latest studies, majority ofHimachal Pradesh falls in seismic Zone-V and the remaining in region-IV and yet this fact has failed to shake the authorities in Shimla out of their slumber. The quake-prone erstwhile summer capital of Raj cannot avert a Himalayan tragedy of the kind that has killed thousands and caused massive destruction in Nepal.
It has been reported that Shimla ‘s North slope of Ridge and open space just above the Mall that extends to the Grand Hotel in the West and Lower Bazar in the East is slowly sinking. We can only fasten the blame on the haphazard and illegal construction being carried out and all out efforts being made for converting the once scenic seven Himalayas of this Town into a concrete Jungle.
Thousands of unauthorized constructions have not been raised overnight. The Government machinery was mute spectator by letting the people to raise unauthorized constructions and also encroach upon the government land. Permitting the unauthorized construction under the very nose of the authorities and later on regularizing them amounts to failure of constitutional mechanism/machinery. The State functionary/machinery has adopted ostrich like attitude. The honest persons are at the receiving end and the persons who have raised unauthorized construction are being encouraged to break the law. This attitude also violates the human rights of the honest citizens, who have raised their construction in accordance with law. There are thousands of buildings being regularized, which are not even structurally safe.
इसी परिदृश्य में अन्ततः 16-11-2017 को एन जी टी का फैसला आया है। इस फैसले का आधार सरकार द्वारा गठित तरूण कपूर कमेटी की ही रिपोर्ट बनी है। इस फैसले में साफ कहा है कि We hereby prohibit new construction of any kind, i.e. residential, institutional and commercial to be permitted henceforth in any part of the Core and Green/Forest area as defined under the various Notifications issued under the Interim Development Plan as well, by the State Government. इसी फैसले में यह भी कहा है कि Wherever unauthorised structures, for which no plans were submitted for approval or NOC for development and such areas falls beyond the Core and Green/Forest area the same shall not be regularised or compounded. However, where plans have been submitted and the construction work with deviation has been completed prior to this judgement and the authorities consider it appropriate to regularise such structure beyond the sanctioned plan, in that event the same shall not be compounded or regularised without payment of environmental compensation at the rate of Rs. 5,000/- per sq. ft. in case of exclusive self occupied residential construction and Rs. 10,000/- per sq. ft. in commercial or residential-cum-commercial buildings. The amount so received should be utilised for sustainable development and for providing of facilities in the city of Shimla, as directed under this judgement.
अब 13 सितम्बर को जो फैसला आया है उसमें ट्रिब्यूनल के पास आये आवेदनों MA No 59/2021 and MA No. 60/2021 को अस्विकारते हुये स्पष्ट कहा है
In view of above legal position, once a decision has been taken by this Tribunal, applications seeking further orders in conflict with such decision is not maintainable. It is for the statutory authorities to act further in accordance with the said decision. The Supervisory Committee
constituted in terms of the order is for purposes mentioned in the order.
There is no scope of making recommendation by the said Committee for review of the order in any manner.
We are, thus, unable to entertain these applications which stand disposed of.
शिमला में इससे पहले भी कई निमार्ण गिर चुके हैं। जिनमें छोटा शिमला, फिंगास्क और स्टाबरी हिल्ज में ऐसे हादसे हो चुके हैं। लेकिन इस बार जिस पैमाने पर कच्चीघाटी के हादसे ने लोगों को हिला कर रख दिया है उससे यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या सरकार अब भी वोट की राजनीति के दबाव में अवैधताओं के आगे झुकती रहेगी या सारे दबावों से उपर उठकर जनहित में कोई कड़ा फैंसला लेगी। क्योंकि एन जी टी के 16-11-2017 और 10-09-2021 के फैंसले बहुत स्पष्ट हैं और इन फैंसलों पर अमल करने की जिम्मेदारी जयराम सरकार की बन जाती है।
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This illustrates the use of the Edit Own permission.