Friday, 19 September 2025
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2018 के शिकायत पत्र पर केन्द्रिय ऐजैन्सीयों की अब सक्रियता चर्चाओं में

शिमला/शैल। सेवानिवृत अतिरिक्त मुख्य सचिव दीपक सानन ने मई 2018 में प्रदेश के मुख्य सचिव को एक पत्र लिखकर यह शिकायत की थी कि वीरभद्र सरकार के कार्यकाल में 2013 से 2017 के बीच राजस्व के कई मामलों में गंभीर अनियमितताएं हुई हैं। इन मामलों में तत्कालीन मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह, मुख्य सचिव बी एस फारखा और अतिरिक्त मुख्य सचिव तरूण श्रीधर के खिलाफ कारवाई करने की मांग की गयी थी। पत्र में यह भी कहा गया था कि यदि सरकार कारवाई नहीं करती है तो वह विवश होकर अदालत जाने को मजबूर हो जायेंगे। लेकिन पत्र आने के बाद तीन वर्ष बीत गये हैं और इस दौरान न तो जयराम सरकार की ओर से इसमें कोई कारवाई की गयी है न सामने आयी है तो न ही दीपक सानन अदालत गये हैं। जबकि सानन ने यह पत्र लिखने के बाद इस पर एक प्रैस वार्ता भी करी थी। सानन ने अपने पत्र में तीन मामलों का विशेष उल्लेख किया है। यह तीन मामलें हैं कोरिन होटल बडा़ेग, तेनजिन अस्पताल शिमला और डलहौजी़ के कुछ लीज़ मामले। यह सारे मामले अपने में बहुत गंभीर हैं पूरी सरकार के चरित्र पर सवाल खड़े करते हैं। जयराम सरकार ने इन मामलों पर कोई कारवाई नहीं की है। लेकिन इसी दौरान दीपक सानन और अभय शुक्ला के खिलाफ आये टीडी लेने के मामलें में भी जयराम सरकार ने कोई कारवाई अभी तक नहीं की है। जबकि वन विभाग और वन मन्त्री तक इसमें आपराधिक मामला दर्ज करने की अनुशंसा कर चुके हैं। यह फाईल शायद अभी तक मुख्यमन्त्री कार्यालय के ही किसी कोने में दबी पड़ी है।
इस परिदृश्य में दीपक सानन द्वारा की गयी शिकायत पर इन दिनों केन्द्र सरकार की ऐजेन्सीयों द्वारा सक्रिय हो जाना प्रशासनिक और राजनीतिक हल्कों में चर्चा का केन्द्र बन गया है। क्योंकि सूत्रों के मुताबिक इन ऐजैन्सीयों ने इस शिकायत पत्र को खोजने में कई अखबारों के दफ्तरों में भी दस्तक दी है। सानन ने यह पत्र केन्द्र की किसी ऐजैन्सी को नहीं भेजा है केन्द्र की ऐजैन्सीयों के अधिकार क्षेत्र में भी यह मामला नहीं आता है। प्रदेश सरकार ने इस पर अब तक कोई कारवाई की नहीं है इस नाते स्वभाविक रूप से यह सवाल उठता है कि क्या किसी ने केन्द्र में यह शिकायत की है कि जयराम सरकार बहुत सारे गंभीर मामलों को दबाने का काम कर रही है। या केन्द्र हिमाचल की राजनीति के परिदृश्य में कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरे को फिर से घेरने का प्रयास कर रहा है। क्योंकि पिछले सभी चुनावों में हिमाचल में वीरभद्र के मामलों को कांग्रेस के खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है। जबकि इन मामलों की गंभीरता का इसी से अन्दाजा लगाया जा सकता है कि इनमें अभी तक कोई फैसला नहीं आ पाया है। भाजपा का ऐसे मामलों को लेकर आज तक यही चलन रहा है कि मामलों की तलवार आदमी पर लटकाये रखे। इस दृष्टि से केन्द्रिय ऐजैन्सी द्वारा सानन के पत्र पर अब सक्रियता दिखाने को हल्के से नहीं लिया जा सकता। सानन द्वारा उठाये गये मामलों पर शायद मन्त्री परिषद की मोहर लगी हुई है। लेकिन इनमें बहुत सारे बिन्दु ऐसे भी हैं जहां मन्त्रीपरिषद भी सीमाओं में बन्ध जाती है।
जो मामले सानन ने उठाये हैं उनमें सबसे पहला बड़ोग के होटल कोरिन का है। इसके लिये कोरिन ने 1979 /81 में बडोग 1-13 बिघा ज़मीन खरीदने के लिये धारा 118 के तहत अनुमति मांगी थी। अनुमति का यह मामला 1990 तक पत्राचार में रहा। इसी दौरान इस ज़मीन पर कोरिन ने होटल का निर्माण कर लिया। निर्माण धारा 118 की अनुमति के बिना था। इस कारण डीसी सोलन ने इसके खिलाफ कारवाई शुरू कर दी। यह मामला सब जज की अदालत से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा है और सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिली है। लेकिन राज्य सरकार ने इस सबको नज़रअन्दाज करते हुए 10-8-2007 को मन्त्रीपरिषद ने दो लाख का जुर्माना लगाकर मामला निपटा दिया। 10-8-2007 के इस फैसलें को 2-12-2011 को मन्त्री परिषद ने फिर बदल दिया। इस मामले में अधिकारियों और मन्त्री परिषद सभी के खिलाफ कावारई करने की मांग की है।
इसी तरह दूसरा मामला तेनजिन अस्पताल का उठाया गया है इसमें कंपनी कार्यालय और आवासीय कालोनी बनाने के लिये धारा 118 की अनुमति लेकर इस पर प्राइवेट अस्पताल का निर्माण कर लिया गया है। इस पर जिलाधीश ने इस संपति को सरकार में विलीन करने के आदेश 16-1-2012 को पारित कर दिये थे। लेकिन इन आदेशों को बाद में बदल दिया गया। तीसरा मामला डलहौज़ी में 17-7-2017 को स्टांप डयूटी 3% करके नियमित करने का उठाया गया है। यह मामले अगर आज भी अदालत तक पहुंच जाते हैं तो इसमें कड़े फैसल आने की संभावनाओं से इन्कार नहीं किया जा सकता। इस दृष्टि से इन पर केन्द्रित ऐजैन्सीयों की सक्रियता को लेकर चर्चाओं का दौर चल निकला है।

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