Friday, 19 September 2025
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क्या मुख्यमन्त्री हैल्पलाईन पर वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ शिकायत नहीं हो सकती

क्या शहरी विकास विभाग नगर निगम के खर्चों की उपयोगिता पर सवाल नहीं कर सकता
मनोनीत पार्षद संजीव सूद के खिलाफ विजिलैन्स ने शुरू की जांच
शहरी विकास विभाग से मांगा रिकार्ड
शिमला/शैल। नगर निगम शिमला के मनोनीत पार्षद द्वारा सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा करने के मामलें में सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत आयी याचिका पर मामला दर्ज करने के आदेशों के बाद मुख्यमन्त्री हैल्पलाइन पर सामाजिक कार्यकर्ता ओम प्रकाश की शिकायत आने के बाद विजिलैन्स ने इसमें जांच शुरू कर दी है। यह मामला संजीव सूद द्वारा पार्षद की शपथ लेने से पहले ही निदेशक शहरी विकास विभाग के संज्ञान में लाया चुका था। पार्षद को पद और गोपनीयता की शपथ निदेशक शहरी विकास विभाग ही दिलाते हैं। इस नाते इस प्रकरण में जांच करवाने की पहली जिम्मेदारी उनकी थी लेकिन जब विभाग द्वारा कारवाई नहीं की गयी तब एक राकेश कुमार 156(3) में अदालत ले गये। अदालत के आदेश के बाद भी जब कारवाई नहीं हुई तब ओम प्रकाश ने मुख्यमन्त्री हैल्पलाईन पर शिकायत डाल दी। यह शिकायत आने पर मुख्यमन्त्री हैल्पलाईन ने यह जवाब दिया कि इसमें आईएएस, एचएएस अधिकारियों के खिलाफ शिकायत डालने का प्रावधान नहीं है। इस पर जब ओम प्रकाश ने तर्क रखे तब यह मामला विजिलैन्स को भेजा गया।
इसी दौरान नगर निगम शिमला का कुछ पैसा ठेकेदारों के पास बिना किसी काम के एडवांस होने की चर्चा सामने आयी। इसी बीच संजीव सूद के मामले में विजिलैन्स ने निदेशक शहरी विकास को पत्र लिखकर जानकारी मांगी। निदेशक ने यह पत्र विभाग के वित्त अधिकारी को भेज दिया। इस कारवाई पर ओम प्रकाश भी विभाग में जा पहुंचे और वित्त अधिकारी से नगर निगम को लेकर चर्चा हुई। इस चर्चा में यह सामने आया कि निदेशक शहरी विकास विभाग के माध्यम से नगर निगम को धन तो दिया जाता है लेकिन उस धन का उपयोग कितना सही हुआ है यह प्रश्न करने का अधिकार विभाग के पास नहीं है। नगर निगम विभाग से मिले पैसे के उपयोगिता प्रमाण पत्र तो विभाग को भेजता है और इससे अधिक विभाग की कोई भूमिका नहीं है। नगर निगम का प्रशासनिक विभाग शहरी विकास विभाग है और इसी नाते निगम को अधिकांश धन विभाग के माध्यम से जाता है। इस समय नगर निगम में कई वित्तिय मामलों को लेकर कई सवाल चर्चा में हैं। नगर निगम एक चयनित स्थानीय निकाय है और अपने क्षेत्र के विकास तथा नागरिकों की सामान्य आवश्यकता तथा सुविधाओं की प्रतिपूर्ति सुनिश्चित करना उसका अधिकार और कर्तव्य दोनों है। निगम में धन का खर्च कितना सही या गलत हो रहा है यह देखना निगम के प्रशासन की जिम्मेदारी है। इस पर निगम के हाऊस से ज्यादा उसके प्रशासन की जवाबदेही बनती है। नगर निगम शिमला में स्कैम की डिसपोजल को लेकर एक अरसे से सवाल उठते आ रहे हैं। कई बार शहर की रेलिंग आदि सौन्दर्यकरण के नाम पर बदली गयी हैं। लेकिन पुराने सामान का क्या हुआ है इसको लेकर न तो कभी निगम के हाऊस में कोई कारगर चर्चा हो पायी है और न ही सरकार में किसी ने यह जानने का प्रयास किया है।
यह सवाल इस समय इसलिये प्रसांगिक हो जाते है क्योंकि निगम प्रशासनिक विभाग शहरी विकास विभाग निगम के धन उपयोग की गुणवता पर प्रश्न करने में अपने को असर्मथ्य बता रहा है। जबकि सामान्य नियम है कि जो किसी को पैसा देता है उस पैसे का कितना सदुपयोग हो रहा है उस पर जानकारी मांगने और प्रश्न करने का अधिकारी सबसे पहले पैसा देने वाले का ही होता है। नगर निगम अधिनियम में निगम को विकास कार्यों के निष्पादन में स्वतन्त्रता है लेकिन जनता से करों के रूप में लिये जाने वाले राजस्व और सरकार से मिलने वाले अनुदानों को खर्च करते हुए उसकी उपयोगिता को नजरअन्दाज करने की स्वायतता नही है। ऐसे में यदि शहरी विकास विभाग वित्तिय मामलों में अधिनियम के नाम पर अपने को असमर्थय मान रहा है तो इस पर सरकार में चर्चा किये जाने की आवश्यकता है। इसी के साथ यदि मुख्यमन्त्री हैल्पलाईन पर वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ आम आदमी शिकायत नही डाल सकता है तब ऐसी हैल्पलाईन का कोई औचित्य ही नही रह जाता है।

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