Friday, 19 September 2025
Blue Red Green
Home देश टीकाकरण में पहले स्थान पर और कोविड के नाम पर ही टाले गये उपचुनाव

ShareThis for Joomla!

टीकाकरण में पहले स्थान पर और कोविड के नाम पर ही टाले गये उपचुनाव

अनुराग की यात्रा में मिला जन समर्थन भी चुनाव का साहस नहीं दे पाया
क्या उपचुनाव टालने के बाद स्वर्ण जयन्ती समारोहों का आयोजन हो पायेगा
क्या मुख्यमन्त्री और मन्त्री राजनीतिक रैलियां जारी रख पायेंगे
क्या इस दौरान की गई करोडों की घोषणायें अभी अमली शक्ल ले पायेंगी
क्या उपचुनावों से भागना सरकार की राजनीतिक मजबूरी है

शिमला/शैल। चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल और उड़ीसा के उपचुनावों की तारीखें घोषित करते हुए अन्य राज्यों की 32 विधानसभा सीटों और तीन लोकसभा सीटों के लिये उपचुनाव अभी टाल दिये हैं। इसमें हिमाचल में होने वाले चारों उपचुनाव भी टल गये हैं। चुनाव आयोग ने यह फैसला संबंधित राज्यों के मुख्य सचिवों, स्वास्थ्य विभाग और गृह विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों और मुख्य निर्वाचन अधिकारियों के साथ पहली सितम्बर को हुई बातचीत में दिये गये फीड बैक के आधार पर लिया है। इसमें कोविड, बाढ़ और त्यौहारों को लेकर स्थिति की रिपोर्ट लिखित में लेने के बाद चुनाव टाले गये हैं। बंगाल और उड़ीसा में 30 सितम्बर को मतदान होगा और मतों की गिनती 3 अक्तूबर को होगी। हिमाचल की ओर से फीडबैक मुख्यसचिव, स्वास्थ्य सचिव और डी जी पी की ओर से दिया गया है।
प्रदेश के राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों में इस फैसले को सरकार का उपचुनावों से भागना करार दिया जा रहा है। क्योंकि कोविड के टीकाकरण में प्रदेश देश में पहले स्थान पर है। पहले स्थान पर होना एक बड़ी उपलब्धि है। इस उपलब्धि के लिये प्रदेश के छः लोगों का प्रधानमन्त्री के साथ वैक्सीन संवाद करवाया जा रहा है। इस संवाद के लिये अखबारों में विज्ञापनों के माध्यम से खूब प्रचार किया गया है। पूरे प्रदेश में एल ई डी स्क्रीन के माध्यम से लाईव दिखाने का प्रबन्ध किया गया है। जब कोविड को लेकर स्वास्थ्य विभाग की इतनी बड़ी उपलब्धि है तब कोविड के कारण उपचुनावों को टाला जाना सारे दावों पर ही सवाल खड़ा कर देता है। फिर कोविड के मामलों और उससे हो रही मौतों के जो आंकड़े कुछ दिनों से सामने आ रहे हैं उनसे स्वास्थ्य विभाग की उपलब्धि पर सन्देह का कोई कारण नहीं रह जाता है। इसी तरह अब बरसात लगातार कम होती जा रही है और बाढ़ का भी कोई बड़ा नहीं है। आने वाले त्यौहार भी 3 अक्तूबर के बाद ही आने वाले हैं। इसलिये इन आधारों पर चुनावों का टाला जाना बहुत ज्यादा संगत नहीं लगता है। क्योंकि यह सामान्य धारणा है कि शीर्ष अफसरशाही राजनीतिक आकाओं के आगे ‘इन्कार’ कहने करने का साहस नहीं कर पाती है। इसलिये इन आधारों पर चुनाव टालने का फैसला शुद्ध रूप से राजनीतिक फैसला है।
इसलिये राजनीतिक कारणों पर भी चर्चा करना आवश्यक हो जाता है क्योंकि इतने लम्बे समय के लिये लोकसभा और विधानसभा में इन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व न हो पाना लोकतन्त्र की स्थापनों पर ही कई सवाल खड़े कर जाता है। इस समय कोविड से भी ज्यादा गंभीर चर्चा का विषय विवादित कृषि कानून बन चुके हैं। हिमाचल में चल रहे सेब सीजन ने प्रदेश के एक बड़े हिस्से में इन कानूनों के व्यवहारिक पक्ष के कारण जनता के सामने लाकर खड़ा कर दिया है। क्योंकि जिस तरह अदानी के ऐग्रो फ्रैश के कारण सेब की कीमतें घटी हैं उससे बागवान को यह समझ आ गया है कि जब तक यह विवादित कानून रहेंगे तब तक प्रतिवर्ष उसके साथ ऐसा ही घटेगा। इस मुद्दे पर बागवानी मन्त्री, भाजपा के प्रदेश प्रभारी और मुख्य प्रदेश प्रवक्ता ने जिस तरह से अदानी का पक्ष लिया उससे यह स्पष्ट हो गया है कि भाजपा के सत्ता में रहते इन कानूनों की वापसी सम्भव नहीं है। इसी कारण से किसान आन्दोलन के राष्ट्रीय नेताओं ने इन उपचुनावों के लिये ‘‘भाजपा को वोट नहीं’’ अभियान छेड़ने का ऐलान कर दिया था। इसी ऐलान का प्रभाव था सोलन के आढ़ती द्वारा अपना ब्यान वापिस लेना और ठियोग में बागवानी मन्त्री महेन्द्र सिंह का घेराव होना। इसलिये यह उपचुनाव टालने के लिये इस मुद्दे की प्रभावी भूमिका रही है।
इसी के साथ भाजपा की अन्दरूनी स्थिति पर नजर दौड़ायें तो यह सामने आता है कि पिछले दिनों लाहौल स्पिति से मन्त्री डा. रामलाल मारकण्डे के साथ जन जाति मोर्चा के लोगों का उलझना, कुल्लु में पूर्व मन्त्री महेश्वर सिंह के तेवर और पंडित खीमी राम का अभी से चुनाव लड़ने का दावा करना मण्डी में अनिल शर्मा की बगावत और महेन्द्र सिंह का लगातार विवादित होते जाना संगठन के भीतर की स्थिति पर काफी रोशनी डालता है। शिमला में सुरेश भारद्वाज और स्व नरेन्द्र बरागटा के बीच रही रिश्तों की तल्खी अपरोक्ष में इस उपचुनाव में भी मुखर होने लग पड़ी थी। इसी तल्खी का प्रमाण है कि जुब्बल कोटखाई में दो उपमण्डल कार्यालय खोलने की घोषणा मुख्यमन्त्री को करनी पड़ी। इसी के कारण मुख्यमन्त्री को प्रदेश के अन्य भागों मे जहां -जहां भी वह गये वहीं पर घोषणाओं के अंबार लगाने पड़े हैं। चौथे वर्ष में नेताओं के एक बड़े वर्ग को ताजपोशीयों के तोहफे देने पड़े है। अब जब चुनाव टल गये हैं तब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस दौरान की गयी घोषणाओं को कितनी जल्दी अमली जामा पहनाया जाता है और इसके लिये कितना कर्ज लिया जाता है। ऐसे में कुल मिलाकर यदि निष्पक्षता से आकलन किया जाये तो यही सामने आता है कि इतनी सारी उपलब्धियां के आकंड़ों के बावजूद उपचुनावों में जीत को लेकर जब सरकार और संगठन आश्वस्त नही हो पाये तब चुनावों को टालने का फैसला लिया गया। अब यह फैसला लेने के बाद क्या सरकार स्वर्ण जयन्ती समाराहों का आयोजन कर पायेगी? क्या अब रथयात्रा निकल पायेगी? क्या मुख्यमन्त्री और अन्य मन्त्री जनता में जाकर राजनीतिक रैलीयों का आयोजन कर पायेंगे। क्योंकि जब कोविड के कारण चुनाव टाले गये हैं तब उसी कोविड के चलते राजनीतिक आयोजन कैसे हो पायेंगे आने वाले समय में यह एक बड़ा सवाल होगा।
इसी संद्धर्भ में यह सवाल भी उठना शुरू हो गया है कि अभी अनुराग ठाकुर की जन आशीर्वाद यात्रा में जो जन समर्थन मिला है उससे भी सरकार उपचुनावों में जाने का साहस क्यों नहीं जुटा पायी। स्मरणीय है कि इस यात्रा के बाद भाजपा की ओर से जो ब्यान जारी किया गया है उसमें दावा किया गया है कि यात्रा के लिये 184 स्थानों पर आयोजन रखे गये थे और इनमें करीब एक लाख दो हज़ार लोग शामिल हुए हैं। गणना का यह आंकडा भाजपा की ओर से ही आया है। उसी ने यह गिनती जारी की है और इसके मुताबिक प्रत्येक आयोजन में करीब 500-550 लोगों का शामिल होना सामने आता है। यदि इस आंकडे का विश्लेषण किया जाये तो यही सामने आता है कि यात्रा के दौरान मिलने वालों में मण्डल और जिला कार्यकारिणीयों के सदस्यों तथा पदाधिकारियों के अतिरिक्त आम आदमी बहुत कम रहा है। वैसे तो विश्लेष्कों की नज़र में इस तरह के आयोजनों में आने वालों की गिनती कर पाना संभव ही नहीं हो पाता है। फिर यदि इस तरह की गिनती कर भी ली गई हो तो उसके आंकडे ऐसे सार्वजनिक नहीं किये जाते। क्योंकि पांच दिनों में 630 किलो मीटर की लम्बी यात्रा में सबसे बड़ी पार्टी और प्रधानमन्त्री का विश्वभर में लोकप्रियता में पहले स्थान पर होने का दावा करने वाली पार्टी के इतने आयोजनों में इतने ही लोगों का आ पाना कोई बड़ी उपलब्धि नहीं माना जा सकता। वैसे कुछ लोगों का यह भी मानना है कि यह आंकडे जारी करके अनुराग को मिले समर्थन की धार को कुन्द करने का प्रयास है। स्वभाविक है कि जिस पार्टी के अन्दर ऐसे आयोजनों में शामिल होने वालों की इस तरह गिनती की जा रही हो वह चुनाव के लिये कितनी तैयार होगी।

Add comment


Security code
Refresh

Facebook



  Search