टुकडे़-टुकड़े गैंग जब सरकार के रिकार्ड पर नही तो क्या भाजपा की खोज है यह
शिमला/शैल। प्रदेश के उपचुनावों के लिये कांग्रेस हाईकमान द्वारा नियुक्त किये गये स्टार प्रचारकों पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चंन्नी, कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू और डा. कन्हैया के खिलाफ प्रदेश भाजपा ने करारा हमला बोला है। चरणजीत सिंह चन्नी को महिलाओं के प्रति बुरे आचरण वाला तथा सिद्धू और कन्हैया कुमार को देशद्रोही करार दिया है। सिद्धू के खिलाफ आरोप है कि उन्हांने एक समय पाकिस्तान के सेना प्रमुख को गले लगाया था और कन्हैया कुमार ने जे.एन.यू. में देश के खिलाफ नारे लगाये थे। वह टुकडे-टुकडे गैंग के सदस्य हैं। यह आरोप अपने में बहुत गंभीर हैं और यदि सही में ऐसा है तो इसका संज्ञान लिया जाना चाहिये। यदि यह आरोप केवल राजनीति से प्रेरित और चरित्र हनन की नीयत से लगाये गये हैं तो ऐसे प्रयासों की कड़ी निंदा की जानी चाहिए।
चरणजीत सिंह चन्नी और नवजोत सिंह सिद्धू के खिलाफ यह आरोप पंजाब में कैप्टन अमरेंन्द्र सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाने और चन्नी को मुख्यमंत्री बनाये जाने के बाद सामने आये हैं। चन्नी पिछली सरकार के समय नेता प्रतिपक्ष रहे हैं लम्बे अरसे से विधायक हैं लेकिन तब कोई आरोप किसी द्वारा भी नहीं लगाया गया। सिद्धू तो अमरेन्द्र मंत्रीमण्डल में ही मंत्री थे। तब भी उनके रिश्ते पाकिस्तान के इमरान खान और बाजवा के साथ वैसे ही थे जैसे आज हैं। परंतु तब अमरेन्द्र को मुख्यमंत्री रहते इन रिश्तों से कोई आपति नहीं थी। वैसे तो अमरेंन्द्र सिंह के भी पाकिस्तान में मित्र हैं लेकिन उन पर किसी ने भी कोई आरोप नहीं लगाया। इस नाते क्या चन्नी और सिद्धू पर उठते इन सवालों का पहला जवाब अमरेन्द्र सिंह से ही नहीं पुछा जाना चाहिये। इसी तरह कन्हैया कुमार पर लगने वाले टुकडे- टुकडे गैंग का सदस्य होने के आरोप का झूठ तब उजागर हो गया था जब संसद में आये एक सवाल के जवाब में सरकार ने यह कहा है कि उसके पास टुकडे-टुकडे गैंग होने को लेकर कोई जानकारी नहीं है। जब गैंग को लेकर ही सरकार के पास कोई जानकारी नहीं है तो फिर गैंग के साथ देश के खिलाफ नारे लगाने की बात स्वतः ही खारिज हो जाती है।
भाजपा की इस तरह की प्रतिक्रियाओं से वह सारे सवाल एक बार फिर जबाव मांगेंगे कि प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी नवाज शरीफ की बेटी की शादी में बिना किसी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के कैसे शामिल हो गये थे। हाफिज सैयद से मिलने के फोटो सोशल मीडिया में वायरल हो चुके हैं लेकिन उनका कोई खण्डन/स्पष्टीकरण आज तक नही आया है।
यही नही दिल्ली दंगों को लेकर दिल्ली उच्च न्यायालय में चल रही याचिका की सुनवाई में कोर्ट की यह टिप्पणी की ‘‘यह दंगे प्रायोजित थे’’ से राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों में तूफान खड़ा हो गया है। इस पर फैसला सुरक्षित है और उन सारे राजनीतिक चेहरों पर उंगलियां उठनी शुरू हो गयी हैं जो इस दौरान विवादित रहे हैं। राजनीतिक विश्लेष्कों का मानना है कि जब भाजपा ने कांग्रेस के स्टार प्रचारकों पर इस तरह से हमला किया है तो स्वभाविक है कि कांग्रेस भी प्रत्युत्तर में दिल्ली दगों के विवादित चेहरों पर निशाना साधेगी। क्योंकि इन्ही दंगों में प्रदेश से केन्द्र में एक मात्र मन्त्री अनुराग ठाकुर का नाम चर्चा में रह चुका है और वह प्रदेश भाजपा के चुनाव प्रचारकों की सूची में एक बड़ा नाम है। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में दोनों दलों में रोचक बहस देखने को मिलेगी।
कच्चीघाटी प्रकरण के बाद उठते सवाल
35000 अवैध निमार्णों के लिये लाया गया था एक्ट में संशोधन
संशोधन रद्द होने के बाद भी नही हुई अवैधताओं पर कोई कारवाई
शिमला में 186 भवन है छः और उससे अधिक मंजिलों के
कसौली प्रकरण के बाद शीर्ष अदालत द्वारा चिन्हित एक दर्जन अधिकारियों के खिलाफ नही हुई कोई कारवाई
एन जी टी के नवम्बर 2017 के फैसले के बाद भी कैसे बन रहे दर्जनों बहुमंजिला निर्माण
क्या एन जी टी के फैसलों पर अमल सुनिश्चित करना वर्तमान सरकार की जिम्मेदारी नही
शिमला/शैल। इस वर्ष जिस तरह की बरसात देखने को मिली है और इसमें जितना नुकसान हुआ है उससे पर्यावरण के साथ हो रहे खिलवाड़ ने सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। हजारों करोड़ की संपति के नुकसान के अतिरिक्त इस बार अब तक 450 से ज्यादा लोगों की तो मौत भी हो चुकी हैं। पशुधन के नुकसान का आंकड़ा तो इससे कई गुणा अधिक है। शिमला में शहर के भीतर और सरकुलर रोड पर कई जगह भू-स्खलन हुये हैं। कई वाहनों का नुकसान हुआ है। इस नुकसान के अतिरिक्त जब शिमला के ही कच्चीघाटी में एक आठ मंजिला भवन ताश के पत्तों की तरह कुछ क्षणों में ही मलवे के ढेर में बदल गया तथा और भी कई भवनों को असुरक्षित बना गया तो पहली बार सरकार और प्रसाशन की भूमिका पर सवाल उठे हैं। आम आदमी ने इस पर चिंता जताई है क्योंकि जिस कच्चीघाटी में यह हादसा हुआ है वहां पर सभी निमार्ण बहुमंजिला हैं। भूगर्भ रिपार्टों के मुताबिक यहां पर हुये यह निमार्ण सुरक्षित नही हैं और कभी भी किसी बड़े हादसे को न्योता दे सकते हैं। अब कच्चीघाटी में हुए हादसे के बाद एक कमेटी का गठन करके जांच के आदेश दिये गये हैं। इस कमेटी की रिपोर्ट कब आती है और उस पर क्या कारवाई होती है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा।
लेकिन इस संद्धर्भ में राज्य सरकारों का जो आचरण रहा है यदि उस पर नजर डाली जाये तो कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियों की सरकारों का दामन साफ नही रहा है। स्मरणीय है कि प्रदेश में नगर एंव ग्रामीण नियोजन विभाग का गठन 1977 में हुआ और नियाजन अधिनियम बनाया गया था। इस एक्ट के तहत नियोजन को लेकर 1978 में अन्तरिम प्लान जारी किया गया था। यह प्लान आज तक स्थायी नही बन पाया है बल्कि इस अन्तरिम प्लान में ही अवैधताओं को नियमित करने के लिये सात बार रिटैन्शन पॉलिसियां लाई गयी। हर बार पॉलिसी को अन्तिम कहकर लाया गया और 2016 में तो इस एक्ट में ही संशोधन करके इसमें धारा 30 बी को जोड़ा गया लेकिन विधानसभा से पारित होने के बाद जब यह राज्यपाल की स्वीकृति के लिये आया तो राज्यपाल ने इसे रोक दिया। परन्तु जब इसे रोकने पर भाजपा का एक प्रतिनिधि मण्डल राज्यपाल से मिला तो उसके बाद इस संशोधन को राजभवन की स्वीकृति मिल गयी। जब यह कानून बन गया तब इसे तीन अलग-अलग याचिकाओं CWP 612 of 2017, CWP 704 of 2017 और CWP 819 of 2017 के माध्यम से उच्च न्यायालय मे चुनौती दी गयी। उच्च न्यायालय में यह सामने आया कि इस संशोधन के माध्यम से सरकार 35000 अवैध निमार्णों को नियमित करना चाहती है। सरकार ने अपना पक्ष रखते हुये यह कहा की इन लोगों को नोटिस देकर कहा गया है कि वह स्वंय इन्हें तोड दें। लेकिन इसी के साथ यह भी कहा कि ऐसा करने से कानून और व्यवस्था की स्थिति पैदा हो जायेगी। सरकार के इस तर्क से यह स्पष्ट हो जाता है कि वह ऐसे लोंगों के साथ किस कदर खड़ी रही है। उच्च न्यायालय ने सरकार के सारे तर्कों को खारिज करते हुए इस संसोधन को रद्द कर दिया अदालत ने सपष्ट कहा है कि (i) Insertion of Section 30-B by the Amending Act is contrary to the object and purpose of the Principal Act, as also ultra vires the Constitution of India, as such we strike it down.
इस फैसले के बाद स्थिती पुरानी जगह आ जाती है। सरकार जितनी रिटैन्शन पॉलिसियां लायी हैं उन पर उच्च न्यायालय ने 2015 में जब नेपाल में आये भूकंप से भारी तबाही हुई थी। उस समय स्वतः संज्ञान में ली एक याचिका में यह कहा कि यदि शिमला में हल्के स्तर का भूकंप भी आता है तो इसमें कम से कम बीस हजार लोग मारे जायेंगे। यही आंशका आपदा प्रबंधन ने भी एक संगोष्ठी में व्यक्त की थी। उस समय उच्च न्यायालय ने अवैध निमार्णों पर यह कहा था
Further the respondents do not seem to have learnt any lesson from the recent earthquakes which have devastated the Himalayan region, particularly, Nepal. As per the latest studies, majority ofHimachal Pradesh falls in seismic Zone-V and the remaining in region-IV and yet this fact has failed to shake the authorities in Shimla out of their slumber. The quake-prone erstwhile summer capital of Raj cannot avert a Himalayan tragedy of the kind that has killed thousands and caused massive destruction in Nepal.
It has been reported that Shimla ‘s North slope of Ridge and open space just above the Mall that extends to the Grand Hotel in the West and Lower Bazar in the East is slowly sinking. We can only fasten the blame on the haphazard and illegal construction being carried out and all out efforts being made for converting the once scenic seven Himalayas of this Town into a concrete Jungle.
Thousands of unauthorized constructions have not been raised overnight. The Government machinery was mute spectator by letting the people to raise unauthorized constructions and also encroach upon the government land. Permitting the unauthorized construction under the very nose of the authorities and later on regularizing them amounts to failure of constitutional mechanism/machinery. The State functionary/machinery has adopted ostrich like attitude. The honest persons are at the receiving end and the persons who have raised unauthorized construction are being encouraged to break the law. This attitude also violates the human rights of the honest citizens, who have raised their construction in accordance with law. There are thousands of buildings being regularized, which are not even structurally safe.
इसी परिदृश्य में अन्ततः 16-11-2017 को एन जी टी का फैसला आया है। इस फैसले का आधार सरकार द्वारा गठित तरूण कपूर कमेटी की ही रिपोर्ट बनी है। इस फैसले में साफ कहा है कि We hereby prohibit new construction of any kind, i.e. residential, institutional and commercial to be permitted henceforth in any part of the Core and Green/Forest area as defined under the various Notifications issued under the Interim Development Plan as well, by the State Government. इसी फैसले में यह भी कहा है कि Wherever unauthorised structures, for which no plans were submitted for approval or NOC for development and such areas falls beyond the Core and Green/Forest area the same shall not be regularised or compounded. However, where plans have been submitted and the construction work with deviation has been completed prior to this judgement and the authorities consider it appropriate to regularise such structure beyond the sanctioned plan, in that event the same shall not be compounded or regularised without payment of environmental compensation at the rate of Rs. 5,000/- per sq. ft. in case of exclusive self occupied residential construction and Rs. 10,000/- per sq. ft. in commercial or residential-cum-commercial buildings. The amount so received should be utilised for sustainable development and for providing of facilities in the city of Shimla, as directed under this judgement.
अब 13 सितम्बर को जो फैसला आया है उसमें ट्रिब्यूनल के पास आये आवेदनों MA No 59/2021 and MA No. 60/2021 को अस्विकारते हुये स्पष्ट कहा है
In view of above legal position, once a decision has been taken by this Tribunal, applications seeking further orders in conflict with such decision is not maintainable. It is for the statutory authorities to act further in accordance with the said decision. The Supervisory Committee
constituted in terms of the order is for purposes mentioned in the order.
There is no scope of making recommendation by the said Committee for review of the order in any manner.
We are, thus, unable to entertain these applications which stand disposed of.
शिमला में इससे पहले भी कई निमार्ण गिर चुके हैं। जिनमें छोटा शिमला, फिंगास्क और स्टाबरी हिल्ज में ऐसे हादसे हो चुके हैं। लेकिन इस बार जिस पैमाने पर कच्चीघाटी के हादसे ने लोगों को हिला कर रख दिया है उससे यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या सरकार अब भी वोट की राजनीति के दबाव में अवैधताओं के आगे झुकती रहेगी या सारे दबावों से उपर उठकर जनहित में कोई कड़ा फैंसला लेगी। क्योंकि एन जी टी के 16-11-2017 और 10-09-2021 के फैंसले बहुत स्पष्ट हैं और इन फैंसलों पर अमल करने की जिम्मेदारी जयराम सरकार की बन जाती है।
2013 में राजस्व विभाग को सौंपी जांच की रिपोर्ट आज तक क्यों नही आ पायी?
नियामक आयोग की शिकायत पर मामला दर्ज करने में जयराम सरकार ने दो वर्ष क्यों लगाये
शिमला/शैल। भाजपा के वरिष्ठ नेता पूर्व मुख्यमन्त्री शान्ता कुमार और कांग्रेस विधायक राजेन्द्र राणा ने मानव भारती विश्वविद्यालय में घटे फर्जी प्रकरण पर गंभीर जांच की मांग की है। शान्ता कुमार ने इस जांच के लिये मुख्यमन्त्री जय राम ठाकुर और डी जी पी संजय कुण्डू से भी बात करने का दावा किया है। राजेन्द्र राणा ने तो इसके लिये प्रधानमन्त्री और राष्ट्रपति तक को पत्र लिखे हैं। राणा ने तो यह भी आरोप लगाया है कि इसमें जम़ीन लेने को लेकर भी घोटाला हुआ है। राजेन्द्र राणा कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष भी हैं। इस तरह इन बड़े नेताओं के आरोपों से यह मामला हरेक के लिये चर्चा का विषय बन गया है। इन फर्जी डिग्रीयों मे हजारों करोड़ के लेन देन का आरोप लगा है। इन आरोपों के साये में प्राईवेट सैक्टर में खुले इन विश्वविद्यालयों पर नजर डालने की आवश्यकता हो जाती है। क्योंकि जब यह विश्वविद्यालय खुले थे तब भी इनको लेकर हिमाचल बेचने जैसे आरोप लगे थे। कई छात्र संगठनों ने शिक्षा का बाजारीकरण करने के आरोप लगाये थे।
स्मरणीय है कि नीजि क्षेत्र में विश्वविद्यालय खोलने के लिये सरकार पहला विधेयक 2006 में लाई थी। उस समय स्व. वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी। उस समय विश्वविद्यालय खोलने के लिये नयून्तम कितनी जम़ीन चाहिये ऐसी कोई सीमा नही रखी गई थी केवल यह कहा गया था कि प्रस्तावित विश्वविद्यालयों के पास 10 हजार वर्ग गज का नीर्मित ऐरिया होना चाहिये। यह 2006 का अधिनियम आने के बाद 2008 तक ही 10 विश्वविद्यालय प्रदेश में खुल चुके थे। शायद इसीलिये इस अधिनियम को और पुख्ता करने के लिये 2009 में नये सिरे से विधेयक लाया गया। इसमें केवल न्यूनतम जमीन की सीमा 50 बीघा की लगा दी गई। इस सीमा के साथ भी यह रखा गया की 10 हजार वर्ग का क्षेत्र निर्मीत होना चाहिये। लेकिन दोनों ही अधिनियमों में जमीन की अधिकतम सीमा कितनी होनी चाहिये इस पर कुछ नही कहा। इसका परिणाम यह हुआ कि सभी विश्वविद्यालय के पास एक बराबर जम़ीन न होकर अलग-अलग सीमा तक जम़ीने है। एक के पास न्यूनतम 52 बीघे है तो एक के पास अधिकतम 1765 बीघे है। सभी 16 विश्वविद्यालयों के पास अलग अलग सीमा तक जम़ीने है।
2009 में जो अधिनियम लाया गया था उसमें ही रैगुलेटरी कमीश्न बनाने का भी प्र्रावधान किया गया जो 2006 के अधिनियम में नही था। इसमें इन विश्वविद्यालयों पर नियमन रखने के लिये नियामक आयोग को व्यापक शक्तियां दी गयी हैं। 2009 के अधिनियम में यह शर्त रखी गई है कि विश्वविद्यालय 15 वर्ष से पहले भंग नही किया जा सकेगा। लेकिन 2006 के अधिनियम में विश्वविद्यालय को भंग करने के लिये कोई समय सीमा नही रखी गयी है। दोनों अधिनियमों में विश्वविद्यालय के भंग होने पर सारी परिसंपतियों की मालिक विश्वविद्यालय की संचालक संस्था को रखा गया है। यदि दोनों अधिनियमों का एक साथ अध्ययन किया जाये तो 2009 में नियामक आयोग बना कर तथा विश्वविद्यालय को भंग करने के लिये 15 वर्ष की शर्त रखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि इसमें सभी पक्षों का पूरा-पूरा ध्यान रखा गया है।
हिमाचल में किसी भी गैर कृषक को सरकार से अनुमति लिये बिना जमीन खरीद का अधिकार नही है। यह अनुमति भू-सुधार अधिनियम की धारा 118 के तहत दी जाती है। इस अनुमति में यह शर्त रहती है कि इस तरह ली गई जमीन को दो वर्ष के भीतर उपयोग में लाना होता है। यदि खरीदने वाला किन्ही कारणों से ऐसा नही कर पाता है तो उसे सरकार एक वर्ष तक और समय दे देती है। फिर भी यदि जम़ीन का उपयोग न हो पाये तो ऐसी जम़ीन को बिना किसी शर्त के सरकार की मलकियत में लेने का प्रावधान है। 2013 में वीरभद्र सिहं की सरकार आने पर इन विश्वविद्यालयों की जम़ीन खरीद को लेकर राजस्व विभाग को जांच के आदेश दिये गये थे। इस जांच में यह देखा जाना था कि इन जम़ीनों की खरीद में कोई नियमों की अनदेखी तो नही हुई है। लेकिन आज तक इस जांच की कोई रिपोर्ट सामने नही आयी है। यह भी सामने नही आया है कि इन विश्वविद्यालयों ने तय समय सीमा के भीतर खरीदी हुई जमीन का पूरा उपयोग कर लिया है या नही। राजस्व विभाग अभी तक यह भी स्पष्ट नही कर पाया है कि इन पर धारा 118 के तहत दो वर्ष की सीमा लागू होगी या नही। वैसे अभी इस दो वर्ष की समय सीमा को बढ़ाने या हटाने को लेकर कोई संशोधन राजस्व अधिनियमों नही हुआ है। इसी के साथ यह भी स्पष्ट नही किया गया है कि विश्वविद्यालय लैण्ड सिलिंग एक्ट के दायरे में आते हैं या नही। वैसे कानून के जानकारों को मुताबिक विश्वविद्यालय यह जम़ीने खरीद कर मालिक हो गये हैं और हर मालिक लैण्ड सिलिंग एक्ट के दायरे में आता है।
इस परिदृश्य में यदि शान्ता कुमार और राजेन्द्र राणा द्वारा उठाये गये मुद्दों का अवलोकन किया जाये तो उनका हमला सीधा भाजपा के पूर्व मुख्यमन्त्री पर है। यदि लगाये गये आरोपों को देखा जाये तो जब मानव भारती विश्वविद्यालय को लेकर पहली शिकायत आयी तो उसकी जांच नियामक आयोग द्वारा जब की गई तब वीरभद्र सिहं के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी। उसके बाद जब दूसरी बार शिकायत आयी तब नियामक आयोग ने अगस्त 2017 को इसे डी जी पी को मामला दर्ज करके जांच के लिये भेज दिया। लेकिन 2017 में भेजी गई इस शिकायत पर 2020 में मामला दर्ज हुआ। 2018 से जयराम सरकार सत्ता में आ चुकी थी। इस सरकार में ऐसी गंभीर शिकायत पर मामला दर्ज करने में इतनी देर क्यों लगा दी गयी यह अपने में ही एक अलग विषय बन जाता है। जिसका जबाव इसी सरकार को देना पड़ेगा। 2006 के एक्ट में जम़ीन की सीमा और विश्वविद्यालय भंग करने की सीमा तथा इन पर लैण्ड सिलिंग एक्ट के प्रावधानों पर खामोशी बरतने का जबाव उस समय की सरकार पर आता है। लैण्ड सिंलिग एक्ट आज भी लागू नही किया जा रहा है इसका जबाव आज की सरकार को देना है। ऐसे में राजनीतिक हल्कों में यह सवाल उठ रहा है कि इन शिकायतों के माध्यम से पूर्व मुख्यमन्त्री का नाम लेकर वर्तमान सरकार पर ही निशाना साधा जा रहा है।
यह है एक्ट में प्रावधान
THE HIMACHAL PRADESH PRIVATE UNIVERSITIES (ESTABLISHMENT AND REGULATION) BILL, 2006 के मुताबिक Acquire and construct a minimum of 10,000 square meters of covered space suitable for conducting academic programmes, and for other purposes.
Dissolution of the university by the sponsoring body.-(1) The sponsoring body may dissolve the university by giving a notice to this effect to the Government, the employees and the students of the university at least one year in advance:
Provided that dissolution of the university shall have effect only after the last batches of students of the regular courses have completed their courses and they have been awarded degrees, diplomas or awards, as the case may be.
(2) On the dissolution of the university all the assets and liabilities of the university shall vest in the sponsoring body:
Provided that in case the sponsoring body contravenes the undertaking given as per clause (j) of sub-section (1) of section 5, all the asset.
और THE HIMACHAL PRADESH PRIVATE UNIVERSITIES (ESTABLISHMENT AND REGULATION) BILL, 2009 के मुताबिक Acquire atleast 50 Bigha of land and construct a minimum of 10,000 square meters of covered space suitable for conducting academic programmes, and for other purposes;
Dissolution of the university by the sponsoring body.—(1) The sponsoring body may dissolve the university by giving a notice to this effect to the Visitor, Government, Regulatory Commission, the employees and the students of the university at least one year in advance: Provided that dissolution of the university shall have effect only after the last batches of students of the regular courses have completed their courses and they have been awarded degrees, diplomas or awards, as the case may be.
(2) The Regulatory Commission, on receipt of such information, shall have the right to issue such directions to the sponsoring body for the fulfillment of its obligations under sub-section (1) as it may deem necessary, and if the sponsoring body contravenes the provisions of sub section (1), the endowment fund shall be forfeited by the Regulatory Commission and the Regulatory Commission shall make arrangements for completion of courses, conduct of examinations, award of degrees, etc. of students of the private university, either by undertaking the job itself or by assigning the job to some other university in such manner that the interest of the students are not affected adversely in any manner and expenditure made for these arrangement for the students shall be made good from the money deposited in the endowment fund and/or general fund of the private university.
(2) On the dissolution of the university all the assets and liabilities of the university shall vest in the sponsoring body:
Provided that in case the sponsoring body contravenes the undertaking given as per
clause (j) of sub-section (1) of section 5, all the assets of the university shall vest in the Government free from all encumbrances.
यह है नीजि विश्वविद्यालयों के पास जमीन
Name of the Universities Land Status
1.Arni University (Kathgarh),Tehsil Indora, 120 Acre
Distt. Kangra,Himachal Pradesh
2. Bahra University Waknaghat, Solan district, 139.06 Bigha
Himachal Pradesh
3. Chitkara University Barotiwala Distt. Solan 120.09 Bigha
4. Eternal University Baru Sahib, Distt. Simour 84 Bigha
5. ICFAI University, Baddi 1765 Bigha
6. Indus International University,Distt. Una 227 Bigha
7. Maharishi Markandeshwar University, Solan 55.35 Bigha
8. Manav Bharti University Distt. Solan 232 Bigha
9. Shoolini University of Biotechnology 84.13 Bigha
and Management Sciences Distt. Solan
10. Sri Sai University Distt. Kangra 75.10 Bigha
11. AP Goyal Shimla University Distt. Shimla 54.13 Bigha
12. IEC University, Baddi Distt. Solan 52 Bigha
13. Atal Educational Hub Kallujhanda, 219.71 Bigha
Baddi , Teh. Nalagarh Distt. Solan
14. Career Point University, Distt. Hamirpur 48891.54 Sq.Mtr
15. Maharaja Agrasen University Baddi Solan 278.07 Kanal
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