Sunday, 21 December 2025
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कुमार विश्वास के आरोपों को हल्के से नहीं लिया जा सकता

2016 से लग रहे हैं यह आरोप
केजरीवाल को आरोपों का हां या न में जवाब देने में आपत्ति क्यो?
केजरीवाल सरकार का कर्ज भार क्यों बढ़ रहा है और कैपिटल परिव्यय क्यों कम हो रहा है?

शिमला/शैल।आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे डॉ कुमार विश्वास का एक वीडियो वायरल हुआ है। इस वीडियो में दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल के खिलाफ संगीन आरोप लगा है कि वह खालिस्तान की मांग करने वालों के समर्थक हैं। खालिस्तान के समर्थक उनके घर आते थे और उन्होंने चुनाव में उनकी मदद की है। कुमार विश्वास 2016 से यह आरोप लगाते आ रहे हैं। 2017 में के.पी.एस. गिल ने भी कुछ इसी तरह की आशंका व्यक्त की हैै। 3 फरवरी 2017 को के.पी.एस. गिल ने इंडियन एक्सप्रेस से इस संदर्भ में बात की है। उस समय मीडिया ने इस आरोप को गंभीरता से नहीं लिया। लेकिन कुमार विश्वास पर यह आरोप नहीं लगाया जा सकता कि वह पहली बार किसी राजनीति से प्रेरित होकर यह आरोप लगा रहे हैं। इस समय चुनाव हो रहे हैं और आप पंजाब उत्तराखंड और गोवा में सरकार बनाने के दावे के साथ चुनाव में उतरी हैं। इसलिए राजनीतिक पार्टियों के लिए कुमार विश्वास के आरोप एक गंभीर मुद्दा हो जाते हैं। फिर पिछले कुछ दिनों से हिमाचल में भी कई लोगों को खालिस्तान समर्थकों की ओर से धमकी भरे फोन आते रहे हैं। हिमाचल के भी कई क्षेत्रों को खालीस्तान में मिलाये जाने के संदेश दिये जाते रहे हैं।
इस परिदृश्य में यदि किसी राजनेता या उसकी पार्टी पर खालीस्तान का समर्थन करने के आरोप लगते हैं तो उन्हें हल्के से नहीं लिया जा सकता ना ही राजनीति के नाम पर उन्हें नजरअंदाज किया जा सकता है। संभवत इसी गंभीरता को देखते हुए पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने इसको लेकर गृह मंत्रालय को इन आरोपों की जांच करवाने के लिए पत्र लिखा। केंद्रीय गृह मंत्री ने भी इसी गंभीरता के कारण इस मामले की जांच करवाये जाने का आश्वासन दिया है। अब यह केंद्रीय गृह मंत्री की जिम्मेदारी हो जाती है कि वह इन आरोपों की जांच के परिणाम को देश की जनता के सामने रखें। लेकिन इन आरोपों का जवाब जिस तरह से केजरीवाल ने दिया है उससे आरोपों की गंभीरता कम नहीं हो जाती है। क्योंकि केजरीवाल ने इसका सीधा जवाब नहीं दिया है कि खालीस्तान के समर्थकों के साथ उनकी कोई बैठक हुई है या नहीं। क्योंकि कुमार विश्वास ने दावा किया है कि उन्होंने अपनी आंखों से इस बैठक को देखा है। यदि कुमार विश्वास की बात पर हास्य कवि होने के कारण विश्वास नहीं किया जा सकता तो केजरीवाल पर मुख्यमंत्री होने के नाम पर ही विश्वास कैसे कर लिया जाये। फिर किसी भी बड़े राजनेता पर अब अविश्वास करने का कोई आधार नहीं रह जाता है। केजरीवाल ने जब यह दावा किया कि उनके खिलाफ केंद्र ने कई जांचें करवा ली है और उनमें कुछ नहीं निकला है। तब यह नहीं बताया गया है कि इन जांचों का मुद्दा यह आरोप नहीं था। इसी के साथ केजरीवाल ने केंद्रीय एजेंसियों की काबिलियत पर भी सवाल उठाया है। लेकिन इन एजेंसियों के संदर्भ में यह भी महत्वपूर्ण है कि एन आई ए जैसी एजैंसी में एक अधिकारी ग्यारह वर्ष काम करने के बाद पकड़ा गया है।
जहां तक दिल्ली में केजरीवाल के प्रशासन और सरकार का सवाल है तो उसके लिए कैग रिपोर्ट में आये तथ्यों से काफी कुछ स्पष्ट हो जाता है। केजरीवाल ने जब सत्ता संभाली थी तब 2010-11 में दिल्ली सरकार का राजस्व 10,642 करोड़ के सरप्लस में था जो 2018-19 में 4465 करोड़ रह गया है। दिल्ली जल बोर्ड और डी टी सी लगातार घाटे में चल रही है दिल्ली मेट्रो भी लाभ नहीं कमा रही है। कैग के मुताबिक आठ लाख नौकरियां देने का दावा भी पूरा नहीं हो सका है। 2013-14 में दिल्ली सरकार का कैपिटल परिव्यय 11,685 करोड था जो 2018-19 में 9908 करोड़ रह गया है। कैपिटल परिव्यय का कम होना यह दर्शाता है कि अब विकास कार्यों पर लगभग विराम की स्थिति आती जा रही है। इसी तरह आर बी आई के मुताबिक दिल्ली सरकार का कर्ज भार जो मार्च 2011 में जी डी पी का 23.5 प्रतिशत था वह मार्च 2019 में बढ़कर 25.1 प्रतिशत हो गया है। स्वभाविक है कि जब कोई सरकार लगातार मुफ्त में सुविधायें देती जायेगी तो उसके पहले के जमा धन में कमी होती जायेगी और इसी के साथ उसका कर्जभार भी बढ़ता जायेगा। इसका परिणाम एक दिन बहुत भयानक होता है। इस परिदृश्य में केजरीवाल के सुशासन पर भी विश्वास करना कठिन हो जाता है।


आपको प्रमाणित करना होगा कि आप संपत्ति के मालिक हैं

सरकार के प्रस्तावित लैण्ड टाइटल एक्ट से ऊभरी आशंका
इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए भू अधिग्रहण प्रक्रिया सरल करने के लिए लाया जा रहा है यह एक्ट
विवाद की स्थिति में अदालत नहीं ट्रिब्यूनल में जाना होगा
वन नेशन वन रजिस्ट्रेशन है योजना

लैण्ड टाइटल एक्ट के परिदृश्य में

शिमला/शैल। मोदी सरकार अब लैण्ड टाइटल एक्ट लाने जा रही है। नीति आयोग ने इस प्रस्तावित एक्ट का ड्रॉफ्ट बनाकर केंद्र सरकार को भेज दिया है। केंद्र ने यह ड्राफ्ट राज्य सरकारों को भेजकर इस पर उनकी आपतियां और सुझाव आमंत्रित किये हैं क्योंकि लैण्ड राज्यों का विषय है। यदि राज्य सरकार तय समय सीमा के भीतर अपनी प्रतिक्रियायें केंद्र को नहीं भेजती हैं तो इसे उनकी सहमति मान लिया जायेगा। इसके बाद केंद्र कृषि कानूनों की तर्ज पर एक अध्यादेश जारी करके इसे लागू कर देगा। कुछ राज्यों की सहमति आने के बाद केंद्र इसे संसद में पारित करवा लेगा। राज्य सरकारों के पास नीति आयोग का ड्राफ्ट आ चुका है। हिमाचल सरकार को भी 68 धाराओं वाले इस एक्ट का ड्राफ्ट तीन सौ अनुलगकों के साथ मिल चुका है। लेकिन हिमाचल सरकार ने इसे जनता की जानकारी में नहीं लाया है। जनता से उसकी प्रतिक्रियाएं नहीं मांगी गयी हैं। वन नेंशन वन रजिस्टेशन के नाम पर यह एक्ट लाया जा रहा है। माना जा रहा है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम में जिस तरह से व्यक्ति को अपनी नागरिकता प्रमाणित करने की वस्तु स्थिति पैदा हो गयी थी उसी तरह व्यक्ति को अपनी अचल संपत्ति का स्वामित्व प्रमाणित करने की स्थिति आ जायेगी।
इस एक्ट के आने से नीति आयोग के ड्राफ्ट के मुताबिक इससे राज्य सरकारों को यह अधिकार मिल जायेगा will provide state governments power to order for establishment, administration and management of a system of title registration of immovable properties नीति आयोग के मुताबिक यह एक्ट आने से इंफ्रास्ट्रक्चर योजनाओं के लिये भूमि अधिग्रहण और उसमें मुआवजा देने की प्रतिक्रिया सरल हो जायेगी। इस समय राज्य सरकार राष्ट्रीय उच्च मार्ग, ट्रेन रेलवे ट्रैक, रेलवे स्टेशन, एयरपोर्ट, विद्युत उत्पादन और संचारण ऑयल और गैस पाइपलाइन टेलीकॉम खनिज व खाने आदि को निजी क्षेत्र को देने की योजना बना चुकी है। निजी क्षेत्र को इसमें अपना इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने के लिए भूमि चाहिये। इस भूमि के अधिग्रहण की प्रक्रिया यह एक्ट आने से सरल हो जायेगी। क्योंकि इसमें आने वाले विवाद का निपटारा करने के लिए कानूनी व्यवस्था भी बदल दी गयी है।
एक्ट में यह दावा किया गया है कि Act to provide for the establishment, administration and management of a system of conclusive property titles with title guarantee and indemnification against losses due to inaccuracies in property titles, through registration of immovable properties and further to amend the relevant Acts as stated in the Schedule. इस दावे में जिन कमियों का कवर लिया जा रहा है वैसी ही गलतियां आगे नहीं होंगी ऐसा दावा कैसे किया जा सकता है। क्या नाम लिखने में उच्चारण के कारण गलती नहीं हो सकती। इस समय सरकार यह दावा कर रही है कि 90 प्रतिशत गांव में अभिलेखों को कंप्यूटरीकृत कर दिया गया है। 655959 चिन्हित गांव में से 591221 गांव का रिकॉर्ड कंप्यूटर पर ला दिया गया है। क्या इसमें नाम आदि लिखने में गलती नहीं हुई होगी। नये एक्ट में तो राजस्व से संबंधित दस्तावेज पहले देखे ही नहीं जायेंगे। इसमें रजिस्ट्रेशन के नाम पर एक आईडी नंबर दे दिया जायेगा। इसमें हुई गलती को ठीक करवाने की जिम्मेदारी संपत्ति के मालिक की होगी। उसके लिए उसे संबंधित कार्यालयों के चक्कर काटने की मजबूरी हो जायेगी। सरकार यह व्यवस्था इसलिये ला रही है क्योंकि न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर और यूके में ऐसा है। क्या यह व्यवस्था लाने के लिए संसद और आम आदमी के साथ एक विस्तृत बहस की आवश्यकता नहीं होनी चाहिये। क्योंकि इसमें हर गांव और संपत्ति मालिक प्रभावित होगा। यदि सीधे नीति आयोग के ड्राफ्ट को एक्ट की शक्ल दे दी गयी तो एक बार फिर नागरिकता आंदोलन जैसे हालात पैदा होने की स्थिति बन जायेगी।



क्या प्रतिभा सिंह स्व.वीरभद्र सिंह की भूमिका में आना चाह रही हैं

सिराज में ब्यानों से उठी चर्च
क्या चुनाव से पहले हिमाचल में भी जांच एजेंसियां सक्रिय होंगी

शिमला/शैल । उपचुनावों में चारों सीटों पर जीत दर्ज करने के बाद प्रदेश कांग्रेस में जो कुछ घटना शुरू हुआ है वह राजनीतिक विश्लेषकों के लिए एक रोचक विषय बनता जा रहा है। केंद्र में 2014 में भाजपा ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में कांग्रेस से सत्ता छीनी थी। उस समय हिमाचल में स्व.वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी। तब कांग्रेस प्रदेश की चारों लोकसभा सीटें हार गयी थी। उसके बाद वीरभद्र के नेतृत्व में ही विधानसभा के चुनाव हुये और पार्टी हार गयी। फिर 2019 के लोकसभा चुनावों में पुनः पार्टी चारों सीटें हार गयी। यह एक कड़वा सच है। तीन चुनावो में वीरभद्र जैसे नेता के नेतृत्व में लगातार हार जाने के कारणों पर आज तक पार्टी की ओर से कोई आधिकारिक वक्तव्य नहीं आया है। लेकिन तटस्थ विश्लेषकों की नजर में इस दौरान जो कुछ घटा है उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। 2014 और 2017 के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर प्रदेश भाजपा के कार्यकर्ताओं तक ने वीरभद्र परिवार के खिलाफ बने आयकर सीबीआई और ईडी के मामलों को सबने पूरे जोर से उछाला और भ्रष्टाचार की ऐसी छवि बना दी जिससे अंत तक लड़ना पड़ा। दूसरी और पार्टी में प्रदेश अध्यक्षों के साथ लगातार टकराव की स्थिति रही जो एक समय वीरभद्र ब्रिगेड के गठन तक पहुंच गयी। ब्रिगेड के अध्यक्ष और पार्टी के अध्यक्ष में मानहानि के मामले दायर होने तक स्थिति पहुंच गयी। इसी दौरान यह भी सामने आया कि 45 विधान सभा क्षेत्रों में समानान्तर सत्ता केंद्र स्थापित हो चुके थे और वही हार का कारण बने थे। हार के बाद अध्यक्ष और मुख्यमंत्री में हुये संवाद में यह सब कुछ जगजाहिर हो चुका है। यही नहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में मण्डी के प्रत्याशी को लेकर यह बयान आ गया कि कोई भी ‘मक्कर झंडू ’ चुनाव लड़ लेगा। वीरभद्र जैसे बड़े नेता के ऐसे ब्यानों का जनता पर क्या और कैसा असर हुआ होगा यह अंदाजा लगाया जा सकता है। इसी परिदृश्य में प्रदेश अध्यक्ष को बदला गया। 2019 की हार के बाद तो यहां तक चर्चाएं चल निकली कि कांग्रेस के कई बड़े नेता पार्टी छोड़कर भाजपा में जाने का जुगाड़ देख रहे हैं। यह माना जाता है कि यदि बंगाल में भाजपा की जीत पर रोक न लगती तो आज कई कांग्रेस नेता भाजपा में जा चुके होते।
इसी परिदृश्य में यदि 2014 से लेकर आज तक प्रदेश कांग्रेस बतौर विपक्ष भूमिका का आकलन किया जाये तो कोई बड़ी उपलब्धि रिकॉर्ड पर नहीं आती है। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि कांग्रेस से ज्यादा सशक्त भूमिका कुछ छोटे अखबारों और स्वयं भाजपाइयों ने निभाई है। जो समय- समय पर पत्र बम्ब दागते रहे। ऐसी वस्तु स्थिति में कांग्रेस ने पहले दो नगर निगम और फिर चारों उपचुनाव जीतकर सही में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। यह एक जमीनी सच्चाई है कि यदि वीरभद्र की मौत के बाद उनके परिवार से किसी को मण्डी से प्रत्याशी न बनाया जाता तो शायद यह सीट हाथ न आती। लेकिन इस जीत में यदि कौल सिंह ठाकुर, सुखविंदर सिंह सुक्खू और पंडित सुखराम के पौत्र आश्रय शर्मा का सक्रिय योगदान न रहता तो भी यह जीत संदिग्ध हो जाती। ऐसे में इस जीत के बाद प्रतिभा सिंह का यह ब्यान कि आश्रय तो सक्रिय राजनीति में ही नहीं है और सिराज से पार्टी उम्मीदवार का ऐलान कर देना पार्टी के लिए नुकसानदेह हो सकता है। क्योंकि आने वाले दिनों में वह नेता कार्यकर्ता जो वीरभद्र ब्रिगेड में शामिल हो गये वह प्रतिभा सिंह और विक्रमादित्य सिंह के सहारे अपने लिये सक्रिय स्थान की मांग करेंगे। अभी शायद प्रतिभा सिंह और विक्रमादित्य मिलकर भी ब्रिगेड के लोगों को स्थापित नहीं करवा पायेंगे। इसी कड़ी में यह व्यवहारिक सच है कि जो लोग स्व. वीरभद्र सिंह के साथ जुड़े हुए थे उनके हितों की रक्षा करने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकते थे। मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने के लिए राजा नालागढ़ विजेंद्र सिंह और फिर पंडित सुखराम को मात देने के लिए किस हद तक चले गए थे यह शायद आज बहुत कम लोगों को जानकारी है। जो वीरभद्र कर गुजरते थे उस मुकाम तक पहुंचने के लिए प्रतिभा सिंह और विक्रमादित्य को समय लगेगा। इस परिपेक्ष में आज जब प्रतिभा सिंह सिराज से आश्रय शर्मा को लेकर बयान देंगे और वहां से अगले उम्मीदवार की भी घोषणा कर देंगी तो निश्चित रूप से उनके ब्यान को शिमला से लेकर दिल्ली तक अलग-अलग अर्थों से पढ़ा जायेगा।
यहीं पर कांग्रेस को यह भी याद रखना होगा कि भाजपा की एक यह भी रणनीति रहती है कि वह चुनाव से पहले अपने विरोधियों के खिलाफ केंद्रीय और राज्यों की जांच एजेंसियों को भी फील्ड में उतार देती है। हिमाचल में भी इस संभावना से इन्कार करना अपने को अंधेरे में रखने जैसा ही होगा। प्रशासन के उच्च हलकों में चल रही गतिविधियों के संकेतों को यदि पढ़ा जाये तो कांग्रेस के आधा दर्जन नेताओं के खिलाफ जांच एजेंसियों को सक्रिय करने की कवायद चल रही है। भाजपा ने बतौर विपक्ष जो आरोप पत्र सौंपे थे उन पर कारवाई किये जाने पर विचार किया जा रहा है। कुछ सूत्रों पर विश्वास किया जाये तो कांग्रेस द्वारा अब तक सरकार के खिलाफ कोई आरोप पत्र न लाया जाना इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। कांग्रेस के ही कुछ लोग सरकार के माध्यम से अपने ही लोगों को घेरने का प्रबन्ध करने में लगे हुये हैं। ऐसे में प्रदेश कांग्रेस के भीतर ही एक दूसरे को पटखनी देने की जो बिसात बिछाई जा रही है उसके परिणाम संगठन के लिये सुखद नहीं रहेंगे यह तय है। यदि कांग्रेस की एकजुटता में कहीं से भी कोई छेद नजर आया तो उसे बड़ी खाई बनने में कोई वक्त नहीं लगेगा।

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