Sunday, 21 December 2025
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इन्वेस्टर मीट के दावों के बीच सीमेंट उद्योग की भ्रूण हत्या के मायने

जुलाई 2019 में निदेशक से आये पत्र को फाईनल करने में डेढ़ वर्ष का समय क्यों लगा?
क्या इस दौरान यह फाइल सचिव तक ही रही या आगे भी गयी
इसी तरह का अंत एशियन और डालमिया के प्लांट का भी क्यों हुआ?

शिमला/शैल। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने जब 2018 में अपना पहला बजट भाषण सदन में पढ़ा था तब उन्होंने प्रदेश की आर्थिक स्थिति और बढ़ते कर्ज पर गंभीर चिंता व्यक्त की थी। प्रदेश को इस स्थिति से बाहर निकालने के लिए औद्योगिक विस्तार के माध्यम से निवेश जुटाने की योजना बनायी गयी। इसके लिये धर्मशाला में 2019 में बड़े स्तर पर इन्वेस्टर मीट आयोजित की गयी। इस मीट में एक लाख करोड़ के निवेश के प्रस्ताव आने का दावा किया। लेकिन मार्च 2020 में ही लॉकडाउन लगा दिये जाने से यह दावा पूरी तरह सफल नहीं हो पाया। कोविड के कारण इसके लिए सरकार को ज्यादा दोषी नहीं ठहराया जा सकता यह स्वाभाविक है। लेकिन जब मार्च 2014 में एकल खिड़की योजना में क्लियर किये गये सीमेंट उद्योग को 2021 में भ्रूण हत्या का शिकार बनना पड़ जाये तो पूरी सरकार की नीयत और नीति का आकलन बदल जाता है।
स्मरणीय है कि मार्च 2014 में स्व. वीरभद्र सिंह की सरकार ने शिमला के चौपाल में रिलायंस उद्योग के लगने वाले 34 करोड़ के एक सीमेंट प्लांट की स्थापना की एकल खिड़की योजना के तहत अनुमति प्रदान की थी। इस अनुमति के बाद प्लांट की स्थापना से जुड़े अन्य कार्य शुरू किये गये। सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद निदेशक उद्योग ने जुलाई 2019 में यह मामला एल ओ आई जारी किये जाने के लिये सरकार में अतिरिक्त मुख्य सचिव को अगली कारवाई के लिये भेज दिया। लेकिन जुलाई 2019 में सचिवालय में आये इस प्रस्ताव पर जनवरी 2021 तक एल ओ आई जारी नहीं हो सका। इसी बीच रिलायंस से यह उद्योग आर सी सी पी एल प्राइवेट लिमिटेड ने ले लिया था। एल ओ आई का आवेदन रिलायंस ने दायर कर दिया हुआ था। लेकिन इस कंपनी को यह एल ओ आई 20-01-2021 को प्राप्त हुआ। इसी बीच भारत सरकार द्वारा एमएमडीआर एक्ट मार्च में संशोधित किये जाने के समाचार आ चुके थे। इन समाचारों के परिदृश्य में कंपनी को पर्याप्त समय रहते एल ओ आई की जगह ग्रांट ऑर्डर चाहिये था। कंपनी ग्रांट ऑर्डर की पैरवी में लग गयी जो उसे 23-03-2021 को मिला। परन्तु एम एम डी आर एक्ट का संशोधन 28-03-2021 से लागू हो गया।
ऐसे में यह स्वभाविक है कि जिस उद्योग में करीब 4000 करोड़ का निवेश होना हो और करीब 400 लोगों को रोजगार मिलना हो उसे 23-03-2021 को ग्रांट ऑर्डर हासिल करके 28-03-2021 तक 5 दिन में अमलीजामा नहीं पहनाया जा सकता। इसमें प्रदेश को हर वर्ष हजारों करोड़ का नुकसान हो गया और सैकड़ों लोग रोजगार से वंचित रह गये हैं। क्योंकि यह उद्योग पैदा होने से पहले ही भ्रुण हत्या का शिकार बना दिया गया। एक ओर जयराम सरकार इसी प्रशासन के सहारे इन्वैस्टर मीट जैसे आयोजन करके निवेशकों को आमंत्रित कर रही है और दूसरी ओर उसी के सचिवालय में उसी की नाक के नीचे इतने बड़े निवेश तथा निवेशक के साथ इस तरह का अनुभव घट जाये तो इसका आम आदमी में सरकार को लेकर क्या संदेश जायेगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
कंपनी ने सरकार के इस व्यवहार को लेकर मीडिया के कुछ लोगों को अपनी पीड़ा ब्यान करते हुये जो खुलासा किया है वह पूरे प्रशासन को बुरी तरह से बेनकाब कर देता है। उनकी पीड़ा के कुछ तथ्य पाठकांे और सरकार के सामने भी आने चाहिये। शायद इसी नीयत से कंपनी मीडिया तक पहुंची है। सरकारी दस्तावेज के मुताबिक 17-07-2019 को इस मामले की फाइल निदेशक से ए सी एस उद्योग को एल ओ आई जारी करने के लिए आयी। एल ओ आई 20-01-2021 को जारी हुआ और ग्रांट ऑर्डर 23-03-2021 को तथा 28-03-2021 को संशोधित एक्ट लागू हो गया। परिणाम स्वरूप सीमेंट प्लांट नहीं लग पाया। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि इतना समय फाइल प्रोसैस करने में क्यों लग गया? कंपनी का आरोप है कि उनसे करोड़ों की रिश्वत मांगी गयी और उन्होंने दी भी कंपनी का तो यहां यहां तक आरोप है की गुड़गांव की सैक्टर 65 स्थित एम थ्री एम गोल्फ ऐस्टेट में एक फ्लैट भी किसी परिजन को दिया गया। कंपनी के इन आरोपों में कितनी सच्चाई है और उसने 2021 मार्च में घट चुके इस प्रकरण को क्यों अब मीडिया के माध्यम से सार्वजनिक करने का फैसला लिया यह सब जांच का विषय है और सरकार को इसकी जांच करके सच्चाई सामने लानी चाहिये। क्योंकि मार्च 2014 में यह पलांट सिंगल विंडो में क्लियर किया जो मार्च 2021 में आकर इस तरह की भ्रुण हत्या का शिकार हो गया। चर्चा है कि ऐसा अन्त इसी उद्योग का अकेले नही हुआ हैं इसमें डालमिया और एशियन के प्लांट्स का भी यही अंत हुआ है।
इसी बीच यह शिकायत एक बृजलाल के माध्यम से पी एम ओ तक भी पहुंच गयी। बृजलाल शायद शिवसेना से ताल्लुक रखते हैं। उन्होंने वाकायदा यह मामला प्रधानमंत्री कार्यालय तक को भेज दिया। प्रधानमंत्री कार्यालय ने इसका संज्ञान लेकर यह मामला राज्य सरकार को भेज दिया है। अब इस प्रकरण पर मुख्यमंत्री क्या कार्रवाई करते हैं इस पर सबकी निगाहें लग गयी हैं। चुनावों की पूर्व संध्या पर ऐसे मामलों का इस तरह से बाहर आना सत्तारूढ़ भाजपा और मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की राजनीतिक सेहत पर क्या असर डालता है यह देखना रोचक हो गया है। क्योंकि सीमेंट प्लांट जमीन पर नहीं उतर पाये हैं और सरकार इस पर खामोश रही है।

 

क्या भाजपा धूमल की हार के कारणों की जांच का साहस करेगी

शिमला/शैल। अभी हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा चार राज्यों में सरकारें बनाने में सफल रही हैं। लेकिन इसी जीत में उत्तर प्रदेश में उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी चुनाव हार गये। जबकि धामी को नेता घोषित करके उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया और पार्टी को सफलता भी मिली। उनकी हार के लिये भीतरघात को जिम्मेदार ठहराते हुये उन्हें फिर से मुख्यमंत्री बना दिया गया और हार के कारणों की जांच की घोषणा कर दी गयी। केशव मौर्य को भी फिर से उप मुख्यमंत्री बना दिया गया। उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में जो कुछ घटा उसको लेकर पूरे देश में भाजपा के सिद्धांतों को लेकर पार्टी के भीतर तीव्र प्रतिक्रियाएं हुयी हैं और इन्हीं के कारण सरकारें बनाने में एक पखवाड़े से भी अधिक का समय लग गया। इन्हीं चुनावों में परिवारवाद भी नए सिरे से चर्चा में आ गया है। इस सबका हिमाचल पर भी एक गहरा असर पड़ा है। यहां भी प्रेम कुमार धूमल को फिर से मुख्यमंत्री बनाये जाने की मांग पार्टी के भीतर से उठनी शुरू हो गयी है।
स्मरणीय है कि 2017 का चुनाव भाजपा ने प्रो. प्रेम कुमार धूमल को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करके लड़ा था और जीत हासिल की थी। लेकिन धूमल अपना चुनाव हार गये। यही नहीं उनके निकटस्थ माने जाने वाले भी दो-तीन लोग चुनाव हार गये। इस हार को उस समय भी भीतरघात का परिणाम कहा गया था। इसी कारण से उस समय हार के बावजूद उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की मांग पार्टी के भीतर से उठी थी। उनके लिये सीटें खाली करने की भी कुछ विधायकों ने घोषणा कर दी। परंतु जनता के फैसले का आदर करते हुये धूमल ने इन प्रस्तावों को स्वीकार नहीं किया और जयराम ठाकुर के नेतृत्व में सरकार का गठन हो गया। उस समय जगत प्रकाश नड्डा भी मुख्यमंत्री बनने के लिए प्रयासरत हो गये थे यह सभी जानते हैं लेकिन सरकार बनने के बाद प्रेम कुमार धूमल और उनके निकटस्थ सरकार एवं संगठन में जिस तरह के आचरण के शिकार होते गये वह हर आदमी के सामने है। जंजैहली प्रकरण में ही धूमल को इस कगार तक पहुंचा दिया गया कि उन्हें सार्वजनिक रूप से यह कहना पड़ा कि सरकार चाहे तो उनकी सीआईडी जांच करवा लें। अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिस नेता के नेतृत्व में जीत हासिल की गयी हो उसे जब ऐसा ब्यान देने के कगार पर पहुंचा दिया जाये तो यह स्थिति कितनी पीड़ादायक रही होगी। अनुराग ठाकुर के साथ भी केंद्रीय विश्वविद्यालय के मुद्दे पर देहरा की एक जनसभा में मुख्यमंत्री के साथ संवाद किस सीमा तक पहुंच गया था वह भी सबके सामने है।
जयराम सरकार में जितने भी पत्र विस्फोट अब तक घटे हैं उनका पहला नजला धूमल के ही किसी न किसी करीबी पर ही गिराया गया है। यदि पत्र बिस्फोटांे के कण की जांच इमानदारी से की जाये तो निश्चित रूप से बहुत कुछ गंभीर सामने आयेगा। पिछले दिनों जिस तरह से मानव भारती विश्वविद्यालय के प्रकरण पर पार्टी के बड़े नेताओं के ब्यान आये हैं यदि उनके राजनीतिक अर्थ निकाले जायें तो बहुत कुछ स्पष्ट हो जाता है। मानव भारती विश्वविद्यालय प्रकरण का निहित जब पूरा नहीं हो पाया तब एक मंत्राी तो यहां तक ब्यान देने पर आ गया कि 2017 के नेता नियत और नेतृत्व को खत्म करके नया नेतृत्व लाया गया था। यही नहीं इसके बाद कर्मचारियों और स्वर्ण आयोग के आंदोलनों को एक बड़े ठाकुर के नाम लगा दिया गया। यह सब कुछ जो घट चुका है अब धामी को उत्तराखंड में मुख्यमंत्री बनाने और उनकी हार के कारणों की जांच करने के वायदे ने हिमाचल में भी धूमल और उनके समर्थकों के सामने आत्मसम्मान की बहाली का मुद्दा खड़ा कर दिया है। इसी कारण से धूमल को भी अपनी हार के कारणों की जांच की मांग करने और अगला चुनाव लड़ने की हुंकार भरने की नौबत आयी है। धूमल कि यह मांग उस समय आयी है जब सरकार प्रदेश के चारों उपचुनाव हार चुकी है। बल्कि इसके बाद आगामी विधानसभा के लिए आ चुके दो सर्वेक्षणों में भी पार्टी की जीत नहीं बतायी गयी है। ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि पार्टी क्या फैसला लेती है।

प्रदेश में आप के पावं पसारते ही भिण्डरावाला के फोटो पर मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया का अर्थ?

भिण्डरावाला आतंकी या संत सरकार अभी तक स्पष्ट क्यों नहीं
वीरेश शांडिल्य ने गृह मंत्री से पूछा भिण्डरावाला का स्टेटस
क्या यह विवाद राजनीतिक कारणों से उठाया जा रहा है

शिमला/शैल। आम आदमी पार्टी ने पंजाब पर कब्जा करने के बाद हिमाचल पर ध्यान केंद्रित करते हुए यहां चुनाव लड़ने और सरकार बनाने का दावा दाग दिया है। इस दावे के साथ ही कांग्रेस और भाजपा के नाराज कार्यकर्ताओं और नेताओं ने आप में जाना शुरू भी कर दिया है। अभी प्रदेश में भाजपा की सरकार है इसलिए भाजपा के बड़े नेता टिकटों के आवंटन के समय आप का रुख करेंगे। जबकि कांग्रेस के लोग पहले जाकर वहां पर अपना स्थान पक्का करने की नीयत से अभी जाने शुरू हो गये हैं। बल्कि एक सेवारत आईएएस अधिकारी दिल्ली जाकर केजरीवाल से मिल भी आये हैं और कभी भी नौकरी छोड़ने का ऐलान कर सकते हैं। प्रदेश के जिन नेताओं के आप में जाने की चर्चाएं आम जुबान तक का आ गयी हैं उनमें महेश्वर सिंह, अनिल शर्मा, सुरेश चंदेल, सुभाष मंगलेट, गंगूराम मुसाफिर, सोहन लाल, रणवीर निक्का और हरदीप बावा के नाम प्रमुखता से चल रहे हैं। यह तय माना जा रहा है कि ऐसे लोगों के जाने से कांग्रेस और भाजपा दोनों को ही ठोस नुकसान पहुंचेगा। वैसे तो जब तक हिमाचल के चुनाव होने हैं तब तक पंजाब में वहां की सरकार की परफॉरमैन्स भी सामने आ जायेगी और उसका भी हिमाचल में पार्टी के भविष्य पर एक असर पड़ेगा। लेकिन इसी दौरान जो कुछ और घटा है उसका भी पार्टी के गठन पर असर पड़ेगा यह भी तय है। स्मरणीय है कि चुनाव के दौरान यह आरोप लगा था कि आप को खालिस्तान समर्थकों का समर्थन भी हासिल है। खालिस्तान का नाम आप के साथ जुड़ने से उस समय के पंजाब के मुख्यमंत्री रणजीत सिंह चन्नी ने केंद्रीय गृह मंत्री को पत्र लिखकर इन आरोपों की जांच किये जाने का आग्रह किया। गृह मंत्री ने भी यह जांच करवाये जाने का आश्वासन दिया था। चुनाव परिणाम आप के पक्ष में आये और पंजाब में उसकी सरकार बन गयी। सरकार बनने के बाद पंजाब के कुछ लोग हिमाचल के मणिकरण और ज्वालामुखी में आये उनके वाहनों पर भिण्डरावाला के फोटो और खालिस्तान के कथित झंडे पाये गये। हिमाचल पुलिस ने इस पर एतराज किया और ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन के शायद मामले बना दिये। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने भी एक ब्यान देकर इस सब की निंदा की और प्रदेश में इसको सहन न करने की बात कही। हिमाचल की इस प्रतिक्रिया पर पंजाब के एन्ट्री स्थलों पर हिमाचल के वाहनों को रोक दिया गया। यही नहीं सिक्खों की शीर्ष संस्था सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने मुख्यमंत्राी जयराम ठाकुर को एडवोकेट हरजिंदर सिंह के माध्यम से नोटिस भेज दिया। ब्यान वापस लेने और अफसोस जताने की मांग कर दी। बात यहीं नहीं रुकी खालिस्तान के गुरु यशवंत सिंह ने मुख्यमंत्री को सीधे धमकी दे दी कि 29 अप्रैल को वह शिमला में खालिस्तान का झंडा फहरायेंगे। पन्नू का धमकी का वीडियो वायरल हो चुका है। पूरा प्रदेश इसकी निंदा और विरोध करते हुये मुख्यमंत्री के साथ खड़ा हो गया है। एन्टी टैरेरिस्ट फ्रन्ट के अध्यक्ष वीरेश शांडिल्य ने ब्यान जारी करके इस धमकी की कड़ी निंदा करते हुये गृह मंत्री से मांग की है कि सरकार भिण्डरावाला का स्टेटस बताये कि वह आंतकवादी थे या नहीं। क्या उनका फोटो लगाना प्रतिबंधित है। स्मरणीय है कि इस आश्य की आर टी आई कई बार पहले भी डाली गयी है और यह पूछा गया है कि भिण्डरावाला संत थे या आतंकी। लेकिन इनका जवाब कभी नहीं आया है। केंद्रीय सूचना आयुक्त ने यह आर टी आई पंजाब सरकार को भेज दी थी परंतु जवाब नहीं आया है। बल्कि लखीमपुर खीरी में भी एक प्रोटेस्टर की टी-शर्ट पर भिण्डरावाला का फोटो देखा गया था। 2003 में अकाल तख्त ने भिंडरावाला को शहीद घोषित कर दिया था। कुछ उन्हें आदर्श मानते हैं। भाजपा नेता डॉ. स्वामी उन्हें आतंकी नहीं मानते हैं। खरड निवासी नवदीप गुप्ता ने भिण्डरावाला पर आरटीआई डाली थी कि वह आंतकी थे या नहीं। इसका जवाब सरकार ने नहीं में दिया है। यही नहीं 2001 में जब संघ प्रमुख सुदर्शन जी और भाजपा नेता ए आर कोहली दमदमी टकसाल जाकर भिण्डरावाला के उत्तराधिकारी को मिले थे तब उन्होंने इस पर अफसोस जाहिर किया था। कुल मिलाकर आज भी सरकार इस पर स्पष्ट नहीं है कि भिंडरावाला को आतंकी माना जाये या शहीद संत।
यह चर्चा इसलिये आवश्यक हो जाती है कि हिमाचल की घटना के बाद प्रदेश की आप इकाई ने उसे शरारती तत्वों का कृत्य बताया था। लेकिन हिमाचल के वाहनों को रोके जाने पर पंजाब सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है। जबकि प्रदेश के मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया पर बात पन्नू की धमकी तक आ गयी है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक हो जाता है कि जब तक सरकार की ओर से भिण्डरावाला का स्टेटस स्पष्ट नहीं कर दिया जाता है तब तक उनके फोटो को लेकर ऐतराज़ कैसे उठाया जा सकता है। बल्कि इस समय पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री सर्वपल्ली सरदार बेअन्त सिंह के हत्यारे बलवंत सिंह राजोआना की दया याचिका पर 30 अप्रैल तक फैसला लेने के निर्देश सर्वाेच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को दिये हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि जब पंजाब में अकाली- भाजपा सरकार थी तब राजोआना की फांसी को यह कहकर टाल दिया गया कि इससे कानून और व्यवस्था का सवाल खड़ा हो जायेगा। अमरिंदर के शासन में यह मामला लटका रहा। इस संद्धर्भ में यह देखना दिलचस्प होगा कि अब केंद्र इस पर क्या फैसला लेता है। क्योंकि इस सब का संबंध आतंकवाद के प्रति हमारी धारणा का घोतक हो जाता है। इस समय प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस का विकल्प बनकर आप आने का दावा कर रही है। इस दावे के परिपेक्ष में आप के खालिस्तान के साथ परोक्ष और अपरोक्ष रिश्तों को लेकर उठते सवालों को नजर में रखना आवश्यक हो जाता है।

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