Thursday, 18 September 2025
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क्या यह आयोजन सरकार और संगठन की एकजुटता का संदेश दे पाया है?

  • हाईकमान के किसी भी बड़े नेता का न आना सवालों में
  • विपक्ष ने काला चिट्ठा सौंपकर खोला मुद्दों का पिटारा

शिमला/शैल। सुक्खू सरकार ने सत्ता में दो वर्ष पूरे होने पर बिलासपुर में राज्य स्तरीय रैली का आयोजन किया है। इस रैली में तीस हजार लोगों के आने का लक्ष्य तय किया था। इस लक्ष्य के आईने में यह रैली बहुत सफल रही मानी जा सकती है। फिर इन दो वर्षों में सुक्खू सरकार जिस तरह के राजनीतिक वातावरण का सामना करते हुए इस मुकाम तक पहुंची है उसके आईने में भी इस आयोजन को एक सफल आयोजन करार दिया जा सकता है। लेकिन क्या इस रैली के बाद कांग्रेस संगठन और कांग्रेस सरकार अपने कार्यकर्ताओं तथा रैली में आई हुई जनता को अपनी एकजुटता का सन्देश दे पाये हैं ? क्या इस आयोजन के बाद विपक्ष के पास सरकार के खिलाफ कोई सवाल नहीं रह गये हैं जिनका जवाब आना शेष हो ? यह सवाल इसलिये महत्वपूर्ण हो जाते हैं क्योंकि इन दो वर्षों में प्रदेश सरकार पहले दिन से ही केन्द्र पर राज्य को वांछित सहयोग न देने का आरोप लगाती आयी है और विपक्ष सरकार को गारंटीयों के नाम पर घेरती आयी है। इस रैली में कांग्रेस हाईकमान की ओर से कोई भी नेता शामिल नहीं हो पाया है जबकि आमन्त्रण सारे शीर्ष नेताओं को था। इस आयोजन के मुख्यअतिथि प्रदेश प्रभारी राजीव शुक्ला थे जबकि यह आयोजन प्रभारी होने के नाते उनके अपने कार्यकलाप की भी परीक्षा था।
इन बिन्दुओं पर यदि इस आयोजन का मूल्यांकन किया जाये तो इस अवसर पर रैली मैदान को लेकर जो सवाल पूर्व मंत्री रामलाल ठाकुर ने उठाये हैं वह अपने में बहुत कुछ ब्यान कर जाते हैं। इस आयोजन में जिस तरह से प्रदेशाध्यक्ष प्रतिभा सिंह को स्टेज पर बोलते हुये रोका गया उससे उन आशंकाओं को स्वतः ही बल मिल जाता है कि होली लॉज को डिसलॉज करने का प्रयास किया जा रहा है। यहां यह उल्लेखनीय हो जाता है कि जब प्रतिभा सिंह ने भाजपा सरकार के कार्यकाल में मण्डी के लोकसभा का उपचुनाव जीता था तो वह स्व.वीरभद्र सिंह की विरासत के नाम पर ही संभव हो पाया था। इसी विरासत के कारण विधानसभा चुनावों के समय भी किसी एक को नेता घोषित नहीं किया गया था। बाद में मुख्यमंत्री पद के लिये शायद सुखविंदर सिंह सुक्खू इसलिये नामित हुये क्योंकि वही एकमात्र नेता थे जो कांग्रेस संगठन की तीनों इकाइयों छात्र, युवा और मुख्य संगठन के अध्यक्ष रह चुके थे। लेकिन सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री पर जिस तरह से अपने ही मित्रों के गिर्द केन्द्रित होकर रह जाने के आरोप लगने शुरू हुये उनके कारण वीरभद्र कार्यकाल में सक्रिय रहे कार्यकर्ता मुख्य धारा से बाहर होते चले गये। लेकिन जिन मित्रों को मुख्यमंत्री आगे लाये वह न तो सरकार में ही कोई महत्वपूर्ण योगदान दे पाये और न ही मुख्यमंत्री के संकट मोचक हो पाये।
इस रैली के बाद अब तक उपेक्षित चले आ रहे कार्यकर्ताओं को स्व. वीरभद्र सिंह के नाम पर इकट्ठे होने का अवसर मिल जायेगा। क्योंकि विपक्ष ने जिस तरह का सौ पन्नों का सरकार का काला चिट्ठा राज्यपाल को सौंपा है उससे भाजपा के हर कार्यकर्ता से लेकर नेता तक हर आदमी के पास सरकार के खिलाफ सवाल उठाने के लिये मैटिरियल मिल जायेगा। क्योंकि इस कच्चे चिट्ठे में लगभग सभी मंत्रियों और विभागों के खिलाफ कुछ न कुछ दस्तावेजी प्रमाणों के साथ दर्ज है। आने वाले दिनों में इस कच्चे चिट्ठे के आरोप हर दिन चर्चा का विषय रहेंगे। यह देखना दिलचस्प होगा कि मुख्यमंत्री के मित्र इस काले चिट्ठे का जवाब कैसे देते हैं। काले चिट्ठे में जिस तरह के आरोप दर्ज हैं उनसे यह संभावना बलवती हो गई है कि शायद कुछ मामलों में सीबीआई तक सक्रिय हो जाये। ई डी पहले ही सक्रिय है। इस परिदृश्य में रैली के भरे मंच से संगठन और सरकार में तीव्र मतभेद होने का खुला संदेश जाना किसी भी गणित से सरकार के लिये हितकर नहीं हो सकता। अब इस मामले की प्रदेश प्रभारी किस तरह की रिपोर्ट हाईकमान के सामने रखते हैं और हाईकमान उसका कैसे संज्ञान लेता है इस पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं। क्योंकि जिस तरह की वित्तीय स्थितियों से प्रदेश गुजर रहा है और प्रधानमंत्री स्वयं इसको मुद्दा बना चुके हैं उसके आईने में इस रैली का औचित्य स्वयं ही सवालों में आ जाता है। नेता प्रतिपक्ष ने इस आयोजन पर सवाल उठाने शुरू कर ही दिये हैं।

राधा स्वामी सत्संग ब्यास के लिये प्रस्तावित लैंड सीलिंग संशोधन पर उठते सवाल

  • क्या दान में मिली जमीनों को दानकर्ता की सहमति के बिना बेचा जा सकता है?
  • राधा स्वामी सत्संग ब्यास को कृषक का दर्जा हासिल होने के बाद क्या वह सामान्य कृषक की तरह जमीन खरीद-बेच सकता है।

शिमला/शैल। पिछले दिनों राधा स्वामी सत्संग ब्यास द्वारा हमीरपुर के भोटा में संचालित अस्पताल का प्रकरण चर्चा में आया है। इस अस्पताल के प्रबंधन ने सरकार से आवेदन किया था कि इस अस्पताल की जमीन को उनके सहयोगी संस्था महाराज जगत मेडिकल रिलीफ सोसाइटी को ट्रांसफर कर दिया जाये। क्योंकि इसके कारण राधा स्वामी सत्संग ब्यास को 2.5 करोड़ का वार्षिक जीएसटी अदा करना पड़ रहा है। जबकि अस्पताल लगभग निःशुल्क सेवा कर रहा है। राधा स्वामी सत्संग ने यह भी कह दिया था कि यदि ऐसा नहीं होता है तो वह पहली दिसम्बर से अस्पताल को बन्द कर देंगे। राधा स्वामी सत्संग के इस कथन पर स्थानीय जनता की तीव्र प्रतिक्रियाएं आयी। हमीरपुर के कई स्थानों पर जनता ने यातायात बाधित कर दिया। लोगों की इस प्रतिक्रिया के बाद सरकार ने वस्तुस्थिति का संज्ञान लिया। मुख्यमंत्री ने पहली दिसम्बर को बैठक बुलाई और उसके बाद घोषित किया कि विधानसभा के आगामी सत्र में इसके लिए लैंड सीलिंग एक्ट में संशोधन लाया जायेगा। इस प्रस्तावित संशोधन का मसौदा मंत्रिमण्डल की आगामी बैठक के लिये जा चुका है। इस प्रस्तावित संशोधन के आगे चलकर क्या प्रभाव पड़ेंगे यह देखना आवश्यक हो जाता है।
लैंड सीलिंग एक्ट प्रदेश में 1974 में पारित हुआ और 1971 से लागू हुआ। इस एक्ट के मुताबिक प्रदेश में कोई भी व्यक्ति सिंचाई वाली जमीन पचास बीघा एक फसल देने वाली पचहतर बीघा, बगीचा डेढ़ सौ बीघा जमीन रख सकता है। जनजातीय क्षेत्रों में यह सीमा 350 बीघा है। यदि किसी के पास सारी जमीन पत्थर खड्ड़े या ढॉक आदि जो फसल के नाम पर जमीन की परिभाषा में ही न आती हो तो भी वह 30 स्टैंडर्ड एकड़ अर्थात 316 कनाल या 161 बीघा से अधिक जमीन का मालिक नहीं हो सकता। एक्ट के अनुसार सीलिंग से अधिक जमीन केवल सरकार, राज्य और केंद्र या सरकारी सभाएं ही रख सकती हैं। लेकिन सरकारों ने इस एक्ट में समय-समय पर संशोधन भी किये हैं। भोटा में राधा स्वामी सत्संग ब्यास ने 1990-91 में अस्पताल खोलने की योजना बनायी। उस समय जुलाई 1991 में शांता कुमार ने इन्हें कृषक का दर्जा प्रदान कर दिया। क्योंकि प्रदेश में कई ग्राम मन्दिरों को यह दर्जा इसलिये हासिल था क्योंकि मन्दिर पर आश्रित परिवार उस जमीन पर खेती करके अपना गुजर बसर करता था। लेकिन राधा स्वामी सत्संग ब्यास को दान में मिली जमीनों पर डेरे के लोग स्वयं खेती नहीं करते थे। विधानसभा में एक प्रश्न के उत्तर में जानकारी आयी हुई है कि 2015-16 में 208 स्थानों पर लोगों से 65 एकड़ जमीन दान में मिली है। प्रदेश में इस समय राधा स्वामी सत्संग ब्यास के 900 से ज्यादा सत्संग घर है और 6000 बीघा से ज्यादा जमीन है तथा हजारों प्रदेश में इसके अनुयायी हैं। जिनके वोट हर राजनीतिक दल को चाहिये।
इसलिये 1990-91 में इसे कृषक का दर्जा प्रदान कर दिया गया। उसके बाद धूमल सरकार में धार्मिक और शैक्षणिक संस्थाओं को सीलिंग के दायरे से बाहर कर दिया गया। वीरभद्र सरकार में भी यह छूट जारी रही और यह शर्त लगा दी गई कि यह अपने मूल उद्देश्य से बाहर नहीं जाएंगे। अब हिमाचल में राधा स्वामी सत्संग के पास करीब 6000 बीघा जमीन है जो दान में मिली है। इस जमीन पर कृषक का दर्जा हासिल होने के बाद कोई भी कृषक जमीन की खरीद बेच का पात्र हो जाता है। फिर दूसरे संशोधन में सीलिंग की सीमा से ही बाहर हो गये। लेकिन क्या इन संशोधनों के माध्यम से यह जमीन बेचना आसान हो जायेगा? शायद नहीं क्योंकि डेरे के सेवक स्वयं इन जमीनों के काश्तकार नहीं है और न ही इस पर निर्भर हैं। ऐसे में डेरे के सामने यह बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि वह इस 6000 बीघा जमीन का क्या करें। इसलिये यदि अब सुक्खू सरकार भोटा अस्पताल की जमीन महाराज जगत सिंह मेडिकल रिलीफ सोसाइटी को ट्रांसफर करने का संशोधन पारित कर देती है तो फिर प्रदेश में जिन उद्योगों, विद्युत परियोजनाओं, विश्वविद्यालयों के पास सीलिंग से अधिक जमीन है वह सब भी ऐसी ट्रांसफर की मांग करेंगे और उन्हें इन्कार करना कठिन हो जायेगा। लेकिन राधा स्वामी प्रकरण में भी यह जमीने दान में मिली होने से यह प्रश्न उठेगा की दानकर्ता की सहमति के बिना इन जमीनों का कुछ नहीं किया जा सकता। अब देखना है कि सुक्खू सरकार इसका कैसे हल निकलती है क्योंकि 2014 में सीलिंग एक्ट में छूट देते हुये यह राईडर लगा दिया गया था कि इन जमीनों को सेल, लीज, गिफ्ट या मार्टगेज नहीं किया जा सकता। यदि सरकार इन सारी बंदिशो को हटा देती है तब सरकार पर हिमाचल ऑन सेल का आरोप लगना शुरू हो जायेगा।
वैसे सुक्खू सरकार ने 2023 में भी लैंड सीलिंग एक्ट में संशोधन करके बेटियों को हक देने का प्रावधान किया है। परन्तु यह संशोधन करने से पहले यहां डाटा नहीं जुटाया की 1971 से प्रदेश में सीलिंग एक्ट लागू होने के बाद भी आज प्रदेश में कितने लोग हैं जिनके पास सीलिंग की सीमा 316 कनाल से ज्यादा जमीन है। इन लोगों पर सीलिंग लागू क्यों नहीं हो सकी? क्या कुछ लोगों ने सीलिंग को अंगूठा दिखाते सीमा से अधिक जमीन खरीद रखी है। इसमें संबंधित प्रशासन क्या करता रहा। यह सारे सवाल उस समय जवाब मांगेगे जब यह संशोधन राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद राजपत्र में अधिसूचित हो जायेगा। क्योंकि 316 कनाल से ज्यादा किसी भी किस्म की जमीन प्रदेश में कोई नहीं रख सकता है।

पूर्व छः सीपीएस की विधायकी पर संशय बरकरार

  • हिमाचल सरकार ने दो बार एक्ट पारित करके संविधान संशोधन की काट निकालने का प्रयास किया
  • असम के साथ हिमाचल की एसएलपी टैग होने और फैसला आ जाने की जानकारी के बाद हुई यह नियुक्तियां
शिमला/शैल। क्या पूर्व मुख्य संसदीय सचिवों की विधायकी बच पायेगी? यह सवाल सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा हिमाचल उच्च न्यायालय के फैसले के पैराग्राफ 50 के तहत अगली कारवाई पर लगाई गयी रोक के बाद चर्चा का विषय बना हुआ है। सर्वाेच्च न्यायालय में अगली सुनवाई 20 जनवरी को होगी और तब तक विधायकी सलामत रहेगी। लेकिन क्या होता है यह देखना रोचक होगा। संविधान में 2003 में 91वां संशोधन होने के बाद मंत्रिमण्डलों में मंत्रियों की सीमा तय कर दी गयी थी। जिसके तहत हिमाचल में यह संख्या बारह से अधिक नहीं हो सकती। लेकिन हिमाचल सरकार ने इस संविधान संशोधन के बाद मुख्य संसदीय सचिव और संसदीय सचिव बनने का अधिनियम पारित करके पांच मुख्य संसदीय सचिव और तीन संसदीय सचिव नियुक्त कर लिये। इन नियुक्तियों को सिटीजन प्रोटेक्शन फॉर्म के संयोजक देशबंधु सूद ने उच्च न्यायालय में चुनौती दे दी। जिस पर 18 अगस्त 2005 को फैसला आया। जिसमें नियुक्तियों को असंवैधानिक ठहराते हुये रद्द कर दिया। हिमाचल सरकार ने इस फैसले के खिलाफ सर्वाेच्च न्यायालय में एसएलपी दायर कर दी। परन्तु इसका फैसला आने से पहले ही 2006 में मुख्य संसदीय सचिव और संसदीय सचिव नियुक्त करने का फिर से एक्ट पारित कर लिया। इस एक्ट के तहत भी मुख्य संसदीय सचिव और संसदीय सचिव नियुक्त हुये। फिर इस एक्ट को भी प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती मिल गयी। इसी बीच उच्च न्यायालय के पहले फैसले के खिलाफ दायर की गयी एसएलपी असम के मामले के साथ टैग हो गयी। इस पर जुलाई 2017 में फैसला आया और सर्वाेच्च न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि राज्य विधायिका ऐसा एक्ट पारित करने के लिये सक्षम ही नहीं है। उधर इस आश्य का जो एक्ट दूसरी बार पारित किया गया था और उसको उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा चुकी थी उसकी सुनवाई आ गयी। इस पर सरकार ने शपथ पत्र देकर कहा है कि यदि ऐसी नियुक्तियां करने की कोई स्थिति आये तो उच्च न्यायालय से पूर्व अनुमति लेकर ऐसा किया जायेगा। यह सब जयराम सरकार के शुरुआती दिनों में ही हो गया इसलिए इस सरकार में ऐसी नियुक्तियां नहीं हो पायी। अब यह स्पष्ट हो जाता है कि हिमाचल सरकार ने संविधान के 91वें संशोधन की काट के लिए दो बार मुख्य संसदीय सचिव और संसदीय सचिव नियुक्त करने के लिए एक्ट पारित किये। दूसरी बार पारित किए गये एक्ट को जब उच्च न्यायालय में चुनौती मिल गई तो शपथ पत्र देकर अदालत से पूर्व अनुमति लेने की बात कर दी। इस तरह जब सुक्खू सरकार ने यह नियुक्तियां की तो उसे यह जानकारी थी कि असम के साथ ही हिमाचल की एसएलपी टैग हो गयी थी और उस पर फैसला आ गया था कि राज्य विधायिका ऐसा एक्ट बनाने के लिए सक्षम ही नहीं है। यह भी इस सरकार की जानकारी में था कि जिस एक्ट के तहत वह यह नियुक्तियां करने जा रही है उसे उच्च न्यायालय में चुनौती मिल चुकी है। यह भी संज्ञान में था कि सरकार ने उच्च न्यायालय से पूर्व अनुमति लेने की बात कह रखी है। ऐसे में अब यदि सर्वाेच्च न्यायालय के संज्ञान में यह आ गया की 91वें संविधान संशोधन को अंगूठा दिखाने के लिये राज्य सरकार बार-बार प्रयास कर रही है। तब स्थिति का कड़ा संज्ञान लेकर इनकी विधायकी पर भी आंच आ सकती है। अब हिमाचल का मामला दूसरे राज्यों के साथ टैग हो गया तो संभव है कि यह मामले संविधान पीठ के पास जायें ताकि इस तरह की स्थिति फिर किसी राज्य में न आये। कई राज्यों ने संविधान संशोधन के बाद ऐसे एक्ट बना रखे हैं। आठ उच्च न्यायालय तो इन्हें निरस्त कर चुके हैं। इसलिये सर्वाेच्च न्यायालय पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं।

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