शिमला/शैल। दिल्ली विधानसभा चुनावों में भी हिमाचल सरकार के फैसले कांग्रेस को घरने के लिये चर्चा का विषय बनेंगे। ऐसा पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर के ब्यानों से सामने आया है। हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभाओं के चुनावों में भी हिमाचल सरकार के फैसले चर्चा में रहे हैं। बल्कि कांग्रेस की हार का एक बड़ा कारण माने गये थे। अब सुक्खू सरकार ने शौचालय शुल्क लगाकर और बिजली की सब्सिडी छोड़ने के फैसलों से अपने को फिर चर्चा का विषय बना दिया है। क्योंकि कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में 300 यूनिट बिजली मुफ्त देने की गारंटी दी थी। यह गारंटी अभी लागू नहीं हुई है। लेकिन इसके पहले ही सब्सिडी छोड़ने का ऐलान करके दूसरे समर्थ लोगों से ऐसा करने का आग्रह किया है। जब 300 यूनिट बिजली मुफ्त देना शुरू ही नहीं हुई है तो इस पर सब्सिडी छोड़ने का प्रश्न ही नहीं आता। जब तक 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने पर अमल नहीं हो जाता तब तक सब्सिडी छोड़ने के फैसले का कोई औचित्य ही नहीं बनता। इस समय 125 यूनिट बिजली मुफ्त देने का जयराम कार्यकाल का फैसला ही लागू है। 125 यूनिट तक ही उपभोक्ता सब्सिडी के पात्र हैं। 125 यूनिट से ज्यादा खपत करने वाले स्वतः ही सब्सिडी से बाहर हो जाते हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री और दूसरे मंत्रियों द्वारा सब्सिडी छोड़ने का फैसला अपने में ही चर्चा का विषय बन गया है। बल्कि इससे नेता प्रतिपक्ष का यह आरोप की यह सरकार 125 यूनिट बिजली मुफ्त दिए जाने के पूर्व सरकार के फैसले को भी बन्द करने जा रही है। इसलिए यह फैसला निश्चित रूप से चुनाव के दौरान विपक्ष के पास सरकार को घेरने का एक बड़ा हथियार बन जाता है।
इस समय प्रदेश के अस्पतालों में सरकार की मुफ्त इलाज योजनाओं के लिये दवा सप्लायरों ने सप्लाई बन्द कर रखी है। विपक्ष यह आरोप काफी समय से लगाता चला आ रहा है। आरोप है कि सप्लायरों के करोड़ों के बिल भुगतान के लिये रुके पड़े हैं। कर्मचारियों के प्रतिपूर्ति के बिल रुके पड़े हैं। लोक निर्माण और अन्य विभागों में ठेकेदारों को भुगतान नहीं हो पा रहा है। आउटसोर्स पर भर्ती किये गये हजारों कर्मचारियों को बाहर कर दिया गया है। स्वास्थ्य और बिजली बोर्ड में प्रभावित कर्मचारी आन्दोलन की राह पर आ गये हैं। उच्च न्यायालय ने आउटसोर्स भर्ती के लिये चयनित कंपनियों की पात्रता पर ही गंभीर सवाल खड़े कर दिये हैं। कर्मचारी चयन आयोग द्वारा ली गयी परीक्षाओं के परिणाम सरकार के दावों के बावजूद अभी तक घोषित नहीं हो पाये हैं। मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों के दावों पर अब आम आदमी प्रश्न खड़े करने लग गया है। इसी सबके साथ जिस तरह से पानी की सप्लाई करने के लिये ठियोग में टैंकर घोटाला घटा है उससे सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने शुरू हो गये हैं। क्योंकि इस पानी की सप्लाई का सारा जिम्मा एस.डी.एम. ठियोग के पास था। उन्होंने ही इसके लिये सारी प्रक्रिया को अंजाम दिया। एस.डी.आर.एफ. का पैसा भी एस.डी.एम. के पास आया और भुगतान भी वहीं से हुआ। इस संबंध में शिकायत भी एस.डी.एम. के पास ही आयी। आई.पी.एच. के लोगों ने तो सिर्फ सप्लाई के आंकड़े दर्ज करने का ही काम किया। लेकिन इसमें कारवाई आई.पी.एच. के दस इंजीनियरों के खिलाफ हो गयी। एस.डी.एम. कार्यालय का कारवाई में जिक्र तक नहीं आया। ऐसे में आई.पी.एच. के लोग देर सवेर बहाल हो जायेंगे और सारा काण्ड इसी में दब कर रह जायेगा। यह चर्चा चल पड़ी है कि मुख्य किरदारों को बचाने के लिये कारवाई को यह मोड़ दिया गया है। इस तरह सरकार के फैसले और भ्रष्टाचार का यह मामला सब कुछ दिल्ली के चुनाव में एक बड़ा सवाल बनकर सामने आने वाला है।
शिमला/शैल। स्टेट विजिलैन्स ने ऊना में युद्ध चन्द बैंस के खिलाफ अपराध संहिता की धाराओं 420, 468, 471, 120 बी और पी सी एक्ट 2018 की धारा 13 (1) ए/13(2)के तहत मै. हिमाचल स्नो विलेज और होटल लेक पैलेस के मालिक युद्ध चन्द बैंस और कांगड़ा केन्द्रीय सहकारी बैंक के अधिकारियों/कर्मचारियों पर आपराधिक मामला दर्ज किया है। यह मामला दर्ज करने के लिये भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 17A के तहत सचिव सहकारिता से अनुमति ली गयी है और उनकी शिकायत पर जांच के बाद मामला दर्ज किया गया है। आरोप है की बैंस ने बैंक से कई ऋण लिये और बैंक अधिकारियों ने स्वयं की ऋण नीतियों के साथ-साथ आर.बी.आई. और नाबार्ड के दिशा निर्देशों का उल्लंघन करते हुये 20 करोड़ का ऋण सीधे उधारकर्ता को वितरित कर दिया। यह मामला दर्ज होने के बाद बैंस को इसमें अग्रिम जमानत मिल गयी है और वह ऊना में विजिलैन्स के यहां पेश भी हो आये हैं। ऊना में विजिलैन्स के यहां पेश होने के बाद बैंस ने वहां पर एक पत्रकार वार्ता को भी संबोधित किया है। इस पत्रकार वार्ता में उन्होंने स्पष्ट किया कि यह ऋण लेने देने में नियमों की कोई अनदेखी नहीं हुई है। उन्होंने स्पष्ट किया कि वह मण्डी और मनाली में होटल निर्माण में लगे हुये हैं। मनाली में उनके पास 25 बीघा जमीन है। जिसकी कीमत वैल्यूएटर के मुताबिक 167 करोड़ है और यह कीमत प्रदेश उच्च न्यायालय में भी सौंपी हुई है। बैंस ने आरोप लगाया कि इस जमीन पर बैंक के ही कुछ लोगों की नजर लग गई और वह इसको कम कीमत पर नीलाम करने का षडयन्त्र रचने लग गये। बैंस ने यह पत्रकार वार्ता में खुलासा किया कि उन्होंने मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार, प्रधान निजी सचिव, बैंक के चेयरमैन और खनन व्यवसायी ज्ञानचन्द और अन्य के खिलाफ ई.डी. को शिकायत सौंपी है और उनकी शिकायत पर कारवाई करते हुये ज्ञानचन्द और संजय के गिरफ्तारी हुई है। इन लोगों को जेल से निकालने के लिये उन पर यह शिकायत वापस लेने का दबाव बनाया जा रहा है। बैंस को केन्द्र की सी.आर.पी.एफ से सुरक्षा भी हासिल है इसी से यह स्पष्ट हो जाता है कि वह ई.डी. में शिकायतकर्ता है और उन पर दबाव भी डाला जा रहा होगा। बरहाल यह मामला अभी जांच में है इसलिये इस पर कुछ ज्यादा कहना सही नहीं होगा।
लेकिन इस सारे प्रकरण से जुड़े घटनाक्रम पर नजर डालना आवश्यक हो जाता है। इसमें बैंस के ऋण मामले की ही बात करें तो यह ऋण स्व. वीरभद्र और फिर जय राम सरकार के कार्यकाल में हुए हैं। बैंस पत्रकार वार्ता में स्वयं कह रहे हैं कि उन्हें कांगड़ा सहकारी बैंक में जाने की सलाह स्व.वीरभद्र सिंह ने दी थी। जयराम सरकार भी 2017 में आ गई थी। सुक्खू सरकार को आये भी दो वर्ष हो गये हैं। सुक्खू सरकार में सहकारी बैंक सहकारिता विभाग से निकाल कर के वित्त विभाग के सुपुर्द कर दिये गये हैं। अब 2025 में यह आरोप लग रहा है कि ऋण देने में नियमों की अनदेखी हुई है। यदि सही में कोई अनदेखी हुई तो उस पर संबंद्ध प्रबंधन के खिलाफ कोई कारवाई क्यों नहीं हुई? सुक्खू सरकार को भी कारवाई करने का फैसला लेने में दो वर्ष का समय क्यों लग गया? फिर जब सहकारी बैंक अब वित्त विभाग के अधीन है तो इसमें 17 ए की अनुमति सचिव वित्त की बजाये सचिव सहकारिता से क्यों ली गयी? जब कानून की नजर से कारवाई की अनुमति ही प्रश्नित हो जाती है तो शिकायत के बाकी आधार कैसे पुख्ता मान लिये जायें यह बड़ा सवाल खड़ा हो जाता है।
ई.डी. और आयकर ने हमीरपुर और नादौन में छापेमारी की ही है बल्कि दो बार यह टीम में आयी हैं। इस छापेमारी के बाद दो लोगों की गिरफ्तारियां भी हुई हैं। दो लोग फरार चल रहे कहे जा रहे हैं और उनकी गिरफ्तारी कभी भी हो जाने की तलवार लटकी हुई है। स्वभाविक है कि इस छापेमारी का कोई तो शिकायतकर्ता रहा होगा। ऐसे में जब युद्ध चन्द बैंस स्वंय को शिकायतकर्ता बता रहा है तो यह मानना ही होगा। क्योंकि बैंस का ऋण मामला पुराना है इस मामले में नियमों की अनदेखी को लेकर तो अब तक बैंक के कई लोगों को सजा मिल जानी चाहिये थी लेकिन ऐसा हुआ नहीं है। फिर बैंस अपने ऋण के बदले 167 करोड़ की जमीन की चर्चा कर रहा है। यदि बैंस का यह कहना सही है तो यह फिर बैड लोन की श्रेणी में कैसे। जब तक पूरी जांच में बैंस के दावे गलत नहीं पाये जाते हैं तब तक बैंस के खिलाफ दर्ज हुये मामले को दबाव की ही राणनीति का हिस्सा मानकर देखा जायेगा। इस एफ.आई.आर के बाद ई.डी. पर भी स्वभाविक दबाव आयेगा कि वह भी अपने यहां दर्ज मामले को जल्द से जल्द अन्तिम निर्णय तक ले जाये। बैंस के खुलासे के बाद यह देखना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि क्या सही में उसे शिकायत वापस लेने के लिये इस तरह की ऑफर की गयी थी।
शिमला/शैल। सुक्खू सरकार ने रेरा में अध्यक्ष और सदस्यों के पद भरने के लिये प्रक्रिया शुरू कर दी है। इसके लिये पात्र सदस्यों से 23 जनवरी तक आवेदन आमंत्रित किए गये हैं। पूर्व में सेवानिवृत आई.ए.एस. अधिकारी ही इन पदों के लिये चयनित होते रहे हैं और इस बार भी इसमें कोई अपवाद होने की संभावना कम ही है। लेकिन सेवा अधिकारियों के विजिलैन्स क्लीयरैन्स के लिये जो दिशा-निर्देश जारी किये हैं उनके परिदृश्य में कुछ वरिष्ठ अधिकारियों को विजिलैन्स क्लीयरैन्स हासिल करना कठिन हो सकता है। इन निर्देशों के मुताबिक विजिलैन्स मामले झेल रहे अधिकारियों के लिये इन पदों के चयन के दायरे में आ पाना कठिन होगा। बल्कि इन निर्देशों के अनुसार ऐसे मामले झेल रहे अधिकारी तो संवेदनशील पदों पर भी नियुक्त नहीं किये जा सकते। ऐसे अधिकारियों को पुनः नियुक्ति देना संभव ही नहीं है। फिर रेरा के अध्यक्ष और सदस्यों के चयन में प्रदेश उच्च न्यायालय का भी दखल है।
यह है भारत सरकार के दिशा- निर्देश
संख्या. 104/33/2024-एवीडी-।(ए)
भारत सरकार
कार्मिक, लोक शिकायत तथा पेंशन मंत्रालय
कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग
नॉर्थ ब्लॉक, नई दिल्ली
दिनांकित: 9 अक्टूबर 2024
कार्यालय ज्ञापन
विषय:- अखिल भारतीय सेवा अधिकारियों तथा केंद्रीय सिविल सेवाओं/केंद्रीय सिविल पदों को 'सतर्कता निकासी’ प्रदान करने के संबंध में संशोधित दिशानिर्देश।
कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने अ.भा.से. अधिकारियों तथा केंद्रीय सिविल सेवाओं/केंद्रीय सिविल पदों को सतर्कता निकासी प्रदान करने के संबंध में समय-समय पर अनुदेश/दिशानिर्देश जारी किए हैं। बेहतर समझ और मार्गदर्शन के लिए उक्त दिशानिर्देशों को यथासंशोधित करने का प्रयास किया गया है।
भाग क- अखिल भारतीय सेवा अधिकारियों को सतर्कता निकासी प्रदान करना
2. ये आदेश निम्नलिखित के संबंध में सतर्कता निकासी हेतु लागू होंगे:
i. प्रस्ताव सूची में समावेशन
ii. पैनलबद्धकरण
iii.भारत बाह्य अध्ययन छुट्टी
iv.अंतर-संवर्ग स्थानांतरण और उसके विस्तार के मामले
v.अंतर-संवर्ग प्रतिनियुक्ति और उसके विस्तार सहित कोई भी प्रतिनियुक्ति
vi.संवेदनशील पदों पर नियुक्तियां
vii. अनिवार्य प्रशिक्षण को छोड़कर प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए असाइनमेंट
viii. सेवा में स्थायीकरण
ix.वीआरएस पर सेवानिवृत्ति, जहां केंद्र सरकार मामले पर विचार करने के लिए सक्षम प्राधिकारी है
x.सेवानिवृत्ति के पश्चात वाणिज्यिक रोजगार
xi.समयपूर्व प्रत्यावर्तन (स्वैच्छिक)
इन सभी मामलों में कोई भी निर्णय लिए जाने से पहले सतर्कता की स्थिति को सक्षम प्राधिकारी के समक्ष रखा तथा उसके द्वारा उस पर विचार किया जा सकता है।
3. निम्नलिखित आधारों पर सतर्कता निकासी से इनकार किया जाएगा:
(क)(I) अधिकारी के विरूद्ध कोई शिकायत प्राप्त हुई है और कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के दिनांक 09.10.2024 के कार्यालय ज्ञापन संख्या 104/76/2024-एवीडी-आईए के पैरा 6 मंत्रालयों/विभागों/संगठनों/राज्य सरकारों में शिकायतों के निपटान के संबंध में समेकित दिशानिर्देश; में यथाअनुबंधित अथवा संबंधित सरकार के पास पहले से ही मौजूद किसी भी ऐसी सूचना के आधार पर संबंधित सरकार द्वारा कम से कम प्रारंभिक जांच के आधार पर यह संस्थित हो गया है कि किसी अधिकारी के कृत्यों के बारे में सत्यापन योग्य आरोपों के लिए ऐसे प्रथम दृष्टया ठोस आधार हैं जिसमें सतर्कता की दृष्टि शामिल है। जैसे:
(i) भ्रष्टाचार, जिसमें किसी आधिकारिक कार्य के संबंध में अथवा किसी अन्य अधिकारी के साथ अपने प्रभाव का उपयोग करके कानूनी पारिश्रमिक के अलावा अन्य परितोषण की मांग करना और/अथवा स्वीकार करना शामिल है; अथवा किसी मूल्यवान वस्तु को बिना किसी विचार के अथवा किसी ऐसे व्यक्ति से अनुचित विचार के साथ प्राप्त करना, जिसके साथ उसका आधिकारिक व्यवहार है अथवा होने की संभावना है अथवा उसके अधीनस्थों का आधिकारिक व्यवहार है अथवा जहां वह प्रभाव डाल सकता है; अथवा भ्रष्ट या अवैध तरीकों से अथवा लोक सेवक के रूप में अपने पद का दुरूपयोग करके स्वयं के लिए या किसी अन्य व्यक्ति के लिए कोई मूल्यवान वस्तु अथवा आर्थिक लाभ प्राप्त करना।
(ii) आय के ज्ञात स्रोतों से असंगत परिसम्पत्ति का होना
(iii) दुर्विनियोजन, जालसाजी अथवा धोखाधड़ी अथवा अन्य समान आपराधिक अपराधों के मामलों में संलिप्तता
(iv) नैतिक अधमता
(v) अ.भा.से. आचरण नियमावली, 1968 का उल्लंघन
(II) सतर्कता निकासी तभी प्रदान की जाएगी जब प्रारंभिक जांच, यदि आवश्यक हो, और जैसा कि ऊपर (I) में परिकल्पित है, शिकायत प्राप्त होने की तारीख से तीन माह के भीतर संबंधित सरकार द्वारा शुरू नहीं की जाती है, अथवा यदि प्रारंभिक जांच शुरू होने के बाद तीन माह से अधिक समय तक पूरी हुई बिना लंबित रहती है।
(ख) अधिकारी निलंबित है।
(ग) अधिकारी का नाम सहमत सूची में है बशर्ते कि ऐसे सभी मामलों में एक वर्ष की अवधि के बाद स्थिति का अनिवार्य रूप से पुनरीक्षण किया जाएगा।
(घ) आरोप पत्र जारी होने के साथ अनुशासनिक प्राधिकारी के अनुमोदन के अनुसार अधिकारी के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू कर दी गई है और कार्यवाही लंबित है।
(ङ) अधिकारी के विरुद्ध आपराधिक मामला संस्थापित करने अथवा छानबीन/पूछताछ/जांच की स्वीकृति के आदेश अनुशासनिक प्राधिकारी/सरकार द्वारा अनुमोदित कर दिए गए हैं और आरोप पत्र तीन माह के भीतर तामील कर दिया गया है।
(च) जांच अभिकरण द्वारा किसी आपराधिक मामले में न्यायालय में आरोपपत्र दायर कर दिया गया है और मामला लंबित है।
(छ) सक्षम प्राधिकारी द्वारा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (2018 में यथासंशोधित) अथवा किसी अन्य आपराधिक मामले के तहत अभियोजन की संस्वीकृति प्रदान कर दी गई है और मामला ट्रायल कोर्ट में लंबित है।
(ज) अधिकारी, भ्रष्टाचार के आरोपों में एक ट्रेप/छापे के मामले में संलिप्त है और जांच लंबित है।
(झ) किसी निजी शिकायत के आधार पर दर्ज की गई प्राथमिकी पर जांच के पश्चात, जांच अभिकरण द्वारा अधिकारी के विरुद्ध न्यायालय में आरोप पत्र दायर किया गया है।
(ञ) संबंधित सरकार द्वारा अधिकारी के विरुद्ध प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज की गई है अथवा मामला पंजीकृत किया गया है, बशर्ते कि आरोप पत्र प्राथमिकी/मामला दर्ज करने/पंजीकृत करने की तारीख से तीन माह के भीतर तामील कर दिया गया हो।
(ट) अधिकारी अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियमावली, 1968 के नियम 16 के तहत यथापेक्षित मौजूदा वर्ष की 31 जनवरी तक पिछले वर्ष की वार्षिक अचल संपत्ति विवरणी (रिटर्न) जमा करने में विफल रहता है।
(ठ) ऐसे मामलों में जहां किसी अधिकारी पर लघु शास्ति लगाई गई है, शास्ति की अवधि जारी रहने के पश्चात तीन वर्ष तक की अवधि के लिए सतर्कता निकासी नहीं दी जाएगी। ऐसे मामलों में जहां किसी अधिकारी पर बड़ी शास्ति लगाई गई है, दंड जारी रहने की अवधि के पश्चात पांच वर्ष की अवधि के लिए सतर्कता निकासी नहीं दी जाएगी। शास्ति जारी रहने के पश्चात अधिकारी के प्रदर्शन पर बारीकी से नजर रखी जानी चाहिए और यदि अधिकारी का नाम सहमत सूची अथवा ओडीआई सूची में सम्मिलित किया जाता है तो सतर्कता निकासी से इनकार किया जाता रहेगा।
4. सक्षम प्राधिकारी द्वारा निम्नलिखित स्थितियों में प्रयोजन की संवेदनशीलता, आरोपों/अभियोगों की गंभीरता और तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए मामला दर मामला सतर्कता निकासी का निर्णय लिया जाएगा:
(क) जहां किसी आपराधिक मामले में अधिकारी के विरूद्ध किसी भी जांच अभिकरण द्वारा की गई पूर्व-अन्वेषण जांच, तीन महीने से अधिक समय तक लंबित रहती है।
(ख) जहां जांच अभिकरण, जांच शुरू होने की तारीख से दो साल की अवधि के बाद भी अपनी जांच पूरी नहीं कर पाया है और आरोप दायर नहीं कर पाया है। तथापि, ऐसी सतर्कता निकासी, अधिकारी को केवल गैर-संवेदनशील पदों पर नियुक्त किए जाने और संवर्ग में समयपूर्व प्रत्यावर्तन के लिए विचार किए जाने हेतु हकदार बनाएगी न कि उपर्युक्त पैरा -2 में सूचीबद्ध व्यवस्था के अन्य मामलों के लिए। मंत्रालय/विभाग अपने संगठनों के भीतर संवेदनशील पदों की पहचान तत्काल करेंगे। मंत्रालयों/विभागों में संयुक्त सचिव और उससे ऊपर के पदों (समकक्ष नहीं) को अन्य बातों के साथ-साथ संवेदनशील माना जाएगा।
(ग) ऐसे मामलों में, जहां जांच अभिकरण या सक्षम प्राधिकारी मामले को बंद करने की संस्तुति करता है, परन्तु न्यायालय द्वारा मामले/प्राथमिकी को बंद करने की अनुमति नहीं दी जाती है।
(घ) ऐसे मामलों में जहां जांच अभिकरण/जांच अधिकारी आरोपों को सिद्ध मान लेता है लेकिन राज्य सरकार की राय इस मामले पर अलग है।
5. अ.भा.से. अधिकारियों के पैनलबद्धकरण के प्रयोजनार्थ सतर्कता निकासी प्रदान करने के मामलों पर विचार करते समय, संबंधित राज्य सरकारों से भी सतर्कता स्थिति को सुनिश्चित किया जाता रहेगा। केन्द्र सरकार के कार्यों से जुड़े सेवारत अधिकारियों के संबंध में भी सतर्कता की स्थिति संबंधित मंत्रालय/विभाग से प्राप्त की जाएगी। अखिल भारतीय सेवा अधिकारियों के पैनलबद्ध किए जाने के सभी मामलों के संबंध में केन्द्रीय सतर्कता आयोग की टिप्पणियां भी प्राप्त की जाएंगी।
6. मंत्रालय/विभाग में उप सचिव/निदेशक स्तर तक के अधिकारियों के लिए सतर्कता प्रभाग के प्रमुख के अनुमोदन से सतर्कता निकासी जारी की जाएगी। संयुक्त सचिव/अपर सचिव/सचिव के लिए सतर्कता निकासी, सचिव के अनुमोदन से जारी की जाएगी। संदेह की स्थिति में, संबंधित मंत्रालय/विभाग में सचिव के आदेश उस प्रयोजन को ध्यान में रखते हुए प्राप्त किए जाएंगे जिसके लिए 'सतर्कता निकासी' दी जानी है।
भाग ख- केन्द्रीय सिविल सेवा/केन्द्रीय सिविल पदों के सदस्यों को सतर्कता निकासी प्रदान करना
7. ये आदेश निम्नलिखित के संबंध में सतर्कता निकासी हेतु लागू होंगे:
i. प्रस्ताव सूची में समावेशन
ii. पैनलबद्धकरण
iii.भारत बाह्य अध्ययन छुट्टी
iv.अंतर-संवर्ग स्थानांतरण और उसके विस्तार के मामले
v.अंतर-संवर्ग प्रतिनियुक्ति और उसके विस्तार सहित कोई भी प्रतिनियुक्ति
vi.संवेदनशील पदों पर नियुक्तियां
vii. अनिवार्य प्रशिक्षण को छोड़कर प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए असाइनमेंट
viii. सेवा में स्थायीकरण
ix.वीआरएस पर सेवानिवृत्ति, जहां केंद्र सरकार मामले पर विचार करने के लिए सक्षम प्राधिकारी है
x.सेवानिवृत्ति के पश्चात वाणिज्यिक रोजगार
xi.समयपूर्व प्रत्यावर्तन (स्वैच्छिक)
इन सभी मामलों में कोई भी निर्णय लिए जाने से पहले सतर्कता की स्थिति को सक्षम प्राधिकारी के समक्ष रखा तथा उसके द्वारा उस पर विचार किया जा सकता है।
8. निम्नलिखित आधारों पर सतर्कता निकासी से इनकार किया जाएगा:
(क)(I) अधिकारी के विरूद्ध कोई शिकायत प्राप्त हुई है और कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के दिनांक 09.10.2024 के कार्यालय ज्ञापन संख्या 104/76/2024-एवीडी-आईए के पैरा 6 मंत्रालयों/विभागों/संगठनों/राज्य सरकारों में शिकायतों के निपटान के संबंध में समेकित दिशानिर्देश; में यथाअनुबंधित अथवा संबंधित सरकार के पास पहले से ही मौजूद किसी भी ऐसी सूचना के आधार पर संबंधित सरकार द्वारा कम से कम प्रारंभिक जांच के आधार पर यह संस्थित हो गया है कि किसी अधिकारी के कृत्यों के बारे में सत्यापन योग्य आरोपों के लिए ऐसे प्रथम दृष्टया ठोस आधार हैं जिसमें सतर्कता की दृष्टि शामिल है। जैसे:
(i) भ्रष्टाचार, जिसमें किसी आधिकारिक कार्य के संबंध में अथवा किसी अन्य अधिकारी के साथ अपने प्रभाव का उपयोग करके कानूनी पारिश्रमिक के अलावा अन्य परितोषण की मांग करना और/अथवा स्वीकार करना शामिल है; अथवा किसी मूल्यवान वस्तु को बिना किसी विचार के अथवा किसी ऐसे व्यक्ति से अनुचित विचार के साथ प्राप्त करना, जिसके साथ उसका आधिकारिक व्यवहार है अथवा होने की संभावना है अथवा उसके अधीनस्थों का आधिकारिक व्यवहार है अथवा जहां वह प्रभाव डाल सकता है; अथवा भ्रष्ट या अवैध तरीकों से अथवा लोक सेवक के रूप में अपने पद का दुरूपयोग करके स्वयं के लिए या किसी अन्य व्यक्ति के लिए कोई मूल्यवान वस्तु अथवा आर्थिक लाभ प्राप्त करना।
(ii) आय के ज्ञात स्रोतों से असंगत परिसम्पत्ति का होना
(iii) दुर्विनियोजन, जालसाजी अथवा धोखाधड़ी अथवा अन्य समान आपराधिक अपराधों के मामलों में संलिप्तता
(iv) नैतिक अधमता
(v) अ.भा.से. आचरण नियमावली, 1968 का उल्लंघन
(II) सतर्कता निकासी तभी प्रदान की जाएगी जब प्रारंभिक जांच, यदि आवश्यक हो, और जैसा कि ऊपर (I) में परिकल्पित है, शिकायत प्राप्त होने की तारीख से तीन महीने के भीतर संबंधित सरकार द्वारा शुरू नहीं की जाती है, अथवा यदि प्रारंभिक जांच शुरू होने के बाद तीन महीने से अधिक समय तक पूरी हुई बिना लंबित रहती है।
(ख) अधिकारी निलंबित है।
(ग) अधिकारी का नाम सहमत सूची में है बशर्ते कि ऐसे सभी मामलों में एक वर्ष की अवधि के बाद स्थिति का अनिवार्य रूप से पुनरीक्षण किया जाएगा।
(घ) आरोप पत्र जारी होने के साथ अनुशासनिक प्राधिकारी के अनुमोदन के अनुसार अधिकारी के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू कर दी गई है और कार्यवाही लंबित है।
(ङ) अधिकारी के विरुद्ध आपराधिक मामला संस्थापित करने अथवा छानबीन/पूछताछ/जांच की स्वीकृति के आदेश अनुशासनिक प्राधिकारी/सरकार द्वारा अनुमोदित कर दिए गए हैं और आरोप पत्र तीन माह के भीतर तामील कर दिया गया है।
(च) जांच अभिकरण द्वारा किसी आपराधिक मामले में न्यायालय में आरोपपत्र दायर कर दिया गया है और मामला लंबित है।
(छ) सक्षम प्राधिकारी द्वारा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (2018 में यथासंशोधित) अथवा किसी अन्य आपराधिक मामले के तहत अभियोजन की संस्वीकृति प्रदान कर दी गई है और मामला ट्रायल कोर्ट में लंबित है।
(ज) अधिकारी, भ्रष्टाचार के आरोपों में एक ट्रेप/छापे के मामले में संलिप्त है और जांच लंबित है।
(झ) किसी निजी शिकायत के आधार पर दर्ज की गई प्राथमिकी पर जांच के पश्चात, जांच अभिकरण द्वारा अधिकारी के विरुद्ध न्यायालय में आरोप पत्र दायर किया गया है।
(ञ) संबंधित सरकार द्वारा अधिकारी के विरुद्ध प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज की गई है अथवा मामला पंजीकृत किया गया है, बशर्ते कि आरोप पत्र प्राथमिकी/मामला दर्ज करने/पंजीकृत करने की तारीख से तीन माह के भीतर तामील कर दिया गया हो।
(ट) अधिकारी अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियमावली, 1968 के नियम 16 के तहत यथापेक्षित मौजूदा वर्ष की 31 जनवरी तक पिछले वर्ष की वार्षिक अचल संपत्ति विवरणी (रिटर्न) जमा करने में विफल रहता है।
(ठ) ऐसे मामलों में जहां किसी अधिकारी पर लघु शास्ति लगाई गई है, शास्ति की अवधि जारी रहने के पश्चात तीन वर्ष तक की अवधि के लिए सतर्कता निकासी नहीं दी जाएगी। ऐसे मामलों में जहां किसी अधिकारी पर बड़ी शास्ति लगाई गई है, दंड जारी रहने की अवधि के पश्चात पांच वर्ष की अवधि के लिए सतर्कता निकासी नहीं दी जाएगी। शास्ति जारी रहने के पश्चात अधिकारी के प्रदर्शन पर बारीकी से नजर रखी जानी चाहिए और यदि अधिकारी का नाम सहमत सूची अथवा ओडीआई सूची में सम्मिलित किया जाता है तो सतर्कता निकासी से इनकार किया जाता रहेगा।
9. सक्षम प्राधिकारी द्वारा निम्नलिखित स्थितियों में प्रयोजन की संवेदनशीलता, आरोपों/अभियोगों की गंभीरता और तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए मामला दर मामला सतर्कता निकासी का निर्णय लिया जाएगा:
(क) जहां किसी आपराधिक मामले में अधिकारी के विरूद्ध किसी भी जांच अभिकरण द्वारा की गई पूर्व-अन्वेषण जांच, तीन महीने से अधिक समय तक लंबित रहती है।
(ख) जहां जांच अभिकरण, जांच शुरू होने की तारीख से दो साल की अवधि के बाद भी अपनी जांच पूरी नहीं कर पाया है और आरोप दायर नहीं कर पाया है। तथापि, ऐसी सतर्कता निकासी, अधिकारी को केवल गैर-संवेदनशील पदों पर नियुक्त किए जाने और संवर्ग में समयपूर्व प्रत्यावर्तन के लिए विचार किए जाने हेतु हकदार बनाएगी न कि उपर्युक्त पैरा -2 में सूचीबद्ध व्यवस्था के अन्य मामलों के लिए। मंत्रालय/विभाग अपने संगठनों के भीतर संवेदनशील पदों की पहचान तत्काल करेंगे। मंत्रालयों/विभागों में संयुक्त सचिव और उससे ऊपर के पदों (समकक्ष नहीं) को अन्य बातों के साथ-साथ संवेदनशील माना जाएगा।
(ग) ऐसे मामलों में, जहां जांच अभिकरण या सक्षम प्राधिकारी मामले को बंद करने की संस्तुति करता है, परन्तु न्यायालय द्वारा मामले/प्राथमिकी को बंद करने की अनुमति नहीं दी जाती है।
(घ) ऐसे मामलों में जहां जांच अभिकरण/जांच अधिकारी आरोपों को सिद्ध मान लेता है लेकिन राज्य सरकार की राय इस मामले पर अलग है।
10. केंद्रीय सिविल सेवाओं/केंद्रीय सिविल पदों के सदस्यों को पैनल में शामिल करने के उद्देश्य से सतर्कता निकासी प्रदान करने के मामलों पर विचार करते समय, संबंधित संवर्ग प्राधिकारी से भी सतर्कता स्थिति सुनिश्चित की जाती रहेगी। केन्द्रीय सिविल सेवाओं/केन्द्रीय सिविल पदों के सदस्यों को पैनल में शामिल करने के सभी मामलों हेतु सीवीसी की टिप्पणियां भी प्राप्त की जाएगी।
11. मंत्रालय/विभाग में उप सचिव/निदेशक स्तर तक के अधिकारियों के लिए सतर्कता स्वीकृति सतर्कता प्रभाग के प्रमुख के अनुमोदन से जारी की जाएगी। संयुक्त सचिव/अपर सचिव/सचिव के लिए सतर्कता निकासी सचिव के अनुमोदन से जारी की जाएगी। संदेह की स्थिति में, संबंधित मंत्रालय/विभाग में सचिव के आदेश उस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए प्राप्त किए जाएंगे, जिसके लिए 'सतर्कता निकासी' दी जानी आवश्यक है।
12. जहां तक भारतीय लेखापरीक्षा और लेखा विभाग में कार्यरत कार्मिकों का संबंध है, ये अनुदेश भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के परामर्श के पश्चात जारी किए गए हैं।
(Sign of Authority)
Rupesh Kumar
Under Secretary
23094799
इन निर्देशों के परिदृश्य में यह सवाल उठने लगा है कि क्या सुक्खू सरकार केन्द्र के निर्देशों की अवहेलना कर पायेगी? क्या अधिकारी इन निर्देशों को मुख्यमंत्री के संज्ञान में लायेंगे? यह सवाल इसलिये उठ रहे हैं क्योंकि इन पदों के लिये आवेदन आमंत्रित करने के लिये जो विज्ञापन जारी किया गया है उसमें विजिलैन्स क्लीयरैन्स हासिल करने का कोई संकेत तक नहीं दिया गया है।
यह है आवेदन आमंत्रित करने के लिये जारी हुआ विज्ञापन।

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We search the whole countryside for the best fruit growers.
You can let each supplier have a page that he or she can edit. To see this in action you will need to create a users who is in the suppliers group.
Create one page in the growers category for that user and make that supplier the author of the page. That user will be able to edit his or her page.
This illustrates the use of the Edit Own permission.