Thursday, 18 September 2025
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भाजपा उपाध्यक्ष कांगड़ा के सांसद डॉ. भारद्वाज सुक्खू सरकार के नाम पर पूर्व भाजपा सरकार को ही कटघरे में खड़ा कर गये।

शिमला/शैल। वित्तीय वर्ष 2022-23 की कैग रिपोर्ट सदन में आ गयी है। इस रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश के सार्वजनिक उपक्रमों का घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है। इस रिपोर्ट में प्रदेश के स्वास्थ्य संस्थानों को लेकर गंभीर टिप्पणियां की गयी हैं। कैग रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश के मेडिकल कॉलेज और स्वास्थ्य संस्थान डाक्टरों की कमी से जूझ रहे हैं। यहां 9 से 56 प्रतिशत तक चिकित्सक कम हैं। आईजीएमसी शिमला से लेकर जिला अस्पतालों में 15 से 69 प्रतिशत तक विशेषज्ञों की कमी है। चम्बा और सिरमौर जिलों में यह कमी 42 प्रतिशत से अधिक है। रिपोर्ट के अनुसार जिला व सिविल अस्पतालों में जहां 9 से 11 ओपीडी का प्रावधान है वहां पर 2 से 5 ओपीडी थी। लाखों रुपए के उपकरण खरीदने के बावजूद स्टाफ की कमी होने के कारण उनका लाभ रोगियों को नहीं मिल रहा है। रिपोर्ट के अनुसार जांचे गये 18 स्वास्थ्य संस्थानों में से सात संस्थान बिना लाइसेन्स एक्सरे सुविधा चला रहे थे। लाइसेन्स नवीनीकरण के बिना 25 चयनित संस्थानों में से 12 रक्त बैंक चला रहे थे। 575 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में से 98 ने जैव चिकित्सा अपशिष्ट के उत्पादन पर राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अनुमति व एनओसी ही नहीं ली।
कैग के अनुसार अस्पतालों में बिस्तरों की स्वीकृत संख्या में 45.02 प्रतिश्त की वृद्धि हुई लेकिन वास्तविक उपलब्धता में 20.60 प्रतिशत की वृद्धि हुई। आईजीएमसी में ही पर्याप्त बिस्तर उपलब्ध तो करवाये गये लेकिन कई वार्डों में एक बिस्तर पर दो से तीन रोगी पाये गये। प्रदेश के 12 जिला अस्पतालों में से 9 में बिस्तरों की 8 से 71 प्रतिशत तक कमी पायी गयी। कैग के इन आंकड़ों पर भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष कांगड़ा के सांसद डॉ. राजीव भारद्वाज ने प्रदेश सरकार पर बड़ा हमला बोला है। उन्होंने इस पर कांग्रेस सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुये सरकार के प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने के संकल्प पर गंभीर सवाल उठाये हैं। लेकिन डॉ. भारद्वाज यह सवाल उठाते हुये भूल गये की कैग रिपोर्ट वित्तीय वर्ष 2022-23 की है और कांग्रेस की सुक्खू सरकार दिसम्बर 2022 में बनी थी। इसलिये यह रिपोर्ट कांग्रेस की बजाये पूर्व की भाजपा सरकार को ही कटघरे में खड़ा करती है। डॉ. भारद्वाज के ब्यान और कैग रिपोर्ट में यह नहीं कहा गया है कि स्वास्थ्य संस्थानों की यह हालत सुक्खू सरकार के वित्त वर्ष के अंतिम तीन माह में हुई है। शायद कांग्रेस की सुक्खू सरकार पर हमला बोलने की नीयत से वह पूर्व भाजपा सरकार को ही लताड़ लगा गये। वर्ष 2023-24 की जब रिपोर्ट आयेगी तब उसमें पता चलेगा कि सुक्खू सरकार इस स्थिति को कितना बेहतर बना पायी है।

राधा स्वामी सत्संग ब्यास के लिये हुये संशोधन से एक्ट की प्रासंगिकता पर उठे सवाल

शिमला/शैल। विधानसभा में सरकार ने अंततः राधा स्वामी सत्संग ब्यास के लिये लैण्ड सीलिंग एक्ट में संशोधन करके जमीन ट्रांसफर करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। राधा स्वामी सत्संग ब्यास ने अपने भोटा स्थित चैरिटेबल अस्पताल की 30 एकड़ जमीन को अपनी सहयोगी संस्था महाराज जगत मेडिकल रिलीफ सोसाइटी को ट्रांसफर किये जाने का आवेदन किया था। ट्रांसफर का कारण अस्पताल द्वारा हर वर्ष 2.50 करोड़ का जीएसटी दिया जाना बताया था। जबकि अस्पताल निःशुल्क सेवा प्रदान कर रहा है। यह जमीन ट्रांसफर न हो पाने की स्थिति में इस अस्पताल को ही बन्द कर दिये जाने की विवशता जाहिर की थी। इस पर हमीरपुर और कुछ अन्य स्थानों पर लोगों ने सरकार के खिलाफ धरने प्रदर्शन करते हुये इस ट्रांसफर के लिये दबाव भी बनाया था। इस दबाव के बाद मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया था कि सरकार इसके लिये लैण्ड सीलिंग एक्ट में संशोधन करेगी। मुख्यमंत्री के इस आश्वासन के बाद इस आश्य का प्रस्ताव मंत्रिमंडल के समक्ष लाया गया था। लेकिन मंत्रिमंडल में उस समय इस प्रस्ताव को अपनी स्वीकृति नहीं दी थी। उस समय यह सामने आया था कि 2.50 करोड़ का जीएसटी बचाने के लिये इस तरह लैण्ड ट्रांसफर की अनुमति देना अवैध होगा। लेकिन अब इस एतराज को नजर अन्दाज करते हुये इस संशोधन को पारित कर दिया गया है। इस संशोधन के बाद यह आशंकाएं उभरी है कि इससे लैण्ड सीलिंग एक्ट की मूल भावना को ही ठेस पहुंचेगी।

हिमाचल में किसी भी गैर कृषक को जमीन खरीदने के लिये एक्ट की धारा 118 के तहत सरकार से पूर्व अनुमति लेने की शर्त है। इसमें व्यक्ति अपने आवास और व्यवसाय के लिये जमीन खरीद सकता है। इस खरीद की सीमाएं तय हैं। लेकिन किसी भी पहले से निर्मित भवन को खरीदने के लिए धारा 118 के तहत अनुमति लेने की शर्त नहीं है। यदि कोई व्यक्ति यह अनुमति लेकर दो वर्ष के भीतर यह निर्माण पूरा नहीं कर पाता है तो उसे एक और वर्ष तक सरकार निर्माण पूरा करने की अनुमति देती है। यदि इस अवधि में भी यह निर्माण पूरा न हो तो ऐसी जमीन पर सरकार कब्जा कर लेती है। सोलन के एक आई ए एस अधिकारी के साथ ऐसा हो भी चुका है। लेकिन प्रदेश में ऐसे बहुत सारे अधिकारी हैं जिन्होंने प्रदेश में एक से अधिक स्थानों पर अपने या परिजनों के नाम पर बीघांे में जमीन खरीद रखी है। जबकि आवास के लिये तो 180 वर्ग गज जमीन की ही आवश्यकता का मानक रखा गया है। धारा 118 में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि एक व्यक्ति कितनी ऐसी अनुमति आवास के नाम पर ले सकता है। इस समय भी कई अधिकारी ऐसे हैं जिन्होंने शिमला और उसके आसपास ही 180 वर्ग गज से अधिक जमीने खरीद रखी हैं।
राधा स्वामी सत्संग ब्यास के पास प्रदेश में 6000 बीघा से अधिक जमीन है। इस संस्था को कृषक का दर्जा भी हासिल है। अब जीएसटी बचाने के लिये लैण्ड ट्रांसफर की सुविधा भी मिल गयी। धार्मिक और शैक्षणिक संस्थाओं को लैण्ड सीलिंग के दायरे से बाहर कर दिया गया है। इस समय प्रदेश में स्थित निजी विश्वविद्यालय के पास लैण्ड सीलिंग से अधिक जमीन है। सारी जमीनों का उपयोग यह विश्वविद्यालय अभी तक नहीं कर पाये हैं। लेकिन सरकार इसमें कुछ नहीं कर सकती। जल विद्युत परियोजनाओं और सीमेंट उद्योगों को भी एक्ट में छूट हासिल है। जबकि 1998-99 में सीमेंट उद्योग को लैण्ड सीलिंग के दायरे में लाने के लिये विधि विभाग की स्पष्ट राय है जिस पर अमल नहीं हो सका है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि जब एक्ट में यह स्पष्ट नहीं है कि मकान बनाने के लिये कितनी बार धारा 118 में अनुमति ली जा सकती है। जब शैक्षणिक और धार्मिक संस्थाओं को सीलिंग के दायरे से बाहर कर दिया गया है और अब जीएसटी बचाने के लिये लैण्ड ट्रांसफर का भी अधिकार मिल गया है तब धारा 118 का औचित्य ही क्या रह जाता है। जो लोग कई पीढियों से प्रदेश में रह रहे हैं लेकिन संयोगवश प्रदेश के कृषक नहीं हैं उन्हें क्या धारा 118 के दायरे से बाहर नहीं कर दिया जाना चाहिये। जब सरकार लैण्ड सीलिंग में इतने संशोधन कर चुकी है तब इस एक्ट का औचित्य ही क्या बच जाता है। जब राधा स्वामी सत्संग ब्यास के पास किन्नौर में जमीन हो सकती है तो दूसरे धार्मिक संस्थाओं को कैसे और कितनी देर इससे बाहर रख सकते हैं। ऐसे में धारा 118 के औचित्य पर अब नये सिरे से विचार करने की आवश्यकता है।

क्या नादौन में बस स्टैंड के लिये सरकार की जमीन ही सरकार को बेच दी गयी

  • जब लैण्ड सीलिंग के बाद राजा नादौन के पास बची ही 316 कनाल थी तो उसने 70 कनाल और 770 कनाल कहां से बेच दी
  • क्या नादौन में लैण्ड सीलिंग एक्ट लागू नहीं हुआ है
  • जिस जमीन का राजस्व रिकॉर्ड ताबे हकूक बर्तन बर्तनदारान हो उसे प्राइवेट आदमी कैसे खरीद-बेच सकता है

शिमला/शैल। जब सुक्खू सरकार सत्ता में दो साल पूरे होने का बिलासपुर में जश्न मना रही थी तो उसी समय भाजपा बतौर विपक्ष राज्यपाल को सरकार के खिलाफ दो साल के कारनामों का काला चिट्ठा सौंप रही थी। इस काले चिट्ठे में एक आरोप यह दर्ज है कि मुख्यमंत्री के गृह विधानसभा क्षेत्र नादौन में ई बसों के लिए बनाये जा रहे बस स्टैंड के लिए 2015 में तीन लोगों राजेन्द्र कुमार, अजय कुमार प्रभात चन्द द्वारा 2,40,000 में खरीद कर उसी जमीन को 2023 में एचआरटीसी को चार सौ गुना दामों पर 6,72,61,226 रुपए में बेच दिया गया। यह लोग मुख्यमंत्री के नजदीकी है क्योंकि नादौन से ही ताल्लुक रखते हैं। भाजपा का यह आरोप अपने में बहुत कमजोर है क्योंकि किसी भी सौदे में लाभ कमाना कोई अपराध नहीं है। फिर जब यह जमीन 70 कनाल 2015 में खरीदी गयी और अब जब 2023 में बेची गई तो दोनों बार सर्किल रेट के आधार पर ही गणना की गयी होगी। फिर भाजपा का यह भी आरोप नहीं है कि इसमें सर्किल रेट को नजरअन्दाज किया गया है। फिर इसमें आरोप क्या है और भाजपा ने उस आरोप का खुलासा क्यों नहीं किया है। जबकि यह अपने में एक बड़ा घोटाला है। भाजपा के ही काले चिठ्ठे में एक आरोप यह भी है कि मुख्यमंत्री ने स्वयं 770 कनाल जमीन खरीद रखी है। मुख्यमंत्री सुक्खू और एचआरटीसी को 70 कनाल जमीन बेचने वाले सभी लोगों ने 2015 में राजा नादौन से यह जमीन खरीद रखी है।
स्मरणीय है कि राजा नादौन को 1857 में अंग्रेज शासन के दौरान 1,59, 986 कनाल 10 मरले जमीन बतौर जागीर मिली थी। यह जमीन पूरी रियायत के 329 गांवों में फैली हुई थी और राजस्व रिकॉर्ड में इन जमीनों पर ताबे हकूक बर्तन बर्तनदारान दर्ज था और आज भी दर्ज है। जिन जमीनों पर इस तरह का अन्दराज राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज होता है उनकी मालिक सरकार होती है कोई व्यक्ति विशेष नहीं। इसलिए 1974 के लैण्ड सीलिंग एक्ट के तहत राजा नादौन की सारी सरप्लस जमीनों की मालिक सरकार बन गयी। सीलिंग के बाद राजा नादौन के पास बची हुई केवल 316 कनाल जमीन थी। ऐसे में सवाल उठता है कि जिस मलिक के पास कानून के तहत बची ही 316 कनाल जमीन थी उसने 770 कनाल और 70 कनाल जमीने बेच कहां से दी? क्या राजा नादौन सरकार की जमीने ही प्राइवेट लोगों को बेचते रहे? फिर जब जमीनों पर राजस्व रिकॉर्ड में ताबे हकूक बर्तन बर्तनदारान का अन्दराज है तो संबंधित प्रशासन ऐसी सेल डीड को प्रमाणित कैसे करता रहा। राजा नादौन ने अपनी जमीने बचाने के लिये अदालतों में एक लम्बी लड़ाई लड़ी है। लेकिन 1984 में वित्तायुक्त आर.के.आनन्द के फैसले से कानूनी लड़ाई का अन्त हुआ। राजा नादौन केवल 316 कनाल के मालिक रहे थे। ऐसे में 1984 के बाद राजा नादौन द्वारा बेची गई हर जमीन सवालों के दायरे में आ जाती है।
यही नहीं लैण्ड सीलिंग एक्ट के लागू होने के बाद प्रदेश, हमीरपुर और नादौन का राजनीतिक नेतृत्व विधानसभा से लेकर संसद तक इस मुद्दे पर क्या करता रहा। जब 2023 में एचआरटीसी को 70 कनाल जमीन बेची गयी तो उसी दौरान प्रदेश सरकार लैण्ड सीलिंग एक्ट में संशोधन कर रही थी। तब भी किसी ने यह जानने का प्रयास नहीं किया कि अब भी प्रदेश में लैण्ड सीलिंग से अधिक जमीन रखने वाले कितने मामले हैं और क्यों है। जबकि 2011 में विलेज कामन लैण्ड की खरीद बेच का सर्वाेच्च न्यायालय ने कड़ा संज्ञान लेते हुये पूरे देश के मुख्य सचिवों को ऐसे मामलों पर कड़ी कारवाई करते हुये इसके बारे में शीर्ष अदालत को भी सूचित करने के निर्देश जारी कर रखे हैं। कानून की स्थिति को सामने रखते हुये स्पष्ट हो जाता है कि एचआरटीसी के संद्धर्भ में सरकार की जमीन पहले 2,40,000/- रुपए में तीन लोगों को बेची गयी और फिर उसी जमीन को 6,72,61,226 रूपये में बेच दिया गया तथा संबद्ध प्रशासन आंखें बन्द करके बैठा रहा। जबकि यह मामला जिला प्रशासन तक भी गया है।

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