Thursday, 18 September 2025
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राधा स्वामी सत्संग ब्यास के लिये प्रस्तावित लैंड सीलिंग संशोधन पर उठते सवाल

  • क्या दान में मिली जमीनों को दानकर्ता की सहमति के बिना बेचा जा सकता है?
  • राधा स्वामी सत्संग ब्यास को कृषक का दर्जा हासिल होने के बाद क्या वह सामान्य कृषक की तरह जमीन खरीद-बेच सकता है।

शिमला/शैल। पिछले दिनों राधा स्वामी सत्संग ब्यास द्वारा हमीरपुर के भोटा में संचालित अस्पताल का प्रकरण चर्चा में आया है। इस अस्पताल के प्रबंधन ने सरकार से आवेदन किया था कि इस अस्पताल की जमीन को उनके सहयोगी संस्था महाराज जगत मेडिकल रिलीफ सोसाइटी को ट्रांसफर कर दिया जाये। क्योंकि इसके कारण राधा स्वामी सत्संग ब्यास को 2.5 करोड़ का वार्षिक जीएसटी अदा करना पड़ रहा है। जबकि अस्पताल लगभग निःशुल्क सेवा कर रहा है। राधा स्वामी सत्संग ने यह भी कह दिया था कि यदि ऐसा नहीं होता है तो वह पहली दिसम्बर से अस्पताल को बन्द कर देंगे। राधा स्वामी सत्संग के इस कथन पर स्थानीय जनता की तीव्र प्रतिक्रियाएं आयी। हमीरपुर के कई स्थानों पर जनता ने यातायात बाधित कर दिया। लोगों की इस प्रतिक्रिया के बाद सरकार ने वस्तुस्थिति का संज्ञान लिया। मुख्यमंत्री ने पहली दिसम्बर को बैठक बुलाई और उसके बाद घोषित किया कि विधानसभा के आगामी सत्र में इसके लिए लैंड सीलिंग एक्ट में संशोधन लाया जायेगा। इस प्रस्तावित संशोधन का मसौदा मंत्रिमण्डल की आगामी बैठक के लिये जा चुका है। इस प्रस्तावित संशोधन के आगे चलकर क्या प्रभाव पड़ेंगे यह देखना आवश्यक हो जाता है।
लैंड सीलिंग एक्ट प्रदेश में 1974 में पारित हुआ और 1971 से लागू हुआ। इस एक्ट के मुताबिक प्रदेश में कोई भी व्यक्ति सिंचाई वाली जमीन पचास बीघा एक फसल देने वाली पचहतर बीघा, बगीचा डेढ़ सौ बीघा जमीन रख सकता है। जनजातीय क्षेत्रों में यह सीमा 350 बीघा है। यदि किसी के पास सारी जमीन पत्थर खड्ड़े या ढॉक आदि जो फसल के नाम पर जमीन की परिभाषा में ही न आती हो तो भी वह 30 स्टैंडर्ड एकड़ अर्थात 316 कनाल या 161 बीघा से अधिक जमीन का मालिक नहीं हो सकता। एक्ट के अनुसार सीलिंग से अधिक जमीन केवल सरकार, राज्य और केंद्र या सरकारी सभाएं ही रख सकती हैं। लेकिन सरकारों ने इस एक्ट में समय-समय पर संशोधन भी किये हैं। भोटा में राधा स्वामी सत्संग ब्यास ने 1990-91 में अस्पताल खोलने की योजना बनायी। उस समय जुलाई 1991 में शांता कुमार ने इन्हें कृषक का दर्जा प्रदान कर दिया। क्योंकि प्रदेश में कई ग्राम मन्दिरों को यह दर्जा इसलिये हासिल था क्योंकि मन्दिर पर आश्रित परिवार उस जमीन पर खेती करके अपना गुजर बसर करता था। लेकिन राधा स्वामी सत्संग ब्यास को दान में मिली जमीनों पर डेरे के लोग स्वयं खेती नहीं करते थे। विधानसभा में एक प्रश्न के उत्तर में जानकारी आयी हुई है कि 2015-16 में 208 स्थानों पर लोगों से 65 एकड़ जमीन दान में मिली है। प्रदेश में इस समय राधा स्वामी सत्संग ब्यास के 900 से ज्यादा सत्संग घर है और 6000 बीघा से ज्यादा जमीन है तथा हजारों प्रदेश में इसके अनुयायी हैं। जिनके वोट हर राजनीतिक दल को चाहिये।
इसलिये 1990-91 में इसे कृषक का दर्जा प्रदान कर दिया गया। उसके बाद धूमल सरकार में धार्मिक और शैक्षणिक संस्थाओं को सीलिंग के दायरे से बाहर कर दिया गया। वीरभद्र सरकार में भी यह छूट जारी रही और यह शर्त लगा दी गई कि यह अपने मूल उद्देश्य से बाहर नहीं जाएंगे। अब हिमाचल में राधा स्वामी सत्संग के पास करीब 6000 बीघा जमीन है जो दान में मिली है। इस जमीन पर कृषक का दर्जा हासिल होने के बाद कोई भी कृषक जमीन की खरीद बेच का पात्र हो जाता है। फिर दूसरे संशोधन में सीलिंग की सीमा से ही बाहर हो गये। लेकिन क्या इन संशोधनों के माध्यम से यह जमीन बेचना आसान हो जायेगा? शायद नहीं क्योंकि डेरे के सेवक स्वयं इन जमीनों के काश्तकार नहीं है और न ही इस पर निर्भर हैं। ऐसे में डेरे के सामने यह बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि वह इस 6000 बीघा जमीन का क्या करें। इसलिये यदि अब सुक्खू सरकार भोटा अस्पताल की जमीन महाराज जगत सिंह मेडिकल रिलीफ सोसाइटी को ट्रांसफर करने का संशोधन पारित कर देती है तो फिर प्रदेश में जिन उद्योगों, विद्युत परियोजनाओं, विश्वविद्यालयों के पास सीलिंग से अधिक जमीन है वह सब भी ऐसी ट्रांसफर की मांग करेंगे और उन्हें इन्कार करना कठिन हो जायेगा। लेकिन राधा स्वामी प्रकरण में भी यह जमीने दान में मिली होने से यह प्रश्न उठेगा की दानकर्ता की सहमति के बिना इन जमीनों का कुछ नहीं किया जा सकता। अब देखना है कि सुक्खू सरकार इसका कैसे हल निकलती है क्योंकि 2014 में सीलिंग एक्ट में छूट देते हुये यह राईडर लगा दिया गया था कि इन जमीनों को सेल, लीज, गिफ्ट या मार्टगेज नहीं किया जा सकता। यदि सरकार इन सारी बंदिशो को हटा देती है तब सरकार पर हिमाचल ऑन सेल का आरोप लगना शुरू हो जायेगा।
वैसे सुक्खू सरकार ने 2023 में भी लैंड सीलिंग एक्ट में संशोधन करके बेटियों को हक देने का प्रावधान किया है। परन्तु यह संशोधन करने से पहले यहां डाटा नहीं जुटाया की 1971 से प्रदेश में सीलिंग एक्ट लागू होने के बाद भी आज प्रदेश में कितने लोग हैं जिनके पास सीलिंग की सीमा 316 कनाल से ज्यादा जमीन है। इन लोगों पर सीलिंग लागू क्यों नहीं हो सकी? क्या कुछ लोगों ने सीलिंग को अंगूठा दिखाते सीमा से अधिक जमीन खरीद रखी है। इसमें संबंधित प्रशासन क्या करता रहा। यह सारे सवाल उस समय जवाब मांगेगे जब यह संशोधन राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद राजपत्र में अधिसूचित हो जायेगा। क्योंकि 316 कनाल से ज्यादा किसी भी किस्म की जमीन प्रदेश में कोई नहीं रख सकता है।

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