Sunday, 21 December 2025
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क्या प्रधानमंत्री या दूसरे केन्द्रीय नेताओं की यात्राओं से प्रदेश का चुनावी परिदृश्य बदल जायेगा

शिमला/शैल। क्या प्रधानमंत्री की शिमला यात्रा से ही भाजपा की चुनावी वैतरणी पार हो जायेगी? यह सवाल आज प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में एक बड़ा सवाल बनकर चर्चा का केंद्र बना हुआ है। क्योंकि यह एक कड़वा सच है कि प्रदेश के चारों उपचुनाव हारने के बाद जो फजीहत जयराम सरकार की हुई है उससे वह उभर नहीं पायी है। पांच राज्यों में हुये विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को मिली हार से भाजपा का जो मनोबल थोडा संभाला था उसे प्रदेश में घटे पुलिस भर्ती परीक्षा के पेपर लीक और बेच प्रकरण ने फिर से रसातल में पहुंचा दिया है। इसी प्रकरण के बाद चम्बा में विधानसभा उपाध्यक्ष द्वारा स्कूल के छात्रा को थप्पड़ मारने का मामला घट गया। देहरा के निर्दलीय विधायक होशियार सिंह ने जिस भाषा में जनता के बीच ग्रामीण विकास मंत्री वीरेंद्र कंवर और पूरी सरकार को कोसा है उससे हुये नुकसान की भरपाई मुख्यमंत्री द्वारा विधायक का अभिवादन स्वीकार न करने से नहीं हो जाती है। क्योंकि यही विधायक कल तक मुख्यमंत्री और सरकार के कितने निकट और विश्वस्त रहे हैं। यह देहरा में आईपीएच मंत्री के एक प्रोग्राम में सामने आ चुका है। भाजपा में आंतरिक गुटबाजी कितनी ज्यादा रही है इसका खुलासा कांगड़ा में रमेश ध्वाला बनाम पवन राणा और फिर सरवीन चौधरी विवादों तथा ईन्दू गोस्वामी के पत्रों से सामने आ ही चुका है। 2017 के चुनावों में धूमल के खिलाफ षडयंत्र रचा गया था। यह अब धूमल द्वारा जांच की मांग करने और उसे नड्डा द्वारा इंकार कर दिये जाने से भी स्पष्ट हो चुका है। नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाएं कोर कमेटी की विस्तारित बैठक से शुरू हुई थी। इस बैठक के बाद यह बराबर कहा गया कि कुछ मंत्रियों को हटाया जा सकता है और कुछ के विभागों में फेरबदल हो सकता है। इन्हीं चर्चाओं में बिंदल से प्रदेश अध्यक्षता और स्पीकर शीप छीन गयी। परमार से स्वास्थ्य मंत्री का पद ले लिया गया। कई विधायकों और मंत्रियों के टिकट काटे जाने की खबरें आये दिन उछलती रहती हैं। कैसे और कितने लोग पत्र बम्बों के शिकार हुये हैं। यदि पार्टी में घटे इस सब को एक साथ जोड़ कर देखा और समझा जाये तो कोई भी विश्लेषक यह मानेगा की पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं है। आम आदमी पार्टी की आमद नेे भी भाजपा और जयराम सरकार की चिंताएं बढ़ा दी हैं। इसीलिए नड्डा और अनुराग को मैदान में उतारा गया। अनुराग ने आप की प्रदेश इकाई के शीर्ष नेतृत्व को ही तोड़कर भाजपा में शामिल करवा दिया। नड्डा ने रैलियां की। युवा मोर्चा का राष्ट्रीय कार्यक्रम धर्मशाला में आयोजित किया गया। यह क्यास लगायेे जा रहे थे कि कांगड़ा से कांग्रेस के कुछ नेता भाजपा में शामिल हो जाएंगे। कई नाम चर्चा में भी आये लेकिन अंतिम परिणाम शून्य रहा। फिर त्रिदेव सम्मेलन में स्मृति ईरानी को बुलाया गया यहां पर भाजपा के इन त्रिदेवों को ब्रह्मा, विष्णु और महेश की संज्ञा दे दी गई। लेकिन इस प्रयास के परिणाम भी शुन्य रहे। क्योंकि लोग महंगाई और बेरोजगारी से इस कदर तंग आ चुके हैं कि भाजपा के किसी भी प्रयास का कोई परिणाम नहीं निकल रहा है। आप की तर्ज पर जयराम भी मुफ्त बिजली और पानी देने की घोषणाएं कर चुके हैं। इन घोषणाओं को पूरा करने के लिए कर्ज़ का सहारा लिया जा रहा है। लेकिन इस सबके बावजूद लोग यह नहीं भूल पा रहे हैं कि प्रदेश बेरोजगारी में देश के टॉप छः राज्यों में से एक हो गया है। जयराम सरकार और भाजपा इसी सब के चलते आज नगर निगम शिमला के चुनाव करवाने का साहस नहीं कर पा रही है। ऐसा पहली बार हुआ है की सरकार के पक्ष में कुछ भी सकारात्मक न हो। इसी परिदृश्य में प्रधानमंत्री अपनी सरकार के आठ साल पूरा होने पर गरीब कल्याण योजनाओं के नाम से शिमला आ रहे हैं। जयराम सरकार ने भी यह बड़े गर्व से दावा किया है कि इस अवसर के लिए शिमला का चुनाव स्वयं प्रधानमंत्री ने किया है। प्रधानमंत्री इस अवसर पर प्रदेश को क्या देकर जाते हैं इसका पता तो बाद में ही चलेगा। लेकिन इस अवसर पर यह सवाल आवश्यक उछलेंगे कि मोदी सरकार का पहला बड़ा आर्थिक फैसला नोटबंदी का था जिसमें 99.6% पुराने नोट नये नोटों से बदले गये हैं। 0.4% इसलिये रहे कि नेपाल में नोटबंदी प्रभावी नहीं हुई। नोटबंदी से जाली नोटों के छपने पर लगाम लगेगी यह दावा किया गया था। लेकिन अब रिजर्व बैंक द्वारा जारी रिपोर्ट में माना गया है कि अब भी जाली नोट छप रहे हैं। इसके आंकड़े तक जारी किये गये हैं। 2014 में आम जमा पर जो ब्याज मिलता था वह आज 2022 में आधे से भी कम रह गया है। जीरो बैलेंस के नाम पर खोले गये खातों पर न्यूनतम बैलेंस की शर्त क्यों लगायी गई? क्या इससे गरीब आदमी प्रभावित नहीं हुआ है? हिमाचल सरकार के अपने ही आंकड़ों के अनुसार 65% लोग मुफ्त मिले गैस सिलेंडर दूसरी बार नहीं भरवा पाये हैं। स्कूलों में बच्चों को दिये जाने वाले मिड डे मील के लिये फरवरी के बाद कोई किस्त जारी नहीं हो सकी है। मनरेगा में भी नये साल में कोई बजट जारी नहीं हो पाया है। इस वस्तुस्थिति में प्रधानमंत्री का शिमला में लगातार बैठा रहना भीं सरकार को डूबने से नहीं बचा पायेगा यह माना जा रहा है।

क्या 82 हजार करोड़ के सौदे में सरकार को कोई टैक्स नहीं मिलेगा?

2016 में प्रतिस्पर्धा आयोग अंबुजा को 1164 करोड़ तथा एसीसी को 1148 करोड का जुर्माना लगा चुका है
जुर्माने का मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है
जिन कारणों पर जुर्माना लगा है उनमें सरकार की भूमिका क्या रही है?

शिमला/शैल। हिमाचल में स्थित अंबुजा सीमेंट और एसीसी में स्विट्जरलैंड की कंपनी होल्सिम की हिस्सेदारी 82000 करोड में अदानी ने खरीद ली है। इस सौदे के बाद अपने निवेशकों को संबोधित करते हुये होल्सिम के सीईओ जॉन जेनिश ने यह कहा है कि यह लेन देन टैक्स फ्री है। इस सौदे से उन्हें 6.4 अरब स्विस फ्रैंक की शुद्ध आय होगी। अंबुजा और ए सी सी में हाल्सिम समूह किसी भी नुकसान या कर के लिये जिम्मेदार नहीं होगा। जब हाल्सिम समूह जिम्मेदार नहीं होगा तो क्या इस पर देय करों की जिम्मेदारी अदानी की होगी? अदानी की ओर से इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है। अदानी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में जिस तरह के रिश्ते हैं उनके चलते इस सौदे पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं। इसमें यह भी एक रोचक तथ्य है कि 2016 में प्रतिस्पर्धा आयोग ने जिन ग्यारह सीमेंट कंपनियों को 6300 करोड का जुर्माना लगाया गया था उनमें हिमाचल की यह दो कंपनियां भी शामिल रही हैं। इनमें अंबुजा को 1164 और ए सी सी को 1148 करोड़ का जुर्माना लगा था। इस जुर्माने को अपीलीय प्राधिकरण में चुनौती दी गयी थी और अब यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है।
स्मरणीय है कि जब 2018 में वॉलमार्ट और फ्लिपकार्ट में सोलह सौ करोड़ की डील हुई थी तब वॉलमार्ट ने 7439 करोड़ का टैक्स अदा किया था। टैक्स अधिकारियों ने तब कहा था कि इसने अभी और टैक्स देय होगा। लेकिन अब इस डील पर अदानी की ओर से कुछ नहीं कहा गया है। कर तंत्र से जुड़े अधिकारी भी अभी तक खामोश हैं। केवल हाल्सिम समूह के सी ई ओ ने अपने निवेशकों से साफ कहा है कि यह टैक्स फ्री लेन देन है। अंबुजा और ए सी सी दोनों हिमाचल में स्थित हैं। यदि प्रतिस्पर्धा आयोग ने इन कंपनियों को इतना भारी जुर्माना लगाया है तो तय है कि आयोग की नजर में तय मानकों की अनुपालना में कोई आवहेलना की जा रही थी। हिमाचल में स्थित इन उद्योगों को लेकर हिमाचल सरकार की ओर से ऐसा कभी कुछ सामने नहीं आया है इसलिए यह स्पष्ट होना भी आवश्यक हो जाता है कि इन कंपनियों में ऐसा क्या हो रहा था जिस पर इतना बड़ा जुर्माना लगा तथा प्रदेश सरकार इस बारे में अनभिज्ञ रही है। आज प्रधानमंत्री मोदी अपनी सरकार के आठ वर्ष पूरा होने पर शिमला आ रहे हैं। इसलिये यह आवश्यक हो जाता है कि प्रदेश सरकार उनके सामने इस मुद्दे को रखें और प्रदेश की जनता को सही स्थिति की जानकारी दें।
विपक्ष भी इस मुद्दे पर मौन बैठा हुआ है। जबकि प्रदेश और राष्ट्रहित में यह एक बड़ा मुद्दा है। जिसमें 82 हजार करोड़ के लेन-देन पर कोई टैक्स न मिलने की आशंका व्यक्त की जा रही है और सभी संबध पक्ष मौन धारण किये हुए हैं।

क्या जयराम हटाये जा रहे हैं फिर उठी यह चर्चा

शिमला/शैल। प्रदेश में इसी वर्ष के अंत में चुनाव होने हैं पंजाब में भाजपा की हार और आम आदमी पार्टी की जीत ने भाजपा तथा कांग्रेस दोनों के लिए ऐसी चुनौती खड़ी कर दी है कि दोनों दलों को अपनी रणनीति में बदलाव करने की परिस्थितियां पैदा कर दी हैं। प्रदेश कांग्रेस संगठन में हुआ बदलाव उसी का परिणाम है। अब पंजाब की मान सरकार ने अपने स्वास्थ्य मंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार को लेकर जिस तेजी से कारवाई की है उससे भी हरियाणा और हिमाचल की भाजपा सरकारों पर दबाव आया है। हिमाचल में जब से जयराम सरकार आयी है तब से लेकर आज तक कई मंत्रियों को लेकर बेनामी पत्रों के माध्यम से भ्रष्टाचार के मामले उठते रहे हैं। लेकिन किसी पर कोई कारवाई नहीं हुई है। बल्कि पत्रों को लेकर कुछ पत्रकारों को अवश्य परेशान किया गया। सरकार के पांच वरिष्ठ अधिकारी एक ही समय में दिल्ली और शिमला में मूल पोस्टिंगज लेकर दोनों जगह सरकारी आवासों का लाभ लेने के साथ ही विशेष वेतन का भी लाभ ले रहे हैं। नियमों के मुताबिक यह अपराध जिस पर तुरंत कारवाई होनी चाहिये थी। लेकिन सरकार ऐसा कर नहीं पा रही है। हर गलती को कांग्रेस शासन के साथ तुलना करके दबाया जा रहा है। जनता में यह सब चर्चा का विषय बना हुआ है। इसी जमीनी सच्चाई का परिणाम है कि अब तक हुये चारों चुनावी सर्वेक्षणों में किसी में भी भाजपा जीत के आस पास भी नहीं है। यह सर्वेक्षण तब हुये हैं जब पुलिस भर्ती पेपर लीक मामला नहीं घटा था और न ही भाजपा का गुटों में बंटा होना सामने आया था। अब जब भाजपा ने पुष्कर धामी को हारने के बाद भी फिर से मुख्यमंत्री बना दिया तो धूमल की ओर से भी उनकी हार के कारणों की जांच की मांग आना स्वभाविक था। क्योंकि जयराम के वरिष्ठ मंत्री सुरेश भारद्वाज का यह ब्यान आ चुका था कि 2017 में पुराने नेतृत्व और नीतियों को खत्म करके नया नेता तथा नीति लायी गयी है। भारद्वाज के इस ब्यान पर नड्डा ने यह कह कर मोहर लगा दी कि भाजपा गुण दोष के आधार पर फैसला लेती है। नड्डा ने यह स्पष्ट कह दिया कि हार के कारणों की जांच नहीं की जा सकती। जयराम के नेतृत्व में अगला चुनाव लड़ा जाने का ऐलान कर दिया। संयोगवश नड्डा के इस ऐलान के बाद ही केजरीवाल की दो प्रदेश यात्राएं हुई। दोनों रैलियां सारे अवरोधों के बावजूद सफल रही। केजरीवाल की रैलियों का प्रभाव कम करने के लिये नड्डा को स्वयं मैदान में उतरना पड़ा। लेकिन शिमला और कांगड़ा दोनों जगह केजरीवाल के मुकाबले भीड़ बहुत कम रही। अब इस सभी को पूरा करने के लिये प्रधानमंत्री की यात्राएं आयोजित की जा रही हैं। युवा मोर्चा का राष्ट्रीय आयोजन धर्मशाला में किया गया। यह चर्चाएं सामने आयी हैं कि बड़े स्तर पर टिकटों में परिवर्तन होगा। अनचाहे ही यह संदेश चला गया है कि धूमल खेमें के पर कतरने का पूरा प्रबन्ध कर लिया गया है।
लेकिन संयोगवश इन्हीं दिनों धूमल की शादी की 50वीं सालगिरह का अवसर आ गया। धूमल पुत्रों ने इस अवसर को एक बड़े आयोजन का रूप दे दिया। इस अवसर पर जिस कदर जनता अपने नेता के साथ इकटठी हो गयी उसने भाजपा के भीतर पक रहे सारे षडयंत्रों की हवा निकालते हुये यह प्रमाणित कर दिया कि प्रदेश की राजनीति के सारे समीकरणों को बदलने की ताकत अब भी इस परिवार के पास है। इस आयोजन को राजनीतिक विश्लेषक पूरी तरह से नड्डा के उस ब्यान का जवाब मान रहे हैं जिसमें नड्डा ने कहा था कि पार्टी गुण दोष के आधार पर फैसला लेती है। आज जिस तरह से जयराम सरकार ने धूमल को हाशिये पर धकेल रखा है उस परिदृश्य में इस परिवार के परिवारिक आयोजन में इतने लोगों का आ जाना राजनीतिक पंडितों के लिये बहुत कुछ स्पष्ट कर देता है। क्योंकि जयराम के सलाहकारों ने उन्हें ऐसे मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया है जहां वह चाह कर भी अपने में कोई सुधार नहीं कर सकते। ऐसे में पार्टी को शर्मनाक हार या नेतृत्व परिवर्तन करके जीत की संभावनाओं तक पहुंचने के प्रयासों में से एक को चुनने की बाध्यता आ खड़ी हुई है। दूसरी ओर धूमल परिवार को भी भविष्य में स्थापित करने के लिये यह वस्तुस्थिति एक बड़ी चुनौती बन गयी है। माना जा रहा है कि सरकार और संगठन दोनों के नेतृत्व में परिवर्तन करना अब बाध्यता बन गयी है और अब शायद नड्डा का संरक्षण भी रक्षा नहीं कर पायेगा।

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