सरकार दोहरे मापदंड क्यों अपना रही?
मुख्य सचिव के खिलाफ मामला क्यों नहीं दर्ज हो सकता
पी चिदंबरम के साथ अभियुक्त बने प्रबोध सक्सेना को लेकर सरकार की क्या मजबूरी है
शैल की आवाज दबाने के लिये किस हद तक जायेगी सरकार
शिमला/शैल। पिछले दिनो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा जब अपने ही गृह राज्य हिमाचल केे दौरे पर आये थे तब उन्होंने प्रदेश में चल रही नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों पर विराम लगाते हुये यह भी कहा था कि वह और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर दिल्ली में मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर के वकील हैं। इसी के साथ धूमल की उस मांग पर भी स्थिति स्पष्ट कर दी थी। जिसमें धामी की तर्ज पर उनकी हार के कारणो की जांच करने का आग्रह किया गया था। धूमल प्रकरण को भी यह कहकर विराम लगा दिया कि भाजपा गुण दोष के आधार पर फैसला लेती है। नड्डा के इस ब्यान के राजनीतिक अर्थ चाहे जो भी निकाले जायें लेकिन इससे यह आवश्य स्पष्ट हो जाता है कि आने वाले दिनों में जयराम और उनकी सरकार पर उठने वाले सवालों का जवाब नड्डा तथा अनुराग ठाकुर से भी पूछा जा सकता है। क्योंकि उन्होंने सरकार के वकील होने का दावा किया है। इसी दावे पर अमल करते हुये अनुराग ठाकुर ने आप के पांव प्रदेश में लंबे होने से पहले ही उस में तोड़फोड़ करके आप को प्रदेश इकाई भंग करने के मुकाम तक पहुंचा दिया। आने वाले दिनों में भाजपा और आप में क्या-क्या घटता है यह देखना दिलचस्प होगा।
लेकिन आगामी राजनीतिक घटनाक्रम के आकार लेने से पहले ही प्रदेश के मुख्य सचिव राम सुभाग सिंह के खिलाफ प्रधानमंत्री कार्यालय से जांच किये जाने की संस्तुतिक जो पत्र पिछले करीब छः माह से मुख्यमंत्री सचिवालय की अपनी ही फाइलों के नीचे दबा पड़ा था अचानक बाहर आकर एक बड़े समाचार की शक्ल ले गया। जिस पर मुख्यमंत्री को भी स्वयं प्रतिक्रिया देनी पड़ी। लेकिन मुख्यमंत्री यह प्रक्रिया देते हुए भूल गये कि इससे वह स्वयं ही दोहरे मापदंडों के आरोप में आ खड़े होते हैं। क्योंकि 2020 में ऐसा ही एक पत्र पीएमओ से शैल कार्यालय को लेकर आया था। इस पत्र पर बाकायदा विजिलैंस में मामला दर्ज किया गया है। इस मामले के शिकायतकर्ता और उसकी शिकायत तथा उसके ब्यान की कॉपी विजिलैंस से मांगी गयी जो आज तक नहीं मिली है। जिसका अर्थ है कि शिकायत छद्म नाम से की गयी और प्रदेश सरकार के ही गृह एवं सतर्कता विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव के निर्देशों के अनुसार ऐसी शिकायतों पर जांच नहीं की जा सकती। लेकिन जयराम सरकार ने शैल की आवाज को दबाने के लिये यह सब किया। परंतु आज मुख्य सचिव के खिलाफ शिकायतें आने पर कोई मामला दर्ज नहीं किया जा रहा है। अब यह दोहरे मापदंड क्यों अपनाये जा रहे हैं। इस पर मुख्यमंत्री की ओर से कोई जवाब नहीं आ रहा है। ऐसे में क्या मुख्यमंत्री के वकील नड्डा और अनुराग इन दोहरे मापदंडों का कारण बतायेंगे।
यही नहीं सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव वित्त प्रबोध सक्सेना पी चिदंबरम मामले में सह अभियुक्त हैं। सीबीआई ने यह मामला दर्ज किया हुआ है। इस मामले के चलते उन्हें ओ डी आई सूची में होना चाहिये और नियमानुसार इस मामले के लंबित रहते उन्हें पदोन्नत नहीं किया जा सकता। हिमाचल सरकार ने भी अपने 27-10-2017 के पत्र में इस आशय के स्पष्ट निर्देश जारी किये हुये हैं। लेकिन जयराम सरकार ने इन निर्देशों को भी अंगूठा दिखाते हुये प्रबोध सक्सेना को महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी देने के साथ ही पदोन्नति भी दी है। प्रबोध सक्सेना एक योग्य अधिकारी हो सकते हैं लेकिन क्या सरकार ने ऐसे निर्देश उन लोगों को दंडित करने के लिये बना रखे हैं जो गुण दोष के आधार पर सरकार की हां में हां मिलाते हैं। क्योंकि जिन लोगों के खिलाफ ऐसे कोई मामले होते हैं वह सरकार को खुश करने के लिये कोई भी अवांछित फैसला लेने के लिये तैयार रहते हैं। इसमें यह भी सवाल उठता है कि राजनीतिक नेतृत्व ऐसे लोगों पर अपनी विश्वसनीयता कैसे बना लेता है। क्या ऐसे राजनीतिक और प्रशासनिक नेतृत्व के हाथों में कोई भी देश-प्रदेश ज्यादा देर तक सुरक्षित रह सकता है? जयराम सरकार के कार्यकाल में ऐसे दर्जनों मामले घटे हैं जहां अदालतों के फैसलों पर भी अमल नहीं किया गया है। आने वाले दिनों में ऐसे मामले पाठकों के सामने पूरे विस्तार के साथ रखे जायेंगे ताकि जनता एक स्वस्थ फैसला ले सके।
2017 में प्रबोध सेक्सेना द्वारा स्वयं जारी पत्र का अब उन्ही पर अमल क्यों नही
जुलाई 2019 में निदेशक से आये पत्र को फाईनल करने में डेढ़ वर्ष का समय क्यों लगा?
क्या इस दौरान यह फाइल सचिव तक ही रही या आगे भी गयी
इसी तरह का अंत एशियन और डालमिया के प्लांट का भी क्यों हुआ?
शिमला/शैल। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने जब 2018 में अपना पहला बजट भाषण सदन में पढ़ा था तब उन्होंने प्रदेश की आर्थिक स्थिति और बढ़ते कर्ज पर गंभीर चिंता व्यक्त की थी। प्रदेश को इस स्थिति से बाहर निकालने के लिए औद्योगिक विस्तार के माध्यम से निवेश जुटाने की योजना बनायी गयी। इसके लिये धर्मशाला में 2019 में बड़े स्तर पर इन्वेस्टर मीट आयोजित की गयी। इस मीट में एक लाख करोड़ के निवेश के प्रस्ताव आने का दावा किया। लेकिन मार्च 2020 में ही लॉकडाउन लगा दिये जाने से यह दावा पूरी तरह सफल नहीं हो पाया। कोविड के कारण इसके लिए सरकार को ज्यादा दोषी नहीं ठहराया जा सकता यह स्वाभाविक है। लेकिन जब मार्च 2014 में एकल खिड़की योजना में क्लियर किये गये सीमेंट उद्योग को 2021 में भ्रूण हत्या का शिकार बनना पड़ जाये तो पूरी सरकार की नीयत और नीति का आकलन बदल जाता है।
स्मरणीय है कि मार्च 2014 में स्व. वीरभद्र सिंह की सरकार ने शिमला के चौपाल में रिलायंस उद्योग के लगने वाले 34 करोड़ के एक सीमेंट प्लांट की स्थापना की एकल खिड़की योजना के तहत अनुमति प्रदान की थी। इस अनुमति के बाद प्लांट की स्थापना से जुड़े अन्य कार्य शुरू किये गये। सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद निदेशक उद्योग ने जुलाई 2019 में यह मामला एल ओ आई जारी किये जाने के लिये सरकार में अतिरिक्त मुख्य सचिव को अगली कारवाई के लिये भेज दिया। लेकिन जुलाई 2019 में सचिवालय में आये इस प्रस्ताव पर जनवरी 2021 तक एल ओ आई जारी नहीं हो सका। इसी बीच रिलायंस से यह उद्योग आर सी सी पी एल प्राइवेट लिमिटेड ने ले लिया था। एल ओ आई का आवेदन रिलायंस ने दायर कर दिया हुआ था। लेकिन इस कंपनी को यह एल ओ आई 20-01-2021 को प्राप्त हुआ। इसी बीच भारत सरकार द्वारा एमएमडीआर एक्ट मार्च में संशोधित किये जाने के समाचार आ चुके थे। इन समाचारों के परिदृश्य में कंपनी को पर्याप्त समय रहते एल ओ आई की जगह ग्रांट ऑर्डर चाहिये था। कंपनी ग्रांट ऑर्डर की पैरवी में लग गयी जो उसे 23-03-2021 को मिला। परन्तु एम एम डी आर एक्ट का संशोधन 28-03-2021 से लागू हो गया।
ऐसे में यह स्वभाविक है कि जिस उद्योग में करीब 4000 करोड़ का निवेश होना हो और करीब 400 लोगों को रोजगार मिलना हो उसे 23-03-2021 को ग्रांट ऑर्डर हासिल करके 28-03-2021 तक 5 दिन में अमलीजामा नहीं पहनाया जा सकता। इसमें प्रदेश को हर वर्ष हजारों करोड़ का नुकसान हो गया और सैकड़ों लोग रोजगार से वंचित रह गये हैं। क्योंकि यह उद्योग पैदा होने से पहले ही भ्रुण हत्या का शिकार बना दिया गया। एक ओर जयराम सरकार इसी प्रशासन के सहारे इन्वैस्टर मीट जैसे आयोजन करके निवेशकों को आमंत्रित कर रही है और दूसरी ओर उसी के सचिवालय में उसी की नाक के नीचे इतने बड़े निवेश तथा निवेशक के साथ इस तरह का अनुभव घट जाये तो इसका आम आदमी में सरकार को लेकर क्या संदेश जायेगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
कंपनी ने सरकार के इस व्यवहार को लेकर मीडिया के कुछ लोगों को अपनी पीड़ा ब्यान करते हुये जो खुलासा किया है वह पूरे प्रशासन को बुरी तरह से बेनकाब कर देता है। उनकी पीड़ा के कुछ तथ्य पाठकांे और सरकार के सामने भी आने चाहिये। शायद इसी नीयत से कंपनी मीडिया तक पहुंची है। सरकारी दस्तावेज के मुताबिक 17-07-2019 को इस मामले की फाइल निदेशक से ए सी एस उद्योग को एल ओ आई जारी करने के लिए आयी। एल ओ आई 20-01-2021 को जारी हुआ और ग्रांट ऑर्डर 23-03-2021 को तथा 28-03-2021 को संशोधित एक्ट लागू हो गया। परिणाम स्वरूप सीमेंट प्लांट नहीं लग पाया। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि इतना समय फाइल प्रोसैस करने में क्यों लग गया? कंपनी का आरोप है कि उनसे करोड़ों की रिश्वत मांगी गयी और उन्होंने दी भी कंपनी का तो यहां यहां तक आरोप है की गुड़गांव की सैक्टर 65 स्थित एम थ्री एम गोल्फ ऐस्टेट में एक फ्लैट भी किसी परिजन को दिया गया। कंपनी के इन आरोपों में कितनी सच्चाई है और उसने 2021 मार्च में घट चुके इस प्रकरण को क्यों अब मीडिया के माध्यम से सार्वजनिक करने का फैसला लिया यह सब जांच का विषय है और सरकार को इसकी जांच करके सच्चाई सामने लानी चाहिये। क्योंकि मार्च 2014 में यह पलांट सिंगल विंडो में क्लियर किया जो मार्च 2021 में आकर इस तरह की भ्रुण हत्या का शिकार हो गया। चर्चा है कि ऐसा अन्त इसी उद्योग का अकेले नही हुआ हैं इसमें डालमिया और एशियन के प्लांट्स का भी यही अंत हुआ है।
इसी बीच यह शिकायत एक बृजलाल के माध्यम से पी एम ओ तक भी पहुंच गयी। बृजलाल शायद शिवसेना से ताल्लुक रखते हैं। उन्होंने वाकायदा यह मामला प्रधानमंत्री कार्यालय तक को भेज दिया। प्रधानमंत्री कार्यालय ने इसका संज्ञान लेकर यह मामला राज्य सरकार को भेज दिया है। अब इस प्रकरण पर मुख्यमंत्री क्या कार्रवाई करते हैं इस पर सबकी निगाहें लग गयी हैं। चुनावों की पूर्व संध्या पर ऐसे मामलों का इस तरह से बाहर आना सत्तारूढ़ भाजपा और मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की राजनीतिक सेहत पर क्या असर डालता है यह देखना रोचक हो गया है। क्योंकि सीमेंट प्लांट जमीन पर नहीं उतर पाये हैं और सरकार इस पर खामोश रही है।
शिमला/शैल। अभी हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा चार राज्यों में सरकारें बनाने में सफल रही हैं। लेकिन इसी जीत में उत्तर प्रदेश में उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी चुनाव हार गये। जबकि धामी को नेता घोषित करके उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया और पार्टी को सफलता भी मिली। उनकी हार के लिये भीतरघात को जिम्मेदार ठहराते हुये उन्हें फिर से मुख्यमंत्री बना दिया गया और हार के कारणों की जांच की घोषणा कर दी गयी। केशव मौर्य को भी फिर से उप मुख्यमंत्री बना दिया गया। उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में जो कुछ घटा उसको लेकर पूरे देश में भाजपा के सिद्धांतों को लेकर पार्टी के भीतर तीव्र प्रतिक्रियाएं हुयी हैं और इन्हीं के कारण सरकारें बनाने में एक पखवाड़े से भी अधिक का समय लग गया। इन्हीं चुनावों में परिवारवाद भी नए सिरे से चर्चा में आ गया है। इस सबका हिमाचल पर भी एक गहरा असर पड़ा है। यहां भी प्रेम कुमार धूमल को फिर से मुख्यमंत्री बनाये जाने की मांग पार्टी के भीतर से उठनी शुरू हो गयी है।
स्मरणीय है कि 2017 का चुनाव भाजपा ने प्रो. प्रेम कुमार धूमल को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करके लड़ा था और जीत हासिल की थी। लेकिन धूमल अपना चुनाव हार गये। यही नहीं उनके निकटस्थ माने जाने वाले भी दो-तीन लोग चुनाव हार गये। इस हार को उस समय भी भीतरघात का परिणाम कहा गया था। इसी कारण से उस समय हार के बावजूद उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की मांग पार्टी के भीतर से उठी थी। उनके लिये सीटें खाली करने की भी कुछ विधायकों ने घोषणा कर दी। परंतु जनता के फैसले का आदर करते हुये धूमल ने इन प्रस्तावों को स्वीकार नहीं किया और जयराम ठाकुर के नेतृत्व में सरकार का गठन हो गया। उस समय जगत प्रकाश नड्डा भी मुख्यमंत्री बनने के लिए प्रयासरत हो गये थे यह सभी जानते हैं लेकिन सरकार बनने के बाद प्रेम कुमार धूमल और उनके निकटस्थ सरकार एवं संगठन में जिस तरह के आचरण के शिकार होते गये वह हर आदमी के सामने है। जंजैहली प्रकरण में ही धूमल को इस कगार तक पहुंचा दिया गया कि उन्हें सार्वजनिक रूप से यह कहना पड़ा कि सरकार चाहे तो उनकी सीआईडी जांच करवा लें। अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिस नेता के नेतृत्व में जीत हासिल की गयी हो उसे जब ऐसा ब्यान देने के कगार पर पहुंचा दिया जाये तो यह स्थिति कितनी पीड़ादायक रही होगी। अनुराग ठाकुर के साथ भी केंद्रीय विश्वविद्यालय के मुद्दे पर देहरा की एक जनसभा में मुख्यमंत्री के साथ संवाद किस सीमा तक पहुंच गया था वह भी सबके सामने है।
जयराम सरकार में जितने भी पत्र विस्फोट अब तक घटे हैं उनका पहला नजला धूमल के ही किसी न किसी करीबी पर ही गिराया गया है। यदि पत्र बिस्फोटांे के कण की जांच इमानदारी से की जाये तो निश्चित रूप से बहुत कुछ गंभीर सामने आयेगा। पिछले दिनों जिस तरह से मानव भारती विश्वविद्यालय के प्रकरण पर पार्टी के बड़े नेताओं के ब्यान आये हैं यदि उनके राजनीतिक अर्थ निकाले जायें तो बहुत कुछ स्पष्ट हो जाता है। मानव भारती विश्वविद्यालय प्रकरण का निहित जब पूरा नहीं हो पाया तब एक मंत्राी तो यहां तक ब्यान देने पर आ गया कि 2017 के नेता नियत और नेतृत्व को खत्म करके नया नेतृत्व लाया गया था। यही नहीं इसके बाद कर्मचारियों और स्वर्ण आयोग के आंदोलनों को एक बड़े ठाकुर के नाम लगा दिया गया। यह सब कुछ जो घट चुका है अब धामी को उत्तराखंड में मुख्यमंत्री बनाने और उनकी हार के कारणों की जांच करने के वायदे ने हिमाचल में भी धूमल और उनके समर्थकों के सामने आत्मसम्मान की बहाली का मुद्दा खड़ा कर दिया है। इसी कारण से धूमल को भी अपनी हार के कारणों की जांच की मांग करने और अगला चुनाव लड़ने की हुंकार भरने की नौबत आयी है। धूमल कि यह मांग उस समय आयी है जब सरकार प्रदेश के चारों उपचुनाव हार चुकी है। बल्कि इसके बाद आगामी विधानसभा के लिए आ चुके दो सर्वेक्षणों में भी पार्टी की जीत नहीं बतायी गयी है। ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि पार्टी क्या फैसला लेती है।
The Joomla! content management system lets you create webpages of various types using extensions. There are 5 basic types of extensions: components, modules, templates, languages, and plugins. Your website includes the extensions you need to create a basic website in English, but thousands of additional extensions of all types are available. The Joomla! Extensions Directory is the largest directory of Joomla! extensions.
We search the whole countryside for the best fruit growers.
You can let each supplier have a page that he or she can edit. To see this in action you will need to create a users who is in the suppliers group.
Create one page in the growers category for that user and make that supplier the author of the page. That user will be able to edit his or her page.
This illustrates the use of the Edit Own permission.