Friday, 19 September 2025
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क्या जयराम हटाये जा रहे हैं फिर उठी यह चर्चा

शिमला/शैल। प्रदेश में इसी वर्ष के अंत में चुनाव होने हैं पंजाब में भाजपा की हार और आम आदमी पार्टी की जीत ने भाजपा तथा कांग्रेस दोनों के लिए ऐसी चुनौती खड़ी कर दी है कि दोनों दलों को अपनी रणनीति में बदलाव करने की परिस्थितियां पैदा कर दी हैं। प्रदेश कांग्रेस संगठन में हुआ बदलाव उसी का परिणाम है। अब पंजाब की मान सरकार ने अपने स्वास्थ्य मंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार को लेकर जिस तेजी से कारवाई की है उससे भी हरियाणा और हिमाचल की भाजपा सरकारों पर दबाव आया है। हिमाचल में जब से जयराम सरकार आयी है तब से लेकर आज तक कई मंत्रियों को लेकर बेनामी पत्रों के माध्यम से भ्रष्टाचार के मामले उठते रहे हैं। लेकिन किसी पर कोई कारवाई नहीं हुई है। बल्कि पत्रों को लेकर कुछ पत्रकारों को अवश्य परेशान किया गया। सरकार के पांच वरिष्ठ अधिकारी एक ही समय में दिल्ली और शिमला में मूल पोस्टिंगज लेकर दोनों जगह सरकारी आवासों का लाभ लेने के साथ ही विशेष वेतन का भी लाभ ले रहे हैं। नियमों के मुताबिक यह अपराध जिस पर तुरंत कारवाई होनी चाहिये थी। लेकिन सरकार ऐसा कर नहीं पा रही है। हर गलती को कांग्रेस शासन के साथ तुलना करके दबाया जा रहा है। जनता में यह सब चर्चा का विषय बना हुआ है। इसी जमीनी सच्चाई का परिणाम है कि अब तक हुये चारों चुनावी सर्वेक्षणों में किसी में भी भाजपा जीत के आस पास भी नहीं है। यह सर्वेक्षण तब हुये हैं जब पुलिस भर्ती पेपर लीक मामला नहीं घटा था और न ही भाजपा का गुटों में बंटा होना सामने आया था। अब जब भाजपा ने पुष्कर धामी को हारने के बाद भी फिर से मुख्यमंत्री बना दिया तो धूमल की ओर से भी उनकी हार के कारणों की जांच की मांग आना स्वभाविक था। क्योंकि जयराम के वरिष्ठ मंत्री सुरेश भारद्वाज का यह ब्यान आ चुका था कि 2017 में पुराने नेतृत्व और नीतियों को खत्म करके नया नेता तथा नीति लायी गयी है। भारद्वाज के इस ब्यान पर नड्डा ने यह कह कर मोहर लगा दी कि भाजपा गुण दोष के आधार पर फैसला लेती है। नड्डा ने यह स्पष्ट कह दिया कि हार के कारणों की जांच नहीं की जा सकती। जयराम के नेतृत्व में अगला चुनाव लड़ा जाने का ऐलान कर दिया। संयोगवश नड्डा के इस ऐलान के बाद ही केजरीवाल की दो प्रदेश यात्राएं हुई। दोनों रैलियां सारे अवरोधों के बावजूद सफल रही। केजरीवाल की रैलियों का प्रभाव कम करने के लिये नड्डा को स्वयं मैदान में उतरना पड़ा। लेकिन शिमला और कांगड़ा दोनों जगह केजरीवाल के मुकाबले भीड़ बहुत कम रही। अब इस सभी को पूरा करने के लिये प्रधानमंत्री की यात्राएं आयोजित की जा रही हैं। युवा मोर्चा का राष्ट्रीय आयोजन धर्मशाला में किया गया। यह चर्चाएं सामने आयी हैं कि बड़े स्तर पर टिकटों में परिवर्तन होगा। अनचाहे ही यह संदेश चला गया है कि धूमल खेमें के पर कतरने का पूरा प्रबन्ध कर लिया गया है।
लेकिन संयोगवश इन्हीं दिनों धूमल की शादी की 50वीं सालगिरह का अवसर आ गया। धूमल पुत्रों ने इस अवसर को एक बड़े आयोजन का रूप दे दिया। इस अवसर पर जिस कदर जनता अपने नेता के साथ इकटठी हो गयी उसने भाजपा के भीतर पक रहे सारे षडयंत्रों की हवा निकालते हुये यह प्रमाणित कर दिया कि प्रदेश की राजनीति के सारे समीकरणों को बदलने की ताकत अब भी इस परिवार के पास है। इस आयोजन को राजनीतिक विश्लेषक पूरी तरह से नड्डा के उस ब्यान का जवाब मान रहे हैं जिसमें नड्डा ने कहा था कि पार्टी गुण दोष के आधार पर फैसला लेती है। आज जिस तरह से जयराम सरकार ने धूमल को हाशिये पर धकेल रखा है उस परिदृश्य में इस परिवार के परिवारिक आयोजन में इतने लोगों का आ जाना राजनीतिक पंडितों के लिये बहुत कुछ स्पष्ट कर देता है। क्योंकि जयराम के सलाहकारों ने उन्हें ऐसे मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया है जहां वह चाह कर भी अपने में कोई सुधार नहीं कर सकते। ऐसे में पार्टी को शर्मनाक हार या नेतृत्व परिवर्तन करके जीत की संभावनाओं तक पहुंचने के प्रयासों में से एक को चुनने की बाध्यता आ खड़ी हुई है। दूसरी ओर धूमल परिवार को भी भविष्य में स्थापित करने के लिये यह वस्तुस्थिति एक बड़ी चुनौती बन गयी है। माना जा रहा है कि सरकार और संगठन दोनों के नेतृत्व में परिवर्तन करना अब बाध्यता बन गयी है और अब शायद नड्डा का संरक्षण भी रक्षा नहीं कर पायेगा।

क्या यह कानून की समझ है या अदालत का सम्मान

डवैल्पमैन्ट प्लान पर एन जी टी का फैसला

शिमला/शैल। एनजीटी ने जयराम सरकार द्वारा तैयार की गयी शिमला डवैल्पमैन्ट प्लान के कार्यान्वयन के संदर्भ में उस पर कोई भी कदम उठाने पर अपने 12 मई के फैसले में तुरंत प्रभाव से रोक लगा दी है। इसकी किसी भी अवहेलना के लिये मुख्य सचिव को व्यक्तिगत तौर पर जिम्मेदार ठहराने के आदेश किये गये हैं। स्मरणीय है कि शिमला में निर्माणों को लेकर लगातार अवहेलनाएं होती रही है। सरकार और नगर निगम शिमला द्वारा समय-समय पर इस संद्धर्भ में बनाये गये अपने ही नियमों की अनुपालना नहीं होती रही। सरकारें स्वयं रिटैन्शन पॉलिसीयां लाकर अपने ही बनाये नियमों को अंगूठा दिखाती रही। निर्माण अवैधताआंे को नियमित करने के लिए नौ बार ऐसी पॉलिसियां लायी गयी। शिमला के साथ ही कुल्लू-मनाली, कसौली और धर्मशाला भी इन अवैधताओं के शिकार होते गये। क्योंकि नगर नियोजन और ग्रामीण विकास विभाग बनाकर 1980 में प्रदेश के लिये जो अन्तरिम डवैल्वमैन्ट प्लान जारी किया गया था उसे आज तक अंतिम रूप नहीं दिया गया। हर सरकार पर आरोप लगते रहे हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय कई फैसलों में सरकार को कड़ी फटकार लगा चुका है। लेकिन सरकार पर कभी कोई असर नहीं हुआ। स्थितियां कसौली कांड घटने तक पहुंच गयी। मामला एनजीटी और सर्वाेच्च न्यायालय तक पहुंच गया। अदालत ने इस कांड के लिये जिम्मेदार अधिकारियों को नामतः चिन्हित करते हुये उनके खिलाफ कारवाई करने के निर्देश दिये। जिन पर आज तक कोई कारवाई नहीं हो सकी है। क्योंकि शासन- प्रशासन में बैठे कई लोग स्वयं इन अवैधताओं के दोषी हैं।
हथधर्मिता की हद तो यह है कि यह सब उस प्रदेश में हो रहा है जो भूकंप जोन पांच में आता है। प्रदेश की राजधानी शिमला का रिज और लक्कड़ बाजार का जो एरिया 1971 में किन्नौर में आये भूकंप से ध्वस्त हुआ था वह आज तक रुक नहीं पाया है। ऐतिहासिक रिज हर वर्ष प्रभावित हो रहा है। भूगर्भीय अध्ययनों के अनुसार शहर का बहुत हिस्सा स्लाईडिंग और सिंकिंग घोषित है। लेकिन वोट की राजनीति के चलते इस हिस्से में भी निर्माण नहीं रुके हैं। पूरे प्रदेश के ऊपर पर्यावरण से खिलवाड़ का जो असर पड़ा है उसके परिणाम स्वरूप प्रदेश के किसी न किसी भाग में रोज भूकंप आ रहे हैं। शिमला में ही एक हल्के से झटके से चालीस हजार से ज्यादा जान माल का नुकसान होने की चेतावनी सरकार अपनी ही रिपोर्टों में दे चुकी है। लेकिन जब सरकार ने अपनी ही रिपोर्टों पर अमल नहीं किया तब एक योगेंद्र मोहन सेन गुप्ता ने इस सब को एन जी टी के समक्ष एक याचिका के माध्यम से उठाया। एन जी टी का 16-11 2017 को इस पर फैसला आ गया। यहां यह भी गौरतलब है कि यह फैसला प्रदेश सरकार के सचिवालय में बैठे अपने ही उच्चअधिकारियों की रिपोर्टों के ऊपर आधारित है। इन रिपोर्टों में प्रधानमंत्री के वर्तमान सलाहकार तरुण कपूर की रिपोर्ट विशेष महत्वपूर्ण है।
एन जी टी का फैसला 16- 11-2017 को आया और दिसंबर 2017 में चुनाव परिणाम आने पर सरकार बदल गयी। इस फैसले पर अमल करने की जिम्मेदारी जयराम सरकार पर आ गयी। फैसले में सरकार को तीन माह के भीतर डवैल्पमैन्ट प्लान को अंतिम रुप से तैयार करने के निर्देश दिये गये थे। We direct the State Government and/or its instrumentalities and more, particularly, the Town and Country Planning Department  to finalize the Development Plan within three months from the date of pronouncement of this judgement without default. The Development Plan so finalized shall be notified in accordance with law. While finalizing the  development plan, the directions and precautions stated in this judgement shall be duly considered by the concerned departments and the State of Himachal Pradesh.   लेकिन सरकार ने प्लान 2022 में तैयार की और जनता के सामने रखी। क्योंकि सरकार एन जी टी के फैसले के खिलाफ 2019 में सर्वाेच्च न्यायालय में चली गयी थी। लेकिन सर्वाेच्च न्यायालय ने एन जी टी के फैसले को स्टे नहीं किया और परिणाम स्वरुप यह प्लान तैयार करना ही पड़ा। एन जी टी के फैसले को इस अधिनियम की धारा 15 के तहत अंतिम डिक्री का दर्जा हासिल है जिस पर सर्वाेच्च न्यायालय ही धारा 33 के तहत बदलाव कर सकता है। एन जी टी के निर्देशों की अनुपालना न करना धारा 26 के तहत दंडनीय अपराध है और धारा 28 के तहत अवहेलना करने वाले विभाग भी दंड के भागीदार बनते हैं। लेकिन सरकार ने कानून के इन पक्षों को नजरअंदाज करते हुये प्लान जारी कर दिया। इस पर फिर मामला एन जी टी में पहुंच गया। अब एन जी टी ने जिन शब्दों में इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी है उससे सरकार और उसके तन्त्र की कानूनी समझ और अदालत के प्रति सरकार के सम्मान पर गंभीर सवाल उठते हैं। As against above, the either in violation of law or on account of lack of knowledge, the authorities in the State of Himachal have made following statements in the draft plan showing irresponsible and illegal behaviour:

It is pointed out that the State of Himachal Pradesh trying to assume jurisdiction of Appellate Authority over the NGT, in breach of rule of law, not expected from a lawful Government which has to work as per law and the Constitution and not at its fancies as appears to be the case. Chief Secretary should be personally held liable for prosecution for such patent illegal acts of the State authorities.

खालिस्तानी झण्डा प्रकरण पर बहुत कमजोर है मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया

शिमला/शैल। प्रदेश के धर्मशाला स्थित विधानसभा परिसर पर कोई रात के अंधेरे में खालिस्तान का झण्डा लगाकर खालिस्तान के समर्थन के बारे में भी लिख जाता है। पुलिस किसी को भी घटनास्थल पर पकड़ नहीं पायी है। बाद में अज्ञात लोगों पर सरकारी संपत्ति को विकृत करने के अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर लेती है। इस प्रकरण में मुख्यमंत्री के उनके ट्वीट के माध्यम से आयी प्रक्रियाओं में कहा गया है कि यह परिसर केवल शीतकालीन सत्र के दौरान ही उपयोग में आता है इसलिये वहां पर सुरक्षा व्यवस्था इतनी कड़ी नहीं रहती है। इसी का लाभ उठाकर रात के अंधेरे में उस काम को अंजाम दिया गया। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा है कि साहस हो तो दिन के उजाले में ऐसा करके दिखायें। स्वभाविक है कि मुख्यमंत्री ने यह जानकारी मिलते ही प्रशासन से इस का पूरा ब्यौरा लिया होगा और उसके आधार पर यह प्रतिक्रिया जारी की होगी। मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया से पहला सवाल यह उठता है कि जो संपत्तिया रेगुलर उपयोग में नहीं हैं उनकी सुरक्षा के प्रति सरकार ज्यादा सजग नहीं है। क्या मुख्यमंत्री की यह प्रतिक्रिया स्वीकार्य हो सकती है? विधानसभा परिसर एक ऐसा स्थल है जहां पर सीसीटीवी कैमरे और कुछ सुरक्षाकर्मी हर समय तैनात रहना अनिवार्य है। भले ही उनकी संख्या कम हो। खालिस्तान का झण्डा और नारा परिसर के मुख्य द्वार पर लगा मिला है। ऐसे में यह सब करने वालों के चित्र कैमरे में भी अंकित होना और उनका सुरक्षाकर्मी की नजर में आना स्वभाविक हो जाता है। लेकिन यह विवरण सामने नहीं आया। भले ही दर्ज मामले में देशद्रोह की धारा भी जोड़ दी गयी है लेकिन इस पर स्थिति स्पष्ट होना आवश्यक है क्योंकि इस घटना से एक सप्ताह पहले ही शिमला में एंटी टेरेरिस्ट फ्रंट के राष्ट्रीय अध्यक्ष वीरेश शांडिल्य ने एक पत्रकार वार्ता करके खालिस्तानीयों को चुनौती दी थी। जिसके बाद गुप्तचर एजेंसियों का और स्तर्क होना आवश्यक हो जाता है। इस परिपेक्ष में अब तक सरकार के पास कोई ठोस जानकारी न होना पूरे प्रशासन पर सवाल उठाता है। क्योंकि अब जो सीमायें सील करने के कदम उठाये गये हैं वह सब तो शांडिल्य के ब्यान के बाद ही उठा लिये जाने चाहिये थे। प्रदेश का हर आदमी इस घटना की निंदा करने के साथ ही सरकार से सवाल भी पूछेगा। क्योंकि प्रदेश की सुरक्षा की दिन-रात की जिम्मेदारी सरकार की है। ऐसे में रात के अंधेरे में विधानसभा परिसर के मुख्य द्वार पर यह घट जाये और मुख्यमंत्री इस तरह की प्रतिक्रिया दे तो उससे आम आदमी के मनोबल और सरकार पर उसके विश्वास तथा निर्भरता सभी पर एक साथ प्रभाव पड़ेगा। सरकार को इस पर सारी जानकारियां प्रदेश की जनता से सांझी करनी चाहिए। क्योंकि खालिस्तानी तत्व 2021 से ही इस संबंध में धमकीयां देते आ रहे हैं। इस संदर्भ में कोई भी देरी सारे घटनाक्रम को राजनीतिक आईने में देखने के लिये आम आदमी को मजबूर कर देगी जो कि और भी घातक होगा।

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