Sunday, 21 December 2025
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कैग रिपोर्ट ने किया केंद्रीय सहायता का सच बेनकाब

तीन वर्षों में नहीं मिला एक भी पैसा
तीन वर्षों में बजट अनुमानों के मुकाबले करीब 40 हजार करोड़ ज्यादा खर्च
क्या यह खर्च पूरा करने के लिए लिया गया कर्ज अकेले चुनावी वर्ष 2019-20 में है अनुमान और वास्तविक खर्च में 27000 करोड़ का अंतर

शिमला/शैल। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक पखवाड़े में दो बार हिमाचल आ गये हैं। पहले शिमला में 31 मई को मोदी के नेतृत्व में केंद्र की सरकार के 8 वर्ष पूरा होने पर आये। जिस गरीब कल्याण सम्मेलन को संबोधित किया इस सम्मेलन में प्रदेश भर से सरकारी योजना को लाभार्थियों को बुलाया गया था। सम्मेलन अच्छा हुआ। लेकिन कर्ज के चक्रव्यू में ही से प्रदेश को उबारने के लिए कोई आर्थिक सहायता नहीं दे गये। बल्कि जिस तरह से अपने सहयोगी मंत्री अनुराग ठाकुर का अपने संबोधन में नाम तक भी नहीं लिया वह खबर भी बना और राजनीतिक चर्चा का विषय भी बना। शिमला के बाद 15 से 17 जून तक धर्मशाला में राज्यों के मुख्य सचिवों के पहले सम्मेलन को दो-दिन का समय दे दिया। इस सम्मेलन में भी अनुराग ठाकुर का शिमला ही की तरह नजरअंदाज होना फिर खबर बना। लेकिन इस सम्मेलन में शामिल होने के लिये आते समय हवाई अड्डे के बाहर अग्निपथ योजना से आक्रोशित युवाओं का आक्रोश भी झेलना पड़ा। इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री के स्वागत के लिये सरकार और संगठन ने पन्द्रह हजार से ज्यादा भीड़ जुटाने का लक्ष्य रखा था। इसके लिये कांगड़ा चंबा के सारे विधायकों और दूसरे नेताओं को संगठन की ओर से लक्ष्य दिये गये थे। लेकिन सम्मेलन में पन्द्रह हजार की जगह पांच हजार ही जुट पाये। केवल देहरा के होशियार सिंह और नूरपुर के राकेश पठानिया ही अपना लक्ष्य पूरा कर पाये अन्य नेता नहीं। इस सम्मेलन में भी प्रधानमंत्री प्रदेश को कुछ देकर नहीं गये। क्योंकि यह मुख्य सचिवों का सम्मेलन था। लेकिन यहां पर तय लक्ष्य पन्द्रह हजार की जगह पांच हजार की भीड़ का ही जुट पाना अपने में कई सवाल खड़े कर गया है। क्योंकि कांगड़ा प्रदेश का सबसे बड़ा जिला है और सरकार बनाने का रास्ता यहीं से निकलता है। एक अरसे से कई कांग्रेस नेताओं के नाम उछलते रहे हैं कि वह भाजपा में शामिल हो रहे हैं। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया और अब पलटकर यह चर्चा भाजपाईयों के ही गिर्द आती जा रही है। कांगड़ा में जब केजरीवाल आये थे तब उन्हें घेरने के लिये कोई भाजपाई सामने नहीं आ पाया और यह काम मेजर मनकोटिया से करवाना पड़ा। अब प्रधानमंत्री के आगमन पर माना जा रहा था कि मनकोटिया भाजपा में शामिल हो जायेंगे। मोदी के स्वागत में मनकोटिया द्वारा एक दैनिक में जारी किया गया विज्ञापन इसका संकेत माना जा रहा था। लेकिन मोदी के आगमन पर अग्निपथ से आक्रोशित युवाओं के आक्रोश ने मनकोटिया के पावं फिर जकड़ दिये। इसी के साथ इस सम्मेलन में भी अनुराग ठाकुर की अनदेखी को लेकर बनी खबरों ने प्रदेश की सियासत को फिर से हिला कर रख दिया है। यह चर्चा चल पड़ी है कि मोदी द्वारा पीठ थपथपाने से ही सत्ता की वापसी का रास्ता नहीं खुल जायेगा। यह वापसी जय राम के काम पर निर्भर करेगी। जयराम के काम पर अब तक आयी कैग रिपोर्ट जो स्वाल उठाये हैं उनका जवाब अभी तक नहीं आ पाया है। बल्कि केंद्रीय सहायता के दावों को लेकर तो स्थिति बहुत ही हास्यास्पद हो गयी है क्योंकि मोदी से लेकर नड्डा, जय राम तक सभी के लाखों से हजारों करोड़ केंद्र द्वारा प्रदेश को दिये जाने के दावे किये हैं। लेकिन यह 31 मार्च 2020 तक की आयी कैग रिपोर्ट ने इन दावों के झूठ की पोल खोल कर रख दी है। कैग के मुताबिक 2015-16 से 2019-20 तक चार मदो गैर योजना गत अनुदान, राज्य की स्कीमों हेतु अनुदान, केंद्रीय स्कीमों हेतु अनुदान और केंद्रीय प्रायोजित स्कीमों हेतु अनुदान में राज्यों को एक पैसा भी नहीं मिला है। जबकि 2015-16 और 2016-17 में मिला है। तब भी केंद्र में मोदी की ही सरकार थी। आज प्रदेश पर जो 70 हजार करोड़ से अधिक का कर्ज हो गया है उसके लिये केंद्र कि इस बेरूखी को भी कारण माना जा रहा है। इन तीन वर्षों में सरकार के अनुमानित बजट और वास्तविक खर्च हुये बजट में करीब 40 हजार करोड़ का अंतर है। अकेले 2019-20 के खर्च में ही 27 हजार करोड़ का फर्क रहा है। क्योंकि इसी वर्ष लोकसभा के चुनाव भी हुये हैं। ऐसे में स्वाभाविक है कि अनुमानों से अधिक खर्च करना पड़ा है सरकार को। यह खर्च पूरा करने के लिये जब केंद्र ने कुछ नहीं दिया तो स्वाभाविक रूप से कर्ज लेने के अतिरिक्त और कोई विकल्प सरकार के पास नहीं बचा था। शायद इसी कारण से 100 से अधिक स्कीमों पर सरकार एक भी पैसा खर्च नहीं कर पायी है। कैग रिपोर्ट के इस खुलासे पर सरकार कोई स्पष्टीकरण जारी नहीं कर पायी है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब 69 राष्ट्रीय राजमार्गों से लेकर लाखों हजारों करोड़ की केंद्र से सहायता मिलना जुमलो से अधिक कुछ नहीं रहा है तो फिर सत्ता में वापसी के दावे क्या ईवीएम के भरोसे किये जा रहे हैं।



क्या आप की इतनी बड़ी कार्यकारिणी अपेक्षाओं पर खरा उतर पायेगी

शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश में आप की इकाई की कार्यकारिणी का अंततः गठन हो गया है। यह गठन पूर्व इकाई को भंग करके किया गया है। लेकिन इसमें यह नहीं कहा गया है कि जो नेता पहले से प्रवक्ताओं की जिम्मेदारी निभा रहे थे वही यह जिम्मेदारी अब भी निभाते रहेंगे। न ही यह कहा गया है कि प्रवक्ताओं की सूची अलग से जारी की जायेगी। यह उल्लेख करना इसलिये आवश्यक हो जाता है की नई कार्यकारिणी घोषित करते हुए जो पत्र जारी किया गया उसमें यह कहा गया है कि पहले की कार्यकारिणी को भंग कर दिया गया है। लेकिन जब से आप हिमाचल में नये सिरे से सक्रिय हुई है उसकी सारी गतिविधियों केवल प्रवक्ताओं के माध्यम से ही सामने आती रही हैं। पार्टी के पदाधिकारियों की अपने तौर पर क्या कारगुजारी रही है वह अभी सामने नहीं आयी है। अभी तक पार्टी के प्रवक्ता भी उस संदेश से आगे नहीं बढ़ पाये हैं जो पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने सामने रखा है। सामान्य तौर पर अब तक का सारा संवाद दिल्ली मॉडल की वकालत से आगे नहीं बढ़ पाया है। दिल्ली में जो सेवाएं लोगों को मुफ्त में प्रदान की जा रही हैं वह सेवाएं हिमाचल में भी मुफ्त में उपलब्ध करवाई जायेंगी। इसी केंद्रीय बिंदु के गिर्द प्रदेश की राजनीति और स्थिति को घुमाने की रणनीति पर काम हो रहा है। किसी भी वेलफेयर स्टेट में जन सुविधाएं जनता को सुगमता से और निशुल्क उपलब्ध होनी चाहिये। कम से कम शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं तो निशुल्क होनी ही चाहिये। लेकिन इसमें प्राइवेट सैक्टर का दखल कहां तक और कितना रहना चाहिये यह भी स्पष्ट होना चाहिये।
हिमाचल में आप शिक्षा को केंद्रीय मुद्दा बनाने की रणनीति पर चल रही है। मनीष सिसोदिया ने शिक्षा पर शिमला में जो संवाद शुरू किया था उसके चक्रव्यूह में प्रदेश सरकार फस गई है। उसे जवाब देने पर आना पड़ा है अब हमीरपुर में भी केजरीवाल ने उसी संवाद को आंकड़ों सहित आगे बढ़ाया। इसका जवाब सरकार से आता है या नहीं यह तो आगे पता चलेगा। लेकिन हमीरपुर में जिस तरह से भगवंत मान ने हिमाचल के मिंजर को लेकर अपना ज्ञान लोगों के सामने रखा है उस पर सोशल मीडिया में आ रही प्रतिक्रियाओं ने आप की गंभीरता पर स्वतः ही कई प्रश्न खड़े कर दिये है।ं यही नहीं इसी अवसर पर प्रदेश के नवनियुक्त अध्यक्ष ने जब यह कहा कि पिछले 75 वर्षों से हिमाचल को मुद्दे ही मिल रहे हैं तो उससे भी यही संदेश गया है कि आप का नेतृत्व अभी तक प्रदेश को गंभीरता से नहीं ले रहा है। क्योंकि अभी देश को आजाद हुये ही इतने वर्ष हुये हैं और आप के प्रदेश अध्यक्ष ने एक तरह से भाजपा के ही आरोप को आगे बढ़ाया है कि अब तक देश से लेकर प्रदेश तक जो भी नेतृत्व रहा उसने कुछ नहीं किया है चाहे वह केंद्र में नेहरू काल रहा हो या प्रदेश में डॉक्टर परमार का।
आप हिमाचल में भाजपा और कांग्रेस का विकल्प होने का दावा कर रहा है इसलिये उसके नेतृत्व द्वारा कहे गये एक-एक शब्द का आकलन किया जायेगा। उससे प्रदेश को लेकर पूरी जानकारी और समझ होने की अपेक्षा की जायेगी। राष्ट्रीय नेतृत्व से एक सूत्र तो मिलेगा लेकिन उस पर पूरी इमारत खड़ी करना प्रदेश नेतृत्व की जिम्मेदारी होगी। दिल्ली मॉडल तो सही है लेकिन उसको प्रदेश में व्यवहारिक शक्ल देना यहां बैठे आदमी का काम होगा। फिर दिल्ली की जो स्थिति है वह देश के अन्य किसी राज्य की नहीं है। दिल्ली जितना कर राजस्व किसी अन्य राज्य का नहीं है। हिमाचल के संसाधनों और उनके दोहन तथा उपयोग को लेकर एक ठोस समझ बनानी आवश्यक होगी। यहां पर पिछले कुछ वर्षों में रही सरकारों ने प्रदेश के संसाधनों का दुरुपयोग किया है और इसका परिणाम है प्रदेश का कर्जभार 70000 करोड़ के पार हो जाना। आज जयराम सरकार पर सबसे बड़ा आरोप ही यह है कि उसके शासनकाल में कर्ज और बेरोजगारी दोनों इतने बड़े हैं कि शायद यह अपने इतिहास हो जाये। क्योंकि यह दोनों एक साथ तब बढ़ते हैं जब भ्रष्टाचार का आकार इससे भी बड़ा हो जाये। आज हिमाचल में राजनीतिक विकल्प बनने के लिये प्रदेश की इन समस्याओं की प्रमाणिक जानकारी होना और उसे जनता तक ले जाकर जनता को विकल्प की मांग करने तक लाना होगा। लेकिन अभी तक आप से जुड़े किसी भी नेता से यह उम्मीद नहीं बंधी है कि वह भाजपा और कांग्रेस से बेहतर कर पायेगा। यदि आने वाले दिनों में भी आप की गंभीरता इस संदर्भ में सामने नहीं आती है तो उसके लिये अभी दिल्ली दूर है कि कहावत चरितार्थ हो जायेगी।

क्या है केंद्रीय सहायता का सच जयराम के ब्यान से उठा सवाल

मोदी मण्डी में दो लाख करोड का हिसाब मांग चुके हैं
अमित शाह ने चंबा में यह आंकड़ा 1,20,000 करोड बताया था
नड्डा 72 करोड का आंकडा परोस चुके हैं
जयराम ठाकुर ने यह राशि 10,000 करोड़ बतायी है
मोदी अब प्रदेश को कुछ नहीं दे गये हैं

शिमला/शैल। प्रदेश विधानसभा के चुनाव इसी वर्ष के अन्त में होने हैं। जय राम की सरकार अपने चार साल के कार्यकाल में हुए चार नगर निगमों में से दो और उसके बाद तीन विधानसभा और एक लोकसभा का उपचुनाव हार चुकी है। अब नगर निगम शिमला का चुनाव भी उच्च न्यायालय के फैसले के बाद 18 जून तक हो पाना संभव नहीं रह गया है। 18 जून के बाद नगर निगम शिमला पर भी प्रशासक बिठाना अनिवार्य हो जायेगा। नगर निगम शिमला के चुनाव टाले जाने का वातावरण भी उप चुनावों की हार के बाद ही प्रशासन और राजनीतिक गठजोड़ से ही तैयार किया गया। यह अब आम चर्चा का विषय बना हुआ है। नगर निगम शिमला में चुनावी हार होने का डर किस कदर हावी हो चुका है यह अब सामने आ चुका है। इसका असर आने वाले विधानसभा चुनावों पर कितना पड़ेगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। विश्लेष्कों की नजर में मोदी की सत्ता में आठ साल पूरे होने पर देश की सारी राज्यों की राजधानियों में आयोजित किये गये गरीब कल्याण सम्मेलन पर प्रधानमंत्री के संबोधन के लिये शिमला का चयन भी इसी लिये किया गया था ताकि इन योजनाओं के सारे लाभार्थियों को मोदी के सामने आम जनता बनाकर पेश किया जा सके। मोदी की इस शिमला यात्रा से हिमाचल और जयराम सरकार को क्या-क्या मिला है अब यह चर्चा का विषय बना हुआ है। चुनावी वर्ष के मध्य में हुये इस आयोजन से भाजपा को क्या मिला यदि इसका आकलन किया जाये तो सबसे बड़ा और पहला सवाल यह आता है कि जिस आयोजन का आमंत्रण देने मुख्यमंत्री स्वयं कांग्रेस अध्यक्षा प्रतिभा वीरभद्र सिंह के आवास पर गये उसी आयोजन से भाजपा के ही पूर्व मुख्यमंत्री शान्ता कुमार और प्रेम कुमार धूमल क्यों गायब रहे? क्या इन्हें आमंत्रित ही नहीं किया गया था यहां उन्होंने इस आयोजन में शामिल होना पसंद ही नहीं किया। इस सवाल का जवाब अभी तक नहीं आया है। यही नहीं इस आयोजन के मंच पर उपस्थित केंद्रिय मंत्री अनुराग ठाकुर का प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में नाम तक नहीं लिया। चर्चा है कि मंच पर किसे बिठाना है और प्रधानमंत्री अपने संबोधन में प्रदेश के किस किस नेता का नाम लेंगे इसकी सूची आयोजकों द्वारा तैयार की जाती है। अनुराग का नाम तक प्रधानमंत्री के संबोधन में न आने से किस तरह का राजनीतिक संदेश प्रदेश की जनता में गया होगा इसका अंदाजा लगाना विश्लेष्कों के लिए कठिन नहीं है। फिर इसी आयोजन पर आये पार्टी के वरिष्ठ नेता गणेश दत्त के ट्वीट ने इसके प्रबन्धन पर गंभीर सवाल उठाये हैं। आरोप लगाया गया है कि कुछ लोगों ने इस आयोजन को हाईजैक करने का प्रयास किया है। कई निगमों/बार्डों में तैनात नेताओं को आमंत्रित ही नहीं किया गया था। एक महिला ने तो इस मामले को उपर तक ले जाने की बात की है। इन नेताओं के इस रोश से यह स्पष्ट हो जाता है कि पार्टी की एकजुटता का भीतरी सच क्या है। शायद इसी कारण से पार्टी की कार्यकारिणी की बैठक अब हमीरपंर में रखी गयी है। जिसमें अनुराग ठाकुर और प्रेम कुमार धूमल को भी आमंत्रित किया गया है। पार्टी के बाद यदि यह देखा जाये कि प्रदेश को प्रधानमंत्री की इस यात्रा से क्या मिला है तो बहुत ही रोचक स्थिति सामने आती है। इस समय प्रदेश का कर्ज भार 70,000 करोड से पार हो चुका है। बेरोजगारी में प्रदेश देश के टॉप छः राज्यों में शामिल हो गया है। इस स्थिति के बाद भी प्रधानमंत्री प्रदेश को कोई राहत पैकेज नहीं दे गये है। बल्कि इस अवसर पर मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने चार वर्षों में मिली केंद्रीय सहायता का आंकड़ा केवल 10,000 करोड बता कर सबको चौंका दिया है। 10 हजार करोड़ का आंकड़ा बाकायदा लोक संपर्क विभाग द्वारा जारी प्रेस नोट में दर्ज है। स्मरणीय है कि मोदी ने मई 2014 को सत्ता संभाली थी उसके बाद प्रदेश में 2017 में विधानसभा और 2019 में लोकसभा के चुनाव संपन्न हुये हैं। प्रधानमंत्री इस दौरान मण्डी आये थे। तब उन्होंने एक जनसभा में स्व.वीरभद्र सिंह से प्रदेश को दिये गये दो लाख करोड का हिसाब मांगा था। फिर गृह मंत्री अमित शाह ने अपनी चंबा यात्रा के दौरान एक लाख बीस हजार करोड़ दिये जाने का आंकड़ा परोसा था। इसी दौरान नड्डा ने एक पत्र जारी करके 69 राष्ट्रीय उच्च मार्ग प्रदेश को दिये जाने की जानकारी दी थी। यह राजमार्ग अभी तक सैद्धांतिक अनुमति से आगे नहीं बढ़े हैं। इसका सारा पत्रचार शैल पाठकों के सामने रख चुका है। अभी पिछले दिनों ही नड्डा ने प्रदेश को 72,000 करोड़ दिये जाने का खुलासा किया है। लेकिन अब जयराम ने यह आंकड़ा 10,000 करोड बताकर पुराने सारे दावों पर स्वयं ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। ऐसे में यह सच प्रदेश की जनता के सामने आना ही चाहिये कि डबल इंजन की सरकार का सिंगल सच क्या है। इसके लिये केंद्रीय सहायता और 70,000 करोड़ के कर्ज के खर्च पर श्वेत पत्र जारी किया जाना चाहिये।

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