सिराज में ब्यानों से उठी चर्च
क्या चुनाव से पहले हिमाचल में भी जांच एजेंसियां सक्रिय होंगी
शिमला/शैल । उपचुनावों में चारों सीटों पर जीत दर्ज करने के बाद प्रदेश कांग्रेस में जो कुछ घटना शुरू हुआ है वह राजनीतिक विश्लेषकों के लिए एक रोचक विषय बनता जा रहा है। केंद्र में 2014 में भाजपा ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में कांग्रेस से सत्ता छीनी थी। उस समय हिमाचल में स्व.वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी। तब कांग्रेस प्रदेश की चारों लोकसभा सीटें हार गयी थी। उसके बाद वीरभद्र के नेतृत्व में ही विधानसभा के चुनाव हुये और पार्टी हार गयी। फिर 2019 के लोकसभा चुनावों में पुनः पार्टी चारों सीटें हार गयी। यह एक कड़वा सच है। तीन चुनावो में वीरभद्र जैसे नेता के नेतृत्व में लगातार हार जाने के कारणों पर आज तक पार्टी की ओर से कोई आधिकारिक वक्तव्य नहीं आया है। लेकिन तटस्थ विश्लेषकों की नजर में इस दौरान जो कुछ घटा है उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। 2014 और 2017 के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर प्रदेश भाजपा के कार्यकर्ताओं तक ने वीरभद्र परिवार के खिलाफ बने आयकर सीबीआई और ईडी के मामलों को सबने पूरे जोर से उछाला और भ्रष्टाचार की ऐसी छवि बना दी जिससे अंत तक लड़ना पड़ा। दूसरी और पार्टी में प्रदेश अध्यक्षों के साथ लगातार टकराव की स्थिति रही जो एक समय वीरभद्र ब्रिगेड के गठन तक पहुंच गयी। ब्रिगेड के अध्यक्ष और पार्टी के अध्यक्ष में मानहानि के मामले दायर होने तक स्थिति पहुंच गयी। इसी दौरान यह भी सामने आया कि 45 विधान सभा क्षेत्रों में समानान्तर सत्ता केंद्र स्थापित हो चुके थे और वही हार का कारण बने थे। हार के बाद अध्यक्ष और मुख्यमंत्री में हुये संवाद में यह सब कुछ जगजाहिर हो चुका है। यही नहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में मण्डी के प्रत्याशी को लेकर यह बयान आ गया कि कोई भी ‘मक्कर झंडू ’ चुनाव लड़ लेगा। वीरभद्र जैसे बड़े नेता के ऐसे ब्यानों का जनता पर क्या और कैसा असर हुआ होगा यह अंदाजा लगाया जा सकता है। इसी परिदृश्य में प्रदेश अध्यक्ष को बदला गया। 2019 की हार के बाद तो यहां तक चर्चाएं चल निकली कि कांग्रेस के कई बड़े नेता पार्टी छोड़कर भाजपा में जाने का जुगाड़ देख रहे हैं। यह माना जाता है कि यदि बंगाल में भाजपा की जीत पर रोक न लगती तो आज कई कांग्रेस नेता भाजपा में जा चुके होते।
इसी परिदृश्य में यदि 2014 से लेकर आज तक प्रदेश कांग्रेस बतौर विपक्ष भूमिका का आकलन किया जाये तो कोई बड़ी उपलब्धि रिकॉर्ड पर नहीं आती है। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि कांग्रेस से ज्यादा सशक्त भूमिका कुछ छोटे अखबारों और स्वयं भाजपाइयों ने निभाई है। जो समय- समय पर पत्र बम्ब दागते रहे। ऐसी वस्तु स्थिति में कांग्रेस ने पहले दो नगर निगम और फिर चारों उपचुनाव जीतकर सही में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। यह एक जमीनी सच्चाई है कि यदि वीरभद्र की मौत के बाद उनके परिवार से किसी को मण्डी से प्रत्याशी न बनाया जाता तो शायद यह सीट हाथ न आती। लेकिन इस जीत में यदि कौल सिंह ठाकुर, सुखविंदर सिंह सुक्खू और पंडित सुखराम के पौत्र आश्रय शर्मा का सक्रिय योगदान न रहता तो भी यह जीत संदिग्ध हो जाती। ऐसे में इस जीत के बाद प्रतिभा सिंह का यह ब्यान कि आश्रय तो सक्रिय राजनीति में ही नहीं है और सिराज से पार्टी उम्मीदवार का ऐलान कर देना पार्टी के लिए नुकसानदेह हो सकता है। क्योंकि आने वाले दिनों में वह नेता कार्यकर्ता जो वीरभद्र ब्रिगेड में शामिल हो गये वह प्रतिभा सिंह और विक्रमादित्य सिंह के सहारे अपने लिये सक्रिय स्थान की मांग करेंगे। अभी शायद प्रतिभा सिंह और विक्रमादित्य मिलकर भी ब्रिगेड के लोगों को स्थापित नहीं करवा पायेंगे। इसी कड़ी में यह व्यवहारिक सच है कि जो लोग स्व. वीरभद्र सिंह के साथ जुड़े हुए थे उनके हितों की रक्षा करने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकते थे। मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने के लिए राजा नालागढ़ विजेंद्र सिंह और फिर पंडित सुखराम को मात देने के लिए किस हद तक चले गए थे यह शायद आज बहुत कम लोगों को जानकारी है। जो वीरभद्र कर गुजरते थे उस मुकाम तक पहुंचने के लिए प्रतिभा सिंह और विक्रमादित्य को समय लगेगा। इस परिपेक्ष में आज जब प्रतिभा सिंह सिराज से आश्रय शर्मा को लेकर बयान देंगे और वहां से अगले उम्मीदवार की भी घोषणा कर देंगी तो निश्चित रूप से उनके ब्यान को शिमला से लेकर दिल्ली तक अलग-अलग अर्थों से पढ़ा जायेगा।
यहीं पर कांग्रेस को यह भी याद रखना होगा कि भाजपा की एक यह भी रणनीति रहती है कि वह चुनाव से पहले अपने विरोधियों के खिलाफ केंद्रीय और राज्यों की जांच एजेंसियों को भी फील्ड में उतार देती है। हिमाचल में भी इस संभावना से इन्कार करना अपने को अंधेरे में रखने जैसा ही होगा। प्रशासन के उच्च हलकों में चल रही गतिविधियों के संकेतों को यदि पढ़ा जाये तो कांग्रेस के आधा दर्जन नेताओं के खिलाफ जांच एजेंसियों को सक्रिय करने की कवायद चल रही है। भाजपा ने बतौर विपक्ष जो आरोप पत्र सौंपे थे उन पर कारवाई किये जाने पर विचार किया जा रहा है। कुछ सूत्रों पर विश्वास किया जाये तो कांग्रेस द्वारा अब तक सरकार के खिलाफ कोई आरोप पत्र न लाया जाना इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। कांग्रेस के ही कुछ लोग सरकार के माध्यम से अपने ही लोगों को घेरने का प्रबन्ध करने में लगे हुये हैं। ऐसे में प्रदेश कांग्रेस के भीतर ही एक दूसरे को पटखनी देने की जो बिसात बिछाई जा रही है उसके परिणाम संगठन के लिये सुखद नहीं रहेंगे यह तय है। यदि कांग्रेस की एकजुटता में कहीं से भी कोई छेद नजर आया तो उसे बड़ी खाई बनने में कोई वक्त नहीं लगेगा।