Friday, 19 September 2025
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राज्यपाल को सौंपे ज्ञापन से आप की गंभीरता आयी सवालों में

शिक्षा और सैनिक स्कूलों में प्राइवेट सैक्टर की भागीदारी पर पार्टी खामोश क्यों

शिमला/शैल। हिमाचल की आम आदमी पार्टी इकाई की ओर से प्रदेश के स्कूलों की खस्ता हालत को आने वाले चुनाव का केंद्रीय मुद्दा बनाने का प्रयास किया जा रहा है। इसके लिये प्रदेश इकाई ने अपने कार्यकर्ताओं और दूसरे लोगों से अपने आसपास के स्कूलों के साथ सेल्फी लेकर भेजने का आग्रह किया है। अभी जब अग्निपथ योजना केंद्र सरकार ने जारी की और इसको लेकर पूरे देश का युवा आक्रोशित होकर सड़कों पर उतर आया। यह आक्रोश हिंसक विरोध की शक्ल तक ले गया। देश के विपक्षी दलों ने इस योजना के खिलाफ अपनी तीव्र प्रतिक्रियाएं जारी की है। इसी कड़ी में प्रदेश की आम आदमी इकाई ने भी राज्यपाल को एक ज्ञापन सौंपा है और इसे वापस लेने का आग्रह किया है। जबकि अब सेना की ओर से भी अधिकारिक रूप से यह ऐलान कर दिया गया है कि योजना वापस नहीं होगी। बल्कि भर्ती का शेडयूल जारी करने की बात की गयी है। स्वभाविक है कि इस ऐलान के बाद या तो यह विरोध गंभीर टकराव की शक्ल लेगा या स्वतः ही शांत हो जायेगा। क्या होता है यह आने वाला समय बतायेगा। लेकिन इस स्थिति में राजनीतिक दलों के लिये कुछ गंभीर सवाल अवश्य उछाल दिये हैं। इसमें भी हिमाचल के संदर्भ में आम आदमी पार्टी के लिये स्थिति और भी गंभीर होगी क्योंकि वह प्रदेश में एक तरह से राजनीतिक शुरुआत कर रही है। उसका कोई भी कमजोर प्रयास केवल सत्तारूढ़ भाजपा के लिये ही लाभकारी होगा और प्रदेश की आम जनता के लिए नहीं। आम आदमी पार्टी इकाई ने प्रदेश के स्कूलों की दशा दिशा को मुद्दा बनाने का प्रयास किया है। क्योंकि उनके राष्ट्रीय नेता अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया दो-दो बार हिमाचल आकर शिक्षा पर संवाद आयोजित करके यह मंत्र प्रदेश के नेताओं और कार्यकर्ताओं को दे गये हैं। कितने स्कूलों का परिणाम क्या रहा है? कितनों के अपने भवन नहीं है? कितनों स्कूलों में कितने अध्यापकों की कमी है? कितने एक ही टीचर के सहारे चल रहे हैं? यह सारे आंकड़े रखते हुये राष्ट्रीय नेतृत्व ने यह दावा किया है कि वह प्रदेश में शिक्षा की स्थिति को सुधार देंगे। इसके लिए धन कहां से आयेगा? इसके जवाब में भ्रष्टाचार पर नियंत्रण पाने की बात कहकर एक मंत्री का नाम लिये बगैर यह उछाल दिया कि जो मंत्री पहले दो कमरों के मकान में रहता था अब उसकी हैसियत बेटे की शादी की दस-दस रिसैप्शन देने की कैसे हो गयी? इस कथन से थोड़ी देर तालियां तो मिल सकती है लेकिन यह प्रश्न का उत्तर नहीं हो सकता है। हिमाचल की आर्थिक और भूगौलिक स्थिति दिल्ली से अलग है। हिमाचल में शिक्षा की यह स्थिति क्यों है इस पर प्रदेश के नेताओं से विस्तार में बात आनी चाहिये थी। क्योंकि हर चीज के लिये संसाधन आर्थिक स्थिति पर निर्भर करते हैं और प्रदेश पहले ही 70 हजार करोड़ के कर्ज के चक्रव्यूह में फंसा हुआ है। कर्ज के चक्रव्यूह से बाहर निकलने का क्या रास्ता होगा? जब तक इस पर संतोषजनक प्रारूप सामने नहीं आयेगा पार्टी को लेकर गंभीरता नहीं आ पायेगी। आज केंद्र सरकार नई शिक्षा नीति लेकर आ चुकी है इस नीति से आम आदमी पार्टी कितनी सहमत है इस पर अभी तक कोई शब्द नहीं कहा गया है। नई शिक्षा नीति में शिक्षा संस्थानों के लिये वित्तीय स्वायतता की बात की गयी है। इस पर पार्टी का स्टैंड क्या है? इसी के साथ शिक्षा में प्राइवेट सैक्टर की भागीदारी वित्तीय स्वायत्तता के संदर्भ में आने वाले समय का एक बड़ा मुद्दा होगा। जिस पर हर पार्टी को अपना पक्ष स्पष्ट करना होगा। लेकिन आप शिक्षा के इन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर पूरी तरह खामोश है। ऐसा लगता है कि उसके प्रदेश नेतृत्व ने शिक्षा नीति को पढ़ा ही नहीं है। केवल शिक्षा के नाम पर एक लोक लुभावन स्थिति खड़ी करने का प्रयास किया जा रहा है। इससे अंत में राजनीतिक लाभ भी मिल पायेगा इसकी संभावना नहीं के बराबर रह जाती है।
शिक्षा ही की तरह अग्निपथ योजना को लेकर राज्यपाल को सौंपे गये ज्ञापन में भी पार्टी की गंभीरता नजर नहीं आती है। क्योंकि आज केंद्र सरकार ने सैनिक स्कूलों में प्राइवेट सैक्टर की भागीदारी लाने की योजना बना दी है। इस भागीदारी में 100 स्कूल खोले जाने की योजना है। इसके पहले चरण में 21 स्कूल खोले जा रहे हैं। यह स्कूल वर्तमान में चल रहे सैनिक स्कूलों से भिन्न होंगे। क्योंकि वर्तमान में चल रहे 35 सैनिक स्कूलों में से 33 रक्षा मंत्रालय की सोसायटी द्वारा दो सरकार चला रही है। एक उत्तर प्रदेश सरकार तथा दूसरा जम्मू कश्मीर द्वारा चलाया जा रहा है। लेकिन नये स्कूल एन.जी.ओं/प्राइवेट स्कूल/राज्य सरकारों की भागीदारी से चलाये जायेेंगे। इस योजना से सैनिक स्कूलों के संचालन में प्राइवेट सैक्टर का दखल आ जायेगा। सरकार और उसके समर्थक इस नीति का समर्थन कर रहे हैं। राजनीतिक दल इस पहलू पर खामोश हैं। जबकि सेना जैसे संस्थान मंे ऐसे नीतिगत फैसले के दूरगामी परिणाम होंगे। ऐसे में आज जब अग्निपथ पर युवा आक्रोशित है और यह प्राइवेट सैक्टर की प्रस्तावित भागीदारी भी आने वाले समय में इस युवा को सीधे प्रभावित करेगी। इस परिपेक्ष में आज राजनीतिक दलों और दूसरे विचारकों को अपनी स्थिति स्पष्ट करना आवश्यक हो जाता है। इस पर किसी भी दल की कैजुअल अप्रोच उसके लिए घातक सिद्ध होगी। आप की प्रदेश इकाई द्वारा राज्यपाल को सौंपे गए ज्ञापन में इस पर खामोशी पार्टी की गंभीरता को लेकर कई सवाल खड़े कर देती है।

Ministry of Defence approves 21 new Sainik Schools in partnership mode from academic year 2022-2023

Ministry of Defence (MoD) has approved setting up of 21 new Sainik Schools, in partnership with NGOs/private schools/State Governments. These schools will be set up in the initial round of the Government’s initiative of setting up of 100 new Sainik schools across the country in partnership mode. They will be distinct from the existing Sainik Schools.
























 

कैग रिपोर्ट ने किया केंद्रीय सहायता का सच बेनकाब

तीन वर्षों में नहीं मिला एक भी पैसा
तीन वर्षों में बजट अनुमानों के मुकाबले करीब 40 हजार करोड़ ज्यादा खर्च
क्या यह खर्च पूरा करने के लिए लिया गया कर्ज अकेले चुनावी वर्ष 2019-20 में है अनुमान और वास्तविक खर्च में 27000 करोड़ का अंतर

शिमला/शैल। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक पखवाड़े में दो बार हिमाचल आ गये हैं। पहले शिमला में 31 मई को मोदी के नेतृत्व में केंद्र की सरकार के 8 वर्ष पूरा होने पर आये। जिस गरीब कल्याण सम्मेलन को संबोधित किया इस सम्मेलन में प्रदेश भर से सरकारी योजना को लाभार्थियों को बुलाया गया था। सम्मेलन अच्छा हुआ। लेकिन कर्ज के चक्रव्यू में ही से प्रदेश को उबारने के लिए कोई आर्थिक सहायता नहीं दे गये। बल्कि जिस तरह से अपने सहयोगी मंत्री अनुराग ठाकुर का अपने संबोधन में नाम तक भी नहीं लिया वह खबर भी बना और राजनीतिक चर्चा का विषय भी बना। शिमला के बाद 15 से 17 जून तक धर्मशाला में राज्यों के मुख्य सचिवों के पहले सम्मेलन को दो-दिन का समय दे दिया। इस सम्मेलन में भी अनुराग ठाकुर का शिमला ही की तरह नजरअंदाज होना फिर खबर बना। लेकिन इस सम्मेलन में शामिल होने के लिये आते समय हवाई अड्डे के बाहर अग्निपथ योजना से आक्रोशित युवाओं का आक्रोश भी झेलना पड़ा। इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री के स्वागत के लिये सरकार और संगठन ने पन्द्रह हजार से ज्यादा भीड़ जुटाने का लक्ष्य रखा था। इसके लिये कांगड़ा चंबा के सारे विधायकों और दूसरे नेताओं को संगठन की ओर से लक्ष्य दिये गये थे। लेकिन सम्मेलन में पन्द्रह हजार की जगह पांच हजार ही जुट पाये। केवल देहरा के होशियार सिंह और नूरपुर के राकेश पठानिया ही अपना लक्ष्य पूरा कर पाये अन्य नेता नहीं। इस सम्मेलन में भी प्रधानमंत्री प्रदेश को कुछ देकर नहीं गये। क्योंकि यह मुख्य सचिवों का सम्मेलन था। लेकिन यहां पर तय लक्ष्य पन्द्रह हजार की जगह पांच हजार की भीड़ का ही जुट पाना अपने में कई सवाल खड़े कर गया है। क्योंकि कांगड़ा प्रदेश का सबसे बड़ा जिला है और सरकार बनाने का रास्ता यहीं से निकलता है। एक अरसे से कई कांग्रेस नेताओं के नाम उछलते रहे हैं कि वह भाजपा में शामिल हो रहे हैं। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया और अब पलटकर यह चर्चा भाजपाईयों के ही गिर्द आती जा रही है। कांगड़ा में जब केजरीवाल आये थे तब उन्हें घेरने के लिये कोई भाजपाई सामने नहीं आ पाया और यह काम मेजर मनकोटिया से करवाना पड़ा। अब प्रधानमंत्री के आगमन पर माना जा रहा था कि मनकोटिया भाजपा में शामिल हो जायेंगे। मोदी के स्वागत में मनकोटिया द्वारा एक दैनिक में जारी किया गया विज्ञापन इसका संकेत माना जा रहा था। लेकिन मोदी के आगमन पर अग्निपथ से आक्रोशित युवाओं के आक्रोश ने मनकोटिया के पावं फिर जकड़ दिये। इसी के साथ इस सम्मेलन में भी अनुराग ठाकुर की अनदेखी को लेकर बनी खबरों ने प्रदेश की सियासत को फिर से हिला कर रख दिया है। यह चर्चा चल पड़ी है कि मोदी द्वारा पीठ थपथपाने से ही सत्ता की वापसी का रास्ता नहीं खुल जायेगा। यह वापसी जय राम के काम पर निर्भर करेगी। जयराम के काम पर अब तक आयी कैग रिपोर्ट जो स्वाल उठाये हैं उनका जवाब अभी तक नहीं आ पाया है। बल्कि केंद्रीय सहायता के दावों को लेकर तो स्थिति बहुत ही हास्यास्पद हो गयी है क्योंकि मोदी से लेकर नड्डा, जय राम तक सभी के लाखों से हजारों करोड़ केंद्र द्वारा प्रदेश को दिये जाने के दावे किये हैं। लेकिन यह 31 मार्च 2020 तक की आयी कैग रिपोर्ट ने इन दावों के झूठ की पोल खोल कर रख दी है। कैग के मुताबिक 2015-16 से 2019-20 तक चार मदो गैर योजना गत अनुदान, राज्य की स्कीमों हेतु अनुदान, केंद्रीय स्कीमों हेतु अनुदान और केंद्रीय प्रायोजित स्कीमों हेतु अनुदान में राज्यों को एक पैसा भी नहीं मिला है। जबकि 2015-16 और 2016-17 में मिला है। तब भी केंद्र में मोदी की ही सरकार थी। आज प्रदेश पर जो 70 हजार करोड़ से अधिक का कर्ज हो गया है उसके लिये केंद्र कि इस बेरूखी को भी कारण माना जा रहा है। इन तीन वर्षों में सरकार के अनुमानित बजट और वास्तविक खर्च हुये बजट में करीब 40 हजार करोड़ का अंतर है। अकेले 2019-20 के खर्च में ही 27 हजार करोड़ का फर्क रहा है। क्योंकि इसी वर्ष लोकसभा के चुनाव भी हुये हैं। ऐसे में स्वाभाविक है कि अनुमानों से अधिक खर्च करना पड़ा है सरकार को। यह खर्च पूरा करने के लिये जब केंद्र ने कुछ नहीं दिया तो स्वाभाविक रूप से कर्ज लेने के अतिरिक्त और कोई विकल्प सरकार के पास नहीं बचा था। शायद इसी कारण से 100 से अधिक स्कीमों पर सरकार एक भी पैसा खर्च नहीं कर पायी है। कैग रिपोर्ट के इस खुलासे पर सरकार कोई स्पष्टीकरण जारी नहीं कर पायी है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब 69 राष्ट्रीय राजमार्गों से लेकर लाखों हजारों करोड़ की केंद्र से सहायता मिलना जुमलो से अधिक कुछ नहीं रहा है तो फिर सत्ता में वापसी के दावे क्या ईवीएम के भरोसे किये जा रहे हैं।



क्या आप की इतनी बड़ी कार्यकारिणी अपेक्षाओं पर खरा उतर पायेगी

शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश में आप की इकाई की कार्यकारिणी का अंततः गठन हो गया है। यह गठन पूर्व इकाई को भंग करके किया गया है। लेकिन इसमें यह नहीं कहा गया है कि जो नेता पहले से प्रवक्ताओं की जिम्मेदारी निभा रहे थे वही यह जिम्मेदारी अब भी निभाते रहेंगे। न ही यह कहा गया है कि प्रवक्ताओं की सूची अलग से जारी की जायेगी। यह उल्लेख करना इसलिये आवश्यक हो जाता है की नई कार्यकारिणी घोषित करते हुए जो पत्र जारी किया गया उसमें यह कहा गया है कि पहले की कार्यकारिणी को भंग कर दिया गया है। लेकिन जब से आप हिमाचल में नये सिरे से सक्रिय हुई है उसकी सारी गतिविधियों केवल प्रवक्ताओं के माध्यम से ही सामने आती रही हैं। पार्टी के पदाधिकारियों की अपने तौर पर क्या कारगुजारी रही है वह अभी सामने नहीं आयी है। अभी तक पार्टी के प्रवक्ता भी उस संदेश से आगे नहीं बढ़ पाये हैं जो पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने सामने रखा है। सामान्य तौर पर अब तक का सारा संवाद दिल्ली मॉडल की वकालत से आगे नहीं बढ़ पाया है। दिल्ली में जो सेवाएं लोगों को मुफ्त में प्रदान की जा रही हैं वह सेवाएं हिमाचल में भी मुफ्त में उपलब्ध करवाई जायेंगी। इसी केंद्रीय बिंदु के गिर्द प्रदेश की राजनीति और स्थिति को घुमाने की रणनीति पर काम हो रहा है। किसी भी वेलफेयर स्टेट में जन सुविधाएं जनता को सुगमता से और निशुल्क उपलब्ध होनी चाहिये। कम से कम शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं तो निशुल्क होनी ही चाहिये। लेकिन इसमें प्राइवेट सैक्टर का दखल कहां तक और कितना रहना चाहिये यह भी स्पष्ट होना चाहिये।
हिमाचल में आप शिक्षा को केंद्रीय मुद्दा बनाने की रणनीति पर चल रही है। मनीष सिसोदिया ने शिक्षा पर शिमला में जो संवाद शुरू किया था उसके चक्रव्यूह में प्रदेश सरकार फस गई है। उसे जवाब देने पर आना पड़ा है अब हमीरपुर में भी केजरीवाल ने उसी संवाद को आंकड़ों सहित आगे बढ़ाया। इसका जवाब सरकार से आता है या नहीं यह तो आगे पता चलेगा। लेकिन हमीरपुर में जिस तरह से भगवंत मान ने हिमाचल के मिंजर को लेकर अपना ज्ञान लोगों के सामने रखा है उस पर सोशल मीडिया में आ रही प्रतिक्रियाओं ने आप की गंभीरता पर स्वतः ही कई प्रश्न खड़े कर दिये है।ं यही नहीं इसी अवसर पर प्रदेश के नवनियुक्त अध्यक्ष ने जब यह कहा कि पिछले 75 वर्षों से हिमाचल को मुद्दे ही मिल रहे हैं तो उससे भी यही संदेश गया है कि आप का नेतृत्व अभी तक प्रदेश को गंभीरता से नहीं ले रहा है। क्योंकि अभी देश को आजाद हुये ही इतने वर्ष हुये हैं और आप के प्रदेश अध्यक्ष ने एक तरह से भाजपा के ही आरोप को आगे बढ़ाया है कि अब तक देश से लेकर प्रदेश तक जो भी नेतृत्व रहा उसने कुछ नहीं किया है चाहे वह केंद्र में नेहरू काल रहा हो या प्रदेश में डॉक्टर परमार का।
आप हिमाचल में भाजपा और कांग्रेस का विकल्प होने का दावा कर रहा है इसलिये उसके नेतृत्व द्वारा कहे गये एक-एक शब्द का आकलन किया जायेगा। उससे प्रदेश को लेकर पूरी जानकारी और समझ होने की अपेक्षा की जायेगी। राष्ट्रीय नेतृत्व से एक सूत्र तो मिलेगा लेकिन उस पर पूरी इमारत खड़ी करना प्रदेश नेतृत्व की जिम्मेदारी होगी। दिल्ली मॉडल तो सही है लेकिन उसको प्रदेश में व्यवहारिक शक्ल देना यहां बैठे आदमी का काम होगा। फिर दिल्ली की जो स्थिति है वह देश के अन्य किसी राज्य की नहीं है। दिल्ली जितना कर राजस्व किसी अन्य राज्य का नहीं है। हिमाचल के संसाधनों और उनके दोहन तथा उपयोग को लेकर एक ठोस समझ बनानी आवश्यक होगी। यहां पर पिछले कुछ वर्षों में रही सरकारों ने प्रदेश के संसाधनों का दुरुपयोग किया है और इसका परिणाम है प्रदेश का कर्जभार 70000 करोड़ के पार हो जाना। आज जयराम सरकार पर सबसे बड़ा आरोप ही यह है कि उसके शासनकाल में कर्ज और बेरोजगारी दोनों इतने बड़े हैं कि शायद यह अपने इतिहास हो जाये। क्योंकि यह दोनों एक साथ तब बढ़ते हैं जब भ्रष्टाचार का आकार इससे भी बड़ा हो जाये। आज हिमाचल में राजनीतिक विकल्प बनने के लिये प्रदेश की इन समस्याओं की प्रमाणिक जानकारी होना और उसे जनता तक ले जाकर जनता को विकल्प की मांग करने तक लाना होगा। लेकिन अभी तक आप से जुड़े किसी भी नेता से यह उम्मीद नहीं बंधी है कि वह भाजपा और कांग्रेस से बेहतर कर पायेगा। यदि आने वाले दिनों में भी आप की गंभीरता इस संदर्भ में सामने नहीं आती है तो उसके लिये अभी दिल्ली दूर है कि कहावत चरितार्थ हो जायेगी।

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