Friday, 19 September 2025
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क्या भाजपा धूमल की हार के कारणों की जांच का साहस करेगी

शिमला/शैल। अभी हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा चार राज्यों में सरकारें बनाने में सफल रही हैं। लेकिन इसी जीत में उत्तर प्रदेश में उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी चुनाव हार गये। जबकि धामी को नेता घोषित करके उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया और पार्टी को सफलता भी मिली। उनकी हार के लिये भीतरघात को जिम्मेदार ठहराते हुये उन्हें फिर से मुख्यमंत्री बना दिया गया और हार के कारणों की जांच की घोषणा कर दी गयी। केशव मौर्य को भी फिर से उप मुख्यमंत्री बना दिया गया। उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में जो कुछ घटा उसको लेकर पूरे देश में भाजपा के सिद्धांतों को लेकर पार्टी के भीतर तीव्र प्रतिक्रियाएं हुयी हैं और इन्हीं के कारण सरकारें बनाने में एक पखवाड़े से भी अधिक का समय लग गया। इन्हीं चुनावों में परिवारवाद भी नए सिरे से चर्चा में आ गया है। इस सबका हिमाचल पर भी एक गहरा असर पड़ा है। यहां भी प्रेम कुमार धूमल को फिर से मुख्यमंत्री बनाये जाने की मांग पार्टी के भीतर से उठनी शुरू हो गयी है।
स्मरणीय है कि 2017 का चुनाव भाजपा ने प्रो. प्रेम कुमार धूमल को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करके लड़ा था और जीत हासिल की थी। लेकिन धूमल अपना चुनाव हार गये। यही नहीं उनके निकटस्थ माने जाने वाले भी दो-तीन लोग चुनाव हार गये। इस हार को उस समय भी भीतरघात का परिणाम कहा गया था। इसी कारण से उस समय हार के बावजूद उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की मांग पार्टी के भीतर से उठी थी। उनके लिये सीटें खाली करने की भी कुछ विधायकों ने घोषणा कर दी। परंतु जनता के फैसले का आदर करते हुये धूमल ने इन प्रस्तावों को स्वीकार नहीं किया और जयराम ठाकुर के नेतृत्व में सरकार का गठन हो गया। उस समय जगत प्रकाश नड्डा भी मुख्यमंत्री बनने के लिए प्रयासरत हो गये थे यह सभी जानते हैं लेकिन सरकार बनने के बाद प्रेम कुमार धूमल और उनके निकटस्थ सरकार एवं संगठन में जिस तरह के आचरण के शिकार होते गये वह हर आदमी के सामने है। जंजैहली प्रकरण में ही धूमल को इस कगार तक पहुंचा दिया गया कि उन्हें सार्वजनिक रूप से यह कहना पड़ा कि सरकार चाहे तो उनकी सीआईडी जांच करवा लें। अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिस नेता के नेतृत्व में जीत हासिल की गयी हो उसे जब ऐसा ब्यान देने के कगार पर पहुंचा दिया जाये तो यह स्थिति कितनी पीड़ादायक रही होगी। अनुराग ठाकुर के साथ भी केंद्रीय विश्वविद्यालय के मुद्दे पर देहरा की एक जनसभा में मुख्यमंत्री के साथ संवाद किस सीमा तक पहुंच गया था वह भी सबके सामने है।
जयराम सरकार में जितने भी पत्र विस्फोट अब तक घटे हैं उनका पहला नजला धूमल के ही किसी न किसी करीबी पर ही गिराया गया है। यदि पत्र बिस्फोटांे के कण की जांच इमानदारी से की जाये तो निश्चित रूप से बहुत कुछ गंभीर सामने आयेगा। पिछले दिनों जिस तरह से मानव भारती विश्वविद्यालय के प्रकरण पर पार्टी के बड़े नेताओं के ब्यान आये हैं यदि उनके राजनीतिक अर्थ निकाले जायें तो बहुत कुछ स्पष्ट हो जाता है। मानव भारती विश्वविद्यालय प्रकरण का निहित जब पूरा नहीं हो पाया तब एक मंत्राी तो यहां तक ब्यान देने पर आ गया कि 2017 के नेता नियत और नेतृत्व को खत्म करके नया नेतृत्व लाया गया था। यही नहीं इसके बाद कर्मचारियों और स्वर्ण आयोग के आंदोलनों को एक बड़े ठाकुर के नाम लगा दिया गया। यह सब कुछ जो घट चुका है अब धामी को उत्तराखंड में मुख्यमंत्री बनाने और उनकी हार के कारणों की जांच करने के वायदे ने हिमाचल में भी धूमल और उनके समर्थकों के सामने आत्मसम्मान की बहाली का मुद्दा खड़ा कर दिया है। इसी कारण से धूमल को भी अपनी हार के कारणों की जांच की मांग करने और अगला चुनाव लड़ने की हुंकार भरने की नौबत आयी है। धूमल कि यह मांग उस समय आयी है जब सरकार प्रदेश के चारों उपचुनाव हार चुकी है। बल्कि इसके बाद आगामी विधानसभा के लिए आ चुके दो सर्वेक्षणों में भी पार्टी की जीत नहीं बतायी गयी है। ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि पार्टी क्या फैसला लेती है।

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