शान्ता और मनकोटिया के सवाल भी नहीं रोक पाये जनता को
जेपी नड्डा की जनसभा भी केजरीवाल के प्रभाव को कम नहीं कर पायी
प्रदेश में आप की विधिवत ईकाई न होने के बाद भी इतने लोगों का केजरीवाल को सुनने आने का अर्थ
क्या जनता का जनसभा में आना बदलाव की मांग नहीं है?
मण्डी की रैली के बाद केजरीवाल का मुकाबला करने के लिये हिमाचल के सपूत राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने मोर्चा संभाला। शिमला में रोड शो और पीटरहॉफ में रैली का आयोजन किया गया। इस आयोजन की पूर्व संध्या पर हमीरपुर के सांसद केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर को भी फील्ड में उतारा गया और आधी रात को आप के तीन बड़े नेताओं को भाजपा में शामिल करवा दिया गया। नड्डा के आवास पर यह सब कुछ घटा। लेकिन अगले ही दिन नड्डा की जनसभा में कुर्सियां खाली मिली। इसी बीच केजरीवाल की शाहपुर रैली घोषित हो गयी। इस रैली को असफल बनाने के लिये फिर केजरीवाल की सभा से एक दिन पहले 22 अप्रैल को नगरोटा-बगवां में जगत प्रकाश नड्डा का रोड शो और जनसभा रख दी गयी। यही केजरीवाल पर सवालों के तीर छोड़ने के लिये पूर्व मंत्री विजय सिंह मनकोटिया भी फील्ड में आ गये। वाकायदा एक पत्रकार वार्ता में तीखे सवालों के मिजाईल छोड़े गये। एक कांगड़ा गिद्धा प्रायोजित किया गया। इसमें भी केजरीवाल पर सवालों के नश्तर चुभाये गये। सोशल मीडिया मंचों पर यह गिद्धा खूब वायरल हुआ। लेकिन इतने सारे परोक्ष/अपरोक्ष प्रयासों के बावजूद केजरीवाल की सभा बहुत सफल रही। यह सफलता उस समय मिली है जब आप का कोई संगठन विधिवत घोषित नहीं है। केजरीवाल की दिल्ली की परफारमैन्स और पंजाब की उसी तरह की सफलता से ही आप आज हिमाचल में चर्चा का केंद्र बन गयी है।
प्रदेश सरकार और भाजपा द्वारा परोक्ष/अपरोक्ष में आप को रोकने के जितने भी प्रयास किये गये हैं उनसे प्रमाणित हो जाता है कि आप का मनोवैज्ञानिक दबाव सरकार पर लगातार बढ़ता जा रहा है। मुख्यमंत्री द्वारा की गयी मुफ्ती की घोषणाएं इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। इसी मनोवैज्ञानिक दबाव को बढ़ाते हुये केजरीवाल ने भरी जनसभा में मुख्यमंत्री पर उनकी नकल करने का तंज कसा है। यह तंज कितना निशाने पर बैठा है इसका अनुमान मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया से लगाया जा सकता है। मुख्यमंत्री ने जब यह जवाब दिया कि प्रदेश की जनता लुटेरी नहीं है बल्कि मेहनती है। तब मुख्यमंत्री यह भूल गये कि केजरीवाल ने प्रदेश में रही सरकारों पर प्रदेश को लूटने का आरोप लगाया है। केजरीवाल का यह आरोप प्रदेश पर बढ़ते कर्ज के आंकड़ों और कैग रिपोर्टों में सरकार पर आयी टिप्पणियों से भी लगाया जा सकता है। लेकिन आप की ओर से अभी प्रदेश से जुड़े सवाल उठाये ही नहीं गये हैं। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि आप की प्रदेश इकाई में ऐसा कोई व्यक्ति अभी तक सामने ही नहीं आया है जो प्रदेश से जुड़े तीखे सवाल भाजपा और कांग्रेस से पूछने शुरू करेगा। क्योंकि सवाल तो भाजपा और कांग्रेस से ही पूछे जायेंगे जो प्रदेश की सत्ता पर बारी-बारी से काबिज रहे हैं। अभी जिन सवालों को शान्ता कुमार और मनकोटिया ने उछाला है उन पर इनसे भी जवाब पूछा जाना बनता है क्योंकि यह लोग भी सत्ता में भागीदार रहे हैं। आज प्रदेश को लेकर पूछे जाने वाला हर सवाल हर उस नेता से भी पूछा जायेगा जो कभी प्रदेश की सत्ता से जुड़ा रहा है।
ऐसे में यह एक महत्वपूर्ण संकेत हो जाता है कि केजरीवाल की सभाओं में उस समय लोग आ रहे हैं जब प्रदेश में विधिवत रूप से आप की इकाई तक गठित नहीं है। इस स्थिति में भी लोगों का केजरीवाल को इतनी संख्या में सुनने आना यह दर्शाता है कि लोग सही में अब भाजपा और कांग्रेस का विकल्प चाहते हैं। यह आने वाला समय बतायेगा कि आप लोगों की इस अपेक्षा को पूरा कर पाता पाता है या नहीं।