2016 से लग रहे हैं यह आरोप
केजरीवाल को आरोपों का हां या न में जवाब देने में आपत्ति क्यो?
केजरीवाल सरकार का कर्ज भार क्यों बढ़ रहा है और कैपिटल परिव्यय क्यों कम हो रहा है?
इस परिदृश्य में यदि किसी राजनेता या उसकी पार्टी पर खालीस्तान का समर्थन करने के आरोप लगते हैं तो उन्हें हल्के से नहीं लिया जा सकता ना ही राजनीति के नाम पर उन्हें नजरअंदाज किया जा सकता है। संभवत इसी गंभीरता को देखते हुए पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने इसको लेकर गृह मंत्रालय को इन आरोपों की जांच करवाने के लिए पत्र लिखा। केंद्रीय गृह मंत्री ने भी इसी गंभीरता के कारण इस मामले की जांच करवाये जाने का आश्वासन दिया है। अब यह केंद्रीय गृह मंत्री की जिम्मेदारी हो जाती है कि वह इन आरोपों की जांच के परिणाम को देश की जनता के सामने रखें। लेकिन इन आरोपों का जवाब जिस तरह से केजरीवाल ने दिया है उससे आरोपों की गंभीरता कम नहीं हो जाती है। क्योंकि केजरीवाल ने इसका सीधा जवाब नहीं दिया है कि खालीस्तान के समर्थकों के साथ उनकी कोई बैठक हुई है या नहीं। क्योंकि कुमार विश्वास ने दावा किया है कि उन्होंने अपनी आंखों से इस बैठक को देखा है। यदि कुमार विश्वास की बात पर हास्य कवि होने के कारण विश्वास नहीं किया जा सकता तो केजरीवाल पर मुख्यमंत्री होने के नाम पर ही विश्वास कैसे कर लिया जाये। फिर किसी भी बड़े राजनेता पर अब अविश्वास करने का कोई आधार नहीं रह जाता है। केजरीवाल ने जब यह दावा किया कि उनके खिलाफ केंद्र ने कई जांचें करवा ली है और उनमें कुछ नहीं निकला है। तब यह नहीं बताया गया है कि इन जांचों का मुद्दा यह आरोप नहीं था। इसी के साथ केजरीवाल ने केंद्रीय एजेंसियों की काबिलियत पर भी सवाल उठाया है। लेकिन इन एजेंसियों के संदर्भ में यह भी महत्वपूर्ण है कि एन आई ए जैसी एजैंसी में एक अधिकारी ग्यारह वर्ष काम करने के बाद पकड़ा गया है।
जहां तक दिल्ली में केजरीवाल के प्रशासन और सरकार का सवाल है तो उसके लिए कैग रिपोर्ट में आये तथ्यों से काफी कुछ स्पष्ट हो जाता है। केजरीवाल ने जब सत्ता संभाली थी तब 2010-11 में दिल्ली सरकार का राजस्व 10,642 करोड़ के सरप्लस में था जो 2018-19 में 4465 करोड़ रह गया है। दिल्ली जल बोर्ड और डी टी सी लगातार घाटे में चल रही है दिल्ली मेट्रो भी लाभ नहीं कमा रही है। कैग के मुताबिक आठ लाख नौकरियां देने का दावा भी पूरा नहीं हो सका है। 2013-14 में दिल्ली सरकार का कैपिटल परिव्यय 11,685 करोड था जो 2018-19 में 9908 करोड़ रह गया है। कैपिटल परिव्यय का कम होना यह दर्शाता है कि अब विकास कार्यों पर लगभग विराम की स्थिति आती जा रही है। इसी तरह आर बी आई के मुताबिक दिल्ली सरकार का कर्ज भार जो मार्च 2011 में जी डी पी का 23.5 प्रतिशत था वह मार्च 2019 में बढ़कर 25.1 प्रतिशत हो गया है। स्वभाविक है कि जब कोई सरकार लगातार मुफ्त में सुविधायें देती जायेगी तो उसके पहले के जमा धन में कमी होती जायेगी और इसी के साथ उसका कर्जभार भी बढ़ता जायेगा। इसका परिणाम एक दिन बहुत भयानक होता है। इस परिदृश्य में केजरीवाल के सुशासन पर भी विश्वास करना कठिन हो जाता है।