Friday, 19 September 2025
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क्या जयराम के वकील नड्डा और अनुराग ठाकुर जवाब देंगे

सरकार दोहरे मापदंड क्यों अपना रही?
मुख्य सचिव के खिलाफ मामला क्यों नहीं दर्ज हो सकता
पी चिदंबरम के साथ अभियुक्त बने प्रबोध सक्सेना को लेकर सरकार की क्या मजबूरी है
शैल की आवाज दबाने के लिये किस हद तक जायेगी सरकार

शिमला/शैल। पिछले दिनो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा जब अपने ही गृह राज्य हिमाचल केे दौरे पर आये थे तब उन्होंने प्रदेश में चल रही नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों पर विराम लगाते हुये यह भी कहा था कि वह और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर दिल्ली में मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर के वकील हैं। इसी के साथ धूमल की उस मांग पर भी स्थिति स्पष्ट कर दी थी। जिसमें धामी की तर्ज पर उनकी हार के कारणो की जांच करने का आग्रह किया गया था। धूमल प्रकरण को भी यह कहकर विराम लगा दिया कि भाजपा गुण दोष के आधार पर फैसला लेती है। नड्डा के इस ब्यान के राजनीतिक अर्थ चाहे जो भी निकाले जायें लेकिन इससे यह आवश्य स्पष्ट हो जाता है कि आने वाले दिनों में जयराम और उनकी सरकार पर उठने वाले सवालों का जवाब नड्डा तथा अनुराग ठाकुर से भी पूछा जा सकता है। क्योंकि उन्होंने सरकार के वकील होने का दावा किया है। इसी दावे पर अमल करते हुये अनुराग ठाकुर ने आप के पांव प्रदेश में लंबे होने से पहले ही उस में तोड़फोड़ करके आप को प्रदेश इकाई भंग करने के मुकाम तक पहुंचा दिया। आने वाले दिनों में भाजपा और आप में क्या-क्या घटता है यह देखना दिलचस्प होगा।

लेकिन आगामी राजनीतिक घटनाक्रम के आकार लेने से पहले ही प्रदेश के मुख्य सचिव राम सुभाग सिंह के खिलाफ प्रधानमंत्री कार्यालय से जांच किये जाने की संस्तुतिक जो पत्र पिछले करीब छः माह से मुख्यमंत्री सचिवालय की अपनी ही फाइलों के नीचे दबा पड़ा था अचानक बाहर आकर एक बड़े समाचार की शक्ल ले गया। जिस पर मुख्यमंत्री को भी स्वयं प्रतिक्रिया देनी पड़ी। लेकिन मुख्यमंत्री यह प्रक्रिया देते हुए भूल गये कि इससे वह स्वयं ही दोहरे मापदंडों के आरोप में आ खड़े होते हैं। क्योंकि 2020 में ऐसा ही एक पत्र पीएमओ से शैल कार्यालय को लेकर आया था। इस पत्र पर बाकायदा विजिलैंस में मामला दर्ज किया गया है। इस मामले के शिकायतकर्ता और उसकी शिकायत तथा उसके ब्यान की कॉपी विजिलैंस से मांगी गयी जो आज तक नहीं मिली है। जिसका अर्थ है कि शिकायत छद्म नाम से की गयी और प्रदेश सरकार के ही गृह एवं सतर्कता विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव के निर्देशों के अनुसार ऐसी शिकायतों पर जांच नहीं की जा सकती। लेकिन जयराम सरकार ने शैल की आवाज को दबाने के लिये यह सब किया। परंतु आज मुख्य सचिव के खिलाफ शिकायतें आने पर कोई मामला दर्ज नहीं किया जा रहा है। अब यह दोहरे मापदंड क्यों अपनाये जा रहे हैं। इस पर मुख्यमंत्री की ओर से कोई जवाब नहीं आ रहा है। ऐसे में क्या मुख्यमंत्री के वकील नड्डा और अनुराग इन दोहरे मापदंडों का कारण बतायेंगे।
यही नहीं सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव वित्त प्रबोध सक्सेना पी चिदंबरम मामले में सह अभियुक्त हैं। सीबीआई ने यह मामला दर्ज किया हुआ है। इस मामले के चलते उन्हें ओ डी आई सूची में होना चाहिये और नियमानुसार इस मामले के लंबित रहते उन्हें पदोन्नत नहीं किया जा सकता। हिमाचल सरकार ने भी अपने 27-10-2017 के पत्र में इस आशय के स्पष्ट निर्देश जारी किये हुये हैं। लेकिन जयराम सरकार ने इन निर्देशों को भी अंगूठा दिखाते हुये प्रबोध सक्सेना को महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी देने के साथ ही पदोन्नति भी दी है। प्रबोध सक्सेना एक योग्य अधिकारी हो सकते हैं लेकिन क्या सरकार ने ऐसे निर्देश उन लोगों को दंडित करने के लिये बना रखे हैं जो गुण दोष के आधार पर सरकार की हां में हां मिलाते हैं। क्योंकि जिन लोगों के खिलाफ ऐसे कोई मामले होते हैं वह सरकार को खुश करने के लिये कोई भी अवांछित फैसला लेने के लिये तैयार रहते हैं। इसमें यह भी सवाल उठता है कि राजनीतिक नेतृत्व ऐसे लोगों पर अपनी विश्वसनीयता कैसे बना लेता है। क्या ऐसे राजनीतिक और प्रशासनिक नेतृत्व के हाथों में कोई भी देश-प्रदेश ज्यादा देर तक सुरक्षित रह सकता है? जयराम सरकार के कार्यकाल में ऐसे दर्जनों मामले घटे हैं जहां अदालतों के फैसलों पर भी अमल नहीं किया गया है। आने वाले दिनों में ऐसे मामले पाठकों के सामने पूरे विस्तार के साथ रखे जायेंगे ताकि जनता एक स्वस्थ फैसला ले सके।

2017 में प्रबोध सेक्सेना द्वारा स्वयं जारी पत्र का अब उन्ही पर अमल क्यों नही



























 

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