Sunday, 21 December 2025
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क्यों नहीं आ रहा है कांग्रेस का आरोप पत्र

शान्ता कुमार की आत्मकथा में ही भाजपा सरकार पर लगाये गये आरोपों पर भी क्यों चुप है प्रदेश कांग्रेस
क्या रस्मी धरना प्रदर्शनों से ही कांग्रेस सफल हो जायेगी?

शिमला/शैल। इस समय राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस ही भाजपा को सीधी चुनौती दे रही है। अन्य विपक्षी दल इसमें बहुत पीछे चल रहे हैं। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि अन्य दलों में तोड़फोड़ करके उन को कमजोर करने की रणनीति पर सरकार और भाजपा चल रही है। कांग्रेस नेतृत्व को ईडी में उलझाने की कवायद की जा रही है। कांग्रेस में पहले राहुल गांधी और अब सोनिया गांधी को ईडी द्वारा पूछताछ के लिये बुलाया जाना इसके प्रमाण हैं। कांग्रेस ईडी को लेकर पूरी आक्रामकता के साथ देशभर में विरोध प्रदर्शन आयोजित कर रही है। नेतृत्व का एक वर्ग ईडी मामले की सच्चाई भी जनता के सामने रखता जा रहा है ताकि जनता को यह विश्वास दिलाया जा सके कि इस मामले में इन नेताओं को जबरदस्ती उलझाया जा रहा है। कांग्रेस के लिये यह एक बड़ा मुद्दा बन गया है और यह आवश्यक हो गया है कि सरकार और भाजपा को उसके ही भ्रष्टाचार पर घेरा जाये। यह कहने के लिये जिन राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं वहां की कांग्रेस ईकाईयों को भी इस में सक्रिय भूमिका निभानी होगी। हिमाचल में भाजपा की सरकार है और कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल है। लेकिन यह एक अजीब संयोग है कि कांग्रेस इस सरकार के खिलाफ अभी तक कोई आरोप पत्र जारी नहीं कर पाई है। पिछले दिनों जब यह चर्चा उठी कि कांग्रेस जल्द ही सरकार के खिलाफ ठोस तथ्य पर आधारित एक आरोप पत्र राज्यपाल को साैंपने जा रही है। यह चर्चा सामने आते ही मुख्यमंत्री का यह ब्यान आ गया कि वह कांग्रेस सरकार के खिलाफ एक समय भाजपा द्वारा सौंपे आरोप पत्र की जांच सीबीआई द्वारा करवाने पर विचार कर रहे हैं। मुख्यमंत्री के इस ब्यान के बाद कांग्रेस का अपेक्षित आरोपपत्र फिर चर्चा से गायब हो गया है। जबकि एक समय यही कांग्रेस सदन में जयराम सरकार पर हिमाचल बेचने का आरोप लगा चुकी है। कांग्रेस के समय में एकल खिड़की योजना के तहत पारित हुये सीमेंट उद्योग जयराम सरकार में कैसे लालफीताशाही का शिकार हुये हैं। इसको लेकर प्रोमोटर शिकायत तक कर चुके हैं। लेकिन कांग्रेस इन मुद्दों पर एकदम चुप चल रही है और इस चुप्पी को लेकर अब सवाल उठने शुरू हो गये हैं। भाजपा सरकार के खिलाफ एक समय केंद्र में मंत्री रहे शान्ता कुमार ने अपनी आत्मकथा में बहुत ही गंभीर आरोप लगाये हुये हैं। शान्ता ने यहां तक आरोप लगाया है कि इस भ्रष्टाचार की जांच की मांग करने के कारण ही उन्हें वाजपेयी मंत्रिमण्डल से हटा दिया गया था। शान्ता कुमार ने अपनी आत्मकथा में सरकार से लेकर अब की मोदी सरकार के खिलाफ भी गंभीर आरोप लगाये हैं। यदि प्रदेश की कांग्रेस इकाई शान्ता कुमार की आत्मकथा में उठाये गये मुद्दों पर ही मोदी सरकार से प्रश्न पूछने का साहस जुटा पाती है तो उसी से केंद्र सरकार कटघरे में खड़ी हो जाती है। क्योंकि यह आरोप तो स्वयं भाजपा के ही केंद्र में मंत्री रहे व्यक्ति द्वारा लगाये गये हैं। लेकिन प्रदेश कांग्रेस का सारा नेतृत्व जिस तरह से केंद्र से निर्देशित धरना प्रदर्शनों तक ही अपने को सीमित रख रही है उससे कई सवाल उठने शुरू हो गये हैं।

क्या आप प्रदेश में चुनाव लड़ने के प्रति गंभीर है

सिराज में रैली करने की घोषणा क्यों पूरी नहीं हो रही
भाजपा और कांग्रेस के कार्यकालों में शिक्षा और स्वास्थ्य में हुए घोटालों पर चुप्पी क्यों
शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार का ब्लू प्रिंट क्या है?
क्या कुछ लोग संघ भाजपा से निर्देशित है

शिमला/शैल। इन दिनों दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार और केंद्र सरकार के बीच टकराव चल रहा है। केजरीवाल को सिंगापुर जाने की अनुमति नहीं दी जा रही है। दिल्ली सरकार की आबकारी नीति की जांच सीबीआई से करवाने की सिफारिश उप राज्यपाल कर चुके हैं। हिमाचल के प्रभारी रहे सत्येंद्र जैन ईडी की हिरासत में चल रहे हैं। पंजाब में मुस्से वाला की हत्या के बाद पंजाब में कानून और व्यवस्था को लेकर सवाल खड़े किये जा रहे हैं। पंजाब में राघव चड्डा की अध्यक्षता में बनाई सलाहकार कमेटी को अदालत में चुनौती दी जा चुकी है। केजरीवाल के मॉडल को रेवड़िया बांटना करार देकर प्रधानमंत्री इससे बचने की सलाह दे चुके हैं। यह सब कितना सही या गलत है इसका पता तो आने वाले समय में ही लगेगा। लेकिन अभी जनता केजरीवाल के अच्छी शिक्षा व्यवस्था और अच्छे स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाने तथा भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देने के वायदों से प्रभावित होकर उसके गिर्द इक्ठी हो ही रही है। इसका ताजा उदाहरण सोलन की प्रस्तावित रैली थी। इसमें केजरीवाल खराब मौसम के कारण शामिल नहीं हो सके। लेकिन इसके बावजूद सोलन में मौसम के खराब होते हुये भी दस हजार लोगों का आना अपने में इस बात का प्रमाण है कि लोग बदलाव चाहते हैं। जनता में भाजपा और कांग्रेस दोनों के प्रति रोष है। इस रोष को यदि सही दिशा मिल गई तो इसके परिणाम निश्चित रूप से चौंकाने वाले हो सकते हैं। इस परिपेक्ष में यह आवश्यक हो जाता है कि आप जब लोगों से यह वायदे कर रही है तो इसी के साथ उससे यह भी पूछा जाये कि इन वायदों को पूरा करने के लिये आर्थिक संसाधन कहां से आयेंगे? क्या इसके लिये जनता पर करों का बोझ डाला जायेगा या उसके सिर कर्ज का भार बढ़ाया जायेगा। क्योंकि केंद्र से वही आर्थिक सहायता मिलेगी जो नियमानुसार राज्य का हक होगा। अभी पंजाब की जो आर्थिक स्थिति चल रही है उसमें किस तरह से चुनाव में किये गये वायदों को पूरा किया जाता है यह देखना भी दिलचस्प होगा। क्योंकि पंजाब उन तेरह राज्यों की सूची में शामिल है जो आरबीआई के मुताबिक कर्ज लेन की सारी सीमाएं लांघ चुके हैं। यदि केंद्र इन राज्यों की सहायता नहीं करता है तो उनकी स्थिति श्रीलंका जैसी हो सकती है। यह चेतावनी रिजर्व बैंक की है। हिमाचल में भी कर्ज कैग के मुताबिक सीमाएं लांघ चुका है। ऐसे में जनता अभी तो लोकलुभावन वायदों से प्रभावित हो सकती है जैसे मोदी के अच्छे दिन और पन्द्रह-पन्द्रह लाख हरेक के खातों में आने से प्रभावित हुये थे। जबकि आज साधारण खाद्य पदार्थों पर भी जीएसटी लगाने की नौबत आ गयी हैै। ऐसे में आज प्रदेश में आप के प्रति जो रुझान जनता का कुछ-कुछ बनता जा रहा है उसमें जनता के सामने राज्य की व्यावहारिक स्थिति रखना आप के स्थानीय नेतृत्व की जिम्मेदारी हो जाती है। लेकिन स्थानीय नेतृत्व शिक्षा और स्वास्थ्य के मंत्र जाप से आगे बढ़ नहीं पा रहा है। इसमें भी वह यह ब्लू प्रिन्ट सामने नहीं ला पाया है कि सुधार संभव होगा कैसे? इसमंे यह संदेश उभर रहा है की या तो स्थानीय नेतृत्व को प्रदेश की जानकारी ही नहीं है या वह फिर कहीं भाजपा से निर्देशित तो नहीं हो रहा है। क्योंकि मण्डी में मुख्यमंत्री के अपने विधानसभा क्षेत्र सिराज में जो जयराम को घेरने के लिये रैली करने की घोषणा सत्येंद्र जैन की थी अब लगता है कि इस घोषणा को नेतृत्व भूल ही गया है। यही नहीं शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों में भाजपा और कांग्रेस के शासन कालों में क्या-क्या घोटाले हुये हैं उन पर भी जनता के सामने न तो कोई जानकारियां रखी जा रही है न ही उन पर कोई सवाल पूछे जा रहे हैं। इस समय तो यही आकलन बन रहा है कि आप प्रदेश विधान का चुनाव बहुत गंभीरता से नहीं लड़ना चाह रहा है। जबकि इस समय भी आप में कुछ लोग ऐसे हैं जो आर एस एस की प्रदेश इकाई की हर गतिविधि और रणनीति की जानकारी रखते हैं। बल्कि चर्चा तो यहां तक है कि यह लोग वाकायदा संघ की अनुमति लेकर ही आप में शामिल हुये हैं। शायद इन्हीं कारणों से आप का प्रदेश में आगे बढ़ना रुक सा गया है।

मुफ्ती पर प्रधानमंत्री की चेतावनी के परिदृश्य में मुख्य सचिव कैसे अपेक्षाओं पर खरे उतरेंगे

क्या सिनियर अधिकारियों को बिना काम के बैठाना सरकारी धन का दुरूपयोग नही है

शिमला/शैल। जब मुख्यमंत्री को चुनावों से चार माह पहले भी मुख्य सचिव को बदलने की नौबत आ जाये और ऐसे अधिकारी को इस पद पर लाना पड़ जाये जिसका सेवाकाल भी इतना ही शेष बचा हो तथा इसके लिये तीन सिनियर अधिकारियों को बिना काम के बैठाना पड़े तो मुख्यमंत्री और उनकी सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने स्वभाविक हो जाते हैं। क्योंकि यह वह वक्त होता है जब पूरा प्रशासन मुख्यमंत्री की घोषणाओं को जमीनी हकीकत में बदलने के लिये काम में जुट जाता है। मुख्यमंत्री पिछले दो माह से लगातार प्रदेश का दौरा कर रहे हैं। हर चुनाव क्षेत्र में करोड़ों की घोषणाएं और शिलान्यास हो रहे हैं। इन घोषणाओं की प्रशासनिक और वित्तीय स्वीकृतियां सुनिश्चित करना प्रशासन का काम होता है। प्रशासनिक सचिव और वित्त विभाग की इसमें अहम भूमिका रहती है। इस प्रशासनिक प्रक्रिया के संचालन की जिम्मेदारी मुख्य सचिव की रहती है।
ऐसे में जिस तत्परता में नये मुख्य सचिव की नियुक्ति की गयी और उसके लिये इनसे वरीयता में ऊपर के तीन अधिकारियों को नजरअंदाज किया गया है उससे प्रदेश के शीर्ष प्रशासन पर नजर डालना आवश्यक हो जाता है। चर्चा रही है कि पूर्व मुख्य सचिव कई बार मुख्यमंत्री ही नहीं बल्कि पूरे मंत्रिमण्डल को आश्वस्त कर चुके थे कि वह सत्ता में वापसी सुनिश्चित कर देंगे। शायद इन्हीं आश्वासनों के चलते मुख्य सचिव के खिलाफ पीएमओ से करीब एक वर्ष पहले आयी शिकायत पर अमल नहीं किया गया। बल्कि इस शिकायत के आने के बाद ही प्रधानमंत्री दो बार हिमाचल आये। अदानी पावर के 280 करोड़ ब्याज सहित लौटाने के मामले के अतिरिक्त ऐसा और कोई मामला भी नहीं था जिस पर प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा कोई संज्ञान लिये जाने की संभावना बनती है। मुख्य सचिव का चयन एकदम मुख्यमंत्री का एकाधिकार होता है। फिर जिस अधिकारी को मुख्य सचिव बनाया गया है उसने तो कुछ दिन पहले मुख्य सूचना आयुक्त के पद के लिए आवेदन कर रखा था और इस चयन के लिए कमेटी की बैठक भी हो गयी थी। इसका अर्थ यह निकलता है कि तब तक मुख्य सचिव को बदले जाने और धीमान को उनके स्थान पर लाने के कोई संकेत तक नहीं थे। ऐसे में यह स्पष्ट हो जाता है कि इस बदलाव की परिस्थितियां अचानक और उस समय बनी जब भाजपा के पूर्व अध्यक्ष पंडित खीमी राम कांग्रेस में शामिल हो गये यह सब जानते हैं कि आधा सिराज मण्डी में तो आधा बंजार में पड़ता है। इसलिये मुख्यमंत्री के लिये सिराज से ज्यादा बाहर निकलना आसान नहीं होगा।
यह राजनीतिक परिस्थिति निर्मित होते ही मुख्यमंत्री के अपने कोर खेमे में चिन्ता की लकीरें उभरना स्वाभाविक थी। चर्चा है कि इस कोर ग्रुप ने तुरंत अपनी बैठक की बल्कि एक सदस्य को तो गाड़ी भेज कर बुलाया गया। इस बैठक के बाद मुख्यमंत्री से इस बदलाव का आग्रह किया गया जिसे मुख्यमंत्री टाल नहीं सके। चर्चा तो यहां तक है कि इस कमेटी का सुझाव तो धीमान को भी नजरअन्दाज करके सीधे सक्सेना को मुख्य सचिव बनाने का था। जिनको नजर अन्दाज किया गया उनमें से कुछ पर तो कांग्रेस की चार्जशीट बनाने में भूमिका होने तक का आरोप भी शायद लगाया गया। शायद इसी आरोप का परिणाम है की नजरअन्दाज हुए अधिकारियों को बिना किसी विभाग के बैठा दिया गया। मुख्यमंत्री को यह तक समझने नहीं दिया गया कि इतने बड़े अधिकारियों को बिना काम के बैठाना जनता के धन का सीधा दुरुपयोग है। बल्कि आने वाले दिनों में मुख्यमंत्री के लिये अतिरिक्त मुख्य सचिव वित्त को ओडीआई अधिकारियों की सूची में न रखने को लेकर भी जवाब देना कठिन हो जायेगा। क्योंकि आई एन एक्स मीडिया मामले में वह जमानत पर चल रहे हैं और इस संबंध में प्रदेश उच्च न्यायालय में एक शिकायत लंबित चल रही है।
शीर्ष प्रशासन की इस वस्तुस्थिति के परिपेक्ष में नवनियुक्त मुख्य सचिव कैसे तालमेल बिठाकर मुख्यमंत्री की घोषणाओं को कैसे विश्वसनीयता के दायरे में ला पाते हैं। यह देखना दिलचस्प होगा। क्योंकि सरकार मुफ्ती की घोषणा के दम पर वोटरों को लुभाने का जुगाड़ कर रही है और प्रधानमंत्री ने लोगों से आग्रह कर रखा है कि वह इस मुफ्ती के प्रलोभन में न आयें। प्रधानमंत्री ने इसे वर्तमान और भविष्य दोनों के लिये घातक करार दिया है।

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