केजरीवाल और मोदी सरकार दोनों अन्ना आंदोलन के परिणाम है
इस नाते केंद्र पर उठते सवालों का जवाब केजरीवाल से मांगना जरूरी हो जाता हैै
अभी आम आदमी पार्टी ने उत्तराखंड और गोवा में भी सरकार बनाने के पूरे दावों के साथ चुनाव लड़ा था। लेकिन वहां पर उसे कोई सफलता नहीं मिली है। बल्कि उसका चुनाव लड़ना भाजपा की जीत का एक बड़ा सहायक सिद्ध हुआ है। उत्तर प्रदेश में भी आप इसी भूमिका में रहा है। लेकिन पंजाब में उसे प्रचंड बहुमत मिला है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि एक ही वक्त में इतना बड़ा विरोधाभास कैसे घट गया? क्या पंजाब की जनता कांग्रेस से मुक्ति चाहती थी क्योंकि पंजाब में जनसंघ से लेकर भाजपा तक की अकाली दल के सहारे ही सत्ता में भागीदारी रही है। इस बार जब कृषि कानूनों के कारण अकाली दल ने भाजपा का साथ छोड़ दिया तो स्वभाविक रूप से वहां पर भाजपा का कुछ भी दांव पर नहीं रहा। भाजपा को जो चुनौती राष्ट्रीय दल कांग्रेस से है वह किसी भी क्षेत्राीय दल से नहीं है। आज भी भाजपा और कांग्रेस में लोकसभा की 200 सीटों पर सीधी टक्कर है। इसलिए भाजपा का यह प्रयास रहेगा कि वह कांग्रेस को कमजोर करने के लिये किसी दल का परोक्ष/अपरोक्ष में साथ ले। इस समय देश एक ऐसे दौर से गुजर रहा है जहां पर राष्ट्रीय हितों को दलों के हित से पहले रखना होगा।
2014 में अन्ना आंदोलन जिन मुद्दों पर आया था उन में भ्रष्टाचार और महंगाई तथा बेरोजगारी सबसे प्रमुख थे। इन मुद्दों पर कांग्रेस को भ्रष्टाचार का पर्याय करार दे दिया गया था। काले धन के बड़े-बड़े आंकड़े परोस कर हर आदमी के खाते में पन्द्रह-पन्द्रह लाख आने का सपना दिखाया गया था। क्या 2014 के वादे पूरे हुये हैं। हर चुनाव में पुराने मुद्दों को भुलाकर नये मुद्दे गढ़े जाते रहे हैं। लेकिन यह सवाल नहीं पूछा गया कि यह दावे और वादे पूरे क्यों नहीं हुये। जिस चीन का डर देश को लगातार परोसा जा रहा है उसी के साथ व्यापार भी क्यों बढ़ता जा रहा है। 2014 से लगातार देश भाजपा और मोदी पर विश्वास करता आ रहा है। लेकिन इस विश्वास का प्रतिफल जनता को महंगाई और बेरोजगारी के रूप में क्यों दिया जा रहा है। विनिवेश और मौद्रीकरण के नाम पर राष्ट्रीय संपत्तियों को प्राइवेट सैक्टर के हवाले क्यों किया जा रहा है। चुनाव आयोग की विश्वसनीयता क्यों खत्म हो रही है। इसे बहाल करने के लिए पुनः बैलेट पेपर से मतदान की व्यवस्था क्यों नहीं की जा रही है। हिमाचल प्रदेश में ही विपक्ष सरकार से कर्जाें और केंद्रीय सहायता पर श्वेत पत्र की मांग कर रहा है। क्या आप इन सवालों को चुनावी मुद्दा बनायेगा या सिर्फ कुछ चीजें मुफ्त देने के वायदों से ही जनता को ठग लेगा।
आप से यह सवाल इसलिए किये जा रहे हैं क्योंकि केजरीवाल अन्ना आंदोलन का प्रतिफल है। अन्ना आज सारे परिदृश्य से गायब है। लेकिन केजरीवाल भी इन मुद्दों पर खामोश हैं। इसलिए आज जब केजरीवाल की आप प्रदेश में सरकार बनाने के दावे के साथ चुनाव लड़ने जा रही है तो उसके हर आदमी से यह सवाल पूछने आवश्यक हो जाते हैं। अन्ना का आंदोलन संघ से प्रायोजित था यह सामने आ चुका है। उस आंदोलन का अन्ना के बाद दूसरा बड़ा नाम केजरीवाल है। केंद्र की मोदी सरकार इसी आंदोलन का परिणाम है। इसलिए मोदी सरकार पर उठने वाले हर सवाल सवाल का जवाब केजरीवाल और उसकी टीम से मांगना आवश्यक हो जाता है।