Friday, 19 September 2025
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मुफ्ती पर प्रधानमंत्री की चेतावनी के परिदृश्य में मुख्य सचिव कैसे अपेक्षाओं पर खरे उतरेंगे

क्या सिनियर अधिकारियों को बिना काम के बैठाना सरकारी धन का दुरूपयोग नही है

शिमला/शैल। जब मुख्यमंत्री को चुनावों से चार माह पहले भी मुख्य सचिव को बदलने की नौबत आ जाये और ऐसे अधिकारी को इस पद पर लाना पड़ जाये जिसका सेवाकाल भी इतना ही शेष बचा हो तथा इसके लिये तीन सिनियर अधिकारियों को बिना काम के बैठाना पड़े तो मुख्यमंत्री और उनकी सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने स्वभाविक हो जाते हैं। क्योंकि यह वह वक्त होता है जब पूरा प्रशासन मुख्यमंत्री की घोषणाओं को जमीनी हकीकत में बदलने के लिये काम में जुट जाता है। मुख्यमंत्री पिछले दो माह से लगातार प्रदेश का दौरा कर रहे हैं। हर चुनाव क्षेत्र में करोड़ों की घोषणाएं और शिलान्यास हो रहे हैं। इन घोषणाओं की प्रशासनिक और वित्तीय स्वीकृतियां सुनिश्चित करना प्रशासन का काम होता है। प्रशासनिक सचिव और वित्त विभाग की इसमें अहम भूमिका रहती है। इस प्रशासनिक प्रक्रिया के संचालन की जिम्मेदारी मुख्य सचिव की रहती है।
ऐसे में जिस तत्परता में नये मुख्य सचिव की नियुक्ति की गयी और उसके लिये इनसे वरीयता में ऊपर के तीन अधिकारियों को नजरअंदाज किया गया है उससे प्रदेश के शीर्ष प्रशासन पर नजर डालना आवश्यक हो जाता है। चर्चा रही है कि पूर्व मुख्य सचिव कई बार मुख्यमंत्री ही नहीं बल्कि पूरे मंत्रिमण्डल को आश्वस्त कर चुके थे कि वह सत्ता में वापसी सुनिश्चित कर देंगे। शायद इन्हीं आश्वासनों के चलते मुख्य सचिव के खिलाफ पीएमओ से करीब एक वर्ष पहले आयी शिकायत पर अमल नहीं किया गया। बल्कि इस शिकायत के आने के बाद ही प्रधानमंत्री दो बार हिमाचल आये। अदानी पावर के 280 करोड़ ब्याज सहित लौटाने के मामले के अतिरिक्त ऐसा और कोई मामला भी नहीं था जिस पर प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा कोई संज्ञान लिये जाने की संभावना बनती है। मुख्य सचिव का चयन एकदम मुख्यमंत्री का एकाधिकार होता है। फिर जिस अधिकारी को मुख्य सचिव बनाया गया है उसने तो कुछ दिन पहले मुख्य सूचना आयुक्त के पद के लिए आवेदन कर रखा था और इस चयन के लिए कमेटी की बैठक भी हो गयी थी। इसका अर्थ यह निकलता है कि तब तक मुख्य सचिव को बदले जाने और धीमान को उनके स्थान पर लाने के कोई संकेत तक नहीं थे। ऐसे में यह स्पष्ट हो जाता है कि इस बदलाव की परिस्थितियां अचानक और उस समय बनी जब भाजपा के पूर्व अध्यक्ष पंडित खीमी राम कांग्रेस में शामिल हो गये यह सब जानते हैं कि आधा सिराज मण्डी में तो आधा बंजार में पड़ता है। इसलिये मुख्यमंत्री के लिये सिराज से ज्यादा बाहर निकलना आसान नहीं होगा।
यह राजनीतिक परिस्थिति निर्मित होते ही मुख्यमंत्री के अपने कोर खेमे में चिन्ता की लकीरें उभरना स्वाभाविक थी। चर्चा है कि इस कोर ग्रुप ने तुरंत अपनी बैठक की बल्कि एक सदस्य को तो गाड़ी भेज कर बुलाया गया। इस बैठक के बाद मुख्यमंत्री से इस बदलाव का आग्रह किया गया जिसे मुख्यमंत्री टाल नहीं सके। चर्चा तो यहां तक है कि इस कमेटी का सुझाव तो धीमान को भी नजरअन्दाज करके सीधे सक्सेना को मुख्य सचिव बनाने का था। जिनको नजर अन्दाज किया गया उनमें से कुछ पर तो कांग्रेस की चार्जशीट बनाने में भूमिका होने तक का आरोप भी शायद लगाया गया। शायद इसी आरोप का परिणाम है की नजरअन्दाज हुए अधिकारियों को बिना किसी विभाग के बैठा दिया गया। मुख्यमंत्री को यह तक समझने नहीं दिया गया कि इतने बड़े अधिकारियों को बिना काम के बैठाना जनता के धन का सीधा दुरुपयोग है। बल्कि आने वाले दिनों में मुख्यमंत्री के लिये अतिरिक्त मुख्य सचिव वित्त को ओडीआई अधिकारियों की सूची में न रखने को लेकर भी जवाब देना कठिन हो जायेगा। क्योंकि आई एन एक्स मीडिया मामले में वह जमानत पर चल रहे हैं और इस संबंध में प्रदेश उच्च न्यायालय में एक शिकायत लंबित चल रही है।
शीर्ष प्रशासन की इस वस्तुस्थिति के परिपेक्ष में नवनियुक्त मुख्य सचिव कैसे तालमेल बिठाकर मुख्यमंत्री की घोषणाओं को कैसे विश्वसनीयता के दायरे में ला पाते हैं। यह देखना दिलचस्प होगा। क्योंकि सरकार मुफ्ती की घोषणा के दम पर वोटरों को लुभाने का जुगाड़ कर रही है और प्रधानमंत्री ने लोगों से आग्रह कर रखा है कि वह इस मुफ्ती के प्रलोभन में न आयें। प्रधानमंत्री ने इसे वर्तमान और भविष्य दोनों के लिये घातक करार दिया है।

भाजपा के आतंकियों व अपराधियों से संबध-कांग्रेस का बड़ा आरोप

शिमला/शैल। कांग्रेस जिस स्तर पर अब भाजपा के खिलाफ आक्रामक हो गयी है उसका देश की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन अभी कांग्रेस के आरोपों ने भाजपा के चाल चरित्र और चेहरे पर जिस तरह के आरोप लगाते हुये प्रश्न उठाये हैं उनके दंश से बाहर निकलना आसान नहीं होगा। भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नुपूर शर्मा के पैगम्बर मोहम्मद पर दिये बयान पर जिस तरह की अंतरराष्ट्रीय जगत में प्रतिक्रियाएं उभरी उनका संज्ञान लेते हुए पार्टी ने उन्हें न केवल प्रवक्ता के दायित्व से मुक्त कर दिया बल्कि पार्टी से भी निलंबित कर दिया। लेकिन पार्टी की इस कारवाई के बाद नुपूर शर्मा के पक्ष और विरोध में लंबी लाइनें खड़ी हो गयी। इसी परिदृश्य में महाराष्ट्र और उदयपुर की घटनायें घट गयी। उदयपुर की घटना पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी का वीडियो वायरल हो गया। ज़ी न्यूज ने अपने डीएनए प्रोग्राम में इसे प्रसारित भी कर दिया। जी न्यूज के प्रसारण के बाद पूर्व सूचना एवं प्रसारण मन्त्री राज्यवर्धन राठौर जैसे भाजपा नेताओं तक ने भी इसे प्रचारित कर दिया। राहुल गांधी का यह वीडियो फेक था। इससे बायनाड में दिये एक बयान में कांट छांट करके तैयार किया गया था। मकसद राहुल गांधी की छवि बिगाड़ने का था। जैसे ही जी न्यूज़ का प्रसारण कांग्रेस के संज्ञान में आया तो पूरी पार्टी में रोष फैल गया। जी न्यूज़ का कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने घेराव तक कर दिया। जी न्यूज़ ने इस फर्जी वीडियो के प्रसारण के लिये क्षमा-याचना करते हुए इसे हटा लिया। सर्वाेच्च न्यायालय में भी क्षमा याचना करने का पक्ष रखा और कहा कि उसे यह ए एन आई न्यूज़ से मिला। लेकिन कांग्रेस ने इस तरह के फर्जी वीडियो प्रसारित कर उनके नेताओं की छवि खराब करने के प्रयासों को गंभीरता से लेते हुए इसे कानूनी अंजाम तक ले जाने के लिये जी न्यूज के एंकर रोहित रंजन और पूर्व मंत्री राज्यवर्धन राठौर के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज करवा दिये हैं। कांग्रेस ने ऐलान किया है कि ऐसे सारे प्रयासों का इस तरह से जवाब दिया जायेगा। स्मरणीय है कोबरा पोस्ट अपने एक स्टिंग ऑपरेशन में बहुत पहले यह खुलासा देश के सामने रख चुका है कि कैसे मीडिया घरानों और न्यूज़ चैनल को पैसे देकर राहुल गांधी और दूसरे नेताओं की छवि खराब करवाई जा रही है। अब जिस ढंग से जी न्यूज के एंकर रोहित रंजन बेनकाब हुए हैं और अपने कृत्य के लिये क्षमा याचना की उससे कोबरा पोस्ट के स्टिंग ऑपरेशन को भी स्वतः ही अधिमान मिल जाता है। उदयपुर की जिस घटना के साथ राहुल गांधी का बयान जोड़ा जा रहा था उसका आरोपी भाजपा का कार्यकर्ता निकला है। इसी तरह जम्मू-कश्मीर में पकड़े गये दो आतंकियों में से एक भाजपा का पदाधिकारी निकला है। कांग्रेस ने 2017 से लेकर अब तक घटे कुछ प्रमुख प्रकरण को देश की जनता के सामने रखते हुये भाजपा से तीखे सवाल पूछे हैं। इस संबंध में देश के हर राज्य में कांग्रेस ने वाकायदा पत्रकार वार्ताएं आयोजित करके जनता को जागरूक करने की रणनीति बना रखी है। इसके लिए कांग्रेस नेता पवन खेड़ा की ओर से एक प्रैस बयान जारी किया गया है। भाजपा की ओर से कांग्रेस के इन आरोपों का अभी तक कोई जवाब नहीं आया है। कांग्रेस का बयान यथास्थिति पाठकों के सामने रखा जा रहा है।



























राष्ट्रपति चुनाव में आम आदमी पार्टी का वोट कहां जायेगा

पार्टी के भविष्य के प्रति यह एक बड़ा संकेत होगा

शिमला/शैल। आम आदमी पार्टी ने अब हिमाचल इकाई में अठारह प्रवक्ताओं की नियुक्ति कर दी है। लेकिन अभी भी प्रदेश इकाई शिक्षा और स्वास्थ्य के मुद्दों से आगे नहीं बढ़ पायी है। फिर शिक्षा और स्वास्थ्य में भी कैसे आगे बढ़ेंगे इसका भी कोई ब्लूू प्रिन्ट अभी जनता के सामने नहीं आ पाया है। संसाधन कहां से आयेंगे इसके लिए भ्रष्टाचार पर नियंत्रण पाने का दावा केजरीवाल और सिसोदिया अपनी रैलियों में करते रहे हैं। लेकिन प्रदेश के किस विभाग में किस मंत्री या अधिकारी के साये तले कितना भ्रष्टाचार हुआ है इसमें भी अभी तक कोई चिन्हित नहीं हो पाया है। अब तक जो भी प्रचार-प्रसार हो रहा है वह एक सामान्य हवा पार्टी के पक्ष में बनाने से अधिक कुछ नहीं लग रहा है। इसी से पार्टी की नीयत को लेकर आशंकाएं उभरनी शुरू हो गयी है। क्योंकि पार्टी का बहुचर्चित दिल्ली मॉडल मुफ्ती की घोषणाओं से अधिक कुछ नहीं है। इस मुफ्ती की घोषणाओं ने देश की आर्थिकी पर कितना और क्या असर डाला है इसका खुलासा आर.बी.आई. की जून माह में आयी रिपोर्ट से सामने आ चुका है। इसी सब पर केंद्र के अधिकारी प्रधानमंत्री को एक बैठक में आगाह कर चुके हैं। इस बैठक में अधिकारियों ने साफ कहा था कि यदि मुफ्ती की घोषणाओं पर समय रहते नियंत्रण न पाया गया तो कुछ राज्यों के हालात श्रीलंका जैसे कभी भी हो सकते हैं। ऐसे दस राज्यों की आर.बी.आई. सूची भी जारी कर चुका है और श्रीलंका में हालात क्या हो गये हैं यह सब के सामने है।
इस परिपेक्ष में आज राष्ट्रपति चुनाव एक ऐसा अवसर है जिसमें राजनीतिक दलों की नीयत और नीति दोनों का खुलासा जनता के सामने आ जायेगा। क्योंकि आज जो दस राज्य श्रीलंका जैसे मुकाम पर पहुंच चुके हैं उसके लिये पिछले 8 वर्षों में केंद्र सरकार की जो नीतियां रही हैं वह भी बहुत हद तक जिम्मेदार रही हैं। ऐसे में इस राष्ट्रपति चुनाव में कौन सी पार्टी सत्ता पक्ष और कौन सी विपक्ष के उम्मीदवार के साथ खड़ी होती है इससे पता चल जायेगा कि कौन परोक्ष-अपरोक्ष में सत्ता पक्ष के साथ है या उसके विरोध में। इस समय आप की दिल्ली और पंजाब दो राज्यों में सरकारें हैं। राज्यसभा में आप के सांसद हैं। लेकिन आप ने अभी तक अपना स्टैंड स्पष्ट नहीं किया है कि वह एनडीए के साथ हैं या विपक्ष के साथ हैं। केजरीवाल विपक्ष की सर्वदलीय बैठक से गायब रहे हैं। ऐसे में यदि आप एनडीए के पक्ष में वोट करती है तो उसका असर हिमाचल में भी आप के भविष्य पर पड़ेगा। यह माना जायेगा कि आप हिमाचल में केवल भाजपा की मदद करने के लिये ही मैदान में आ रहा है। वैसे यह आरोप बहुत पहले से लगना शुरू हो गया है कि आप उन्ही राज्यों में सक्रिय भूमिका निभाता है जहां पर भाजपा के साथ कांग्रेस सीधे मुकाबले में होती है। हिमाचल में भी भाजपा को कांग्रेस से खतरा है और इसलिए आप यहां चुनाव लड़ने की बात कर रही है।

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