Thursday, 18 December 2025
Blue Red Green
Home देश

ShareThis for Joomla!

देहरा उपचुनाव में कांगड़ा सहकारी बैंक का पैसा प्रकरण पहुंचा राजभवन

  • होशियार सिंह ने संविधान की धारा 191 (1)(e) और 192 के तहत की है शिकायत
  • राज्यपाल ने बैंक से तलब की रिपोर्ट
शिमला/शैल।देहरा विधानसभा उपचुनाव के दौरान क्षेत्र के महिला मंडलों को केंद्रीय सहकारी बैंक धर्मशाला कांगड़ा से पचास -पचास रुपए देने का मामला शिकायत के रूप में महामहिम राज्यपाल के पास पहुंच गया है। इसकी शिकायत चुनाव हारने वाले भाजपा प्रत्याशी पूर्व विधायक होशियार सिंह ने की है। चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद इस तरह राज्य सहकारी बैंक द्वारा सिर्फ देहरा के ही महिला मंडलों को पैसा बांटना आचार संहिता की खुली उल्लंघना माना जा रहा है। इस उप चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी कमलेश ठाकुर की जीत हुई है। कमलेश ठाकुर मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह की धर्मपत्नी है। मुख्यमंत्री के पास ही प्रदेश के वित्त विभाग का प्रभार भी है और प्रदेश के सहकारी बैंकों का प्रभार भी मुख्यमंत्री के ही पास है ।
देहरा में यह पैसा बैंक द्वारा मतदान के शायद एक पखवाड़ा पहले दिया गया है। सिर्फ देहरा के ही महिला मंडलों को चुनाव से पूर्व इस तरह से पैसा बांटा जाना सीधे चुनाव को प्रभावित करने का प्रयास माना जा रहा है। यह सब चुनाव के बाद सामने आया है। और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1991 की धारा 123 में वर्णित भ्रष्ट आचरण में आता है। चुनावों के बाद सामने आये ऐसे आचरण की शिकायत संविधान की धारा 191(1)(e) और 192 के तहत राज्यपाल के पास दायर की जाती है। होशियार सिंह ने इन्हीं प्रावधानों के तहत राज्यपाल से शिकायत की है। राज्यपाल ने शिकायत आने के बाद केंद्रीय सहकारी बैंक से इस संबंध में रिपोर्ट तलब कर ली है । यदि रिपोर्ट में तथ्यों की पुष्टि हो जाती है तो राज्यपाल इस मामले को अपनी संस्तुति के साथ चुनाव आयोग को भेज देंगे। ऐसे मामलों में राज्यपाल का आदेश अंतिम होता है और उसे अदालत में भी चुनौती नहीं दी जा सकती है। स्मरणीय है कि बजट सत्र के दौरान हमीरपुर के विधायक आशीष शर्मा ने इस आशय का प्रश्न सदन में पूछा था। लेकिन इसके उत्तर में कहा गया था की सूचना एकत्रित की जा रही है। इस जवाब पर हुये वाद विवाद में आशीष शर्मा ने कुछ महिला मंडलों को बांटे गये पैसे के दस्तावेज जो उन्होंने जूटा रखे थे वह सदन के पटल पर रख दिए थे। यह दस्तावेज सदन के पटल पर आने के बाद पूरे मामले की गंभीरता बढ़ गई थी । शैल ने यह दस्तावेज उस समय पाठकों के सामने रखे हैं। अब यह मामला राज्यपाल और चुनाव आयोग के सामने आ गया है। नियमों के अनुसार इसमें बहुत जल्द कारवाई होने की संभावना है ।और इसमें विधायकी जाने की भी संभावनाएं हैं। प्रदेश की राजनीति में इस मामले के दूरगामी प्रभाव होंगे ।
यह है संविधान की धारा 191 और 192 के प्रावधान
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

जल विद्युत परियोजनाओं पर राज्य और केन्द्र में टकराव से किसे लाभ होगा?

  • जो विद्युत उत्पादन दो दशकों से भी ज्यादा लटक जायेगा वह किसके लिये हितकर होगा?

शिमला/शैल। सुक्खू सरकार ने जयराम सरकार के समय जिन-चार जल विद्युत परियोजनाओं को केंद्रीय उपक्रमों एनएचपीसी और एसजेवीएनएल को आबंटित कर दिया था उनको वापस लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। यह वापसी इस कारण से की जा रही है क्योंकि जयराम सरकार के समय इस आबंटन के लिये पूर्व की मुफ्त बिजली नीति में बदलाव कर दिया गया था। पहले यह नीति थी कि विद्युत उत्पादक से पहले 12 सालों तक 12% 13 से 30 वर्षों तक 18%और 31 से 40 वर्षों तक 30% और उसके बाद 40% मुफ्त बिजली प्रदेश को मिलती थी। पूर्व सरकार के समय इस नीति को बदलकर 4%, 8%, 12% और 25% कर दिया गया था। केंद्रीय उपक्रमों को दी गयी परियोजनाएं थी चंबा का डुग्गर 500 मेगावाट, लूहरी चरण एक 210 मेगावाट, धोला सिद्ध 166 मेगावाट और 382 मेगावाट की सुन्नी डैम परियोजना। जयराम सरकार के समय जब यह आबंटन हो गया तब इस पर इन उपक्रमों ने काम शुरू कर दिया क्योंकि दोनों ओर भाजपा की सरकारें ही थी। लेकिन शायद उस समय राज्य सरकार और इन केन्द्रीय उपक्रमों में एमओ.यू हस्ताक्षरित नहीं हो पाये थे। सुक्खू सरकार ने पूर्व सरकार के समय हुए इन समझौता को राज्य के हितों के खिलाफ करार देते हुये इन केन्द्रीय उपक्रमों को यह पत्र लिख दिया कि यदि उन्हें पूर्व की बिजली नीति 12%, 18%, 30% और 40% स्वीकार है तब इस आबंटन पर अमल किया जाये अन्यथा राज्य सरकार इन परियोजनाओं को वापस ले लेगी। इस पर केन्द्र सरकार के बिजली सचिव पंकज अग्रवाल ने 12 मार्च को प्रदेश के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर सूचित किया कि या तो इन परियोजनाओं के काम को देशहित में चलने दिया जाये या फिर अब तक जो भी खर्च हुआ है उसका ब्याज सहित भुगतान करने के बाद परियोजनाओं को वापस ले लिया जाये। केन्द्रीय बिजली सचिव के मुताबिक अब तक 3400 करोड़ रुपए खर्च हो गये हैं। प्रदेश सरकार ने इस संबंध में खर्च का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए प्रदेश उच्च न्यायालय में दस अप्रैल को दस्तक दे दी है। पूर्व सरकार के समय जब यह आबंटन हुआ था तब वर्तमान मुख्य सचिव बिजली सचिव थे और आज मुख्य सचिव हैं। इसलिए यह मामला रोचक होगा क्योंकि अब उन्हें केन्द्रीय सचिव को जवाब देना होगा।
जब सुक्खू सरकार ने जल विद्युत परियोजनाओं पर उपकर लगाने का फैसला लिया था तब इन्हीं उपक्रमों ने उसका विरोध किया था और मामला सर्वाेच्च न्यायालय तक गया था। उसी पृष्ठभूमि में यह माना जा रहा है कि पुनर्मूल्यांकन का मामला भी लम्बी अदालती लड़ाई में फंस जायेगा। धौलासिद्ध और लूहरी परियोजनाएं अक्तूबर 2008 में आबंटित हुई थी और अगस्त 2017 में इन्हें एसजेवीएनएल को दिया गया था। अब इन्हें फिर वापस लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है। इस तरह और एक दशक तक इनमें उत्पादन शुरू हो पाने की संभावना नहीं है। इसी तरह डूग्गर परियोजना 2009 में धूमल सरकार के समय टाटा पावर और सिंगापुर की स्टेट क्राफ्ट कंपनी को आबंटित हुए थे। परन्तु यह कंपनियां इस पर काम नहीं कर पायी और 2019 में यह आबंटन रद्द कर दिया गया। टाटा पावर ने इस परियोजना से अपना अपफ्रंट प्रीमियम वापस लेने के लिये आवेदन किया और उसे मिल भी गया। पिछले दो वर्षों में ही आरबीट्रेशन में सरकार को पावर प्रोजेक्टस में हजारों करोड़ देने पड़े हैं। लेकिन किसी भी मामले में यह सामने नहीं आ पाया है कि दोष किन अधिकारियों का था। बल्कि यह धारणा बनती जा रही है कि यह आरबीट्रेशन भी एक बड़ा कारोबार बन गया है।
इस समय सरकार वित्तीय संकट से गुजर रही है क्योंकि सरकार को वर्ष की शुरुआत ही कर्ज से करनी पड़ी है। मुख्यमंत्री सुक्खू प्रदेश को आत्मनिर्भर और देश का अग्रणी राज्य बनाने का दावा कर रहे हैं। एक समय प्रदेश की जल विद्युत परियोजनाओं को संकट मोचक के रूप में देखा गया था। परन्तु इस समय जितना कर्ज प्रदेश की पावर कंपनियों और बोर्ड पर है उसके चलते यह संभव नहीं है कि निकट भविष्य में पावर परियोजनाओं पर कोई निर्भरता बन पायेगी। चंडीगढ़ और भाखड़ा में हिमाचल के हिस्से को लेकर एक लम्बे समय से विवाद चल आ रहा है। हर सरकार इस हिस्से को लेने के बड़े-बड़े वायदे करती आयी है। अदालत से अवार्ड होने के बावजूद यह मसला अब तक हल नहीं हो पाया है। जबकि केन्द्र और राज्य में एक ही पार्टी की सरकारें रह चुकी हैं। ऐसी स्थिति में जब इन परियोजनाओं को वापस लेने की प्रक्रिया अदालत में पहुंच चुकी है उसके मद्देनजर इसमें लम्बी कानूनी लड़ाई से गुजरना पड़ेगा। पहले ही यह परियोजनाएं पिछले पन्द्रह वर्षों से अधिक समय से लटकी पड़ी है। अभी और एक दशक लगने की परिस्थितियों निर्मित हो गयी हैं। इस बार भाखड़ा और पोंगडैम जलाश्यों में पानी का भराव बहुत कम रहा है। लूहरी को लेकर प्रभावित जनता विरोध में आ गयी है। ग्लेशियर लगातार कम होते जा रहे हैं यह अध्ययनों ने सिद्ध कर दिया है। ऐसे में वित्तीय संकट में चल रहे प्रदेश के लिये ऐसे फैसले बहुत सावधानी से लेने पड़ेंगे।

पावर कारपोरेशन में सैंकड़ों करोड़ का भ्रष्टाचार इंजीनियर सुनील ग्रोवर के बयान से उठी चर्चा

  • यह भ्रष्टाचार कॉरपोरेशन के प्रबंधन के अतिरिक्त अध्यक्ष और प्रभारी मंत्री के नियंत्रण पर भी सवाल खड़े करता है।
  • कॉरपोरेशन के अध्यक्ष से क्या अतिरिक्त मुख्य सचिव सवाल जवाब कर पायेंगे
  • भ्रष्टाचार के सहभागी न बनना विमल नेगी को पड़ा भारी

शिमला/शैल। क्या अतिरिक्त मुख्य सचिव ओंकार शर्मा और पुलिस की जांच स्व. विमल नेगी की मौत के लिये जिम्मेदार लोगों को सजा दिला पायेगी। यह सवाल इंजीनियर सुनील ग्रोवर के उसे ब्यान के बाद चर्चा में आया है जो उन्होंने अतिरिक्त मुख्य सचिव ओंकार शर्मा को सौंपा है। इंजीनियर सुनील ग्रोवर एचपीएस एलडीसी के एम डी रह चुके हैं और अखिल भारतीय पावर इंजीनियरिंग फैडरेशन के संरक्षक भी हैं। इस नाते उनके तकनीकी ज्ञान और अनुभव पर संदेह नहीं किया जा सकता। सुनील ग्रोवर ने अपने ब्यान में पावर कॉरपोरेशन में व्यापक भ्रष्टाचार की तथ्यों के साथ जो कहानी सामने रखी है उसके मुताबिक सौर ऊर्जा परियोजनाओं पेखूबेला में ही सौ करोड़ से अधिक का घपला हुआ है और शोंग-टोंग जल विद्युत परियोजना में तो कई सौ करोड़ का घपला है। इन घपलों का आकार देखकर कोई भी व्यक्ति यह मानने को तैयार नहीं होगा कि एक दो अधिकारी ही अपने स्तर पर इतना बड़ा कारनामा कर गये होंगे। क्योंकि हर बोर्ड कॉरपोरेशन के प्रबंधन में वित्त विभाग का प्रतिनिधि होता है। फिर विभाग का प्रभारी सचिव भी होता है जो पूरे विभाग पर नजर रखता है। पावर कॉरपोरेशन में तो अध्यक्ष भी नियुक्त है। विद्युत विभाग का प्रभार तो स्वयं मुख्यमंत्री के पास है। फिर जिस तरह के नीतिगत फैसले शांग-टांग परियोजना में लिये गये हैं संभव है कि वह विषय मंत्री परिषद तक भी पहुंचे हों। इंजीनियर सुनील ग्रोवर के ब्यान से स्पष्ट है कि पावर कॉरपोरेशन में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ है। इतना बड़ा भ्रष्टाचार अपने में ही एक बड़ा मुद्दा बन जाता है। इस भ्रष्टाचार के कारण विमल नेगी के लिये जीवन समाप्त कर देने की परिस्थितियों निर्मित हुई या नहीं यह पुलिस की जांच का विषय है। लेकिन कार्पाेरेशन में भ्रष्टाचार हुआ है यह खुलासा इंजीनियर सुनील ग्रोवर का सत्यापित बयान कर रहा है। इतने बड़े पैमाने पर हुआ भ्रष्टाचार कॉरपोरेशन के प्रबंधन के अतिरिक्त अध्यक्ष ऊर्जा सचिव और प्रभारी मंत्री तक को कटघरे में खड़ा कर देता है। इस मामले की प्रशासनिक जांच अतिरिक्त मुख्य सचिव कर रहे हैं। लेकिन कॉरपोरेशन के अध्यक्ष तो शायद मुख्य सचिव स्वयं हैं। इसलिये अतिरिक्त मुख्य सचिव मुख्य सचिव से बतौर कॉरपोरेशन अध्यक्ष कितने और क्या सवाल जवाब कर पायेंगे यह आम समझ का विषय है।
वित्तीय संकट से जूझ रहे प्रदेश में इस आकार का भ्रष्टाचार घट जाये तो यह पूरी व्यवस्था पर एक गंभीर सवाल हो जाता है। इंजीनियर ग्रोवर ने अपने बयान के हर पन्ने पर हस्ताक्षर किये हैं और इसका अर्थ यह हो जाता है कि वह इस बयान में दर्ज तथ्यों को प्रमाणित करने के लिए तैयार हैं।

इंजीनियर ग्रोवर के बयान के अंश यह हैं

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 


बयान में दर्ज तथ्यों से यह स्पष्ट हो जाता है कि कॉर्पाेरेशन में सैकड़ो करोड़ का भ्रष्टाचार हुआ है। इस भ्रष्टाचार पर बहुत पहले वायरल हुये पत्र में भी कई संकेत दर्ज थे। लेकिन तब इस भ्रष्टाचार की जांच को रोकने के लिये पत्रकारों के खिलाफ ही एफआईआर दर्ज करवा दी गयी थी। यदि उस समय पत्र में दर्ज तथ्यों को गंभीरता से लिया होता तो शायद विमल नेगी को अपना जीवन समाप्त करने की स्थितियां ना बनती ।

 

More Articles...

  1. क्या सक्सेना सरकारी गवाह बनेंगे सेवा विस्तार से उठी आशंकाएं
  2. विमल नेगी की मौत मामले में अभी तक पुलिस खाली हाथ
  3. केंद्र सरकार ने राज्य के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के अध्यक्ष पद के लिए अधिसूचित की चयन प्रक्रिया
  4. क्या प्रबोध सक्सेना को सेवा विस्तार या पुनर्नियुक्ति मिल पायेगी ?
  5. देहरा विधानसभा उपचुनाव में कांगड़ा बैंक द्वारा महिला मण्डलों को आर्थिक सहायता देना आया सवालों में
  6. प्रदेश में कांग्रेस को बचाने के लिये सरकार और संगठन दोनों पर कड़ी कारवाई आवश्यक है
  7. क्या प्रभारी के बदलने के बाद सरकार में भी कोई बदलाव होगा
  8. क्या कांग्रेस में एक बड़ा विद्रोह और विरोध मुखर होने जा रहा है?
  9. बैंस के आरोपों में सुखविंदर सिंह सुक्खू और प्रियंका गांधी का संद्धर्भ आने का अर्थ
  10. क्या दिल्ली के चुनाव में भी हिमाचल चर्चा में रहेगा?
  11. बैंस के खिलाफ दर्ज एफआईआर से उभरे सवाल
  12. रेरा में अध्यक्ष और सदस्यों के पद भरने के लिये जारी हुआ विज्ञापन
  13. डॉ. मनमोहन सिंह "Philosopher King" दर्शन की प्रति मूर्ति थे।
  14. भाजपा की नीयत और नीति पर उठते सवालों के बीच बढ़ा विश्वसनीयता का संकट
  15. भाजपा उपाध्यक्ष कांगड़ा के सांसद डॉ. भारद्वाज सुक्खू सरकार के नाम पर पूर्व भाजपा सरकार को ही कटघरे में खड़ा कर गये।
  16. राधा स्वामी सत्संग ब्यास के लिये हुये संशोधन से एक्ट की प्रासंगिकता पर उठे सवाल
  17. क्या नादौन में बस स्टैंड के लिये सरकार की जमीन ही सरकार को बेच दी गयी
  18. क्या यह आयोजन सरकार और संगठन की एकजुटता का संदेश दे पाया है?
  19. राधा स्वामी सत्संग ब्यास के लिये प्रस्तावित लैंड सीलिंग संशोधन पर उठते सवाल
  20. पूर्व छः सीपीएस की विधायकी पर संशय बरकरार

Subcategories

  • लीगल
  • सोशल मूवमेंट
  • आपदा
  • पोलिटिकल

    The Joomla! content management system lets you create webpages of various types using extensions. There are 5 basic types of extensions: components, modules, templates, languages, and plugins. Your website includes the extensions you need to create a basic website in English, but thousands of additional extensions of all types are available. The Joomla! Extensions Directory is the largest directory of Joomla! extensions.

  • शिक्षा

    We search the whole countryside for the best fruit growers.

    You can let each supplier have a page that he or she can edit. To see this in action you will need to create a users who is in the suppliers group.  
    Create one page in the growers category for that user and make that supplier the author of the page.  That user will be able to edit his or her page.

    This illustrates the use of the Edit Own permission.

  • पर्यावरण

Facebook



  Search