शिमला/शैल। क्या सुक्खू सरकार का अपने ही भार से दम फूलने लगा है? क्या सरकार की स्थिरता प्रश्नित होती जा रही है? क्या कांग्रेस हाईकमान अब भी हिमाचल के हालात को नजर अंदाज कर देगी? यह सारे सवाल उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री के सोशल मीडिया पर वायरल हुई पोस्ट के सामने आने से उठे हैं। मुकेश ने लिखा है की साजिशों का दौर है-झूठ के पांव नही होते। यह लिखने से इतना तो स्पष्ट हो जाता है कि साजिशें रची जा रही हैं भले ही वह झूठी हों। लेकिन यह सवाल अपने में ही गंभीर हो जाता है कि कुछ लोग झूठी सजिशें रचने लगे हुए हैं। अब यह सवाल आता है कि यह साजिशें क्या हो सकती हैं? कौन लोग यह कर सकते हैं। इस कड़ी में सबसे पहले सन्देह विपक्ष पर जाता है कि वह सरकार को गिराने के लिये साजिशों की रणनीति अपनाये। राज्यसभा चुनाव के समय सरकार गिराने का प्रयास हो चुका है और वह प्रयास भाजपा के ही नाम लगा था। लेकिन उस साजिश में उन अपनों की भूमिका बड़ी थी जो सरकार से नाराज चल रहे थे और उनकी नाराजगी को हाईकमान तक ने भी नजरअंदाज कर दिया था। जबकि उनकी हर शिकायत जायज थी कि वरिष्ठ कार्यकर्ताओं का सरकार में समायोजन नहीं हो पा रहा है। उस समय गिरने के कगार पर पहुंची सरकार को भाजपा ने ही बचाया था। आज भी भाजपा का सरकार को यह सहयोग बराबर मिला हुआ है। क्योंकि देहरा उपचुनाव में 78 लाख रुपया सरकारी अदारों द्वारा बांटे जाने की शिकायत राज्यपाल के पास पहुंचने के बाद भी विपक्ष उस पर खामोश है। केन्द्र की भाजपा सरकार के खिलाफ यह बड़ा आरोप है कि वह विपक्ष की सरकारों को ई.डी और अन्य केंद्रीय एजेंसियों के माध्यम से अस्थिर करने का प्रयास करती है। हिमाचल में भी ईडी, सीबीआई और आयकर एजेंसियों ने दखल दिया और हमीरपुर तथा नादौन में छापेमारी हुई। दो लोग ईडी की हिरासत में भी पहुंच चुके हैं। लेकिन उसके बाद यह मामला आगे नहीं बढ़ा है। इसको भी राजनीतिक पण्डित सरकार को भाजपा के सक्रिय सहयोग का ही प्रमाण मान रहे हैं। बल्कि जब राष्ट्रपति द्वारा आयोजित भोज में कांग्रेस के दो मुख्यमंत्री शामिल नहीं हुए और अकेले हिमाचल के ही मुख्यमंत्री शामिल हुए थे तब भी विश्लेषकों का माथा ठनका था।
इन तथ्यों से स्पष्ट हो जाता है कि प्रदेश भाजपा सुक्खू सरकार को अस्थिर करने का कोई प्रयास नहीं करेगी। कांग्रेस से भाजपा में गये लोग इन प्रयासों में अलग- थलग पड़ जाएंगे यह तय है। ऐसे में जब साजिशें रचे जाने का दर्द अन्दर से ही छलक कर सामने आ जाये तो उसको भी नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता। हिमाचल में कांग्रेस की सरकार दिसम्बर 2022 में बनी थी और नवम्बर 2024 में प्रदेश जिला और ब्लॉक स्तर की कार्यकारिणीयां भंग कर दी गई है। इस दौरान हुये लोकसभा चुनाव में सरकार होते हुये भी कांग्रेस चारों सीटें हार गयी। एकमात्र राज्यसभा सीट के चुनाव में भी सरकार हार गयी। इस सीट पर कांग्रेस से भाजपाई हुये हर्ष महाजन चुनाव जीत गये। हर्ष महाजन कांग्रेस में जब थे तब वह कांग्रेस में किन लोगों के निकटस्थ थे और किन लोगों से आज भी उनके घनिष्ठ रिश्ते हैं उसकी ओर ध्यान दिये बिना प्रदेश कांग्रेस की आज की स्थिति का विश्लेषण नहीं किया जा सकता। जब कोई विधायक या सांसद बन जाता है तभी से उसे पुनः सत्ता में लौटने की स्वभाविक प्रवृत्ति पैदा हो जाती है। इस दिशा में वह लगातार नजर बनाये रहता है कि क्या सरकार की कारगुजारी से वह पुनः सांसद विधायक बन पायेगा। जब उसे इस दिशा में यह सन्देह होने लगता जाता है कि शायद ऐसा नहीं हो पायेगा तब वह सरकार के प्रति मुखर होना शुरू कर देता है। आज हिमाचल सरकार और संगठन को लेकर इस मुखरता की स्थितियां बनने लग पड़ी हैं। यह सरकार कर्मचारीयों और बेरोजगार युवाओं के सहयोग से बनी थी। परन्तु आज कर्मचारी ही इस सरकार के खिलाफ आन्दोलन करने पर विवश हो गया है। बिजली कर्मचारी पिछले काफी समय से प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं। प्राइमरी शिक्षक धरने प्रदर्शन पर बैठ गये हैं। सचिवालय कर्मचारी कब फिर से मुखर हो जायें कोई कह नहीं सकता। प्रदेश में एक बड़े कर्मचारी आन्दोलन के आसार बनते जा रहे हैं। प्रदेश ऐसे वित्तीय संकट से गुजर रहा है कि वेतन और पैन्शन के लिये नारेबाजी करनी पड़ रही है।
स्वभाविक है कि जब कोई सरकार इस तरह के दौर में पहुंच चुकी हो तो उसके विधायक अपने को कैसे सुरक्षित समझ पाएंगे। सरकार ऐसे में जिस हाईकमान के रहमों-करम पर टिकी होती है उसे बरगलाये रखने में हर तरह के हथकण्डे इस्तेमाल करती ही है। हिमाचल सरकार में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है यह राजेश धर्माणी और चन्द्र कुमार की टिप्पणियों से स्पष्ट हो जाता है। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष विधायक कुलदीप राठौर के तेवर भी इसी दिशा के संकेतक हैं। ऐसे में जब मुकेश अग्निहोत्री साजिश की बात करते हैं तो स्पष्ट हो जाता है कि शायद हाईकमान के सामने कुछ लोगों की शिकायतें विभिन्न माध्यमों से पहुंचाई गई हों। लेकिन आने वाले दिनों में हाईकमान के सामने यह खुलकर स्पष्ट हो जाने की संभावना प्रबल होती जा रही है कि भाजपा के सहयोग से ही सरकार बची हुई है तब स्थितियां एकदम बदल जायेंगी। क्योंकि चार महीने में सरकार का वित्तीय संकट इतना बड़ा हो जायेगा कि तब केन्द्र के सीधे हस्ताक्षेप की स्थिति पैदा हो जायेगी। उस समय सरकार का अस्तित्व सही में खतरे में आ जायेगा।