Thursday, 18 December 2025
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क्या प्रबोध सक्सेना को सेवा विस्तार या पुनर्नियुक्ति मिल पायेगी ?

  • अक्तूबर 2024 की अधिसूचना से उठा सवाल
  • अनूप दत्ता की शिकायत में भी है सक्सेना के खिलाफ गंभीर आरोप

शिमला/शैल। रेरा अध्यक्ष पद काफी समय से खाली चला आ रहा है। इस पद को भरने की सारी प्रक्रिया भी पूरी हो चुकी है। मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली कमेटी साक्षात्कार के बाद अपनी सिफारिशें भी सरकार को भेज चुकी है। परन्तु सरकार ने अभी तक अगली कारवाई पूरी नहीं की है। इस पद के लिये शायद मुख्य सचिव भी प्रार्थी थे क्योंकि वह 31 मार्च को सेवानिवृत हो रहे हैं। मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना आई.एन.एक्स. मीडिया मामले में पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम के साथ सह अभियुक्त हैं और यह मामला सी.बी.आई. अदालत में लंबित चल रहा है। प्रदेश सरकार को इस मामले की अधिकृत जानकारी है। रेरा के अध्यक्ष पद के लिये चली चयन प्रक्रिया के दौरान प्रदेश के क्रामिक विभाग ने इसकी आधिकारिक जानकारी हाउसिंग सचिव को भी प्रेषित की है। इस मामले के लंबित चलते प्रबोध सक्सेना को कोई पुनःर्नियुक्ति नहीं दी जा सकती है। यह केंद्र के कार्मिक विभाग द्वारा अक्तूबर 2024 में अधिसूचित निर्देशों से स्पष्ट हो जाता है। बल्कि अक्तूबर 2024 के बाद सक्सेना को कोई संवेदनशील नियुक्ति नहीं दी जा सकती थी। लेकिन केंद्र के इन निर्देशों के बाद भी राज्य सरकार में इस दिशा में कोई कारवाई नहीं की है।
प्रदेश सरकार द्वारा इन निर्देशों को जिस तरह से नजर अंदाज किया गया है उससे यह चर्चा चल पड़ी है कि सरकार सक्सेना को सेवा विस्तार दिलवाने के लिये अपना पूरा जोर लगा देगी। यह धारणा इसलिये बन रही है कि सरकार ने धर्मशाला के योल कैंट निवासी अनूप दत्ता की शिकायत पर अभी तक कोई कारवाई नहीं की है। जबकि अनूप दत्ता की शिकायत में सक्सेना के खिलाफ बहुत ही गंभीर आरोप हैं। जिन पर देर सवेर कारवाई करनी ही पड़ेगी। ऐसे में यह माना जा रहा है कि जिस तरह का व्यवस्था परिवर्तन का सूत्र लेकर सुक्खू सरकार चल रही है उसमें इसी तरह के अधिकारी ज्यादा उपयोगी और सुलभ माने जा रहे हैं। यदि इस संद्धर्भ में उठी चर्चाओं को अधिमान दिया जाये तो मुख्यमंत्री स्वयं केंद्रीय गृह मंत्री से मिलकर इस सेवा विस्तार के लिये गुहार लगा सकते हैं।
इसमें यह देखना दिलचस्प होगा कि केंद्र कैसे अपने ही फैसले के खिलाफ जाती है। इसी के साथ यह भी दिलचस्प हो गया है कि सुक्खू सरकार कितनी देर तक अनूप दत्ता की शिकायत पर कारवाई टालकर शिकायत में नामजद अधिकारियों को बचाने का प्रयास करती है।

यह है अनूप दत्ता की शिकायत



 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

देहरा विधानसभा उपचुनाव में कांगड़ा बैंक द्वारा महिला मण्डलों को आर्थिक सहायता देना आया सवालों में

  • क्या यह आचरण आचार संहिता का उल्लंघन नहीं है?
  • यह प्रकरण भाजपा पर भी गंभीर प्रश्न चिन्ह है
शिमला/शैल। ई.डी. सूत्रों से यह बाहर आया था की देहरा विधानसभा उपचुनाव के दौरान क्षेत्र के महिला मण्डलों को मतदान से कुछ दिन पूर्व पचास-पचास रूपये दिये गये थे। शैल ने यह समाचार अपने पाठकों के सामने भी रखा था। यह संभावना भी जताई थी कि बजट सत्र के दौरान इस संबंध में प्रश्न भी पूछा जा सकता है। शैल का यह दावा सही प्रमाणित हुआ है। हमीरपुर के विधायक आशीष शर्मा ने प्रश्न पूछा है कि क्या मुख्यमंत्री बतलाने की कृपा करेंगे कि
(क) यह सत्य है कि दिनांक 01 जून से 10 जुलाई 2024 तक देहरा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत महिला मण्डलों को कांगड़ा बैंक द्वारा धनराशि जारी की गयी है और
(ख) यदि हां तो कितने महिला मण्डलों को कितनी धनराशि जारी हुई ब्योरा महिला मण्डलों के नाम, गांव तथा धनराशि सहित दें।
जब यह प्रश्न जवाब के लिये सदन में आया तो सहकारिता विभाग के प्रभारी मंत्री उपमुख्यमंत्री ने जवाब दिया की सूचना एकत्रित की जा रही है। वैसे सहकारी बैंकों को सहकारिता विभाग से अलग करके वित्त विभाग के अंतर्गत ला दिया गया है और वित्त विभाग का प्रभार स्वयं मुख्यमंत्री के पास है। जब सदन में यह जवाब आया की सूचना एकत्रित की जा रही है तब आशीष शर्मा और पूरे विपक्ष ने यह आरोप लगाया कि जानबूझकर सूचना नहीं दी जा रही है। आशीष शर्मा ने अपने इस वक्तय के बाद जो सूचना उनके पास थी उसे सदन के पटल पर रख दिया। आशीष शर्मा द्वारा सदन में रखी गयी सूचना के मुताबिक 27 जून से 10 जुलाई तक क्षेत्र में 13 महिला मण्डलों को पचास-पचास हजार रुपए कांगड़ा बैंक द्वारा दिये गये हैं। इस प्रश्न का सरकार द्वारा जवाब न दिये जाने पर हुई बहस के बाद विपक्ष ने सदन से वॉकआउट भी कर दिया है।
देहरा में 10 जुलाई को मतदान था। 27 जून से 10 जुलाई तक क्षेत्र के तेरह महिला मण्डलों को कांगड़ा बैंक द्वारा पचास-पचास हजार रुपए दिये जाने का दस्तावेज आशीष शर्मा ने सदन के पटल पर रख दिया है। सरकार इस दस्तावेज को झुठला नहीं पा रही है। इससे यह प्रमाणित हो जाता है कि आचार संहिता को अंगूठा दिखाते हुये धनराशि बांटी गयी। चुनाव आचार संहिता के दौरान बैंक प्रशासन द्वारा बांटा गया यह पैसा निश्चित रूप से पूरी चुनाव प्रक्रिया पर गंभीर प्रश्न चिन्ह लगाता है। पिछले दिनों हुए हरियाणा और महाराष्ट्र विधान सभाओं के चुनावों में चुनाव आयोग पर कांग्रेस द्वारा गंभीर आरोप लगाये गये हैं। मामले अदालत तक जा पहुंचे हैं। ऐसे में कांग्रेस शासित राज्य में मतदान से कुछ दिन पूर्व कांगड़ा केंद्रीय सहकारी बैंक द्वारा इस तरह से महिला मण्डलों को पचास-पचास हजार रुपए देना पूरे चुनाव पर प्रश्न चिन्ह लगा देता है। कांगड़ा बैंक किसी प्राइवेट लाला की दुकान नहीं है। इसका प्रबन्ध निदेशक सरकार द्वारा नियुक्त किया गया कोई एच.ए.एस. या आई.ए.एस. अधिकारी ही होता है जिसे चुनाव आचार संहिता का पूरा ज्ञान रहता है। फिर चुनाव के दौरान इस तरह से बैंक के प्रबन्ध निदेशक के अपने ही स्तर पर ऐसे महिला मण्डलों को आर्थिक सहायता दिया जाना आसान नहीं लगता है। चुनाव के दौरान ऐसे खुला पैसा लेकर कोई नहीं चल सकता है तो एक अधिकारी द्वारा अपने ही स्तर पर ऐसा कर देना संभव नहीं लगता है। इस विवाद पर जिस तरह के ब्यान सरकारी पक्ष द्वारा दिये जा रहे हैं उससे यह मामला और गंभीर हो जाता है।
अब इस प्रकरण पर विपक्ष किस तरह का आचरण अपनाता है उस पर सबकी निगाहें लगी रहेगी। इस प्रकरण के बाहर आने के बाद चुनाव आयोग और प्रदेश का मुख्य निर्वाचन अधिकारी इसका कैसे संज्ञान लेता है इस पर भी सबकी निगाहें रहेंगी।
 
यह है पैसा देने का प्रमाण

प्रदेश में कांग्रेस को बचाने के लिये सरकार और संगठन दोनों पर कड़ी कारवाई आवश्यक है

  • कांग्रेस में सरकार के आगे संगठन प्रभावी नहीं रह जाता है

शिमला/शैल। प्रदेश कांग्रेस की कार्यकारिणी नवम्बर 2024 में भंग कर दी गई थी। भंग करने का तर्क यह दिया गया था कि निष्क्रिय पदाधिकारीयों को हटाकर उनके स्थान पर नये ऊर्जावान कार्यकर्ताओं को स्थान दिया जायेगा। हाईकमान के इस फैसले के बाद एक पर्यवेक्षकों की टीम प्रदेश में यह पता लगाने के लिये भेजी गयी थी कि यह निष्क्रियता क्यों आयी और सक्रिय कार्यकर्ताओं का इस बारे में क्या सोचना है। प्रदेश कार्यकारिणी को भंग करने का एक बड़ा कारण यह रहा है कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद पहले पार्टी राज्यसभा की सीट हार गयी और फिर चारों लोकसभा सीटें हार गयी। लेकिन इन्हीं लोकसभा चुनावों के साथ हुये प्रदेश विधानसभा के उपचुनावों में पार्टी ने शानदार जीत दर्ज की। इस तरह एक ही समय में हुये मतदान में प्रदेश की जनता ने कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व कोे तो नकार दिया और प्रदेश नेतृत्व को पूरा समर्थन दे दिया। इस तरह एक ही समय में आये दो अलग-अलग आचरणों में हाई कमान और राजनीतिक पंडितों के सामने एक गंभीर स्थिति पैदा कर दी। इस हार-जीत पर चले मन्थन के परिणाम स्वरुप पहले तो कार्यकारिणी को भंग कर दिया और उसके बाद पर्यवेक्षकों के दिल्ली जाने के बाद प्रदेश प्रभारी को हटाकर नया प्रभारी भेज दिया गया।
अब नये प्रभारी के आने के बाद यह चर्चा चला दी गयी है कि प्रदेश अध्यक्ष को बदला जायेगा या कार्यकारिणी का ही गठन किया जायेगा। यह स्थिति अपने में गंभीर बनी हुई है क्योंकि अभी तक सार्वजनिक रूप से यह सामने नहीं आया है कि राज्यसभा चुनाव के दौरान हुये दलबदल के लिये कौन जिम्मेदार है? इसके लिये संगठन कितना जिम्मेदार रहा है और सरकार कितनी? संगठन की ओर से हाईकमान के संज्ञान में यह बार-बार लाया जाता रहा है कि वरिष्ठ कार्यकर्ताओं का सरकार में उचित समायोजन नहीं हो रहा है। इस संद्धर्भ में उस दौरान हाईकमान को पत्र भी लिखे गये थे। दूसरी ओर सरकार ने दलबदल के लिये धनबल के इस्तेमाल के आरोप लगाये। इन आरोपों को प्रमाणित करने के लिये बालूगंज पुलिस थाना में एक एफआईआर दर्ज हुई। इस एफआईआर की जांच बड़े जोर-शोर के साथ हुई। दल बदल करने वालों को सदन से बाहर का रास्ता दिखाया गया। इसी आधार पर उनकी पैन्शन बन्द करने का विधेयक पारित कर दिया गया। लेकिन अब इस एफआईआर का परिणाम क्या है? इसके आधार पर कब अदालत में चालान पेश होगा और कब वह लोग दण्डित होंगे इस बारे में किसी को कुछ जानकारी नहीं है। बल्कि यह सवाल उठने लगा है कि यदि धन बल का आरोप प्रमाणित नहीं हो पाता है तो इसके आधार पर की गयी कारवाई अपने में कैसे और कितनी वैध रह जायेगी?
प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बने हुये दो वर्ष से अधिक का समय हो गया है। इस दौरान सरकार ने जो नये विधेयक पारित किये हैं और अपने संसाधन बढ़ाने के लिये जो फैसले लिये हैं उनका आम जनता पर क्या प्रभाव पड़ा है? कितने फैसलों पर यूटर्न लेना पड़ा है? प्रदेश की वित्तीय स्थिति नाजुक दौर में चल रही है। वित्तीय स्थिति के खराब होने का दोष पूर्व सरकार पर लगाया जा रहा है। लेकिन इस नाजुक स्थिति में सरकार ने अपने खर्चों पर कितना नियंत्रण किया है इसका कोई ठोस प्रमाण जनता के सामने नहीं आ पाया है। प्रदेश का कर्मचारी वर्ग सड़कों पर आने लग पड़ा है और एक बड़े कर्मचारी आन्दोलन की भूमिका बनती जा रही है। आज संगठन में कोई भी फैसला लेने से पहले सरकार के दो वर्ष के कार्यकाल की समीक्षा पूरी ईमानदारी से यदि नहीं की जाती है और उसकी कमियों के लिये किसी को दोषी नहीं ठहराया जाता है तो संगठन में कुछ भी बदलाव करने का कोई परिणाम नहीं होगा। इस समय संगठन को लेकर फैसला लेने से पहले सरकार को लेकर फैसला आवश्यक हो गया है।
इस समय प्रदेश कांग्रेस और सरकार में एक भी नेता ऐसा नहीं है जो अपने चुनाव क्षेत्र से बाहर किसी दूसरी जगह अपना प्रभाव रखता हो। आज तो इस सरकार के मंत्री भी यह दावा करने की स्थिति में नहीं है कि वह अपनी-अपनी सीट तो अवश्य बचा लेंगे। यदि मंत्रियों से ही हाईकमान गोपनीय तरीके से सरकार के बारे में उनकी राय जानने का प्रयास करें तो उसी से स्थिति स्पष्ट हो जायेगी। यह सरकार कुछ ऐसे अफसर के हाथों की कठपुतली बनकर रह गयी है जिनके बारे में इस सरकार में बैठे मंत्री ही एक समय गंभीर आरोप लगा चुके हैं। आज कांग्रेस को प्रदेश में बचाने के लिये संगठन और सरकार दोनों पर कड़े अंकुश लगाने की आवश्यकता है। अन्यथा लम्बे समय तक कांग्रेस प्रदेश के राजनीतिक पटल से गायब हो जायेगी। कांग्रेस को बचाने के लिये शीर्ष नेतृत्व को आत्म निरीक्षण की भी आवश्यकता है।

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