Thursday, 18 September 2025
Blue Red Green
Home देश

ShareThis for Joomla!

बैंस के आरोपों में सुखविंदर सिंह सुक्खू और प्रियंका गांधी का संद्धर्भ आने का अर्थ

  • यह नाम आने के बाद कांग्रेस और भाजपा की खामोशी सवालों में
  • दोनों सरकारों में आये हैं केसीसी बैंक पर गंभीर आरोप
  • नोटबन्दी के दौरान भी रहा इस बैंक का नाम चर्चा में
शिमला/शैल। एक समय जब मुख्यमंत्री सुक्खू प्रदेश युवा कांग्रेस के अध्यक्ष थे उस समय उनके बतौर महामंत्री काम कर चुके मण्डी के युद्ध चन्द बैंस द्वारा 11 जनवरी को ऊना में एक पत्रकार वार्ता के दौरान लगाये गये आरोपों ने प्रदेश की राजनीति में भूचाल की स्थिति पैदा कर दी। क्योंकि इन आरोपों पर जिस तरह की खामोशी सत्ता पक्ष और विपक्ष ने अपना ली है उससे पूरे मामले की गंभीरता और गहरा जाती है। क्योंकि बैंस ने यह दावा किया है कि पिछले वर्ष ई.डी और आयकर ने जो ज्ञान चंद्र तथा संजय ई.डी की जेल में भी पहुंच चुके हैं उसका शिकायतकर्ता बैंस ही था। बैंस ने यह तब तक कहा जब उसके खिलाफ सचिव सहकारिता की शिकायत पर ऊना में एक आपराधिक मामला विजिलैन्स ने दर्ज कर लिया। बैंस के खिलाफ दर्ज मामले में यह आरोप है कि केसीसी बैंक ने उन्हें कर्ज के लेनदेन में नाबार्ड और बैंक के अपने नियमों की अवहेलना हुई है। बैंस का आरोप है कि बैंक की एक लॉबी उसके पास गिरवी महंगी संपत्तियों के लोन मामलों को उलझा कर उन्हें अपने ही चाहतों को नीलाम करने का षड्यंत्र रचती है। बैंक और बैंस के आरोपों की सत्यता परखने के लिए पूरे ऋण मामलों को समझना आवश्यक हो जाता है। इसके लिये शैल समाचार ने बैंस से बात करके जो तथ्य पाये हैं उन्हें पाठकों के सामने रखना आवश्यक हो जाता है।
बैंस के मुताबिक उसने 2017 में मनाली में एक 99 कमरों का फाइव स्टार होटल बनाने के 65 करोड़ के ऋण का एक प्रोजेक्ट केसीसी बैंक को सौपा। बैंक की बीओडी में 65 करोड़ का ऋण मंजूर हो गया और 2017 में ही उसे 8 करोड़ की किस्त भी जारी हो गई। परन्तु यह किश्त जारी होने के बाद बैंक अधिकारियों ने प्रोजेक्ट को घटाकर 47 करोड़ का कर दिया है। प्रोजेक्ट को घटाने पर इसे एमडी और चेयरमैन के संज्ञान में लाया गया। उन्होंने माना है कि प्रोजेक्ट को under Finance करना ना तो बैंक के हक में है और न ही कर्ज लेने वाले के। इससे प्रोजेक्ट बीच में ही रुक जायेगा। लेकिन एमडी और चेयरमैन पर भी इसका कोई असर नहीं हुआ। इसमें नाबार्ड के दिशा निर्देशों का मुद्दा खड़ा कर दिया गया। इस तरह दो वर्ष तक बैंक से कोई पैसा नहीं मिला। 2019 के मध्य में 16 करोड़ और 4 करोड़ की दो किश्ते मिली और 2019 के अंत तक काम हुआ। 2020 में कोविड के कारण लॉकडाउन लग गया। दूसरे लॉकडाउन के बाद जब किश्त जारी करने के लिए आवेदन किया तो यह आरोप लगा दिया कि बैंक का पैसा किसी और जगह निवेश कर दिया गया है। इसकी एजीएम भारद्वाज ने विजिलैन्स में शिकायत कर दी जबकि बैंक के कागजात के साथ छेड़छाड़ करने को लेकर पहले ही विजिलैन्स में मामला चल रहा था। इस जांच में बैंस को क्लीन चिट मिल गई। इसके बाद एजीएम ने एडिशनल रजिस्टर के पास शिकायत कर दी। इस शिकायत पर संपत्ति की वैल्यूएशन शुरू हुई। वैल्यूएशन में एक बार भी बैंस को शामिल नहीं किया गया। जिन प्रॉपर्टी की Distress Value बैंक ने 2107 में 75 करोड़ आंकी थी । 2021-22 में उसे घटाकर 20 करोड़ दिखा दिया गया। इसकी जब शिकायत की गई तो संबंद्ध अधिकारी का निलंबन तक हुआ। लेकिन बैंक ने इस वैल्यूएशन के बाद रिकॉल नोटिस जारी कर दिया। इस नोटिस पर बैंस ने बैंक से और समय देने के लिए यह कहकर आग्रह किया कि वह इसमें निवेशक की तलाश कर रहा है। जो बैंक के पैसे चुकता करके काम शुरू करेगा। लेकिन बैंक ने इसका कोई जवाब देने से पहले ही एजीएम ने एक पत्रकार वार्ता करके बैंस पर फ्रॉड करने का आरोप लगा दिया। इस आरोप पर निवेशक पीछे हट गया। इस पर 20-01-2023 को बैंस ने विजिलैन्स में शिकायत दर्ज करवा दी। बैंक ने बैंस की प्रॉपर्टी कब्जे में ले ली। इस कब्जे को बैंस ने डीआरटी में चुनौती दी और डीआरटी ने स्टे जारी कर दिया। इसके बाद सुक्खू सरकार पिक्चर में आ गयी। इस पर बैंक के चेयरमैन कुलदीप पठानिया हमीरपुर के सोना व्यापारी विकी हांडा मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार सुनील शर्मा और खनन व्यवसायी ज्ञान संजय शर्मा, संजय धीमान विधायक रामकुमार और मुख्यमंत्री के प्रधान निजी सचिव आदि बैंस के मुताबिक सब पिक्चर में आ गये। बैंस ने सबकी भूमिका का विस्तार से खुलासा किया है। इसी भूमिका में यह सामने आया है की बैंस के मनाली की जमीन को बैंक के माध्यम से नीलाम करवाकर प्रियंका गांधी को यह जमीन गिफ्ट करने का खेल रचा जा रहा था। बैंस को केंद्र के गृह मंत्रालय द्वारा जब से उसने ई.डी में शिकायत की है सुरक्षा प्रदान की गई है। अब बैंस के इन आरोपों के बाद उसकी सुरक्षा बढ़ा दी गई है। इससे यह स्पष्ट होता है कि केंद्र उसके आरोपों को गंभीरता से ले रहा है। बैंस के मामले में जब डीआरटी ने बैंक की कार्यवाही पर स्टे लगा दिया तो उसी से यह स्पष्ट हो जाता है कि बैंक की सारी कारवाई कुछ पूर्वाग्रहों से ग्रसित है। जब 2017 में प्रॉपर्टी की Distress कीमत 75 करोड़ है तो 2021-22 में वह घटकर 20 करोड़ कैसे रह सकती है? जब प्रोजेक्ट शुरू में 65 करोड़ का अप्रूव हुआ तो पहली किस्त जारी होने के बाद उसे घटाया क्यों गया? प्रॉपर्टी की वैल्यूएशन बैंस की गैरहाजरी में कैसे संभव हो सकती है? जब लॉकडाउन में भारत सरकार ने सारे बैंक को निर्देश दे रखा था कि सबको लॉकडाउन में कोई भी काम न होने पर वसूली आदि की कारवाई न की जाये तो उसका लाभ बैंक ने बैंस को क्यों नही दिया। अब इन सारे सवालों का जांच के दौरान क्या जवाब आता है इस पर सब की निगाहें लगी रहेगी। क्योंकि इस प्रकरण में मुख्यमंत्री सुक्खू और कांग्रेस महासचिव सांसद प्रियंका गांधी तक का नाम उछला है। जो कांग्रेस की सेहत के लिए राज्य से लेकर केंद्र तक घातक होगा।

क्या दिल्ली के चुनाव में भी हिमाचल चर्चा में रहेगा?

  • नेता प्रतिपक्ष के ब्यान से उभरे संकेत
  • शौचालय शुल्क और बिजली सब्सिडी बन्द करना रहेंगे चर्चा में
  • क्या यह महज़ एक संयोग है कि हर चुनाव में हिमाचल चर्चा में आ रहा है?

शिमला/शैल। दिल्ली विधानसभा चुनावों में भी हिमाचल सरकार के फैसले कांग्रेस को घरने के लिये चर्चा का विषय बनेंगे। ऐसा पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर के ब्यानों से सामने आया है। हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभाओं के चुनावों में भी हिमाचल सरकार के फैसले चर्चा में रहे हैं। बल्कि कांग्रेस की हार का एक बड़ा कारण माने गये थे। अब सुक्खू सरकार ने शौचालय शुल्क लगाकर और बिजली की सब्सिडी छोड़ने के फैसलों से अपने को फिर चर्चा का विषय बना दिया है। क्योंकि कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में 300 यूनिट बिजली मुफ्त देने की गारंटी दी थी। यह गारंटी अभी लागू नहीं हुई है। लेकिन इसके पहले ही सब्सिडी छोड़ने का ऐलान करके दूसरे समर्थ लोगों से ऐसा करने का आग्रह किया है। जब 300 यूनिट बिजली मुफ्त देना शुरू ही नहीं हुई है तो इस पर सब्सिडी छोड़ने का प्रश्न ही नहीं आता। जब तक 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने पर अमल नहीं हो जाता तब तक सब्सिडी छोड़ने के फैसले का कोई औचित्य ही नहीं बनता। इस समय 125 यूनिट बिजली मुफ्त देने का जयराम कार्यकाल का फैसला ही लागू है। 125 यूनिट तक ही उपभोक्ता सब्सिडी के पात्र हैं। 125 यूनिट से ज्यादा खपत करने वाले स्वतः ही सब्सिडी से बाहर हो जाते हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री और दूसरे मंत्रियों द्वारा सब्सिडी छोड़ने का फैसला अपने में ही चर्चा का विषय बन गया है। बल्कि इससे नेता प्रतिपक्ष का यह आरोप की यह सरकार 125 यूनिट बिजली मुफ्त दिए जाने के पूर्व सरकार के फैसले को भी बन्द करने जा रही है। इसलिए यह फैसला निश्चित रूप से चुनाव के दौरान विपक्ष के पास सरकार को घेरने का एक बड़ा हथियार बन जाता है।
इस समय प्रदेश के अस्पतालों में सरकार की मुफ्त इलाज योजनाओं के लिये दवा सप्लायरों ने सप्लाई बन्द कर रखी है। विपक्ष यह आरोप काफी समय से लगाता चला आ रहा है। आरोप है कि सप्लायरों के करोड़ों के बिल भुगतान के लिये रुके पड़े हैं। कर्मचारियों के प्रतिपूर्ति के बिल रुके पड़े हैं। लोक निर्माण और अन्य विभागों में ठेकेदारों को भुगतान नहीं हो पा रहा है। आउटसोर्स पर भर्ती किये गये हजारों कर्मचारियों को बाहर कर दिया गया है। स्वास्थ्य और बिजली बोर्ड में प्रभावित कर्मचारी आन्दोलन की राह पर आ गये हैं। उच्च न्यायालय ने आउटसोर्स भर्ती के लिये चयनित कंपनियों की पात्रता पर ही गंभीर सवाल खड़े कर दिये हैं। कर्मचारी चयन आयोग द्वारा ली गयी परीक्षाओं के परिणाम सरकार के दावों के बावजूद अभी तक घोषित नहीं हो पाये हैं। मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों के दावों पर अब आम आदमी प्रश्न खड़े करने लग गया है। इसी सबके साथ जिस तरह से पानी की सप्लाई करने के लिये ठियोग में टैंकर घोटाला घटा है उससे सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने शुरू हो गये हैं। क्योंकि इस पानी की सप्लाई का सारा जिम्मा एस.डी.एम. ठियोग के पास था। उन्होंने ही इसके लिये सारी प्रक्रिया को अंजाम दिया। एस.डी.आर.एफ. का पैसा भी एस.डी.एम. के पास आया और भुगतान भी वहीं से हुआ। इस संबंध में शिकायत भी एस.डी.एम. के पास ही आयी। आई.पी.एच. के लोगों ने तो सिर्फ सप्लाई के आंकड़े दर्ज करने का ही काम किया। लेकिन इसमें कारवाई आई.पी.एच. के दस इंजीनियरों के खिलाफ हो गयी। एस.डी.एम. कार्यालय का कारवाई में जिक्र तक नहीं आया। ऐसे में आई.पी.एच. के लोग देर सवेर बहाल हो जायेंगे और सारा काण्ड इसी में दब कर रह जायेगा। यह चर्चा चल पड़ी है कि मुख्य किरदारों को बचाने के लिये कारवाई को यह मोड़ दिया गया है। इस तरह सरकार के फैसले और भ्रष्टाचार का यह मामला सब कुछ दिल्ली के चुनाव में एक बड़ा सवाल बनकर सामने आने वाला है।

बैंस के खिलाफ दर्ज एफआईआर से उभरे सवाल

  • क्या ई.डी में शिकायतकर्ता बैंस ही है?
  • ई.डी को अपनी जांच में तेजी लाने का बनेगा दबाव
  • जब सहकारी बैंक अब वित्तीय विभाग का हिस्सा है तो 17 ए की अनुमति सचिव वित्त की जगह सचिव सहकारिता से क्यों?
  • बैंस पर दबाव डालने वालों पर मामला दर्ज करने की होगी बाध्यता

शिमला/शैल। स्टेट विजिलैन्स ने ऊना में युद्ध चन्द बैंस के खिलाफ अपराध संहिता की धाराओं 420, 468, 471, 120 बी और पी सी एक्ट 2018 की धारा 13 (1) ए/13(2)के तहत मै. हिमाचल स्नो विलेज और होटल लेक पैलेस के मालिक युद्ध चन्द बैंस और कांगड़ा केन्द्रीय सहकारी बैंक के अधिकारियों/कर्मचारियों पर आपराधिक मामला दर्ज किया है। यह मामला दर्ज करने के लिये भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 17A के तहत सचिव सहकारिता से अनुमति ली गयी है और उनकी शिकायत पर जांच के बाद मामला दर्ज किया गया है। आरोप है की बैंस ने बैंक से कई ऋण लिये और बैंक अधिकारियों ने स्वयं की ऋण नीतियों के साथ-साथ आर.बी.आई. और नाबार्ड के दिशा निर्देशों का उल्लंघन करते हुये 20 करोड़ का ऋण सीधे उधारकर्ता को वितरित कर दिया। यह मामला दर्ज होने के बाद बैंस को इसमें अग्रिम जमानत मिल गयी है और वह ऊना में विजिलैन्स के यहां पेश भी हो आये हैं। ऊना में विजिलैन्स के यहां पेश होने के बाद बैंस ने वहां पर एक पत्रकार वार्ता को भी संबोधित किया है। इस पत्रकार वार्ता में उन्होंने स्पष्ट किया कि यह ऋण लेने देने में नियमों की कोई अनदेखी नहीं हुई है। उन्होंने स्पष्ट किया कि वह मण्डी और मनाली में होटल निर्माण में लगे हुये हैं। मनाली में उनके पास 25 बीघा जमीन है। जिसकी कीमत वैल्यूएटर के मुताबिक 167 करोड़ है और यह कीमत प्रदेश उच्च न्यायालय में भी सौंपी हुई है। बैंस ने आरोप लगाया कि इस जमीन पर बैंक के ही कुछ लोगों की नजर लग गई और वह इसको कम कीमत पर नीलाम करने का षडयन्त्र रचने लग गये। बैंस ने यह पत्रकार वार्ता में खुलासा किया कि उन्होंने मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार, प्रधान निजी सचिव, बैंक के चेयरमैन और खनन व्यवसायी ज्ञानचन्द और अन्य के खिलाफ ई.डी. को शिकायत सौंपी है और उनकी शिकायत पर कारवाई करते हुये ज्ञानचन्द और संजय के गिरफ्तारी हुई है। इन लोगों को जेल से निकालने के लिये उन पर यह शिकायत वापस लेने का दबाव बनाया जा रहा है। बैंस को केन्द्र की सी.आर.पी.एफ से सुरक्षा भी हासिल है इसी से यह स्पष्ट हो जाता है कि वह ई.डी. में शिकायतकर्ता है और उन पर दबाव भी डाला जा रहा होगा। बरहाल यह मामला अभी जांच में है इसलिये इस पर कुछ ज्यादा कहना सही नहीं होगा।
लेकिन इस सारे प्रकरण से जुड़े घटनाक्रम पर नजर डालना आवश्यक हो जाता है। इसमें बैंस के ऋण मामले की ही बात करें तो यह ऋण स्व. वीरभद्र और फिर जय राम सरकार के कार्यकाल में हुए हैं। बैंस पत्रकार वार्ता में स्वयं कह रहे हैं कि उन्हें कांगड़ा सहकारी बैंक में जाने की सलाह स्व.वीरभद्र सिंह ने दी थी। जयराम सरकार भी 2017 में आ गई थी। सुक्खू सरकार को आये भी दो वर्ष हो गये हैं। सुक्खू सरकार में सहकारी बैंक सहकारिता विभाग से निकाल कर के वित्त विभाग के सुपुर्द कर दिये गये हैं। अब 2025 में यह आरोप लग रहा है कि ऋण देने में नियमों की अनदेखी हुई है। यदि सही में कोई अनदेखी हुई तो उस पर संबंद्ध प्रबंधन के खिलाफ कोई कारवाई क्यों नहीं हुई? सुक्खू सरकार को भी कारवाई करने का फैसला लेने में दो वर्ष का समय क्यों लग गया? फिर जब सहकारी बैंक अब वित्त विभाग के अधीन है तो इसमें 17 ए की अनुमति सचिव वित्त की बजाये सचिव सहकारिता से क्यों ली गयी? जब कानून की नजर से कारवाई की अनुमति ही प्रश्नित हो जाती है तो शिकायत के बाकी आधार कैसे पुख्ता मान लिये जायें यह बड़ा सवाल खड़ा हो जाता है।
ई.डी. और आयकर ने हमीरपुर और नादौन में छापेमारी की ही है बल्कि दो बार यह टीम में आयी हैं। इस छापेमारी के बाद दो लोगों की गिरफ्तारियां भी हुई हैं। दो लोग फरार चल रहे कहे जा रहे हैं और उनकी गिरफ्तारी कभी भी हो जाने की तलवार लटकी हुई है। स्वभाविक है कि इस छापेमारी का कोई तो शिकायतकर्ता रहा होगा। ऐसे में जब युद्ध चन्द बैंस स्वंय को शिकायतकर्ता बता रहा है तो यह मानना ही होगा। क्योंकि बैंस का ऋण मामला पुराना है इस मामले में नियमों की अनदेखी को लेकर तो अब तक बैंक के कई लोगों को सजा मिल जानी चाहिये थी लेकिन ऐसा हुआ नहीं है। फिर बैंस अपने ऋण के बदले 167 करोड़ की जमीन की चर्चा कर रहा है। यदि बैंस का यह कहना सही है तो यह फिर बैड लोन की श्रेणी में कैसे। जब तक पूरी जांच में बैंस के दावे गलत नहीं पाये जाते हैं तब तक बैंस के खिलाफ दर्ज हुये मामले को दबाव की ही राणनीति का हिस्सा मानकर देखा जायेगा। इस एफ.आई.आर के बाद ई.डी. पर भी स्वभाविक दबाव आयेगा कि वह भी अपने यहां दर्ज मामले को जल्द से जल्द अन्तिम निर्णय तक ले जाये। बैंस के खुलासे के बाद यह देखना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि क्या सही में उसे शिकायत वापस लेने के लिये इस तरह की ऑफर की गयी थी।


More Articles...

  1. रेरा में अध्यक्ष और सदस्यों के पद भरने के लिये जारी हुआ विज्ञापन
  2. डॉ. मनमोहन सिंह "Philosopher King" दर्शन की प्रति मूर्ति थे।
  3. भाजपा की नीयत और नीति पर उठते सवालों के बीच बढ़ा विश्वसनीयता का संकट
  4. भाजपा उपाध्यक्ष कांगड़ा के सांसद डॉ. भारद्वाज सुक्खू सरकार के नाम पर पूर्व भाजपा सरकार को ही कटघरे में खड़ा कर गये।
  5. राधा स्वामी सत्संग ब्यास के लिये हुये संशोधन से एक्ट की प्रासंगिकता पर उठे सवाल
  6. क्या नादौन में बस स्टैंड के लिये सरकार की जमीन ही सरकार को बेच दी गयी
  7. क्या यह आयोजन सरकार और संगठन की एकजुटता का संदेश दे पाया है?
  8. राधा स्वामी सत्संग ब्यास के लिये प्रस्तावित लैंड सीलिंग संशोधन पर उठते सवाल
  9. पूर्व छः सीपीएस की विधायकी पर संशय बरकरार
  10. पूर्व मुख्य संसदीय सचिवों की विधायकी जाना तय है
  11. क्या नये गठन में एक व्यक्ति एक पद पर अमल हो पायेगा?
  12. प्रधानमंत्री ने प्रदेश सरकार की परफॉरमैन्स को फिर बनाया चुनावी मुद्दा
  13. ऐसे फैसले चुनावों के दौरान ही क्यों आ रहे
  14. जब वित्तीय स्थिति ठीक है तो रेल विस्तार में अपना हिस्सा क्यों नहीं दे पा रही सरकार?
  15. क्या हिमाचल राजनीतिक विस्फोटक की और बढ़ रहा है?
  16. हिमाचल कांग्रेस के नेता गारंटियों के झूठ के कारण हरियाणा चुनाव प्रचार से रहे गायब
  17. यदि 35 मेगावाट का प्रोजेक्ट 144 करोड़ में तो 32 मेगावाट का 220 करोड़ में क्यों लगा-विक्रम
  18. मस्जिद के अवैध निर्माण और वक्फ संपत्तियों के कथित ब्योरे पर उभरे विवाद का अन्त क्या होगा?
  19. प्रधानमंत्री द्वारा हिमाचल को चुनावी मुद्दा बनाना एक बड़ा संकेत है।
  20. संजौली मस्जिद विवाद का राजनीतिक प्रतिफल घातक होगा

Subcategories

  • लीगल
  • सोशल मूवमेंट
  • आपदा
  • पोलिटिकल

    The Joomla! content management system lets you create webpages of various types using extensions. There are 5 basic types of extensions: components, modules, templates, languages, and plugins. Your website includes the extensions you need to create a basic website in English, but thousands of additional extensions of all types are available. The Joomla! Extensions Directory is the largest directory of Joomla! extensions.

  • शिक्षा

    We search the whole countryside for the best fruit growers.

    You can let each supplier have a page that he or she can edit. To see this in action you will need to create a users who is in the suppliers group.  
    Create one page in the growers category for that user and make that supplier the author of the page.  That user will be able to edit his or her page.

    This illustrates the use of the Edit Own permission.

  • पर्यावरण

Facebook



  Search