Thursday, 18 September 2025
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क्या स्व. वीरभद्र सिंह की प्रतिमा की स्थापना रिज पर हो पायेगी ?

  • सुमन कदम के पत्र से उठी आशंकाएं
शिमला/शैल। क्या स्व. वीरभद्र सिंह की प्रतिमा शिमला के रिज पर स्थापित हो पायेगी? यह सवाल इसलिये उठ खड़ा हुआ है क्योंकि प्रस्तावित स्थापना को लेकर एक सुमन कदम ने नगर निगम शिमला को भेजे एक पत्र में इस पर आपत्ति उठाई है। कुसम्पटी की कथित निवासी सुमन कदम ने महापौर के नाम भेजे पत्र में कदम ने सर्वाेच्च न्यायालय के 2013 में यूनियन ऑफ इण्डिया बनाम स्टेट ऑफ गुजरात मामले में आये फैसले के आधार पर एतराज उठाये हैं। सुमन कदम के पत्र में कोई तारीख दर्ज नहीं है। सुमन कदम ने जुब्बल-कोटखाई विधानसभा क्षेत्र से चुनाव भी लड़ा है। कुछ लोगों के मुताबिक सुमन कदम काफी अरसा पहले अपने मकान मालिक के साथ हुये झगड़े के बाद शायद कसुम्पटी छोड़कर जा चुकी है। लेकिन उनके ऐतराज में सर्वाेच्च न्यायालय के फैसले का जिक्र है इसलिये यह एतराज अपने में गंभीर हो जाता है। नगर निगम ने इस एतराज को सचिवालय में सरकार के पास भेज दिया है। विधि विभाग ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का अनुमोदन करते हुये इस पर मन्त्री परिषद को निर्णय लेने की राय दी है। प्रशासनिक और राजनीतिक हल्कों में इस एतराज को राजनितिक आईने से देखा जा रहा है।
स्व. वीरभद्र छः बार प्रदेश के मुख्यमन्त्री रहे हैं इस नाते उनके प्रशंसकों और समर्थकों की लम्बी लाईन है। उनके परिजन और समर्थक चाहते है कि उनके प्रदेश की राजनीति में विशेष योगदान के लिये उनकी प्रतिमा रिज पर स्व. डॉ. वाई. एस. परमार की बगल में स्थापित करके उन्हें सम्मान दिया जाये। इसलिये उनके समर्थकों और परिजनों ने इसके लिये राजा वीरभद्र सिंह फाउंडेशन का गठन करके यह ऐलान किया है कि इस मूर्ति स्थापना पर होने वाला सारा खर्च फाउंडेशन उठायेगी और सरकार से कोई आर्थिक सहायता नहीं ली जायेगी। लेकिन फाउंडेशन के इस ऐलान के बाद मुख्यमंत्री ने प्रतिभा सिंह को पत्र भेज कर यह कहा है कि इस प्रतिमा स्थापना पर होने वाला सारा खर्च और उसके भविष्य में रख-रखाव पर आने वाला सारा खर्च सरकार उठायेगी। नगर निगम ने इस विषय पर निगम हाउस में आये एक प्रस्ताव के उत्तर में इस प्रतिमा स्थापना के लिये रिज पर जगह देने की भी फैसला कर लिया है। निगम में प्रस्ताव 2024 में आया था निश्चित है कि जब निगम में इस बारे में प्रस्ताव आया था उस समय यह ऐतराज़ का पत्र निगम के पास नहीं आया था। क्योंकि अगर यह पत्र आया होता तो इस पर सर्वाेच्च न्यायालय के फैसले की पृष्ठभूमि में विचार करके फैसला लिया जाता।
स्व. वीरभद्र सिंह की मृत्यु जुलाई 2021 में हुई थी और उसके बाद ही उनकी प्रतिमा स्थापित किये जाने की मांग आ गयी थी। भाजपा शासन में ही निगम में इस आशय की मांग आ गयी थी। भाजपा ने भी उनकी प्रतिमा स्थापित किये जाने का अनुमोदन किया था। लेकिन विधानसभा चुनाव के कारण यह हो नहीं सका और उसके बाद सरकार बदल गयी। नयी सरकार ने इस बारे कोई हामी नहीं भरी और 2023 में उनकी प्रतिमा शिमला से सौ किलोमीटर दूर सैंज में स्थापित की गयी। स्थापना पर उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री शामिल रहे थे। उस समय स्थापना के लिये रिज पर जगह नहीं दी गयी। रिज पर जगह न मिलने पर विक्रमादित्य सिंह ने भावुक रोष भी व्यक्त किया था। 2022 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत का श्रेय भी वीरभद्र सिंह की मृत्यु पर उपजी सहानुभूति लहर को दिया गया था। लेकिन स्थापना के लिये रिज पर जगह न मिल पाने को वीरभद्र सिंह और सुक्खू के राजनीतिक रिश्तों की पृष्ठभूमि में देखा गया। क्योंकि दोनों के राजनीतिक रिश्ते सुखद नहीं रहे हैं। बल्कि उन रिश्तों की छाया सरकार बनने के बाद भी लगातार देखी जा रही है। आज भी वीरभद्र के समर्थकों की लाइन शायद सुक्खू के प्रशंसकों से लंबी है। बल्कि कांग्रेस अध्यक्षा प्रतिभा सिंह और मुख्यमंत्री सुक्खू के राजनीतिक रिश्ते अभी भी उस पुरानी छाया से बाहर नहीं आ पाये हैं। यह इससे स्पष्ट हो जाता है कि छः माह पहले भंग हुई कार्यकारिणी का अब तक गठन नहीं हो पाया है। अब जिस तरह से सुमन कदम की मूर्ति स्थापना को लेकर एतराज आया है उसे भी राजनीतिक चश्मे से ही देखा जा रहा है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस एतराज को मंत्रिपरिषद के सामने रखा जाता है या नहीं। मंत्रिपरिषद में कौन इस ऐतराज़ का समर्थन करता है या विरोध। लेकिन यह तय है कि स्व. वीरभद्र सिंह की प्रतिमा की स्थापना या उसका इन्कार कांग्रेस को बहुत दूर तक प्रभावित करेगा।
 
यह है सुमन कदम का पत्र
 

क्या स्व. वीरभद्र सिंह की प्रतिमा की स्थापना रिज पर हो पायेगी ?

  • सुमन कदम के पत्र से उठी आशंकाएं
शिमला/शैल। क्या स्व. वीरभद्र सिंह की प्रतिमा शिमला के रिज पर स्थापित हो पायेगी? यह सवाल इसलिये उठ खड़ा हुआ है क्योंकि प्रस्तावित स्थापना को लेकर एक सुमन कदम ने नगर निगम शिमला को भेजे एक पत्र में इस पर आपत्ति उठाई है। कुसम्पटी की कथित निवासी सुमन कदम ने महापौर के नाम भेजे पत्र में कदम ने सर्वाेच्च न्यायालय के 2013 में यूनियन ऑफ इण्डिया बनाम स्टेट ऑफ गुजरात मामले में आये फैसले के आधार पर एतराज उठाये हैं। सुमन कदम के पत्र में कोई तारीख दर्ज नहीं है। सुमन कदम ने जुब्बल-कोटखाई विधानसभा क्षेत्र से चुनाव भी लड़ा है। कुछ लोगों के मुताबिक सुमन कदम काफी अरसा पहले अपने मकान मालिक के साथ हुये झगड़े के बाद शायद कसुम्पटी छोड़कर जा चुकी है। लेकिन उनके ऐतराज में सर्वाेच्च न्यायालय के फैसले का जिक्र है इसलिये यह एतराज अपने में गंभीर हो जाता है। नगर निगम ने इस एतराज को सचिवालय में सरकार के पास भेज दिया है। विधि विभाग ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का अनुमोदन करते हुये इस पर मन्त्री परिषद को निर्णय लेने की राय दी है। प्रशासनिक और राजनीतिक हल्कों में इस एतराज को राजनितिक आईने से देखा जा रहा है।
स्व. वीरभद्र छः बार प्रदेश के मुख्यमन्त्री रहे हैं इस नाते उनके प्रशंसकों और समर्थकों की लम्बी लाईन है। उनके परिजन और समर्थक चाहते है कि उनके प्रदेश की राजनीति में विशेष योगदान के लिये उनकी प्रतिमा रिज पर स्व. डॉ. वाई. एस. परमार की बगल में स्थापित करके उन्हें सम्मान दिया जाये। इसलिये उनके समर्थकों और परिजनों ने इसके लिये राजा वीरभद्र सिंह फाउंडेशन का गठन करके यह ऐलान किया है कि इस मूर्ति स्थापना पर होने वाला सारा खर्च फाउंडेशन उठायेगी और सरकार से कोई आर्थिक सहायता नहीं ली जायेगी। लेकिन फाउंडेशन के इस ऐलान के बाद मुख्यमंत्री ने प्रतिभा सिंह को पत्र भेज कर यह कहा है कि इस प्रतिमा स्थापना पर होने वाला सारा खर्च और उसके भविष्य में रख-रखाव पर आने वाला सारा खर्च सरकार उठायेगी। नगर निगम ने इस विषय पर निगम हाउस में आये एक प्रस्ताव के उत्तर में इस प्रतिमा स्थापना के लिये रिज पर जगह देने की भी फैसला कर लिया है। निगम में प्रस्ताव 2024 में आया था निश्चित है कि जब निगम में इस बारे में प्रस्ताव आया था उस समय यह ऐतराज़ का पत्र निगम के पास नहीं आया था। क्योंकि अगर यह पत्र आया होता तो इस पर सर्वाेच्च न्यायालय के फैसले की पृष्ठभूमि में विचार करके फैसला लिया जाता।
स्व. वीरभद्र सिंह की मृत्यु जुलाई 2021 में हुई थी और उसके बाद ही उनकी प्रतिमा स्थापित किये जाने की मांग आ गयी थी। भाजपा शासन में ही निगम में इस आशय की मांग आ गयी थी। भाजपा ने भी उनकी प्रतिमा स्थापित किये जाने का अनुमोदन किया था। लेकिन विधानसभा चुनाव के कारण यह हो नहीं सका और उसके बाद सरकार बदल गयी। नयी सरकार ने इस बारे कोई हामी नहीं भरी और 2023 में उनकी प्रतिमा शिमला से सौ किलोमीटर दूर सैंज में स्थापित की गयी। स्थापना पर उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री शामिल रहे थे। उस समय स्थापना के लिये रिज पर जगह नहीं दी गयी। रिज पर जगह न मिलने पर विक्रमादित्य सिंह ने भावुक रोष भी व्यक्त किया था। 2022 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत का श्रेय भी वीरभद्र सिंह की मृत्यु पर उपजी सहानुभूति लहर को दिया गया था। लेकिन स्थापना के लिये रिज पर जगह न मिल पाने को वीरभद्र सिंह और सुक्खू के राजनीतिक रिश्तों की पृष्ठभूमि में देखा गया। क्योंकि दोनों के राजनीतिक रिश्ते सुखद नहीं रहे हैं। बल्कि उन रिश्तों की छाया सरकार बनने के बाद भी लगातार देखी जा रही है। आज भी वीरभद्र के समर्थकों की लाइन शायद सुक्खू के प्रशंसकों से लंबी है। बल्कि कांग्रेस अध्यक्षा प्रतिभा सिंह और मुख्यमंत्री सुक्खू के राजनीतिक रिश्ते अभी भी उस पुरानी छाया से बाहर नहीं आ पाये हैं। यह इससे स्पष्ट हो जाता है कि छः माह पहले भंग हुई कार्यकारिणी का अब तक गठन नहीं हो पाया है। अब जिस तरह से सुमन कदम की मूर्ति स्थापना को लेकर एतराज आया है उसे भी राजनीतिक चश्मे से ही देखा जा रहा है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस एतराज को मंत्रिपरिषद के सामने रखा जाता है या नहीं। मंत्रिपरिषद में कौन इस ऐतराज़ का समर्थन करता है या विरोध। लेकिन यह तय है कि स्व. वीरभद्र सिंह की प्रतिमा की स्थापना या उसका इन्कार कांग्रेस को बहुत दूर तक प्रभावित करेगा।
 
यह है सुमन कदम का पत्र
 

नादौन में ई-बस डिपो के लिए खरीदी जमीन आयी सवालों में

  • सरकार की जमीन 2,60000 में खरीद कर सरकार को ही करीब सात करोड़ में बेच दी।
  • खरीदी-बेची गयी जमीन विलेज कॉमन लैण्ड है
  • 2011 में सर्वाेच्च न्यायालय ने ऐसी जमीनों की सुरक्षा के लिये देश के सभी मुख्य सचिवों को कड़े निर्देश दे रखे हैं
  • यह खरीद बेच तहसीलदार से लेकर मुख्य सचिव और मंत्री परिषद सबके संज्ञान में रही है।

शिमला/शैल। सुक्खू सरकार ने बस किराये में 15% की बढ़ौतरी आदेशित की है। इस बढ़ौतरी से पहले न्यूनतम किराया दस रूपये कर दिया गया था। इस बस किराया बढ़ौतरी पर प्रदेश भर में रोष है। स्वभाविक है कि सरकार जब वित्तीय संकट से गुजर रही है तब राजस्व बढ़ाने के लिये सरकारी तंत्र आम आदमी की जेब की ओर ही देखेगा क्योंकि यही उसे सबसे आसान रास्ता नजर आता है। इसलिये सुक्खू सरकार ने प्रदेश के हर वर्ग पर किसी न किसी तरह से बोझ डाला ही है। अस्पताल से लेकर स्कूल तक सब प्रभावित हुये हैं। सुक्खू सरकार अपने खर्चे कम करने के बजाये जब आम आदमी पर बोझ डालेगी तो निश्चित रूप से आम आदमी भी सरकार के हर काम पर पैनी नजर रखना शुरू कर देगा। इसी कड़ी में परिवहन विभाग द्वारा मुख्यमंत्री के अपने चुनाव क्षेत्र नादौन में प्रस्तावित ई-बस डिपो आजकल विशेष चर्चा का विषय बना हुआ है। इस ई-बस डिपो के लिये परिवहन विभाग ने नादौन में मुख्यमंत्री के अपने गांव के पास करीब सात करोड़ में जमीन खरीदी है। लेकिन इस जमीन पर अभी बस डिपो बनाने के नाम पर कोई काम शुरू नहीं हुआ है। बल्कि खरीदी गई जमीन पर अभी परिवहन विभाग का बोर्ड तक नहीं लगा है। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि शायद सरकार को यह जमीन खरीदने की ही जल्दी थी इस पर कुछ करने की नहीं। क्योंकि इस खरीद पर अब जो सवाल उठ रहे हैं वह बहुत ही गंभीर हैं उनसे सरकार की नीयत और नीति दोनों पर ही प्रश्न चिन्ह लग जाते हैं।

यह जमीन नादौन क्षेत्र के चार लोगों राजेंद्र सिंह राणा, प्रभात चन्द, अजय कुमार और रसीला राम से 6,82,04520 रुपए में खरीदी गयी है। इन लोगों ने यह जमीन राजा नादौन महेश्वर चन्द के जी.पी.ए. हरभजन सिंह के माध्यम से 2015 में 2,60,000 रुपए में खरीदी थी और 2024 में इसी जमीन को एच.आर.टी.सी. को करीब सात करोड़ में बेच दिया गया। यहां पर यह सवाल उठ रहा है कि जब 1974 में लैण्ड सीलिंग एक्ट लागू होने के बाद राजा नादौन के पास बची ही 316 कनाल जमीन थी तो राजा नादौन ने जी.पी.ए. के माध्यम से कैसे हजारों कनाल जमीन बेच दी। राजा नादौन को 1897 में अंग्रेज सरकार के दौरान 1,59000 कनाल जमीन बतौर जागीर मिली थी। यह जमीने रियासत नादौन के 329 गांव में फैली हुई थी। लेकिन इन जमीनों पर स्थानीय लोगों के बर्तनदारी के हक सुरक्षित रखे गये थे। यह जमीने पंजाब विलेज कॉमन लैण्ड एक्ट के तहत शामलात देह और फिर 1974 में हिमाचल प्रदेश विलेज कॉमन लैण्ड एक्ट के तहत यह जमीने सरकार की मलकीलत हो गयी। विलेज कॉमन लैण्ड की खरीद बेच नहीं हो सकती। सुप्रीम कोर्ट ने इस संद्धर्भ में जनवरी 2011 में एक सख्त फैसला देते हुये पूरे देश के मुख्य सचिवों को ऐसी जमीनों की सुरक्षा के विशेष निर्देश देते हुये समय-समय पर इस संबंध में सर्वाेच्च न्यायालय को सूचित करने के आदेश हुये हैं। लेकिन राजा नादौन ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद दिसम्बर 2011 में जी.पी.ए. बनाकर इन जमीनों को बेचना शुरू कर दिया। कई बड़े अधिकारियों और राजनेताओं ने सैकड़ो बीघे के हिसाब से इन जमीनों की खरीद की है।
अब जब एच.आर.टी.सी. नेे इन लोगों से जमीन खरीदी तब यह मामला पूरे प्रशासन के सामने आ चुका है क्योंकि इसका फैसला वाकायदा मंत्रिमंडल की बैठक में हुआ है। जिसमें मुख्य सचिव से लेकर सारा शीर्ष प्रशासन मौजूद था। नादौन में जिस राजस्व अधिकारी ने इस खरीद बेच के दस्तावेज सत्यापित किये हैं क्या उसको यह जानकारी नहीं रही होगी कि विलेज कॉमन लैण्ड की खरीद बेच हो रही है जबकि पर्चा जमाबन्दी में यह उल्लेख है कि ताबे हकूक बर्तनदारान। ऐसे में जब 2,60000 में 2015 में खरीदी गई जमीन को 2024 में एच.आर.टी.सी. को करीब सात करोड़ में बेच दिया गया और इसी पूरी प्रक्रिया में सारा शीर्ष प्रशासन मंत्री परिषद सहित संबंद्ध रहा है तब किसी ने भी इस पर कोई प्रश्न क्यों नहीं उठाया यह सवाल आज हर जुबान पर आ गया है। इस संबंध में सारे महत्वपूर्ण दस्तावेज पाठकों के सामने रखे जा रहे हैं क्योंकि यदि सरकार इस तरह के सौदों से परहेज करती तो शायद उसे यह किराया बढ़ाने की आवश्यकता ही न पड़ती।

 

 

 

 



 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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