शिमला/शैल। प्रदेश कांग्रेस की कार्यकारिणी नवम्बर 2024 में भंग कर दी गई थी। भंग करने का तर्क यह दिया गया था कि निष्क्रिय पदाधिकारीयों को हटाकर उनके स्थान पर नये ऊर्जावान कार्यकर्ताओं को स्थान दिया जायेगा। हाईकमान के इस फैसले के बाद एक पर्यवेक्षकों की टीम प्रदेश में यह पता लगाने के लिये भेजी गयी थी कि यह निष्क्रियता क्यों आयी और सक्रिय कार्यकर्ताओं का इस बारे में क्या सोचना है। प्रदेश कार्यकारिणी को भंग करने का एक बड़ा कारण यह रहा है कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद पहले पार्टी राज्यसभा की सीट हार गयी और फिर चारों लोकसभा सीटें हार गयी। लेकिन इन्हीं लोकसभा चुनावों के साथ हुये प्रदेश विधानसभा के उपचुनावों में पार्टी ने शानदार जीत दर्ज की। इस तरह एक ही समय में हुये मतदान में प्रदेश की जनता ने कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व कोे तो नकार दिया और प्रदेश नेतृत्व को पूरा समर्थन दे दिया। इस तरह एक ही समय में आये दो अलग-अलग आचरणों में हाई कमान और राजनीतिक पंडितों के सामने एक गंभीर स्थिति पैदा कर दी। इस हार-जीत पर चले मन्थन के परिणाम स्वरुप पहले तो कार्यकारिणी को भंग कर दिया और उसके बाद पर्यवेक्षकों के दिल्ली जाने के बाद प्रदेश प्रभारी को हटाकर नया प्रभारी भेज दिया गया।
अब नये प्रभारी के आने के बाद यह चर्चा चला दी गयी है कि प्रदेश अध्यक्ष को बदला जायेगा या कार्यकारिणी का ही गठन किया जायेगा। यह स्थिति अपने में गंभीर बनी हुई है क्योंकि अभी तक सार्वजनिक रूप से यह सामने नहीं आया है कि राज्यसभा चुनाव के दौरान हुये दलबदल के लिये कौन जिम्मेदार है? इसके लिये संगठन कितना जिम्मेदार रहा है और सरकार कितनी? संगठन की ओर से हाईकमान के संज्ञान में यह बार-बार लाया जाता रहा है कि वरिष्ठ कार्यकर्ताओं का सरकार में उचित समायोजन नहीं हो रहा है। इस संद्धर्भ में उस दौरान हाईकमान को पत्र भी लिखे गये थे। दूसरी ओर सरकार ने दलबदल के लिये धनबल के इस्तेमाल के आरोप लगाये। इन आरोपों को प्रमाणित करने के लिये बालूगंज पुलिस थाना में एक एफआईआर दर्ज हुई। इस एफआईआर की जांच बड़े जोर-शोर के साथ हुई। दल बदल करने वालों को सदन से बाहर का रास्ता दिखाया गया। इसी आधार पर उनकी पैन्शन बन्द करने का विधेयक पारित कर दिया गया। लेकिन अब इस एफआईआर का परिणाम क्या है? इसके आधार पर कब अदालत में चालान पेश होगा और कब वह लोग दण्डित होंगे इस बारे में किसी को कुछ जानकारी नहीं है। बल्कि यह सवाल उठने लगा है कि यदि धन बल का आरोप प्रमाणित नहीं हो पाता है तो इसके आधार पर की गयी कारवाई अपने में कैसे और कितनी वैध रह जायेगी?
प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बने हुये दो वर्ष से अधिक का समय हो गया है। इस दौरान सरकार ने जो नये विधेयक पारित किये हैं और अपने संसाधन बढ़ाने के लिये जो फैसले लिये हैं उनका आम जनता पर क्या प्रभाव पड़ा है? कितने फैसलों पर यूटर्न लेना पड़ा है? प्रदेश की वित्तीय स्थिति नाजुक दौर में चल रही है। वित्तीय स्थिति के खराब होने का दोष पूर्व सरकार पर लगाया जा रहा है। लेकिन इस नाजुक स्थिति में सरकार ने अपने खर्चों पर कितना नियंत्रण किया है इसका कोई ठोस प्रमाण जनता के सामने नहीं आ पाया है। प्रदेश का कर्मचारी वर्ग सड़कों पर आने लग पड़ा है और एक बड़े कर्मचारी आन्दोलन की भूमिका बनती जा रही है। आज संगठन में कोई भी फैसला लेने से पहले सरकार के दो वर्ष के कार्यकाल की समीक्षा पूरी ईमानदारी से यदि नहीं की जाती है और उसकी कमियों के लिये किसी को दोषी नहीं ठहराया जाता है तो संगठन में कुछ भी बदलाव करने का कोई परिणाम नहीं होगा। इस समय संगठन को लेकर फैसला लेने से पहले सरकार को लेकर फैसला आवश्यक हो गया है।
इस समय प्रदेश कांग्रेस और सरकार में एक भी नेता ऐसा नहीं है जो अपने चुनाव क्षेत्र से बाहर किसी दूसरी जगह अपना प्रभाव रखता हो। आज तो इस सरकार के मंत्री भी यह दावा करने की स्थिति में नहीं है कि वह अपनी-अपनी सीट तो अवश्य बचा लेंगे। यदि मंत्रियों से ही हाईकमान गोपनीय तरीके से सरकार के बारे में उनकी राय जानने का प्रयास करें तो उसी से स्थिति स्पष्ट हो जायेगी। यह सरकार कुछ ऐसे अफसर के हाथों की कठपुतली बनकर रह गयी है जिनके बारे में इस सरकार में बैठे मंत्री ही एक समय गंभीर आरोप लगा चुके हैं। आज कांग्रेस को प्रदेश में बचाने के लिये संगठन और सरकार दोनों पर कड़े अंकुश लगाने की आवश्यकता है। अन्यथा लम्बे समय तक कांग्रेस प्रदेश के राजनीतिक पटल से गायब हो जायेगी। कांग्रेस को बचाने के लिये शीर्ष नेतृत्व को आत्म निरीक्षण की भी आवश्यकता है।