Thursday, 18 September 2025
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क्या सुक्खू सरकार संकट में है मुकेश अग्निहोत्री की पोस्ट से उठी चर्चा?

  • क्या चन्द्र कुमार और राजेश धर्माणी की टिप्पणियों को हल्के में लिया जा सकता है?

शिमला/शैल। क्या सुक्खू सरकार का अपने ही भार से दम फूलने लगा है? क्या सरकार की स्थिरता प्रश्नित होती जा रही है? क्या कांग्रेस हाईकमान अब भी हिमाचल के हालात को नजर अंदाज कर देगी? यह सारे सवाल उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री के सोशल मीडिया पर वायरल हुई पोस्ट के सामने आने से उठे हैं। मुकेश ने लिखा है की साजिशों का दौर है-झूठ के पांव नही होते। यह लिखने से इतना तो स्पष्ट हो जाता है कि साजिशें रची जा रही हैं भले ही वह झूठी हों। लेकिन यह सवाल अपने में ही गंभीर हो जाता है कि कुछ लोग झूठी सजिशें रचने लगे हुए हैं। अब यह सवाल आता है कि यह साजिशें क्या हो सकती हैं? कौन लोग यह कर सकते हैं। इस कड़ी में सबसे पहले सन्देह विपक्ष पर जाता है कि वह सरकार को गिराने के लिये साजिशों की रणनीति अपनाये। राज्यसभा चुनाव के समय सरकार गिराने का प्रयास हो चुका है और वह प्रयास भाजपा के ही नाम लगा था। लेकिन उस साजिश में उन अपनों की भूमिका बड़ी थी जो सरकार से नाराज चल रहे थे और उनकी नाराजगी को हाईकमान तक ने भी नजरअंदाज कर दिया था। जबकि उनकी हर शिकायत जायज थी कि वरिष्ठ कार्यकर्ताओं का सरकार में समायोजन नहीं हो पा रहा है। उस समय गिरने के कगार पर पहुंची सरकार को भाजपा ने ही बचाया था। आज भी भाजपा का सरकार को यह सहयोग बराबर मिला हुआ है। क्योंकि देहरा उपचुनाव में 78 लाख रुपया सरकारी अदारों द्वारा बांटे जाने की शिकायत राज्यपाल के पास पहुंचने के बाद भी विपक्ष उस पर खामोश है। केन्द्र की भाजपा सरकार के खिलाफ यह बड़ा आरोप है कि वह विपक्ष की सरकारों को ई.डी और अन्य केंद्रीय एजेंसियों के माध्यम से अस्थिर करने का प्रयास करती है। हिमाचल में भी ईडी, सीबीआई और आयकर एजेंसियों ने दखल दिया और हमीरपुर तथा नादौन में छापेमारी हुई। दो लोग ईडी की हिरासत में भी पहुंच चुके हैं। लेकिन उसके बाद यह मामला आगे नहीं बढ़ा है। इसको भी राजनीतिक पण्डित सरकार को भाजपा के सक्रिय सहयोग का ही प्रमाण मान रहे हैं। बल्कि जब राष्ट्रपति द्वारा आयोजित भोज में कांग्रेस के दो मुख्यमंत्री शामिल नहीं हुए और अकेले हिमाचल के ही मुख्यमंत्री शामिल हुए थे तब भी विश्लेषकों का माथा ठनका था।
इन तथ्यों से स्पष्ट हो जाता है कि प्रदेश भाजपा सुक्खू सरकार को अस्थिर करने का कोई प्रयास नहीं करेगी। कांग्रेस से भाजपा में गये लोग इन प्रयासों में अलग- थलग पड़ जाएंगे यह तय है। ऐसे में जब साजिशें रचे जाने का दर्द अन्दर से ही छलक कर सामने आ जाये तो उसको भी नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता। हिमाचल में कांग्रेस की सरकार दिसम्बर 2022 में बनी थी और नवम्बर 2024 में प्रदेश जिला और ब्लॉक स्तर की कार्यकारिणीयां भंग कर दी गई है। इस दौरान हुये लोकसभा चुनाव में सरकार होते हुये भी कांग्रेस चारों सीटें हार गयी। एकमात्र राज्यसभा सीट के चुनाव में भी सरकार हार गयी। इस सीट पर कांग्रेस से भाजपाई हुये हर्ष महाजन चुनाव जीत गये। हर्ष महाजन कांग्रेस में जब थे तब वह कांग्रेस में किन लोगों के निकटस्थ थे और किन लोगों से आज भी उनके घनिष्ठ रिश्ते हैं उसकी ओर ध्यान दिये बिना प्रदेश कांग्रेस की आज की स्थिति का विश्लेषण नहीं किया जा सकता। जब कोई विधायक या सांसद बन जाता है तभी से उसे पुनः सत्ता में लौटने की स्वभाविक प्रवृत्ति पैदा हो जाती है। इस दिशा में वह लगातार नजर बनाये रहता है कि क्या सरकार की कारगुजारी से वह पुनः सांसद विधायक बन पायेगा। जब उसे इस दिशा में यह सन्देह होने लगता जाता है कि शायद ऐसा नहीं हो पायेगा तब वह सरकार के प्रति मुखर होना शुरू कर देता है। आज हिमाचल सरकार और संगठन को लेकर इस मुखरता की स्थितियां बनने लग पड़ी हैं। यह सरकार कर्मचारीयों और बेरोजगार युवाओं के सहयोग से बनी थी। परन्तु आज कर्मचारी ही इस सरकार के खिलाफ आन्दोलन करने पर विवश हो गया है। बिजली कर्मचारी पिछले काफी समय से प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं। प्राइमरी शिक्षक धरने प्रदर्शन पर बैठ गये हैं। सचिवालय कर्मचारी कब फिर से मुखर हो जायें कोई कह नहीं सकता। प्रदेश में एक बड़े कर्मचारी आन्दोलन के आसार बनते जा रहे हैं। प्रदेश ऐसे वित्तीय संकट से गुजर रहा है कि वेतन और पैन्शन के लिये नारेबाजी करनी पड़ रही है।
स्वभाविक है कि जब कोई सरकार इस तरह के दौर में पहुंच चुकी हो तो उसके विधायक अपने को कैसे सुरक्षित समझ पाएंगे। सरकार ऐसे में जिस हाईकमान के रहमों-करम पर टिकी होती है उसे बरगलाये रखने में हर तरह के हथकण्डे इस्तेमाल करती ही है। हिमाचल सरकार में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है यह राजेश धर्माणी और चन्द्र कुमार की टिप्पणियों से स्पष्ट हो जाता है। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष विधायक कुलदीप राठौर के तेवर भी इसी दिशा के संकेतक हैं। ऐसे में जब मुकेश अग्निहोत्री साजिश की बात करते हैं तो स्पष्ट हो जाता है कि शायद हाईकमान के सामने कुछ लोगों की शिकायतें विभिन्न माध्यमों से पहुंचाई गई हों। लेकिन आने वाले दिनों में हाईकमान के सामने यह खुलकर स्पष्ट हो जाने की संभावना प्रबल होती जा रही है कि भाजपा के सहयोग से ही सरकार बची हुई है तब स्थितियां एकदम बदल जायेंगी। क्योंकि चार महीने में सरकार का वित्तीय संकट इतना बड़ा हो जायेगा कि तब केन्द्र के सीधे हस्ताक्षेप की स्थिति पैदा हो जायेगी। उस समय सरकार का अस्तित्व सही में खतरे में आ जायेगा।

क्या ओंकार शर्मा की जांच रिपोर्ट निष्कर्षहीन है सचिवालय के गलियारों में उठी चर्चा

  • क्या ओंकार शर्मा ने मीणा को अपना पक्ष रखने का पूरा समय नहीं दिया?
  • क्या यह रिपोर्ट उच्च न्यायालय के सामने आ पायेगी?

शिमला/शैल। क्या विमल नेगी प्रकरण पर बिठाई गई प्रशासनिक जांच निष्कर्ष हीन है? क्या जांच अधिकारी अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह ओंकार शर्मा ने पावर कॉरपोरेशन के एम.डी. हरिकेश मीणा को इस मामले में अपना पक्ष रखने के लिये पूरा समय नहीं दिया? क्या सरकार इस जांच रिपोर्ट को प्रदेश उच्च न्यायालय में पेश नहीं होने देगी? यह सवाल इन दिनों सचिवालय के गलियारों में विशेष चर्चा का विषय बने हुये हैं? क्योंकि 20 मई को प्रदेश उच्च न्यायालय ने स्व. विमल नेगी की धर्मपत्नी किरण नेगी की याचिका पर सभी प्रतिवादियों से स्टेटस रिपोर्ट तलब की है। स्मरणीय है कि विमल की मौत पर उनकी धर्मपत्नी किरण नेगी की शिकायत पर ही पुलिस ने एक एफआईआर दर्ज की थी। लेकिन इस एफआईआर में सीधे तौर पर देशराज का ही नाम है और हरिकेश मीणा केवल पदेन नामित है। इसलिये परिजनों की शिकायत है कि जब प्रताड़ना का आरोप हरिकेश मीणा पर भी था तो उसे एफआईआर में पदेन क्यों लाया गया। फिर पुलिस किसी भी अधिकारी को जांच में तब तक शामिल नहीं कर पायी जब तक देशराज उच्च न्यायालय से होकर सुप्रीम कोर्ट से अग्रिम जमानत लेने में सफल नहीं हो गया। देशराज के बाद मीणा को भी उच्च न्यायालय से राहत मिल गयी। इसी के साथ परिजनों के आरोप भी है इस जांच को लेकर। परिजनों का आरोप है कि जब नेगी की लाश भाखडा बांध एरिया से बरामद हुई तब उनको इसकी सूचना दूसरे दिन एम्स बिलासपुर में पोस्टमार्टम के दौरान दी गयी। वहां भी अधिकारी पहले पहुंचे थे। फिर नेगी की लाश से जो सामान मिला है वह क्या और कहां है इसकी भी कोई जानकारी परिजनों को नहीं दी गयी है। इसी आचरण के आधार पर परिजनों को जांच की निष्पक्षता पर भरोसा नहीं है।
इसी सबके साथ इस प्रकरण का दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि सरकार ने इस प्रकरण की पुलिस जांच के साथ ही एक प्रशासनिक जांच भी आदेशित की थी। यह जांच अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह ओंकार शर्मा को सौंपी गयी थी। ओंकार शर्मा ने यह जांच करके जांच रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है। स्वभाविक है कि अतिरिक्त मुख्य सचिव सरकार में यह जांच रिपोर्ट मुख्य सचिव को ही सौंपेगा। संयोगवश मुख्य सचिव प्रदेश पावर कॉरपोरेशन के अध्यक्ष भी हैं। फिर इस प्रकरण में पावर प्रोजेक्ट्स को लेकर जिस तरह के आरोप पावर कॉरपोरेशन की कार्य प्रणाली पर इंजीनियर सुनील ग्रोवर ने ओंकार शर्मा के पास दी अपनी गवाही में लगाये हैं उनके परिदृश्य में मुख्य सचिव को इस मामले में ओंकार शर्मा की जांच रिपोर्ट के अवलोकन से परहेज करना चाहिए था क्योंकि वह स्वयं इसके अध्यक्ष भी हैं। फिर ओंकार शर्मा की रिपोर्ट को शायद मुख्य सचिव ने निष्कर्षहीन रिपोर्ट की टिप्पणी दे दी है और यह कहा है कि इसमें मीणा को अपना पक्ष रखने का पूरा समय नहीं दिया गया है। मुख्य सचिव की इन टिप्पणियों का शायद महाधिवक्ता से भी अनुमोदन करवा लिया गया है। ऐसे में जब यह रिपोर्ट निष्कर्षहीन मानी जा रही है तो इसे अदालत में पेश करने का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता है। इस परिदृश्य में यह सवाल उठता है कि यदि अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह के स्तर के अधिकारी की इतनी भारी भरकम रिपोर्ट ही निष्कर्षहीन है तो फिर सरकार में और कौन सा अधिकारी सक्षम होगा जो इस जांच को अंजाम दे पायेगा? ऐसे में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि प्रदेश उच्च न्यायालय इस स्थिति में कैसे और क्या संज्ञान लेता है।

क्या सरकार में बदलाव लाये बिना संगठन की कार्यकारिणी का गठन व्यवहारिक होगा?

शिमला/शैल। प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कार्यकारिणी को भंग हुये अब आठ माह का समय होने जा रहा है। लेकिन अभी तक कार्यकारिणी का गठन नहीं हो पाया है। जबकि इस दौरान हाईकमान की ओर से पर्यवेक्षकों की एक बड़ी टीम भी प्रदेश में भेजी गई थी जिसने हर चुनाव क्षेत्र में जाकर पार्टी के सक्रिय सदस्यों से फीडबैक लेकर उसकी रिपोर्ट भेजनी थी और उस रिपोर्ट के आधार पर आगे कार्यकारिणी का गठन होना था। पर्यवेक्षकों को भी आये हुए एक अरसा हो गया है। इसी दौरान यह भी चर्चाएं उठी कि प्रदेश अध्यक्ष भी बदल दिया जाएगा क्योंकि उसका कार्यकाल भी निकट भविष्य में पूरा होने जा रहा है। फिर यह चर्चाएं भी उठी कि मंत्रिमण्डल में भी फेरबदल होने जा रहा है। कुछ मंत्रियों को हटाकर उनके स्थान पर नये मंत्री बनाए जाएंगे। लेकिन यह सारी चर्चाएं हकीकत में नहीं बदल पायी है। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बने हुये अढ़ाई वर्ष होने जा रहे हैं। इस दौरान लोकसभा के चुनाव हुए परन्तु सरकार होते हुए भी कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पायी। सरकार बनने के दो माह बाद ही यह चर्चाएं उठ गयी थी कि संगठन और सरकार में उचित तालमेल नहीं है। इस तालमेल के अभाव को लेकर हाईकमान को भी सूचित किया गया था। खुले पत्र लिखे गये थे। लेकिन जब इस सबका कोई असर नहीं हुआ तब राज्यसभा चुनाव के दौरान पार्टी के छः विधायकों ने बगावत करके इस चुनाव में भाजपा को जिता दिया। इस बगावत पर कारवाई करते हुए इन छः विधायकों को पार्टी से निकालकर उनके स्थान पर उपचुनावों का मार्ग प्रशस्त कर दिया। उपचुनाव में कांग्रेस फिर से अपना पुराना चालीस वाला आंकड़ा पाने में तो सफल हो गयी लेकिन इस सफलता ने कांग्रेस सरकार के नाम पर भाजपा के साथ अघोषित तालमेल की चर्चा जोड़ दी। आज तक भाजपा के साथ सुक्खू सरकार के तालमेल के रिश्तों की चर्चा राजनीतिक और प्रशासनिक हल्को में चर्चा का विषय बना हुआ है।
यह एक स्वभाविक राजनीतिक प्रतिफल है कि इस वस्तुस्थिति में प्रदेश में संगठन कैसे ताकतवर बन सकता है जब नेतृत्व के अपने रिश्ते भाजपा के साथ इस कदर प्रगाढ़ होंगे तो तय है कि ऐसे रिश्तों के चलते संगठन व्यवहारिक रूप से गौण हो जायेगा। इस समय प्रदेश में सुक्खू सरकार इसी व्यवहारिक पक्ष के साथ एक साथ अपना समय निकल रही है। क्योंकि सरकार जिस तरह की वित्तीय स्थिति से गुजर रही है उसमें अपनों से ज्यादा बाहर वालों का साथ सहयोग चाहिये। ऐसे में जब भी प्रदेश कार्यकारिणी के गठन की चर्चा उठेगी तब यह बड़ा सवाल सबके सामने होगा कि कांग्रेस का कार्यकर्ता जनता के बीच सरकार के कौन से फैसलों की वकालत कर पायेगा? जिस सरकार को एक उपचुनाव जीतने के लिये सरकारी आदारों से 78 लाख रुपया बंटवाना पड़े वहां कार्यकर्ता सरकार का क्या पक्ष लेकर आम आदमी के सामने जायेगा? क्योंकि जब सरकार की हकीकत कर्ज पर आश्रित हो तो वहां संगठन कैसे और क्या लेकर जनता के बीच जायेगा।
सरकार ने भाषणों में तो छः गारंटियां पूरी कर दी हैं लेकिन इसका सत्यापन तो जनता में कार्यकर्ता को करना है। क्या वह कर पायेगा कि सरकार ने गारंटियां पूरी कर दी हैं। कांग्रेस की संस्कृति में सरकार बनने के बाद संगठन गौण हो जाता है। ऐसे में जब सरकार ही निष्क्रियता का लांछन झेल रही हो तो कार्यकर्ता उस तस्वीर को कैसे बदल पायेगा। जब तक सरकार में गुणात्मक सुधार नहीं हो जाता है तब तक एक सार्थक और प्रभावी कार्यकारिणी का गठन एक असंभव प्रयास होगा। जब तक सरकार में कुछ बदलाव नहीं आता है तब तक कार्यकारिणी के गठन का हर प्रयास आधारहीन ही रहेगा।

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