Thursday, 18 December 2025
Blue Red Green
Home देश

ShareThis for Joomla!

हिमाचल में संगठन का पुनर्गठन हाईकमान के लिए भी चुनौती होगा

  • सुक्खू और प्रतिभा के अलग- अलग स्टैंड बने दुविधा

शिमला/शैल। प्रदेश कांग्रेस का पुनर्गठन अभी तक नहीं हो पाया है। यहां तक कांग्रेस हाईकमान के साथ भी इस संबंध में प्रदेश नेताओं की बैठक हो चुकी है। पिछली बैठक में हाईकमान ने प्रदेश के मंत्रियों से अलग मंत्रणा की थी और तब यह लगा था कि एक-दो दिन में घोषणा हो जायेगी। परन्तु ऐसा हो नहीं सका। क्योंकि प्रदेश अध्यक्षा प्रतिभा सिंह ने शिमला में पत्रकारों से बात करते हुये स्पष्ट कहा कि वीरभद्र लीगेसी को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि अगला अध्यक्ष अनुसूचित जाति से होना चाहिये। साथ ही यह भी कहा कि अगला अध्यक्ष कोई मंत्री हो सकता है। प्रतिभा सिंह और मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के बयानों से स्पष्ट हो जाता है कि अभी अगले गठन पर प्रदेश के नेताओं में ही कोई सहमति नहीं हो पायी है।
प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बने अढ़ाई वर्ष हो गये हैं। प्रदेश संगठन में पिछले वर्ष नवम्बर से सारी कार्यकारणीयां भंग हैं। यदि सरकार और संगठन में अब तक के कार्यकाल की समीक्षा की जाये तो स्पष्ट हो जाता है कि दोनों में अब तक तालमेल का अभाव रहा है और यह अभाव खुलकर जगजाहिर भी हो चुका है। वरिष्ठ कांग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं ने सरकार में यह यथोचित समायोजन की मांग उठी और हाईकमान तक भी पहुंची लेकिन कोई समाधान नहीं निकल सका। इसी तालमेल के अभाव का परिणाम था की छः विधायकों ने पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया। कांग्रेस प्रदेश में लोकसभा और राज्यसभा सभी कुछ हार गयी लेकिन हाईकमान ने इस हार का कोई गंभीर संज्ञान नहीं लिया। हाईकमान इसी में खुश रही की दल बदल के प्रयासों के बावजूद भी प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बच गयी। आपसी तालमेल का अभाव उस समय भी जगजाहिर हो गया था जब धर्माणी और गोमा को मंत्री बनने के बाद उन्हें विभागों के आवंटन में जरूरत से ज्यादा समय लगा दिया गया। यह स्थिति व्यवहारिक रूप से अब तक बनी हुई है और इसी के कारण सरकार पर अफसरशााही के हावी होने की शिकायतें हाईकमान तक भी जा पहुंची है।
इसी वर्ष के अन्त में पंचायत और पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव होने हैं। यह चुनाव सरकार के कामकाज की परीक्षा होंगे। कांग्रेस विधानसभा चुनावों में दस गारंटियां जनता को देकर सत्ता में आई थी। अब यह गारंटियां कितनी पूरी हुई हैं इसका हिसाब हर वोटर मांगेगा और हर कांग्रेस कार्यकर्त्ता को इसका जवाब देना होगा। इस दौरान वित्तीय संकट के आवरण में जनता पर कितना कर्जभार लाद दिया गया और उसके अनुपात में आम आदमी के संसाधन कितने बढ़े हैं इसका भी व्यवहारिक लेखा-जोखा इन चुनावों में रखना पड़ेगा। यह सबसे बड़ा सवाल होगा कि कांग्रेस का कार्यकर्ता क्या संदेश लेकर जनता के बीच जायेगा। सरकार ने स्थानीय निकायों के चुनाव में ओबीसी को आरक्षण देने की बात की है। परन्तु यह आरक्षण तब तक संभव नहीं हो सकता जब तक जातीय जनगणना नहीं हो जाती है। इसलिये यह बहुत संभव है कि विधानसभा के इस सत्र में यह प्रस्ताव आये कि स्थानीय निकायों के चुनाव दो वर्षों के लिये टाल दिये जायें। यह चुनाव टलने से इन निकायों में तो हार से बच जाएंगे परन्तु पंचायत के चुनाव में क्या होगा यह एक बड़ा सवाल रहेगा। इन्हीं चुनावों के कारण इस समय संगठन के पुनर्गठन को और टालना संभव नहीं होगा। हिमाचल में संगठन का पुनर्गठन प्रदेश नेतृत्व के साथ हाई कमान के लिए भी चुनौती बनता जा रहा है।

आसान नहीं होगा प्रदेश में कांग्रेस संगठन का पुनर्गठन

  • हाईकमान के लिये भी एक चुनौती होगा सरकार और संगठन में तालमेल बिठाना

शिमला/शैल। प्रदेश सरकार में मंत्री का एक पद खाली चला आ रहा है और संगठन की राज्य से लेकर ब्लॉक तक सारी कार्यकारिणीयां पिछले वर्ष नवम्बर से भंग चली आ रही है। यह स्थिति है प्रदेश में सरकार और संगठन की। इस स्थिति के लिये कौन जिम्मेदार है अब यह विषय आम आदमी में चर्चा का विषय बनता जा रहा है। कांग्रेस संस्कृति से जो लोग परिचित हैं वह जानते हैं कि सरकार बनने के बाद सब कुछ मुख्यमंत्री और सरकार के गिर्द घूमना शुरू कर देता है और संगठन दूसरे दर्जे की स्थिति में तब पहुंच जाता है। जब संगठन का मुखिया इस पर परोक्ष/अपरोक्ष में सवाल उठाना शुरू करता है तब कार्यकारिणीयों को ही भंग कर दिये जाने तक हालात पहुंच जाते हैं। हिमाचल में भी सरकार और संगठन में वांच्छित तालमेल के अभाव के समाचार कांग्रेस हाईकमान तक लगातार पहुंचते रहे हैं। बल्कि समाचारों से निकलकर शिकायतें तक भी हाईकमान के पास पहुंची। लेकिन जब किसी चीज का भी असर नहीं हुआ तब सरकार के होते हुये पार्टी में दल बदल हो गया। छः विधानसभा क्षेत्रों में लोकसभा के साथ उपचुनाव हो गये। इन उपचुनावों में पार्टी अपने मूल आंकड़े चालीस तक फिर पहुंच गयी लेकिन लोकसभा की चारों ओर राज्यसभा की सीट भाजपा से हार गयी। इस हार जीत से न तो कांग्रेस हाईकमान ने कुछ सीखा और न ही प्रदेश में संगठन और सरकार में तालमेल बेहतर हो पाया है। यहां तक की तालमेल के लिये कमेटी तक का भी गठन हुआ परन्तु स्थितियां कार्यकारिणियों के भंग किये जाने तक पहुंच गयी। अब सरकार की परीक्षा पंचायत और पंचायती राज संस्थाओं के चुनावों में फिर दाव पर होगी। इन चुनावों में हर वोटर और हर घर उसको विधानसभा चुनावों में दी गई गारंटीयों का हिसाब मांगेगा ।
सरकार के अपने मंत्रियों और मुख्यमंत्राी में भी कितना तालमेल चल रहा है इसका इसी से पता चल जाता है कि अब मंत्रिमण्डल की बैठकों से भी मंत्रियों का गैर हाजिर होना एक आम बात होती जा रही है। इस बार लगातार चार दिन मंत्रिमण्डल की बैठकें चली और एक मंत्री चारों ही दिन इसमें गैर हाजिर रहा। हाईकमान ने संगठन के पुनर्गठन के लिये दिल्ली में बैठक रखी। सारे मंत्रियों को बुलाया गया। इस बैठक में हाईकमान के सामने सारा कुछ सामने आ गया है। यहां तक संज्ञान में ला दिया गया है कि सरकार में अफसरशाही किस कदर हावी है। कुल मिलाकर हिमाचल के बारे में खड़गे और राहुल को काफी जानकारियां इस बैठक में मिल गयी है। अफसरशाही किस कदर हावि है इसका बड़ा उदाहरण पंचायती राज संस्थाओं के चुनावों में ओबीसी को आरक्षण का फैसला है। हिमाचल में आज तक ओबीसी की अलग से जनगणना नहीं हुई है और जब कोई गणना ही नहीं हुई है तो आरक्षण किस आधार पर तय होगा। स्वभाविक है कि कोई गणना न होने से इस आरक्षण के प्रयास को कोई अदालत में चुनौती दे देगा और सारी प्रक्रिया स्टे करवा दी जायेगी। इसी तरह का चलन 2003 के बाद लगे कर्मचारियों की सेवा शर्तों में वाकायदा एक विधेयक पारित करवाकर बदलाव किया गया। इस बदलाव के कारण उनके वेतन में कटौती तक के आदेश जारी हुये। जिन्हें प्रदेश उच्च न्यायालय ने निरस्त कर दिया है। स्वभाविक है कि जब इस तरह के परिदृश्य में एक सरकार चुनावों में जायेगी तो उसे क्यों और कितनी सफलता मिलेगी?
इसी परिदृश्य में यदि विरासत की राजनीति की भी प्रदेश में पड़ताल की जाये तो वर्तमान कांग्रेस में प्रदेश में स्व. ठाकुर रामलाल और स्व. वीरभद्र सिंह दो पूर्व मुख्यमंत्रीयों की अपनी-अपनी विरासत अभी भी चल रही है। इनके वारिस इस विरासत का दोहन कर रहे हैं। लेकिन संयोगवश दोनों ही वारिस इस समय मुख्यमंत्री के साथ नहीं है। स्व.वीरभद्र की प्रतिमा के प्रतिक्षित अनावरण की राजनीति ने इस विरासत में भी एक नया अध्याय जोड़ दिया है और इससे अनायास स्व. वीरभद्र और वर्तमान मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के राजनीतिक रिश्ते फिर से चर्चा का विषय बनने लग गये हैं। इस तरह के राजनीतिक परिदृश्य में भावी संगठन और सरकार में किस तरह तालमेल बैठ पायेगा इस पर सबकी नज़रें लग गयी है। आज कांग्रेस के कार्यकर्ता भी यह मानने लग पड़े हैं की वर्तमान सत्ता को इस बात से कोई लेना देना नहीं रह गया है कि उसे एक प्रभावी संगठन की आवश्यकता है। क्योंकि जब संगठन प्रभावित होने का प्रयास करेगा तो वह सत्ता को अच्छा नहीं लगेगा। इस तरह प्रदेश में जो राजनीतिक परिस्थितियों निर्मित हो चुकी है उनसे अब यह स्पष्ट होता जा रहा है कि यह सरकार अपने एक विशेष दायरे के बाहर आने को तैयार ही नहीं है और इस तरह प्रदेश में नया संगठन अब हाईकमान के लिए भी चुनौती बन जायेगा।

देशराज की जमानत याचिका में किरण नेगी का पक्ष बनना बड़ा मोड़ है

  • अब किरण नेगी सब कुछ सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में ला सकती है
शिमला/शैल। पावर कारपोरेशन के चीफ इंजीनियर स्व. विमल नेगी की मौत के प्रकरण की जांच प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश पर सी.बी.आई. के पास जा चुकी है। सी.बी.आई. को यह जांच स्व. विमल नेगी की धर्मपत्नी किरण नेगी के आग्रह पर सौंपी गयी थी। क्योंकि स्व. विमल नेगी के अपने कार्यालय से गुम होने से लेकर उनका शव बरामद होने तक और उसके बाद भी जिस तरह का आचरण प्रदेश सरकार और उसकी जांच एजैंसीयों का रहा उससे असंतुष्ट होने पर श्रीमती किरण नेगी ने प्रदेश उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था और तब यह जांच सी.बी.आई. को सौंपी गयी थी। लेकिन सी.बी.आई. भी अभी तक इस प्रकरण में कुछ ठोस सामने नहीं ला पायी है। सी.बी.आई. ने दो बार प्रदेश उच्च न्यायालय में कुछ ठोस सामने लाने के लिये समय मांगा है। इस मामले में किरण नेगी ने जिन अधिकारियों पर विमल नेगी को प्रताड़ित करने के आरोप लगाये थे और इस पर एक तरह का जनाक्रोष भी उभरा था वह दोनों लोग अभी तक अग्रिम जमानत पर चल रहे हैं। हरिकेश मीणा को प्रदेश उच्च न्यायालय से और देशराज को सुप्रीम कोर्ट से अग्रिम जमानते मिली हुई हैं। देशराज को जब सर्वाेच्च न्यायालय से जमानत मिली थी तब प्रदेश की ओर से सुप्रीम कोर्ट में उसका विरोध करने के लिये कोई भी पेश नहीं हुआ था। जबकि इन दोनों अधिकारियों को जनाक्रोष के चलते सरकार ने सस्पेंड तक कर दिया था और अब इन दोनों को बहाल करके पोस्टिंगज दे दी गयी है। इस परिदृश्य में यह मामला एक ऐसा प्रकरण बन चुका है जिस पर सबकी नजरें भी लगी हुई हैं। इसलिये अब जब 22 तारीख को देशराज की अग्रिम जमानत का मामला सर्वाेच्च न्यायालय में सुनवाई के लिये आया तब किरण नेगी का वकील भी इसमें शामिल होकर नियमित पक्ष बन गया है।
स्मरणीय है कि स्व. विमल नेगी के अपने कार्यालय से गुम होने से लेकर उनका शव बरामद होने पर ही किरण नेगी द्वारा प्रदेश की जांच एजैंसीयों द्वारा की गयी कारवाई से असंतुष्ट होने पर उच्च न्यायालय में याचिका दायर करने पर जो कुछ कारवाई के नाम पर घटा है वह सब उच्च न्यायालय के रिकॉर्ड पर आ चुका है और सी.बी.आई. के लिये एक बुनियादी आधार बन चुका है। अब किरण नेगी उस रिकॉर्ड को सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में ला सकती है। माना जा रहा है कि जब सारा रिकॉर्ड सर्वाेच्च न्यायालय के संज्ञान में आयेगा तब स्थितियां बहुत बदल जायेंगी। क्योंकि जो कुछ इस मामले में घट चुका है उसके मुताबिक जब विमल नेगी की गुमशुदी की शिकायत आयी और उस पर जो एस.आई.टी. गठित की गई उसमें ए.एस.आई. पंकज सदस्य नहीं था। जब नेगी का शव बरामद हुआ और दूसरी एस.आई.टी. गठित हुई उसमें ए.एस.आई. का नाम नहीं था। लेकिन शव के पास पहुंचने वाला वह पहला व्यक्ति है। यही नहीं उसी ने स्व. विमल नेगी का पेन ड्राइव निकाला और उसको फारमेट किया। इसी दौरान वह किसी से बातचीत भी करता है। यह सब डी.जी.पी. की स्टेटस रिपोर्ट में दर्ज है। ए.एस.आई. पंकज किसके ने निर्देश पर शव के पास पहुंचा? उसने पेन ड्राइव निकालकर किसके कहने से उसे फारमेट किया? किसके साथ वह संवाद कर रहा था। यह सब इस पूरे प्रकरण का केंद्रीय बिन्दु बन चुका है। जब तक इसकी सच्चाई सामने नहीं आयेगी तब तक पूरी जांच पर भरोसा ही नहीं बन पायेगा।
फिर इसी प्रकरण में जब डी.जी.पी. की स्टेटस रिपोर्ट और अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह की प्रशासनिक रिपोर्ट तथा एस.पी. शिमला की स्टेटस रिपोर्ट उच्च न्यायालय में पहुंची और उन पर जिस तरह की प्रतिक्रियाएं आधिकारिक क्षेत्रों से उभरी उनसे पूरे प्रकरण की गंभीरता ही बदल गयी। इन्हीं प्रतिक्रियाओं के परिदृश्य में यह जांच सी.बी.आई. में पहुंची है। अब जब देशराज की जमानत के मामले में किरण नेगी सर्वाेच्च न्यायालय पहुंचकर पक्ष बन गयी है तब उनके पास इस सबको सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में लाना आसान हो जायेगा। क्योंकि अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह की रिपोर्ट में इंजीनियर सुनील ग्रोवर का वह शपथ पत्र भी दर्ज है जिसमें पावर परियोजनाओं में फैले भ्रष्टाचार का भी पूरा खुलासा हैै। क्योंकि यह सामान्य समझ की बात है कि सरकारी कामकाज में भ्रष्टाचार के कारण ही व्यवहार में बदलाव आता है और इस प्रकरण में भी बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार होने की शंकाएं स्वतः ही सामने आ गयी हैं।
 
यह है सुप्रीम कोर्ट का आर्डर
O R D E R
In the larger interest of justice, we feel that the CBI as well as the complainant should also be made parties.
2. As Mr. S.D. Sanjay, learned ASG has already appeared for the CBI and Mr. Rana Ranjit Singh, learned counsel has appeared for the complainant, no notice be issued to them. However, we mark the presence of learned ASG for the State of Himachal Pradesh.
3. Accordingly, let corrected memo of parties be filed by learned counsel for the petitioner within a period of one week.
4. Learned counsel for the respondents especially, the newly added ones, are free to file their counter affidavit.
5. List on 21.08.2025.
6. We clarify our previous interim order that the petitioner shall cooperate in the investigation in the meantime.

More Articles...

  1. भट्टाकुफर मारपीट प्रकरण पर आयी प्रतिक्रियाओं से उलझा सारा मामला
  2. यदि कांग्रेस हाईकमान ने समय रहते ध्यान न दिया तो प्रदेश हाथ से निकल जायेगा
  3. ए.एस.आई. पंकज को सी.बी.आई. हिरासत में लेगी या गवाह बनायेगी?
  4. क्या सी.बी.आई. हरिकेश मीणा और देशराज की जमानते रद्द करवा पायेगी?
  5. भाजपा की नीयत और नीति पर भी उठने लगे सवाल
  6. क्या स्व. वीरभद्र सिंह की प्रतिमा की स्थापना रिज पर हो पायेगी ?
  7. क्या स्व. वीरभद्र सिंह की प्रतिमा की स्थापना रिज पर हो पायेगी ?
  8. नादौन में ई-बस डिपो के लिए खरीदी जमीन आयी सवालों में
  9. क्या सुक्खू सरकार संकट में है मुकेश अग्निहोत्री की पोस्ट से उठी चर्चा?
  10. क्या ओंकार शर्मा की जांच रिपोर्ट निष्कर्षहीन है सचिवालय के गलियारों में उठी चर्चा
  11. क्या सरकार में बदलाव लाये बिना संगठन की कार्यकारिणी का गठन व्यवहारिक होगा?
  12. देहरा विधानसभा उपचुनाव में जिला कल्याण अधिकारी द्वारा भी एक हजार महिलाओं को बांटा गया पैसा
  13. देहरा उपचुनाव में कांगड़ा सहकारी बैंक का पैसा प्रकरण पहुंचा राजभवन
  14. जल विद्युत परियोजनाओं पर राज्य और केन्द्र में टकराव से किसे लाभ होगा?
  15. पावर कारपोरेशन में सैंकड़ों करोड़ का भ्रष्टाचार इंजीनियर सुनील ग्रोवर के बयान से उठी चर्चा
  16. क्या सक्सेना सरकारी गवाह बनेंगे सेवा विस्तार से उठी आशंकाएं
  17. विमल नेगी की मौत मामले में अभी तक पुलिस खाली हाथ
  18. केंद्र सरकार ने राज्य के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के अध्यक्ष पद के लिए अधिसूचित की चयन प्रक्रिया
  19. क्या प्रबोध सक्सेना को सेवा विस्तार या पुनर्नियुक्ति मिल पायेगी ?
  20. देहरा विधानसभा उपचुनाव में कांगड़ा बैंक द्वारा महिला मण्डलों को आर्थिक सहायता देना आया सवालों में

Subcategories

  • लीगल
  • सोशल मूवमेंट
  • आपदा
  • पोलिटिकल

    The Joomla! content management system lets you create webpages of various types using extensions. There are 5 basic types of extensions: components, modules, templates, languages, and plugins. Your website includes the extensions you need to create a basic website in English, but thousands of additional extensions of all types are available. The Joomla! Extensions Directory is the largest directory of Joomla! extensions.

  • शिक्षा

    We search the whole countryside for the best fruit growers.

    You can let each supplier have a page that he or she can edit. To see this in action you will need to create a users who is in the suppliers group.  
    Create one page in the growers category for that user and make that supplier the author of the page.  That user will be able to edit his or her page.

    This illustrates the use of the Edit Own permission.

  • पर्यावरण

Facebook



  Search