Friday, 19 September 2025
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शिवधाम परियोजना में बजट का होना न होना बना विवाद

  • क्या शिवधाम के लिये हैरिटेज पर्यटन से हुआ पैसा डाइवरट
  • चर्च रिपेयर जैसे कई कामों पर नहीं हुआ कोई भी खर्च
  • वितीय अनियमितता पर प्रशासन का मौन सवालों में

शिमला/शैल। पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर के गृह जिला मुख्यालय मण्डी में निर्माणाधीन चल रही शिवधाम परियोजना का काम दिसम्बर में सत्ता परिवर्तन होने के बाद बन्द हो गया है। काम कर रहा ठेकेदार काम छोड़कर चला गया है। ऐसा कहा जा रहा है कि काम बन्द होने का कारण इस परियोजना के लिये कोई बजट प्रावधान ही न होना कहा जा रहा है। बजट प्रावधान न होने की बात मुख्य मुख्यमंत्री सुखविन्दर सिंह सुक्खू ने शिवरात्रि के उपलक्ष में आयोजित एक आयोजन में सार्वजनिक मंच सेे कही है। मुख्यमंत्री के इस एक आक्षेप का जवाब देते हुए इस शिवरात्रि के आयोजन के सार्वजनिक मंच से जयराम ठाकुर ने सुक्खू को राय दी है कि उन्हें सोच समझकर बोलना चाहिये और साथ ही यह कहा है कि शिवधाम के लिये 50 करोड़ का बजट रखा गया था। ऐसे में यह रोचक स्थिति बन गयी है कि कौन सही बोल रहा है और कौन गलत। स्वभाविक है कि दोनों ही के पास प्रशासन से आयी जानकारी रही होगी। जयराम से अभी दिसम्बर में ही सता हाथ से निकली है। जो अधिकारी उस समय तक बतौर अतिरिक्त मुख्य सचिव वित्त काम कर रहा था वही अधिकारी आज सुक्खू सुशासन में चौथे स्थान से पहले स्थान मुख्य सचिव पर विराजमान है। दो शीर्ष नेताओं में बजट प्रावधान को लेकर वाक्युद्ध शुरू हो गया है और शीर्ष प्रशासन मौन रह कर तमाशा देख रहा है। जबकि बजट प्रावधान होने या ना होने का आरोप शीर्ष प्रशासन पर भी एक बड़ा आरोप हो जाता है। बजट प्रावधान होने न होने से हटकर भी एक बड़ा सच यह है कि परियोजना के लिये जो पहला टैण्डर जारी हुआ था उसकी टैण्डर वैल्यू 40 करोड़ थी और उस पर ई.एम.डी. 20,000 मांगी गयी है जो न्यूनतम 80 लाख बनती थी। यह टैन्डर केवल सलाहकार की नियुक्ति के लिये जारी किया गया था। ऐसे में टैण्डर दस्तावेज के मुताबिक इसमें भ्रष्टाचार हुआ है। जब यह मामला शैल में प्रकाशित हुआ था तब उसमें पर्यटन की ओर से जो जवाब जारी किया गया था उसने स्वीकार किया गया है कि इस टैण्डर की प्रक्रिया 10-12-2019 से 16-5- 2020 तक पूरी कर ली गयी थी। सलाहकार की नियुक्ति के लिये केई संशोधन जारी तक नही किया गया था। इसमें संशोधन 12-11- 2020 को पहली बार प्रक्रिया पूरी होने के बाद किया गया था। यह पत्र भी पाठकों के सामने रखा जा रहा है। विजिलैन्स ने इन्ही दस्तावेजों का संज्ञान लेकर पर्यटन निगम को कारवाई के लिये पत्र लिखा था जिस पर आज तक कुछ नही हुआ है। निश्चित है कि यदि सुक्खू सरकार ईमानदारी से इस मामले की जांच करवाती है तो बजट प्रावधान का सच भी सामने आ जायेगा क्योंकि परियोजनाओं पर खर्च तो करोड़ों का हुआ और खर्च तब हुआ है जब कहीं से पैसे का प्रबन्ध किया होगा। पैसे के प्रबन्ध के लिये यह आशंका व्यक्त की जा रही है कि हैरिटेज पर्यटन के लिये जो एशियन विकास बैंक से 256.99 करोड का ऋण लिया गया था उसके कुछ पैसे को इस काम में लगाया होगा। इसमें हैरिटेज पर्यटन के नाम पर मण्डी के ऐतिहासिक भवन का सर्वेक्षण भी शामिल है। शिमला में इसी में से 17.50 करोड़ चर्चो की रिपेयर के लिए रखा गया था। 10-09- 2014 को चर्च कमेटी के साथ कॉन्टरैक्ट भी साइन हो गया था। लेकिन व्यवहार में इन चर्चोर्ं की रिपेयर के नाम पर एक पैसा भी सर्व नही हुआ। चर्चा है कि रिपेयर के लिये रखा पैसा ए.डी.बी. की अनुमति के बिना ही कहीं और खर्च कर दिया गया है। इस हैरिटेज पर्यटन के माध्यम से बिलासपुर में मार्कंडेण्य, श्री नैना देवी, ऊना मे चिंन्तपूणी, हरोली, कांगड़ा मे पौंग डैम, रनसेर कारु टापू, नगरोटा सूरियां, धनेटा, ब्रजेश्वरी, चामुण्डा, जवालामुखी, धर्मशाला, मकलोडगंज, मसरूर, नगरोटा बगवां, कुल्लू-मनाली के आर्ट एण्ड क्राफ्ट केन्द्र, बड़ाग्रां चम्बा में हैरिटेज सर्किट, मण्डी के ऐतिहासिक भवन शिमला में नादालदेहरा, का ईको पार्क, रामपुर बुशैहर तथा आस पास के मन्दिर आदि शामिल थे। पर्यटन हैरिटेज के लिये एक निदेशक और आठ सलाहकार नियुक्त किये गये थे। उन्हें एक वर्ष में 4,29,21,353 रूपये दिये गये हैं। लेकिन इन चिन्हित साईटस में से किस पर कितना खर्च हुआ है यह आज तक सामने नहीं आया है। यह कार्य 2017 तक पूरे होने थे। लेकिन कितने हुए कितने रहे यह भी सामने नहीं आया है। ए.डी.बी. ने कुछ नियुक्तियों पर अप्रसन्नता भी जाहिर की थी। माना जाता है कि ए.डी.बी.का यह पैसा डाईवर्ट हुआ है जो अलग से जांच का विषय बनता है। आज जयराम के जवाब के बाद मुख्यमंत्री के लिये यह अनिवार्य हो जाता है कि वह शिवधाम परियोजना पर एक विस्तृत जांच आदेशित करें और यह सामने लाये की सही में इस योजना के लिये अपना कोई बजट प्रावधान नहीं था और न ही यह हैरिटेज पर्यटन का कोई हिस्सा था।

जब वित्त वर्ष 2022-23 का घाटा ही 1064.35 करोड़ है तो प्रतिमाह इतना कर्ज क्यों?

  • क्या सरकार शीर्ष अफसरशाही को समझ नहीं पा रही है
  • क्या बजट दस्तावेज के साये में मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री स्थिति स्पष्ट करेंगे
  • क्यों नहीं लाया जा रहा है श्वेत पत्र

शिमला/शैल। ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार को बने अभी पूरे तीन माह नहीं हुए हैं। लेकिन भाजपा इस सरकार के खिलाफ लगातार आक्रामक होती जा रही है। यह सही है कि भाजपा नेतृत्व केन्द्र से लेकर राज्य तक यह मानकर चल रहा था कि वह किसी भी तरह से सत्ता में पुनः वापसी कर ही लेगा। अधिकांश मीडिया आकलन भी यही संकेत दे रहे थे। शैल की तर्ज पर कम ही लोगों का आकलन था कि सत्ता परिवर्तन निश्चित है। ऐसे में यह स्वभाविक है कि सत्ता खोने का दंश काफी समय तक चुभता रहेगा। तीन माह का समय किसी भी सरकार को लेकर एक निश्चित राय बनाने के लिए पर्याप्त नहीं कहा जा सकता यह भी एक सच है। लेकिन इस तीन माह के समय में जो घटा है उसे भी नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता। क्योंकि इसका असर पूरे कार्यकाल तक रहेगा। मोटे तौर पर यदि बात की जाये तो पूर्व की जयराम सरकार पर अत्यधिक कर्ज लेने का आरोप लगता आ रहा है और अब 75000 करोड़ के कर्ज और 11000 करोड़ की देनेदारियों के आंकड़े भी सामने आ चुके हैं। इन आंकड़ों के साये में शायद मुख्यमंत्री को यह कहने की नौबत आयी है कि प्रदेश के हालात कभी भी श्रीलंका जैसे हो सकते हैं। मुख्यमंत्री को इस ब्यान के साथ प्रदेश की वित्तीय स्थिति पर एक श्वेत पत्र जारी करके जनता के सामने सही स्थिति रखनी चाहिये थी लेकिन ऐसा हो नहीं सका है। शायद जो अफसरशाही वित्तीय कुप्रबन्धन के लिये जिम्मेदार रही है वही आज प्रशासन के शीर्ष पर मौजूद है इसलिये उसने ऐसे प्रयास की राय नहीं दी होगी। इसलिये आज हर फैसले और उसके प्रभाव की जिम्मेदारी इस सरकार को लेनी पड़ेगी। अब तक यह सरकार 4500 करोड़ का कर्ज ले चुकी है। डीजल पर प्रति लीटर तीन रूपये वैट बढ़ाना पड़ा है। नगर निकाय क्षेत्रों में पानी के रेट बढ़ाने पड़े हैं। बिजली के दाम बढ़ाने की बात चल रही है। खाद्य तेल में दाम बढ़ चुके हैं। विधायक निधि की आखिरी किस्त जारी नहीं हो सकी है। हिमकेयर आदि स्वास्थ्य योजनाओं पर प्रभाव पड़ा है यह आरोप है भाजपा नेतृत्व के। लेकिन सरकार और कांग्रेस की ओर से इन आरोपों का कोई जवाब नही आ रहा है। यह आरोप उस समय गंभीर हो जाते हैं जब सरकार को इस तरह हर माह कर्ज लेना पड़े और उसका कोई जायज कारण भी जनता को न बताया जाये। क्योंकि इस बढ़ते कर्ज के कारण महंगाई और बेरोजगारी बढ़ती है जो सत्ता परिवर्तन के बड़े कारण रहे हैं। इस सरकार को जनता को दी हुई गारंटीयां पूरी करनी है और इसके लिये पैसा चाहिये। राज्य सरकारों के पास अपनी आय बढ़ाने के साधनों में उत्पादन बढ़ाने, कर लगाने और कर्ज लेने के ही साधन रहते हैं। हिमाचल में सरकार के अपने क्षेत्र में कुछ बिजली उत्पादन हैं। लेकिन सरकार के स्वामित्व वाली योजनाएं रखरखाव के नाम पर जितना समय बन्द रहती है उसके कारण वह लगातार घाटे में चल रही हैं। सरकारी रिपोर्टों को यदि गंभीरता से देखा जाये तो इसमें बड़े घपले के संकेत मिलते हैं। विजिलैन्स में इस आश्य की आयी शिकायत की प्रारंभिक जांच में इसकी पुष्टि भी हो चुकी है लेकिन जांच को अन्जाम तक नहीं पहुंचाया गया है। शेष योजनाओं में 12% रॉयल्टी देने को ही सरकार बड़ी उपलब्धि मानती है। जबकि इन योजनाओं के ट्रांसमिशन की जिम्मेदारी सरकार की है और इसी ट्रांसमिशन में सारा घाटा हो जाता है। एक बड़ा खेल चल रहा है जिस पर कोई सरकार ध्यान देने को समझने को तैयार नहीं है। इससे भी हटकर यदि बजट दस्तावेजों पर नजर दौड़ा ली जाये तो बड़े सवाल खड़े हो जाते हैं। वर्ष 2020-21, 2021-22 और 2022-23 के दस्तावेज पर नजर डाले तो सामने आता है कि वर्ष 2020-21 में राजस्व घाटा 96.66 करोड़ था जो 2021-22 में 1462.94 करोड़ और 2022-23 में 3903.49 करोड़ हो गया। ऐसा क्यों हुआ इस पर कोई चर्चा नहीं हुई है। जबकि 2020-21 में राजस्व प्राप्तियां 33438.27 करोड़, 2021-22 में 37027.94 करोड़ और 2022-23 में 36375.31 करोड़ रह गयी क्योंकि केन्द्रीय प्राप्तियों में ही करीब दो हजार करोड़ कम मिले हैं। तय है कि जब जयराम को ही केन्द्र से यह पैसा नहीं मिला है तो सुक्खू को कहां से मिल जायेगा। यदि कुल राजस्व प्राप्तियों और पूंजीगत प्राप्तियों का जोड़ किया जाये तो सरकार को 48300.41 करोड़ मिले हैं। इसी तरह यदि कुल राजस्व व्यय और पूंजीगत व्यय का जोड़ किया जाये तो सरकार का कुल खर्च 49364.76 करोड़ होता है। इस तरह वर्ष के अन्त में केवल 1064.35 करोड़ का घाटा रह जाता है। इस बजट दस्तावेज से यह सवाल उठना स्वभाविक है कि जब वर्ष में घाटा ही करीब एक हजार करोड़ का है तो सरकार को प्रतिमाह इतना कर्ज क्यों लेना पढ़ रहा है? इस पर मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री तथा सचिव वित्त को स्थिति स्पष्ट करनी चाहिये। बजट का यह दस्तावेज पाठकां के सामने रखा जा रहा है ताकि आप भी इसे समझ सकें और सवाल उठा सकें।

 

सरकारी भवनों के बहुमंजिला निर्माणों को मिली अनुमति से एनजीटी का फैसला फिर आया चर्चा में

  • क्या जोशी मठ त्रासदी का सरकार पर कोई असर नहीं है

शिमला/शैल। सचिव टी.सी.पी. की अध्यक्षता में बनी सुपरवाइजरी कमेटी ने कुछ सरकारी विभागों द्वारा प्रस्तावित बहुमंजिला भवन निर्माणों को अनुमति प्रदान की है। इन निर्माणों में शिमला के परिमहल में स्वस्थ्य विभाग का सात मंजिला भवन, छोटा शिमला में सूचना आयोग का दो मंजिला भवन, नगर निगम शिमला का बुक कैफे, कृष्णा नगर में नगर निगम के दो मंजिला भवन जिसकी तीसरी मंजिल पर पार्किंग होगी, विश्वविद्यालय का पांच मंजिला आवासीय भवन, आई.जी.एम.सी. का नया ओ.पी.डी. भवन और सात मंजिला पार्किंग शामिल हैं। इनके अतिरिक्त नगर निगम आयुक्त की अध्यक्षता में बनी हाउसिंग कमेटी ने भी 27 निर्माणों के नक्शे पास किये हैं। जिनमें 17 नये नक्शे शामिल हैं। यह नक्शे पास किये जाने के बाद एन.जी.टी. के नवम्बर 2017 में दिये गये फैसलों पर नये सिरे से चर्चाएं चल पड़ी हैं। स्मरणीय है कि प्रदेश के नगर निगम और नगर पालिका क्षेत्रों में भवन निर्माण के नक्शे पास करने का अधिकार इन निकायों के पास है। अन्य क्षेत्रों में जो प्लानिंग में आ चुके हैं वहां पर यह अधिकार टी.सी.पी. के पास हैं। प्रदेश का नगर और ग्रामीण नियोजन-टी.सी.पी. विभाग 1977 में सृजित हुआ था। 1980 में इसके तहत अंतरिम प्लान बनी थी। एन.जी.टी. ने 2017 के फैसले में प्रदेश सरकार द्वारा इतने लम्बे समय तक कोई स्थायी प्लान न बना पाने के लिये कड़ी निन्दा की है और यह स्थायी प्लान तुरन्त प्रभाव से तैयार करने के निर्देश दिये थे। इन निर्देशों के अनुपालन में जयराम सरकार के कार्यकाल में एक प्लान तैयार किया गया था। लेकिन यह प्लान एन.जी.टी. के निर्देशों के अनुसार न होने के कारण अदालत ने रद्द कर दिया था।
हिमाचल भूकंप जोन चार और पांच में आता है। प्रदेश के शिमला, मनाली, कुल्लू, धर्मशाला और कसौली आदि ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें उनकी भार वहन क्षमता से अधिक निर्माण हो रखे हैं। शिमला को लेकर तो सरकार के अपने अध्ययन के ही अनुसार यहां पर भूकंप के एक झटके से करीब चालीस हजार लोगों की मौत होगी और 70% से अधिक निर्माण धवस्त हो जायेंगे। 1971 में किन्नौर में आये भूकंप के कारण शिमला का रिज और लक्कड़ बाजार एरिया आज तक संभल नहीं पाया है। आपदा प्रबंधन के आंकड़ों के अनुसार पिछले करीब दो वर्षों से हर रोज प्रदेश में कहीं न कहीं भूकंप के झटके आ रहे हैं। पिछले दिनों जिस तरह से जोशीमठ के धंसने के समाचार आये हैं उसी तर्ज पर हिमाचल में भी कई क्षेत्रों को लेकर इस तरह की आशंकाएं व्यक्त की जाने लगी है। इस परिदृश्य में एनजीटी के फैसले और उसके निर्देशों की अनुपालना को लेकर चर्चाएं उठना स्वभाविक है। एन.जी.टी. ने शिमला में अढ़ाई मंजिलों से अधिक के निर्माण पर रोक लगा रखी है। सरकार द्वारा तैयार किया गया प्लान भी एनजीटी ने इसी कारण से अप्रूव नहीं किया क्योंकि उसमें अदालत के निर्देशों को नजरअंदाज किया गया था। एन.जी.टी. ने तो शिमला से कार्यालयों को बाहर ले जाने तक की सिफारिश कर रखी है। लेकिन सरकार एन.जी.टी. की सिफारिशों के प्रति कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है की फैसले बाद भी पच्चीस हजार से अधिक निर्माण शिमला में होने की चर्चाएं हैं जिनके कोई नक्शे पास नहीं है। वोट की राजनीति के चलते हर तरह के अवैधताएं हो रही हैं और सरकार आंखें बन्द करके बैठी हुई है।
एन.जी.टी. ने सचिवालय में लिफ्ट लगाने की अनुमति नहीं दी है। ओक ओवर में हुआ निर्माण भी फैसले के बाद हुआ है। यहां तक प्रदेश उच्च न्यायालय को भी पुराना भवन गिराकर नया बनाने की अनुमति नहीं मिली है। उच्च न्यायालय ने एन.जी.टी. के आदेशों को स्वीकार कर लिया है। लेकिन सरकार वोटों की राजनीति के कारण एन.जी.टी. आदेशों की अवहेलना करने का कोई अवसर नहीं छोड़ रही है। अब जिन निर्माणों की स्वीकृतियां सुपरवाइजरी कमेटी ने दी हैं क्या वह एन.जी.टी. के मानकों के अनुरूप है या नहीं इस पर चर्चा चल पड़ी है क्योंकि जोशीमठ त्रासदी के बाद आम आदमी इस दिशा में चिन्ता व्यक्त करने लग पड़ा है। क्योंकि एनजीटी का फैसला सरकार की अपनी कमेटी की रिपोर्ट पर आधारित है। यही नहीं फैसला सुनाने से पहले तरुण कपूर कमेटी की सिफारिश पर अदालत ने संबद्ध पक्षों से विस्तृत विचार-विमर्श भी किया था।अदालत ने साफ कहा है  It also needs to be noticed here that the entire area of Himachal Pradesh particularly the area forming part of the Himalayan including Shimla Dharamshala and Manali fall in seismic zone of IV and V respectively. These are eco-sensitive and ecologically fragile areas with limited resources. They ought not to be subjected to indiscriminate and unsustainable development and should be protected by adopting precautionary principle. The large branch of this Tribunal had the occasion to examine at some length, the consequences of indiscriminate and unsustainable development in  Shimla in the case of Yogendra Mohan Sengupta Vs Union of India & ors Original Application No. 121 of 2014 decided on 16th November 2017. Before this judgement was pronounced the Tribunal had appointed a high powered committee of specialized experts from different fields of environment and ecology and that committee had  submitted a  detailed report dated  24th May, 2017. The committee commented adversely upon indiscriminate unauthorized constructions all over Shimla including the core area and also declared that carrying capacity of Shimla would not permit further  constructions particularly which are unauthorized multi-storied and do not adhere to the prescribed norms. The committee also referred to shortage of drinking water and capacity to deal with the municipal solid waste and sewage etc. The recommendations of the committee were accepted by the Tribunal and even the meeting of all stakeholders were held before the judgement was pronounced.

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