Sunday, 21 December 2025
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राजीव बिन्दल का सरकार पर हमला समान नागरिक संहिता पर स्टैण्ड स्पष्ट करें मुख्यमन्त्री

  • विक्रमादित्य समर्थन कर रहे हैं तो चन्द्र कुमार विरोध

शिमला/शैल। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. राजीव बिन्दल ने कहा कि कांग्रेस की सरकार जो सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व में चल रही है, इस सरकार में मुख्यमंत्री के अलग दावे हैं और मंत्रियों के अलग दावे हैं। मुख्यमंत्री कहते है कि हम 97 प्रतिशत हिन्दू आबादी वाले प्रदेश में हिन्दुवादी भाजपा को हराकर सत्ता में आये हैं। इसके जवाब में लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य कहते है कि मेरे से बड़ा कोई हिन्दू नहीं है परन्तु मुख्यमंत्री अपने ब्यान पर कायम है।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि आज देशभर में समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए बहस छिड़ी हुई है। इस बहस में लोक निर्माण मंत्री कहते हैं कि समान नागरिक संहिता लागू होनी चाहिये और आज कांग्रेस पार्टी के वयोवृद्ध नेता चौधरी चन्द्र कुमार ने ब्यान दिया है कि समान नागरिक संहिता कानून की कोई जरूरत नहीं है। उन्होनें यहां तक कह दिया कि विक्रमादित्य जो कह रहे हैं वो न तो सरकार का मत है और न ही कांग्रेस पार्टी का मत है।
डॉ. राजीव बिन्दल ने मुख्यमंत्री से सवाल पूछते हुये कहा कि वह स्पष्ट करें कि वो समान नागरिक संहिता के पक्ष में है या विरोध में। उन्होनें यह भी कहा कि वोटों के लालच में कांग्रेस पार्टी समान नागरिक संहिता का विरोध कर रही है और एक-दो लोगों को इस काम पर लगाया हुआ है कि वे विषय को विषयांतर करते रहे। अतः हिमाचल की जनता के सामने यह स्पष्ट रूप से आना चाहिये कि समान नागरिक संहिता कानून के बारे में सरकार का अधिकारिक मत क्या है और कांग्रेस का अधिकारिक मत क्या है।

कांग्रेस की गारंटीयों पर सुक्खू सरकार की परफॉरमैन्स से हाईकमान चिंन्ता में

  • सुक्खू सरकार की परफॉरमैन्स का चुनावी राज्यों पर असर पड़ना तय
  • शिमला में प्रस्तावित विपक्ष की बैठक में यह परफॉरमैन्स स्वतः ही सामने आ जायेगी
  • गारंटीयां तो दूर सत्ता परिवर्तन का एहसास नहीं तक नहीं करवा पायी है सरकार
  • भाजपा काल का प्रशासन ही हावी है शीर्ष से लेकर फील्ड तक

शिमला/शैल। जब से कांग्रेस हाईकमान द्वारा करवाये गये सर्वे में यह सामने आया है कि हिमाचल में कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में एक भी सीट मिलने नहीं जा रही है और वरिष्ठ नेता ठाकुर कौल सिंह को हाईकमान ने दिल्ली बुलाया है तब से प्रदेश की राजनीति में हलचल बढ़ गयी है। यह चर्चा में आया है कि प्रदेश के हालात पर कॉल सिंह ने एक रिपोर्ट हाईकमान को सौंपी है जिसमें तेईस विधायकों और चार मंत्रियों के हस्ताक्षर हैं। यह चर्चा सामने आने के बाद मुख्यमंत्री भी दिल्ली गये। दिल्ली में मुख्यमंत्री की पहले दिन प्रदेश प्रभारी राजीव शुक्ला फिर राहुल गांधी तथा देर शाम के.सी. वेणुगोपाल से मुलाकात हुई। दूसरे दिन फिर राजीव शुक्ला से दो दौर की बैठक हुई। अगले दिन प्रियंका गांधी से मुलाकात हुई। इसी दौरान प्रदेश के मुख्य सचिव भी दिल्ली पहुंचे। शायद वह चिदम्बरम वाले आईएनएक्स मीडिया मामले में दिल्ली गये थे क्योंकि इसमें वह भी सह अभियुक्त हैं और माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव से पहले यह मामला निर्णायक बिंन्दु पर पहुंच जायेगा। इस समय सीबीआई कोर्ट में विचाराधीन चल रहा है।
मुख्यमंत्री की दिल्ली यात्रा के बाद मंत्रिमंडल में विस्तार और विभिन्न निगमों/बोर्डों में संभावित ताज पोशीयों को लेकर चर्चाएं गर्म हो गयी हैं। लेकिन इसी दौरान छः बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे स्व. वीरभद्र सिंह के जन्मदिन के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री और कुछ अन्य मंत्री शिमला में मौजूद होने के बावजूद नहीं आये उससे न चाहते हुये भी प्रदेश की जनता में यह संदेश चला गया कि सरकार और संगठन में सब अच्छा नहीं चल रहा है। स्व. वीरभद्र सिंह का प्रदेश की राजनीति और प्रदेश की जनता के दिलों में जो स्थान है उसे काम के सहारे भी विस्थापित करने में लम्बा समय लगेगा। इसलिये सार्वजनिक आचरण में जरा सा भी है संकेत जाना कि उनकी अहमियत कम करने का प्रयास किया जा रहा है राजनीतिक रूप से आत्मघाती होगा। अभी तो अगले विधानसभा चुनाव में भी वीरभद्र सिंह प्रसांगिक रहेंगे। लेकिन इस मौके पर जो सियासत की गयी है उससे सरकार की प्रतिष्ठा पर प्रश्नचिन्ह लगे हैं। यह सब कुछ रिपोर्ट हुआ है और दिल्ली तक पहुंचा है।
दूसरी ओर वित्तीय संकट चलते कर्मचारियों को समय पर वेतन का भुगतान तक नहीं हो पा रहा है। हजारों कर्मचारी हर महीने प्रभावित हो रहे हैं और यह संख्या लगातार बढ़ती जायेगी यह शीर्ष प्रशासन ने भी मानना शुरू कर दिया है। इसी संकट के चलते सरकार गारंटीयां लागू नहीं कर पा रही है। ओ.पी. एस. बहाली से बड़ा मुद्दा 2021 में हुये वेतन मान संशोधन के फलस्वरूप 2016 से 2021 तक सेवानिवृत्त हुये कर्मचारियों को इस संशोधन के अनुसार एरियर का भुगतान न होना बनता जा रहा है। क्योंकि ओ.पी.एस. का असर सरकार के इस कार्यकाल में नहीं के बराबर पड़ना है। आरोप है कि सरकार के पास कर्मचारियों का 2000 करोड़ जमा है जिस पर सरकार चार सौ करोड़ से ज्यादा ब्याज कमा चुकी है। वित्तीय स्थिति के कारण यदि कर्मचारियों को भुगतान तक नहीं हो पा रहा है तो उस स्थिति में बड़ी-बड़ी योजनाओं की घोषणा किस आधार पर की जा रही है? क्या कर्ज लेकर बड़े ठेकेदारों को ही भुगतान किये जा रहे हैं यह सवाल उठने शुरू हो गये हैं। दिल्ली तक यह जानकारीयां भी पहुंच चुकी है। लेकिन मुख्यमंत्री इस सबको भ्रामक प्रचार कहकर जो
नकायने का प्रयास कर रहे हैं उससे स्थिति और भी हास्य पद होती जा रही है।
भ्रष्टाचार के किसी भी मामले पर कारवाई न करना सरकार की नीति बन गयी है। बल्कि भ्रष्टाचार के खिलाफ बात करने वालों की आवाज दबाने का प्रयास किया जा रहा है। इस परिदृश्य में यह स्पष्ट है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को कोई सफलता मिलने वाली नहीं है। आने वाले दिनों में यह और भी रोचक हो जायेगा कि जिन चार प्रदेशों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं वहां पर भी जब हिमाचल की तर्ज पर कांग्रेस गारंटीयां घोषित करेगी तो वहां पर विपक्ष हिमाचल की सुक्खू सरकार की परफॉर्मेंस का लेखा-जोखा जनता के सामने रखकर कांग्रेस को परेशानी में डाल देगा। अभी जुलाई में विपक्ष की शिमला में बैठक होने जा रही है उस बैठक में शामिल होने वाले नेताओं को जब अपने स्तर पर ही प्रदेश सरकार की परफॉर्मेंस कि यह व्यवहारिक जानकारी मिल जायेगी कि यह सरकार गारंटीयां लागू करना तो दूर बल्कि समय पर वेतन का भुगतान भी नहीं कर पा रही है तब हाईकमान के लिये यह एक बहुत ही असहज स्थिति बन जायेगी। क्योंकि व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर जिस तरह यह सरकार अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों को ही सत्ता परिवर्तन का एहसास नहीं करवा पायी है उससे ज्यादा हास्यपद और कुछ नहीं हो सकता। भाजपा काल के प्रशासन को ही यह सरकार शीर्ष पर क्यों बैठाये हुए हैं इस सवाल का जवाब खोजने में शायद अब हाईकमान भी लग गयी है क्योंकि हिमाचल का प्रभाव दूसरे राज्यों पर भी पड़ेगा हाईकमान इससे चिन्तित है।

हिमाचल में कांग्रेस को लोस की एक सीट नहीं पार्टी के सर्वे में खुलासा

  • हाईकमान हुआ चिन्तित-सुक्खू सरकार हर मोर्चे पर असफल
  • कौल सिंह को बुलाया दिल्ली
  • सुक्खू भी अपना पक्ष रखने को तलब
  • व्यवस्था परिवर्तन का सूत्र पड़ा भारी

शिमला/शैल। आज यदि लोकसभा के चुनाव हो जायें तो कांग्रेस को इस समय एक सौ दस सीटों पर जीत हासिल हो रही है यह आकलन सामने आया है पार्टी के अपने सर्वे में। लेकिन इन 110 सीटां में हिमाचल का योगदान शून्य है। अभी हिमाचल में सुक्खू सरकार को सत्ता में आये छः माह का ही समय हुआ है। जो सरकार इतने अल्पकाल में ही इतनी अलोकप्रिय हो जाये कि उसे सर्वे में एक भी सीट न मिल रही हो तो यह किसी भी हाईकमान के लिये गंभीर चिन्ता का विषय होना स्वभाविक है। सर्वे के इस खुलासे का कड़ा संज्ञान लेते हुये हाईकमान ने वरिष्ठ नेता पूर्व मंत्री ठाकुर कौल सिंह को दिल्ली बुलाया है। कौल सिंह की सोनिया गांधी से भी प्रदेश के हालात पर मंत्रणा होगी यह भी माना जा रहा है। अब तक मुख्यमंत्री राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के जिस कवच के सहारे प्रदेश में व्यवस्था परिवर्तन करने जा रहे थे पहली बार इस सर्वे ने उस सब कुछ पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। क्योंकि जो सरकार अभी इस स्थिति पर पहुंच गयी है वह लोकसभा चुनाव तक अपने को बचाये भी रखे या नहीं यह सवाल भी खड़ा हो गया।
कांग्रेस प्रदेश की जनता को दस गारंटीया देकर सत्ता में आयी थी और यह भरोसा दिया था कि मंत्री परिषद की पहली बैठक में इन्हें लागू कर दिया जायेगा। सुक्खू राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के समर्थन से मुख्यमंत्री बने थे। आज जो गारंटीयां दी गयी थी उनके इस कार्यकाल में लागू हो पाने की संभावना दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रही है क्योंकि सरकार ऐसे वित्तीय संकट से घिर गयी है कि सारे कर्मचारियों को समय पर वेतन तक का भुगतान नहीं कर पा रही है। वित्तीय वर्ष के तीसरे ही माह ओवरड्राफ्ट लेना पड़ गया है। आने वाले दिनों में यह संकट और बढ़ेगा यह तय है। सुक्खू सरकार का वित्तीय संकट दिल्ली तक प्रचारित हो चुका है और उसी का संज्ञान हाईकमान ने लिया है। सरकार ने इस संकट का खुलासा तो मंत्रिमण्डल की बैठक के बाद सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग द्वारा जारी प्रैस नोट में ही दर्ज है। ऐसे में मुख्यमंत्री का यह कहना कि संकट को लेकर भ्रामक प्रचार किया जा रहा है अपने में आंखें बन्द करके सच्चाई न देखने का प्रयास बन जाता है।
यह सरकार छः माह में ही है इस मुकाम पर क्यों पहुंच गयी यदि इसका आकलन किया जाये तो सरकार का पहला फैसला था पिछली सरकार द्वारा अन्तिम छः माह में लिये गये फैसलों को बदलना। इसमें करीब नौ सौ संस्थानों को पहले दिन ही बन्द कर दिया गया और आरोप लगा कि बिना उचित विचार विमर्श के यह कारवाई राजनीतिक बदले के लिए हुई। पूरे प्रदेश में विधानसभा सदन तक यह मुद्दा बनने के साथ ही उच्च न्यायालय में भी पहुंच गया। पिछली सरकार के कर्ज और देनदारियों के आंकड़े जारी करने के साथ ही उस काल के वित्त सचिव को मुख्य सचिव बना दिया और वित्तीय स्थिति पर श्वेत पत्र आज तक नहीं आ पाया। अब तो उसकी प्रसंगिकता ही खत्म हो चुकी है। प्रशासन में कोई प्रभावी फेरबदल न करके कांग्रेस कार्यकर्ताओं तक को यह नही लग पाया कि सरकार बदल चुकी है। करीब एक दर्जन आईपीएस और आईएएस अधिकारी बिना पोसि्ंटग के चल रहे हैं। मंत्रिमण्डल में सभी जिलों को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया है। जिला शिमला से मंत्रिमण्डल में तीन मन्त्री और आधा दर्जन गैर विधायकों की सरकार में ताजपोशीयां सबके लिये हैरत बना हुआ है। एचआरटीसी के कर्मचारियों और पैन्शनरों को समय पर वेतन और पैन्शन नहीं मिल रही है। लेकिन उसी एचआरटीसी के लिये एक करोड़ बीस लाख प्रति बस के हिसाब से इलेक्ट्रिक बसें खरीदी जा रही हैं। अन्य विभागों में भी यही चलन है। इससे सरकार की प्राथमिकताओं पर सवाल खड़े हो रहे हैं। लोक निर्माण विभाग में ठेकेदारों का करोड़ों का भुगतान रुका है। इस समय केवल पी एम जी एस वाई में चल रहे कामों का ही भुगतान हो रहा है अन्य भुगतान बन्द हैं।
सरकार में ऐसी दर्जनों विसगतियां भरी पड़ी है जिनसे यह संकेत उभरते हैं कि सरकार एक राजनीतिक प्रशासक की बजाये एक ठेकेदारी वाली मानसिकता पर काम कर रही है। इसी कारण से भ्रष्टाचार के एक भी मामले पर कारवाई नहीं हो रही है। शांग-टांग परियोजना मामला इसका बड़ा उदाहरण बन चुका है। वितीय संकट के साथ ही राजनीतिक संकट और गहराता जा रहा है। क्योंकि मुख्य संसदीय सचिवों के मामले में लोकसभा चुनावों से पूर्व फैसला आना ही है। यह फैसला इनके खिलाफ जायेगा यह असम के सुंर्द्धभ में जुलाई 2017 में आये सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से इंगित हो जाता है। उस समय सारे राजनीतिक समीकरण एकदम गड़बड़ा जायेंगे और सरकार का अस्तित्व भी संकट में आ जायेगा। इसलिये लोकसभा को लेकर आये पार्टी के अपने सर्वे ने ही कांग्रेस हाई कमान को हिमाचल के हालात पर सोचने के लिये विवश कर दिया है।

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