शिमला/शैल। पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर के गृह जिला मुख्यालय मण्डी में निर्माणाधीन चल रही शिवधाम परियोजना का काम दिसम्बर में सत्ता परिवर्तन होने के बाद बन्द हो गया है। काम कर रहा ठेकेदार काम छोड़कर चला गया है। ऐसा कहा जा रहा है कि काम बन्द होने का कारण इस परियोजना के लिये कोई बजट प्रावधान ही न होना कहा जा रहा है। बजट प्रावधान न होने की बात मुख्य मुख्यमंत्री सुखविन्दर सिंह सुक्खू ने शिवरात्रि के उपलक्ष में आयोजित एक आयोजन में सार्वजनिक मंच सेे कही है। मुख्यमंत्री के इस एक आक्षेप का जवाब देते हुए इस शिवरात्रि के आयोजन के सार्वजनिक मंच से जयराम ठाकुर ने सुक्खू को राय दी है कि उन्हें सोच समझकर बोलना चाहिये और साथ ही यह कहा है कि शिवधाम के लिये 50 करोड़ का बजट रखा गया था। ऐसे में यह रोचक स्थिति बन गयी है कि कौन सही बोल रहा है और कौन गलत। स्वभाविक है कि दोनों ही के पास प्रशासन से आयी जानकारी रही होगी। जयराम से अभी दिसम्बर में ही सता हाथ से निकली है। जो अधिकारी उस समय तक बतौर अतिरिक्त मुख्य सचिव वित्त काम कर रहा था वही अधिकारी आज सुक्खू सुशासन में चौथे स्थान से पहले स्थान मुख्य सचिव पर विराजमान है। दो शीर्ष नेताओं में बजट प्रावधान को लेकर वाक्युद्ध शुरू हो गया है और शीर्ष प्रशासन मौन रह कर तमाशा देख रहा है। जबकि बजट प्रावधान होने या ना होने का आरोप शीर्ष प्रशासन पर भी एक बड़ा आरोप हो जाता है। बजट प्रावधान होने न होने से हटकर भी एक बड़ा सच यह है कि परियोजना के लिये जो पहला टैण्डर जारी हुआ था उसकी टैण्डर वैल्यू 40 करोड़ थी और उस पर ई.एम.डी. 20,000 मांगी गयी है जो न्यूनतम 80 लाख बनती थी। यह टैन्डर केवल सलाहकार की नियुक्ति के लिये जारी किया गया था। ऐसे में टैण्डर दस्तावेज के मुताबिक इसमें भ्रष्टाचार हुआ है। जब यह मामला शैल में प्रकाशित हुआ था तब उसमें पर्यटन की ओर से जो जवाब जारी किया गया था उसने स्वीकार किया गया है कि इस टैण्डर की प्रक्रिया 10-12-2019 से 16-5- 2020 तक पूरी कर ली गयी थी। सलाहकार की नियुक्ति के लिये केई संशोधन जारी तक नही किया गया था। इसमें संशोधन 12-11- 2020 को पहली बार प्रक्रिया पूरी होने के बाद किया गया था। यह पत्र भी पाठकों के सामने रखा जा रहा है। विजिलैन्स ने इन्ही दस्तावेजों का संज्ञान लेकर पर्यटन निगम को कारवाई के लिये पत्र लिखा था जिस पर आज तक कुछ नही हुआ है। निश्चित है कि यदि सुक्खू सरकार ईमानदारी से इस मामले की जांच करवाती है तो बजट प्रावधान का सच भी सामने आ जायेगा क्योंकि परियोजनाओं पर खर्च तो करोड़ों का हुआ और खर्च तब हुआ है जब कहीं से पैसे का प्रबन्ध किया होगा। पैसे के प्रबन्ध के लिये यह आशंका व्यक्त की जा रही है कि हैरिटेज पर्यटन के लिये जो एशियन विकास बैंक से 256.99 करोड का ऋण लिया गया था उसके कुछ पैसे को इस काम में लगाया होगा। इसमें हैरिटेज पर्यटन के नाम पर मण्डी के ऐतिहासिक भवन का सर्वेक्षण भी शामिल है। शिमला में इसी में से 17.50 करोड़ चर्चो की रिपेयर के लिए रखा गया था। 10-09- 2014 को चर्च कमेटी के साथ कॉन्टरैक्ट भी साइन हो गया था। लेकिन व्यवहार में इन चर्चोर्ं की रिपेयर के नाम पर एक पैसा भी सर्व नही हुआ। चर्चा है कि रिपेयर के लिये रखा पैसा ए.डी.बी. की अनुमति के बिना ही कहीं और खर्च कर दिया गया है। इस हैरिटेज पर्यटन के माध्यम से बिलासपुर में मार्कंडेण्य, श्री नैना देवी, ऊना मे चिंन्तपूणी, हरोली, कांगड़ा मे पौंग डैम, रनसेर कारु टापू, नगरोटा सूरियां, धनेटा, ब्रजेश्वरी, चामुण्डा, जवालामुखी, धर्मशाला, मकलोडगंज, मसरूर, नगरोटा बगवां, कुल्लू-मनाली के आर्ट एण्ड क्राफ्ट केन्द्र, बड़ाग्रां चम्बा में हैरिटेज सर्किट, मण्डी के ऐतिहासिक भवन शिमला में नादालदेहरा, का ईको पार्क, रामपुर बुशैहर तथा आस पास के मन्दिर आदि शामिल थे। पर्यटन हैरिटेज के लिये एक निदेशक और आठ सलाहकार नियुक्त किये गये थे। उन्हें एक वर्ष में 4,29,21,353 रूपये दिये गये हैं। लेकिन इन चिन्हित साईटस में से किस पर कितना खर्च हुआ है यह आज तक सामने नहीं आया है। यह कार्य 2017 तक पूरे होने थे। लेकिन कितने हुए कितने रहे यह भी सामने नहीं आया है। ए.डी.बी. ने कुछ नियुक्तियों पर अप्रसन्नता भी जाहिर की थी। माना जाता है कि ए.डी.बी.का यह पैसा डाईवर्ट हुआ है जो अलग से जांच का विषय बनता है। आज जयराम के जवाब के बाद मुख्यमंत्री के लिये यह अनिवार्य हो जाता है कि वह शिवधाम परियोजना पर एक विस्तृत जांच आदेशित करें और यह सामने लाये की सही में इस योजना के लिये अपना कोई बजट प्रावधान नहीं था और न ही यह हैरिटेज पर्यटन का कोई हिस्सा था।