Friday, 19 September 2025
Blue Red Green
Home देश

ShareThis for Joomla!

क्या कर्नाटक का परिणाम हिमाचल को भी प्रभावित करेगा

  • सत्ती और अन्य भाजपा विधायकों की याचिका से उठा सवाल
  • क्या भाजपा विधायकों की याचिका दिल्ली के अनुमोदन के बिना आ सकती है
  • क्या चर्चा कैबिनेट रैंक में हुई नियुक्तियों तक जा पहुंचेगी

शिमला/शैल। क्या कर्नाटक में भाजपा की हार का कोई असर हिमाचल पर भी पड़ेगा? यह सवाल इसलिये प्रसांगिक है क्योंकि कर्नाटक की हार के लिये प्रधानमंत्री को जिम्मेदार ठहराने की बजाये पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के नाम यह हार लगाने की कवायद चल पड़ी है। नड्डा हिमाचल से ताल्लुक रखते हैं। पिछले पांच वर्षों में जब प्रदेश में जयराम के नेतृत्व में भाजपा की सरकार थी तब इस सरकार पर उठने वाले हर सवाल को नड्डा ने टाल दिया। नेतृत्व से लेकर मंत्रिमंडल में फेरबदल करने तक के हर सवाल को नड्डा की हां नहीं मिली। भले ही पार्टी प्रदेश में हार गयी। लेकिन अब कर्नाटक की हार का ठीकरा नड्डा के सिर फोड़ने के प्रयासों का जवाब देने के लिये नड्डा ने एक नयी रणनीति अपनाने का खेल रच दिया है। इस खेल में कानून के सहारे हिमाचल की सुक्खू सरकार को अस्थिर करने की योजना है। क्योंकि कर्नाटक की हार के बाद मोदी और उनकी भाजपा हाथ पर हाथ रखकर नही बैठ जायेगी। उसकी राजनीतिक प्राथमिकता होगी कांग्रेस की किसी भी चयनित सरकार को येन केन प्रकारेण अस्थिर करना। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में यह प्रयास सफल नहीं हो पाये हैं। फिर इन राज्यों में आगे चुनाव होने हैं। ऐसे में ऐसी योजना को पूरे सुरक्षित तरीके से अंजाम देने के लिये नड्डा के गृह राज्य हिमाचल से बेहतर और कोई स्थान हो नहीं सकता।
विश्लेषकों के मुताबिक यह व्यूह रचना प्रदेश में सुक्खू सरकार के गठन के साथ ही शुरू हो गयी थी। इसके पहले चरण में भाजपा के विश्वस्त रहे शीर्ष प्रशासन को सुक्खू सरकार में व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर स्थापित किया गया। वित्तीय स्थिति पर सदन में श्वेत पत्र तक नहीं आ पाया। मीडिया में भी स्थिति विवादित बना दी गयी। ताकि मुख्यमंत्री तक सही राय ही न पहुंच पाये। जिस कर्ज प्रवृत्ति को कोसा जा रहा सरकार को उसी पर आश्रित करवा दिया गया। संगठन के लोगों को सरकार में जिम्मेदारियां दी जाये प्रदेश अध्यक्ष को ऐसी मांग सार्वजनिक तौर पर रखने की नौबत आ गयी। यह सारा खेल पूरे योजनाबद्ध तरीके से खेला गया। इस खेल की अगली कड़ी में मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियों को प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती की याचिकाएं आ गयी। अंतिम कड़ी में भाजपा के पूर्व अध्यक्ष विधायक सतपाल सत्ती और अन्य भाजपा विधायकों ने उपमुख्यमंत्री पदनाम को भी प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दे दी।
विश्लेषकों की राय में यह अहम सवाल है कि भाजपा विधायकों के नाम से उच्च न्यायालय में याचिका आने से स्पष्ट हो जाता है कि भाजपा ने पार्टी स्तर पर किसी ठोस मकसद से ही यह कदम उठाया होगा। इसके लिये केंद्रीय नेतृत्व से भी हरी झंडी ली गयी होगी। क्योंकि भाजपा शासित उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में भी उपमुख्यमंत्री हैं। संविधान में उपमुख्यमंत्री का कोई पदनाम न होने का जो प्रभाव हिमाचल में पड़ेगा वही उत्तर प्रदेश तथा महाराष्ट्र में होगा। जैसे हिमाचल में इस पदनाम को चुनौती दी गयी है उसी तर्ज पर हिमाचल का फैसला आने पर इन राज्यों में भी होगा। इसलिये यह माना जा रहा है कि भाजपा हिमाचल में इन याचिकाओं का फैसला शीघ्र करवाने के पूरे प्रयास करेगा। संविधान की जानकारी रखने वालों के मुताबिक यह फैसले उपमुख्यमंत्री और मुख्य संसदीय सचिवों के पक्ष में नहीं आयेंगे। उस स्थिति में मंत्रिमंडल के पुनर्गठन की स्थिति आ जायेगी। क्योंकि अभी ही मंत्री परिषद में तीन पद खाली चल रहे हैं। बल्कि यहां तक चर्चा है कि जिन गैर विधायकों को कैबिनेट दर्जा देकर नवाजा गया है उनको लेकर भी उच्च न्यायालय में याचिका आ सकती है। क्योंकि कैबिनेट दर्जा तो मंत्री को ही होता है और प्रदेश में यह दर्जा बारह से अधिक लोगों को शायद हो नहीं सकता है। ऐसा होने पर प्रदेश की राजनीति के सारे समीकरण बदल जायेंगे और शायद भाजपा की मंशा भी यही है। माना जा रहा है कि इन याचिकाओं के फैसले जल्द आ जायेंगे। यह फैसले आने पर स्वभाविक रूप से नये समीकरण बनेंगे। कई लोगों के स्वभिमान को ठेस पहुंचेगी। ऐसी स्थिति पर सरकार की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठेंगे। ऐसी स्थिति का लाभ उठाने का प्रयास भाजपा करेगी।

सरकार गिरने के दावे करने वाली भाजपा की हार क्यों हुई

  • क्या कहीं मित्रता आड़े आ रही थी

शिमला/शैल। नगर निगम चुनावों में भाजपा को नौ सीटों पर जीत हासिल हुई है। विधानसभा चुनाव हारने के बाद यह निगम चुनाव भाजपा के लिये पहला चुनावी अवसर था जहां वह अपनी हार को जीत में बदलकर अपनी गुटबाजी पर उठते सवालों को विराम दे सकती थी। लेकिन ऐसा हो नहीं सका और इस हार ने भाजपा नेतृत्व पर कुछ नये सवाल अवश्य उठा उछाल दिये है। यह सवाल मुख्यमंत्री की भाजपा के साथ दोस्ती की टिप्पणी के बाद और भी गंभीर हो जाते हैं। वैसे तो किसी भी विपक्ष के लिये पांच माह पहले बनी सरकार के खिलाफ मुद्दे तलाशना और उस पर जनता को आकर्षित कर पाना कठिन होता है। लेकिन संयोगवश सुक्खू सरकार के गठन के दूसरे दिन बाद ही जयराम सरकार के अंतिम छः माह के फैसले बदलने से विपक्ष को एक ऐसा मुद्दा मिल गया जिसे भाजपा ने मंत्रिमंडल विस्तार तक न केवल हर चुनाव क्षेत्र तक पहुंचा दिया बल्कि उच्च न्यायालय में भी पहुंचा दिया। पूरे बजट सत्र में इस मुद्दे पर सरकार को घेर रखा। सदन में जब तक सरकार ने यह नहीं कह दिया कि जहां आवश्यक होगा वहां संस्थान खोल दिये जायेंगे तब तक मुद्दे को नहीं छोड़ा।
बजट सत्र तक जो आक्रामकता भाजपा ने सुक्खू सरकार के खिलाफ अपना रखी थी वह निगम चुनाव में उस अनुपात में गायब थी। सरकार पर चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के आरोपों को भी चुनाव आयोग तक पूरी गंभीरता से नहीं पहुंचा पायी। भाजपा हाईकमान ने इन चुनावों के लिये प्रभारी भी उत्तर प्रदेश से लगाया। चुनाव के दौरान ही प्रदेश अध्यक्ष और संगठन महामंत्री को बदला। लेकिन इसी बीच जब पहले पूर्व विधानसभा अध्यक्ष विपिन परमार और फिर नेता प्रतिपक्ष पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने सरकार गिरने की भविष्यवाणियां कर डाली तो एकदम स्थितियां बदल गयी। क्योंकि निगम चुनावों के बाद ऐसा क्या घटेगा जिसके परिणाम स्वरूप सरकार गिर जायेगी इसका कोई खुलासा नहीं किया गया। इससे अनचाहे ही यह आशंका उभर गयी की भाजपा प्रदेश में ऑपरेशन लोटस की तैयारी कर रही है। ऐसे में पांच माह पहले बनी सरकार को गिराने का ताना-बाना बुनने वाले किसी भी विपक्ष को जनता अपना समर्थन क्यों देगी।
सरकार के जिन फैसलों पर बजट सत्र और उससे पहले भाजपा आक्रामक थी उन मुद्दों पर निगम चुनाव में एकदम चुप्पी साधना कहीं न कहीं भाजपा के रणनीतिकारों की मंशा पर सवाल खड़े करता है। जबकि संस्थान बन्द करने की चपेट में तो नगर निगम में पडने वाले तीनों विधानसभा क्षेत्र भी आते हैं। यही नहीं निगम में हुई वार्ड बन्दी के खिलाफ मामला उच्च न्यायालय में जा पहुंचा था। वरिष्ठ अधिवक्ता और भाजपा नेता सतपाल जैन ने इस मामले की पैरवी की थी। इसमें फैसला भी रिजर्व हो गया था। लेकिन जिस कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश की पीठ में या मामला था और रिजर्व कर दिया गया था उसे उनकी सेवानिवृत्ति तक ओपन करवाने का प्रयास तक नहीं किया गया। अब इस मामले की कोई प्रसंगिकता ही नहीं रह गयी है। क्योंकि चुनाव होकर उसके परिणाम भी सामने आ चुके हैं ऐसे में और भी कई प्रकरण हैं जो भाजपा नेतृत्व की मंशा पर ही सवाल खड़े करते हैं।

उप-मुख्यमंत्री के पदनाम को भी मिली उच्च न्यायालय में चुनौती

  • उप-मुख्यमंत्री और मुख्य संसदीय सचिवों को नोटिस जारी
  • सभी याचिकाओं पर होगी एक साथ सुनवाई
  • उप-मुख्यमंत्री पदनाम को भाजपा विधायक सतपाल सत्ती ने दी चुनौती
  • इन्हीं याचिकाओं के दम पर भाजपा नेता कर रहे सरकार गिरने की भविष्यवाणियां

शिमला/शैल। सुक्खू सरकार के छः मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियों को असंवैधानिक करार देकर उन्हें हटाये जाने की गुहार लगाते हुये तीन याचिकाएं प्रदेश उच्च न्यायालय में विचाराधीन चल रही हैं। अब इन्हीं के साथ एक और याचिका भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और विधायक सतपाल सिंह सत्ती की भी उच्च न्यायालय में दायर हुई है। इस याचिका में मुख्य संसदीय सचिवों के साथ उपमुख्यमत्री मुकेश अग्निहोत्री का मामला भी उठाया गया है याचिका में कहा गया है कि मुकेश अग्निहोत्री की शपथ एक मंत्री के रूप में हुई है। लेकिन बाद में सरकार ने उन्हें उपमुख्यमंत्री घोषित कर दिया जो कि असंवैधानिक है इस याचिका पर मुकेश अग्निहोत्री और सभी मुख्य संसदीय सचिवों को नोटिस जारी कर दिये गये हैं और मामले की अगली सुनवाई 19 मई को रखी गई है। वरिष्ठ अधिवक्ता और भाजपा नेता सतपाल जैन मामले की पैरवी कर रहे हैं। स्मरणीय है कि स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के कार्यकाल में भी एक बार मुख्य संसदीय सचिव और सचिव नियुक्त किये गये थे। तब इन नियुक्तियों को सिटीजन फोरम के देशबंधु सूद ने चुनौती दी थी और उच्च न्यायालय ने इन नियुक्तियों को असंवैधानिक करार देकर इन लोगों को तुरंत प्रभाव से हटा दिया था। इस हटाये जाने के खिलाफ तब सरकार सुप्रीम कोर्ट में चली गई थी। उसके बाद राज्य सरकार ने नए सिरे से इस आश्य का एक्ट बना लिया था। लेकिन नये एक्ट के बाद ऐसी नियुक्तियां करने से पहले ही एक्ट को भी प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दे दी गई जो अब तक लंबित है। लेकिन इस चुनौती के बाद आने वाली सरकार ने ऐसी नियुक्तियों ही नहीं की। उधर सर्वोच्च न्यायालय में असम में भी ऐसी ही नियुक्तियां होने का मामला आ गया। असम के मामले के साथ ही हिमाचल की एसएलपी भी टैग हो गई। इस पर जुलाई 2017 में सर्वोच्च न्यायालय में इन नियुक्तियों को असंवैधानिक और गैरकानूनी ठहराते हुए यह कहा है कि राज्य की विधायिका को ऐसा कानून बनाने का अधिकार ही नहीं है। जुलाई 2017 का सुप्रीम कोर्ट का फैसला हम पाठकों के सामने पहले ही रख चुके हैं
जुलाई 2017 के फैसले के बाद दिसम्बर में भाजपा की सरकार बन गई और जयराम सरकार ने यह नियुक्तियां नहीं की। लेकिन अब सुक्खू सरकार में उप-मुख्यमंत्री भी नियुक्त करना पड़ा। यही नहीं मंत्रिमंडल के विस्तार से पहले मुख्य संसदीय सचिव बनाने पड़े। मंत्रिमंडल में मंत्रियों के तीन पद खाली चल रहे हैं। विधानसभा में डिप्टी स्पीकर का पद खाली चल रहा है। संविधान का ज्ञान रखने वाले जानते हैं कि संविधान में उप-मुख्यमंत्री नाम से कोई पद नहीं है। भले ही किसी की शपथ उप-मुख्यमंत्री के तौर पर ही क्यों न हुई हो। जब भी ऐसी नियुक्ति को चुनौती दी जाएगी तो वह कानून मानकों पर ठहर नहीं पाएगी। इस समय हिमाचल के उप-मुख्यमंत्री और मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियों को प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा चुकी है। कानून के जानकारों के मुताबिक इस पर जब भी उच्च न्यायालय का फैसला आयेगा वह इन नियुक्तियों के पक्ष में नहीं होगा। अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले यह फैसला आज ही जायेगा माना जा रहा है। माना जा रहा है कि यह फैसला आने के बाद प्रदेश की राजनीति में बहुत बड़ा फेरबदल देखने को मिलेगा। भाजपा इस मामले में प्रत्यक्ष रूप से पार्टी बन चुकी है यह स्पष्ट हो चुका है। संभवतः इसी आधार पर भाजपा नेता प्रदेश सरकार के गिराने की भविष्यवाणियां कर रहे हैं।

More Articles...

  1. वाटर सैस लगाकर संसाधन जुटाने पर लगा प्रश्नचिन्ह
  2. डॉ. राजीव बिन्दल के पुनः प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनने के राजनीतिक मायने
  3. ‘‘देश के गद्दारों को गोली मारो’’ प्रकरण पर सुप्रीम कोर्ट से नोटिस जारी
  4. घटती जा रही है केंद्रीय सहायता-तीन वर्षों में मिले 55150 करोड़
  5. क्या हिमाचल सरकार 1975 के आपातकाल को सही मानती है
  6. पहले 2000 मेगावाट का उत्पादन होगा उसके बाद दी जाएगी 300 यूनिट बिजली मुफ्त
  7. ओल्ड पैन्शन बहाली के प्रचार-प्रसार पर 18 दिनों में 53,66,951 रूपये खर्च किये सुक्खु सरकार ने
  8. ग्लोबल इन्वैस्टर मीट में हस्ताक्षरित 96720 करोड़ के निवेश और 1,96,800 रोजगारों का क्या हुआ
  9. व्यवस्था परिवर्तन के दावों का प्रशासन पर नहीं है कोई असर
  10. शिवधाम परियोजना में बजट का होना न होना बना विवाद
  11. जब वित्त वर्ष 2022-23 का घाटा ही 1064.35 करोड़ है तो प्रतिमाह इतना कर्ज क्यों?
  12. सरकारी भवनों के बहुमंजिला निर्माणों को मिली अनुमति से एनजीटी का फैसला फिर आया चर्चा में
  13. जब स्थितियां श्रीलंका जैसी हो रही है तो अनावश्यक नियुक्तियां क्यों?
  14. जब स्थितियां श्रीलंका जैसी हो रही है तो अनावश्यक नियुक्तियां क्यों?
  15. सीमेंट उद्योगों की तालाबन्दी वैध है या अवैध सरकार की इस पर चुप्पी सवालों में
  16. 25 जनवरी से 15 फरवरी तक जयराम की अगवाई में भाजपा का विरोध प्रदर्शन
  17. मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियों से फिर उठे वैधानिक सवाल
  18. क्या भाजपा की हार का ठीकरा संगठन सचिव के सिर फोड़ने की तैयारी है
  19. संस्थानों के डिनोटिफाई करने पर गरमायी प्रदेश की राजनीति
  20. क्या सुक्खू सरकार किसी साजिश का शिकार हो रही है

Subcategories

  • लीगल
  • सोशल मूवमेंट
  • आपदा
  • पोलिटिकल

    The Joomla! content management system lets you create webpages of various types using extensions. There are 5 basic types of extensions: components, modules, templates, languages, and plugins. Your website includes the extensions you need to create a basic website in English, but thousands of additional extensions of all types are available. The Joomla! Extensions Directory is the largest directory of Joomla! extensions.

  • शिक्षा

    We search the whole countryside for the best fruit growers.

    You can let each supplier have a page that he or she can edit. To see this in action you will need to create a users who is in the suppliers group.  
    Create one page in the growers category for that user and make that supplier the author of the page.  That user will be able to edit his or her page.

    This illustrates the use of the Edit Own permission.

  • पर्यावरण

Facebook



  Search