Friday, 19 September 2025
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ओल्ड पैन्शन बहाली के प्रचार-प्रसार पर 18 दिनों में 53,66,951 रूपये खर्च किये सुक्खु सरकार ने

  • डॉ.जनक के सवाल के जवाब में आयी जानकारी
  • क्या कठिन वित्तीय स्थितियों के चलते यह प्रचार-प्रसार आवश्यक था।

शिमला/शैल। सुक्खु सरकार ने अपने कर्मचारियों के लिए पुरानी पैन्शन योजना बहाल कर दी है। क्योंकि यह चुनावी वायदा और मंत्रिमण्डल की पहली ही बैठक में इसे लागू करने का वायदा किया गया था। इस आश्य का फैसला 13 जनवरी को लिया गया था। इस फैसले को प्रचारित प्रसारित करने के लिये सरकार ने 31 जनवरी तक 18 दिनों में 53,66,951 रुपये समाचार पत्रों, दूरदर्शन, आकाशवाणी व अन्य स्थानीय चैनलों के माध्यम से विज्ञापनों पर खर्च किये हैं। यह जानकारी 16-03-2023 को भरमौर के विधायक डॉ. जनक राज के प्रश्न के उत्तर में सरकार ने दी है। 24 समाचार पत्रों और चार स्थानीय चैनलों में यह विज्ञापन जारी किये गये हैं। सरकार की विज्ञापन नीति पिछली सरकार के समय से ही विवादित रही है। इस सरकार में भी यह विवाद बना हुआ है और अब तो मामला उच्च न्यायालय में भी पहुंच गया है। सर्वोच्च न्यायालय और प्रैस परिषद कुछ मामलों में यह स्पष्ट फैसले दे चुकी है कि विज्ञापनों पर खर्च होने वाला पैसा सरकारी धन है और उसके आबंटन में पक्षपात नहीं किया जा सकता। अभी पिछले दिनों पंजाब सरकार की मोहल्ला क्लीनिक योजना का विज्ञापन कुछ बाहर के प्रदेशों के अखबारों में देने की बात आयी थी। सरकार यह विज्ञापन देना चाहती थी इस पर शायद दस करोड़ खर्च होने थे। लेकिन संबंधित अतिरिक्त मुख्य सचिव ने इस प्रस्ताव को यह कहकर ठुकरा दिया कि यह योजना पंजाब के लिये है। इसका प्रचार-प्रसार दूसरे प्रदेशों में पंजाब के पैसे से नहीं किया जा सकता।
यह प्रकरण यहां इसलिये प्रसांगिक हो जाता है की पुरानी पैन्शन हिमाचल के कर्मचारियों को मिली है। प्रदेश सरकार का यह अपना फैसला है और सिर्फ कर्मचारियों तक सीमित है। क्या इस फैसले को इस तरह विज्ञापनों के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित किया जाना आवश्यक है। हिमाचल में पर्यटन को छोड़कर ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित-प्रसारित किये जाने की आवश्यकता हो। फिर जिस तरह की वित्तीय स्थितियों से प्रदेश गुजर रहा है बढ़ते कर्ज के कारण हालात श्रीलंका जैसे होने की आशंका स्वयं मुख्यमंत्री व्यक्त कर चुके हैं। ऐसे में क्या इस तरह के खर्चों को जायज ठहराया जा सकता है शायद नहीं। यह ठीक है कि हर सरकार अपना प्रचार-प्रसार चाहती है। हिमाचल में भी यह चलन चल पड़ा है की सरकारें मीडिया मंचों के माध्यम से श्रेष्ठता के तमगे लेने की दौड़ में रहती है और इसके लिए उन समाचार पत्रों या मीडिया चैनलों का सहारा लिया जाता है जिनका प्रदेश में शून्य प्रभाव होता है। अभी जिन समाचार पत्रों और चैनलों को यह विज्ञापन जारी किये गये हैं यदि उनके चुनावी आकलन सही उत्तरते तो प्रदेश में कांग्रेस की सरकार कभी न बनती।
यह कड़वा सच है कि जनता की बात करने वाले और सरकार के फैसलों की निष्पक्ष समीक्षा करने वाले सरकार को अच्छे नहीं लगते हैं। ऐसे लोगों को सरकार का विरोधी करार देकर उनकी जबान बन्द करने का प्रयास किया जाता है। उनके विज्ञापन बन्द करके उनके प्रकाशनों को बन्द करवाने का प्रयास किया जाता है। पिछली सरकार के वक्त भी विज्ञापनों की जानकारी मांगने का प्रशन विधायक राजेन्द्र राणा और आशीष बुटेल की हर सत्र में आता रहा है और जयराम सरकार का अन्तिम सत्र तक ‘‘सूचना एकत्रित की जा रही है’’ का जवाब देकर ही प्रश्न टाला है। स्वभाविक है कि किसी प्रश्न का उत्तर लगातार तभी टाला जाता है जब उसमें कुछ घपला हुआ होता है। यह जवाब टालने का ही प्रयास है कि वह सरकार सारे दावों के बावजूद सत्ता से बाहर हो गयी। आज ऐसा लग रहा है कि सुक्खु सरकार की कुछ मामलों में जयराम सरकार के ही पद चिन्हों पर चल पड़ी है। भ्रष्टाचार के खिलाफ भाषण से अधिक नहीं करने की नीति पिछली सरकार की भी थी और यह सरकार उसी पर अमल कर रही है इसलिए भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों की फाइलों पर मुख्यमंत्री सचिवालय में भी महीनों तक कोई कारवाई नहीं हो रही है। पिछली सरकार के वक्त विज्ञापनों को लेकर जो सवाल पूछा गया था और जवाब टाला गया यदि उसी मामले की इमानदारी से पड़ताल की जाये तो बहुत कुछ चौंकाने वाला सामने आयेगा।
सूचना और जनसंपर्क विभाग सरकार का अति महत्वपूर्ण विभाग है। क्योंकि सूचना रखना और जन से संपर्क बनाना ही इसका दायित्व है। लेकिन संयोगवश यह विभाग यही काम नहीं कर रहा है। क्योंकि अभी तक भी विभाग में विभिन्न समाचार पत्रों की भूमिका के बारे में स्पष्ट नहीं है। जबकि भारत सरकार ने दैनिक सप्ताहिक समाचार पत्र और वैब पोर्टलों के लिए पीआईबी के माध्यम से कुछ मानक तय कर रखे हैं और छोटे पत्रों के लिये अपनी साइट का होना जरूरी कर रखा है ताकि वह संस्था और मुद्रण कि कुछ बाध्यताओं से मुक्त रह सकें। लेकिन प्रदेश का यह विभाग अभी भी भारत सरकार के मानकों का अनुसरण न करके विज्ञापनों को दण्ड और पुरस्कार के रूप में प्रयोग कर रहा है। यदि यही चलन जारी रहा तो इससे सरकार को ही नुकसान होगा यह तय है।

ग्लोबल इन्वैस्टर मीट में हस्ताक्षरित 96720 करोड़ के निवेश और 1,96,800 रोजगारों का क्या हुआ

रोजगार गारंटी के परिप्रेक्ष में उठी चर्चा
उद्योग विभाग के 250 एमओयू में आना था 17063.22 करोड़
पर्यटन में 16559.94 करोड़ के 225 एमओयू हुये थे साइन
आवास में आना था 12054.50 करोड़ का निवेश
इस असफलता के लिये कौन है जिम्मेदार राजनीतिक नेतृत्व या प्रशासन

शिमला/शैल। कांग्रेस ने जो दस गारंटीयां प्रदेश की जनता को चुनाव से पहले दी हैं उनमें से एक पांच लाख रोजगार उपलब्ध करवाने की भी है। सभी गारंटीयों को कैसे पूरा किया जायेगा इसके लिये रोडमैप तैयार करने का काम कुछ कमेटीयों को सौंपा गया है। पांच लाख रोजगार सरकार में ही सृजित नहीं किये जा सकते क्योंकि सरकारी कर्मचारियों की कुल संख्या ही तीन लाख से कम है। स्वभाविक है कि इतना रोजगार पैदा करने के लिये प्राईवेट सैक्टर का भी सहारा लेना पड़ेगा। प्राइवेट सैक्टर के निवेश की व्यवहारिक स्थिति क्या है इसकी जानकारी जयराम सरकार के समय में वर्ष 2019 में आयोजित ग्लोबल इन्वैस्टर मीट से जुटाई जा सकती है। धर्मशाला में आयोजित हुई इस मीट में निवेशकों को बुलाने के लिये देश और विदेश में रोड शो आयोजित किये गये थे। इन आयोजनों पर करीब 12 करोड़ रुपये खर्च हो गये हैं। लेकिन इतने बड़े आयोजन के बाद इस मीट का व्यवहारिक परिणाम क्या निकला है। स्मरणीय है कि इस मीट में 96720 करोड़ के प्रस्तावित निवेश के 703 समझौता ज्ञापन हस्ताक्षरित हुए थे और इस निवेश से 1,96,800 लोगों को रोजगार हासिल होने का दावा किया था। सरकार के 19 विभागों ने यह समझौता ज्ञापन साईन किये थे। यदि करीब एक लाख करोड़ के निवेश से करीब दो लाख रोजगार पैदा होने का अनुमान था तो पांच लाख रोजगार के लिए करीब चार लाख करोड़ का निवेश होना चाहिये।
इस निवेश मेले में सबसे अधिक 250ै ज्ञापन उद्योग विभाग ने साइन किये थे और इसमें 17063.22 करोड़ का निवेश होना था। दूसरे स्थान पर पर्यटन था और इसमें 16559.94 करोड़ के 225 ज्ञापन हस्ताक्षरित हुये थे। आयुष विभाग में 1269.25 करोड़ के निवेश के 45 ज्ञापन और उच्च शिक्षा में 1713 करोड़ के 44 एमओयू साईन हुए थे। हाउसिंग के 33 एमओयू में 12054.50 करोड़ निवेश होना था। इस मीट में जितना निवेश आने के एमओयू साईन हुये थे और रोजगार का दावा किया गया यदि इन दावों का आधा भी व्यवहार में होता तो प्रदेश पर शायद इतना कर्ज भी न होता और बेरोजगारी में देश के पहले छः राज्यों में प्रदेश न आता। आज भी सरकार पर्यटन के क्षेत्र में ए.डी.बी का 1311 करोड़ का कर्ज निवेश करने जा रही है। 2019 की ग्लोबल इन्वैस्टर मीट से पहले भी ए.डी.बी. का 256.99 करोड़ कर्ज निवेशित हो चुका है। लेकिन इस सबके बाद भी परिणाम यह है कि 28-9-2019 को हस्ताक्षरित हुए 225 एम ओ यू में से शायद एक भी जमीन पर नही उतर पाया है।
एमओ यू को अमलीजामा पहनाने के लिये तीन बुनियादी आवश्यकताएं होती हैं। पहली जमीन दूसरी कैपिटल और तीसरी मार्केटिंग। यदि इनमें से एक की भी कमी हो तो कोई भी परियोजना सिरे नहीं चढ़ती है। इसलिये जिस इन्वैस्टर मीट पर प्रदेश के आम आदमी का करोड़ों रुपया आयोजन पर निवेश कर दिया गया है उसके वांछित परिणाम क्यों सामने नहीं आये हैं यह कारण जानने का आम आदमी को अधिकार है। यह सामने आना चाहिये कि क्या सरकार इन लोगों को जमीन ही उपलब्ध करवा पायी। या इनके पास वांछित कैपिटल का अभाव था या निवेश के बाद मार्केटिंग की सुविधायें नहीं थी। जिन विभागों ने यह एमओयू साइन किये थे उन्होंने इन्हें अमलीजामा पहनाने के लिये क्या कदम उठाये? क्या निवेशकों से कोई पत्राचार किया गया तो उसका क्या परिणाम सामने आया। यह सब प्रदेश के आम आदमी के सामने रखा जाना चाहिये। क्योंकि इस सरकार को भी वायदा किये रोजगार पैदा करने के लिए प्राइवेट सैक्टर का ही सहारा लेना पड़ेगा। पिछली सरकार ने ग्रामीण विकास विभाग के तहत दो रोजगार योजनाएं घोषित की थी। अब इस सरकार ने उन दोनों योजनाओं को एक करके उद्योग विभाग को जिम्मेदारी दे दी है। लेकिन उन योजनाओं के तहत कितने लोगों को रोजगार मिल पाया है इसका कोई आंकड़ा सामने नहीं आ पाया है। यदि डबल इंजिन की सरकार के समय में भी निवेशक प्रदेश में नहीं आ पाया है तो आज कैसे आ पायेगा यह बड़ा सवाल है। जबकि प्रधानमंत्री और केन्द्रिय वित्त मन्त्री हर आदमी को कर्ज के लिये प्रेरित कर रहे थे। बैंकों को खुले मन से कर्ज बांटने के निर्देश थे। इस सबके बावजूद प्रदेश में यह प्रस्तावित निवेश क्यों नहीं आ पाया इसके कारण सामने आने ही चाहिये।

              यह था प्रस्तावित निवेश

   विभाग                    एमओयू                निवेश
1. कृषि                        2                 225 करोड़
2.आयुष                      45              1269.25 करोड़
3.प्रारंभिक शिक्षा             5                   6.85 करोड़
4.उच्च शिक्षा                 44                 1713 करोड़
5. मत्स्य पालन                 1                     7 करोड़
6. वन                           1                    25 करोड़
7. स्वास्थ्य                       5                   632 करोड़
8.बागवानी                      6                   77.55 करोड़
9. उद्योग                     250                17063.22 करोड़
10.आईटी                     14                 2833.21 करोड़
11. भाषा कला संस्कृति       1                  25 करोड़
12. उर्जा                       18               34112 करोड़
13. कौशल विकास            7                 15 करोड़
14. खेल                         2                 116 करोड़
15.तकनीकी शिक्षा             1                 300 करोड़
16. पर्यटन                    225               16559.94 करोड़
17. परिवहन                   13                 3658 करोड़
18. शहरी विकास             30                6027.66 करोड़
19. आवास                     33                12054.50 करोड़

व्यवस्था परिवर्तन के दावों का प्रशासन पर नहीं है कोई असर

  • राकेश चौधरी की शिकायत से आया यह सच सामने
  • एक वर्ष से बिल्डर के खिलाफ आयी शिकायत पर कोई कारवाई नहीं
  • रेरा ने भी नहीं लिया कोई संज्ञान

शिमला/शैल। रियल स्टेट को अनुशासित रखने के लिए रेरा गठित है। इसमें बिल्डर्स परिभाषित हैं। लेकिन रेरा के बावजूद बिल्डर सारे राजस्व नियमों को ताक पर रखकर काम कर रहे हैं। यहां तक जमीन जायदाद खरीद बेच के समय नियमों को अंगूठा दिखाते हुये स्टांप डयूटी की करोड़ों की चोरी के अंजाम दे रहे हैं। यह खुलासा हुआ है एक राकेश चौधरी द्वारा मंडलायुक्त शिमला को भेजी शिकायत से। राकेश चौधरी फरवरी 2022 को मंडलायुक्त शिमला के नाम बिल्डर्स इंफ्रास्ट्रक्चर डवैल्पमैन्ट सोलन के खिलाफ भेजी थी। इस शिकायत का संज्ञान लेते हुये मंडलायुक्त कार्यालय ने 26 फरवरी 2022 को इसे जिलाधीश सोलन को आगामी कारवाई के लिये भेज दिया और इसकी सूचना शिकायतकर्ता राकेश चौधरी को भी भेज दी। लेकिन एक वर्ष बीत जाने के बाद भी इस पर कोई कारवाई नहीं हुई है। शिकायत के मुताबिक 18 मई 2010 को टाऊन एंड कन्ट्री पलानिंग विभाग से हाऊसिंग प्रोजेक्ट शकुनज सनसिटी के नाम से स्वीकृत करवाया। जिसमें कुल 206 फ्लैट्स बने हैं। आरोप है कि इसमें 90% फ्लैट बिना किसी वैध खरीद पंजीकरण के बने हैं। इन फ्लैट्स को बेचा भी बिना पंजीकरण के जा रहा है। यह भी आरोप है कि एक ही फ्लैट को कई-कई बार खरीदा बेचा जा रहा है। बिल्डर धारा 118 के तहत हिमाचल सरकार से फ्लैट खरीद की अनुमति लेने में भी वांछित सहयोग नहीं कर रहा है। यह सहयोग न मिलने पर खरीदार इसी बिल्डर को पुनः वह फ्लैट बेचने पर विवश हो रहे हैं। इस तरह की खरीद बेच में करोड़ों की स्टांप डयूटी की चोरी होना स्वभाविक है। खरीददार यदि कोई शिकायत करता है तो उसे बाहुबल से भी डराने का आरोप है। जब संबद्ध सरकारी तंत्र एक वर्ष तक शिकायत पर सुनवाई नहीं करेगा तो तंत्र और बिल्डर्स की सांठगांठ होने के आरोपों को स्वतः ही प्रमाणिकता मिल जाती है। क्योंकि शिकायत के मुताबिक यह प्रोजेक्ट मई 2010 में टीसीपी से अप्रूव हुआ। इसमें 206 फ्लैट्स बन गये। जब यह प्रोजेक्ट शुरू हुआ तब स्वभाविक है कि 206 फ्लैट बनाने वाला बिल्डर रेरा के इन मानकों के दायरे में आया होगा। ऐसे में जब यह फ्लैट निर्माणाधीन चल रहे होंगे तब क्या किसी भी निगरान एजेंसी ने इसका निरीक्षण नहीं किया होगा। इतने बड़े निर्माण के लिये प्रदूषण की अनुमतियां भी वांछित रही होंगी। किसी बैंक से इस परियोजना को फाइनैंस भी करवाया गया होगा और उस कर्ज की भरपाई फ्लैट बेचकर ही की होगी। तब क्या इस खरीद बेच की वैधता पर सवाल नहीं उठे होंगे।
स्वभाविक है कि जिस बिल्डर के खिलाफ अब इतनी बड़ी शिकायत आ रही है उसको लेकर रेरा तक भी जानकारियां सूचनाएं पहुंची होंगी। जिस बिल्डर ने 206 फ्लैट बनाकर बेचे होंगे और उसमें वैध पंजीकरण ही न रहा होगा तो उसमें स्टांप डयूटी को लेकर सरकार को कितना नुकसान हुआ होगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। इस पर सारा राजस्व प्रशासन किस गति से काम कर रहा है इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रशासन पर सत्ता परिवर्तन का कितना असर हुआ है। सरकार व्यवस्था बदलने के दावे कर रही हैं और प्रशासन पर इसका कोई असर ही नहीं हो रहा है। प्रशासन के इस कड़वे सच को समझने के लिये यह शिकायत यथास्थिति पाठकों के सामने रखी जा रही है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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